सौंठ की घरलू दवाएं, उपचार: सौंठ बुखार, कोष्ठ रोग, सिरदर्द, जुकाम, नजला रोग, दमा रोग, मूर्च्छा, कान का दर्द, निमोनिया रोग, पाचन शक्ति, पेचिस, खूनी पेचिस, ग्रहणी, भूख की वृद्धि, जीभ की मैल, कंठ शुद्धि, हृदय रोग, कब्जियत, भस्म रोग, पेट के रोग, पेट की वायु, पेट का अफारा, पेट दर्द, पेट की ऐंठन, वमन (उल्टी), बहुमूत्र, अर्शजनित वेदना, पेशाब की जलन, पेशाब की रुकवाट, लिंग की सूजन, अंडकोष की वृद्धि, अंडकोष की सूजन, पीलिया रोग, दस्त, खूनी दस्त, पित्त के दोष, वातरक्त, वातशूल, सूजन, दर्द, खांसी, छाती का दर्द, पाँजर की पीड़ा, पीठ की पीड़ा, जोड़ो का दर्द, घुटनों का दर्द, गंठिया रोग, ज्वर तृषा, प्यास नियंत्रित, दाह ज्वर, पित्तज, हैजा रोग, इन्फ्ल्यूएंजा (महामारी), सन्निपात, सन्निपात का ज्वर, शरीर की गर्मी आदि बिमारियों के इलाज में सौंठ की घरेलू दवाएं, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक उपचार, औषधीय चिकित्सा प्रयोग एवं सेवन विधि निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है: सौंठ के फायदे, लाभ, घरेलू दवाएं, उपचार, औषधीय गुण, सेवन विधि एवं नुकसान:-
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Table of Contents
हिंदी – आदी, अदरक, सौंठ
अंग्रेजी – जिंजर, The dry Ginger
संस्कृत – आर्दक, आर्दशाक
गुजराती – आदु
मराठी – आलें
बंगाली – आदा, सूंठ
तैलगू – सल्लम, शोंठि
द्राविड़ी – हमिशोठ
अरबी – जजबील, रतन
कन्नड़ – शुंठी
फ़ारसी – शंगवीर आदि नामों से सौंठ को जाना जाता है।
अदरक में आर्द्रता 80.9%, प्रोटीन 2.3%, वसा 0.9%, सूत्र 2.4%, डार्बोहाइड्रेट 12.3%, खनिज 1.2%, कैल्शियम 20%, फास्फोरस 60%, लौह 2.6%, मिलग्राम प्रति 100 ग्राम तथा कुछ आयोडीन और क्लोरीन भी होता है। विटामिन ए. बी. और सी भी होते हैं। सौंठ में नमी 10-9%, प्रोटीन 15.4%, सूत्र 6.2%, स्टार्च 5.3%, कुल भस्म 6.6%, उड़नशील तेल 1-2.6% होता है। उड़नशील तेल छिलके वाली सौंठ से प्राप्त किया जाता है, क्योंकि अदरक के छिलके में ही तेल कोषाणु विशेष रूप से मिलते हैं। यही तेल अदरक से भी निकाला जा सकता है, इस तेल का नाम सौंठ तेल आयल आफ जिंजर है। इसमें कटुता नहीं होती। इस तेल में जिंजी बेरिन तथा जिंजिबराल आदि तत्व होते हैं। सौंठ में उपस्थित होने वाला कटु तत्व उड़नशील नहीं होता। अतः सौंठ के चूर्ण को अल्कोहल या ईथर में रखने पर एक गाढ़ा गहरे भूरे रंग का तेलीय राल, जिसे जिंजरीन भी कहते है, प्राप्त होता हैं। द्रव्य की सारी कटुता इसी में होती है। यह लगभग 6.5% होता है। इसके अतिरिक्त तेलीय राल में सुगंधित तेल 6-28% तथा अकटू पदार्थ 30% होते हैं। कटु तत्वों में जीजनरोल, शोगाओल तथा जिजंरीन प्रमुख है।
ज्वर (बुखार) जैसी जटिल समस्या से छुटकारा पाने के लिए मरीज को सौंठ एवं धमासा का कषाय पंचविध काढ़ा बनाकर नियमित सुबह-शाम पिलाने से बुखार के रोगी को फौरन आराम मिलता है।
कुष्ठ रोग में सौंठ, मदार की पत्ती, अडूसा की पत्ती, निशोथ, बड़ी इलायची, कुंदरू इन सबका समान-समान मात्रा में चूर्ण बनाकर पलाश के क्षार और गोमूत्र में घोलकर बने हुए काढ़ा का लेप लगाकर धूप में तब तक बैठे जब तक वह सूख न जाए, इससे कुष्ठ रोग के छाले फूट जाते हैं और उसके घाव शीघ्र ही भर जाते हैं।
शिरोवेदना (सिरदर्द) में गाय का दूध से चतुर्थाश सौंठ का कल्क मिलाकर नस्य देने से सभी प्रकार के सिर दोषों से उत्पन्न तीव्र शिरोवेदना शांत हो जाती है।
जुकाम से परेशान मरीज को 2 चम्मच अदरक के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से श्वास कास तथा जुकाम आदि रोग शांत होते हैं।
नजला रोग में 2 चम्मच सौंठ सूखी अदरक का रस गर्म करके उसमें मधु मिलाकर पीने से नजले-जुकाम का वेग कम होता है। शीत प्रशमन होता है। नजला रोग से राहत मिलती है।
दमा रोग के रोगी को पिप्पली तथा सैंधा नमक इन सब के चूर्ण को अदरक के रस के साथ सोने से पहले सेवन कररने से दमा रोग सात दिन के अंदर ही श्वास रोग से मुक्त मिलत जाती है।
मूर्च्छा होने पर अदरक के रस की नस्य लेने से ज्वर में होने वाली मूर्च्छा/बेहोशी आदि बिमारियों में सौंठ बहुत फायदेमंद होती है।
दंतशूल (दंतपीड़ा) में सर्दी से होने वाले दंत पीड़ा में सौंठ के टुकड़े को दांतों के बीच दबाने से दांत की पीड़ा शांत हो जाती है।
कान के दर्द से छुटकारा पाने के लिए अदरक का रस हल्का गुनगुना कर 2-5 बून्द कान में टपकाने से कान का दर्द मिटता है।
निमोनिया रोग में अदरक के रस में 1 या दो वर्ष पुराना गाय का घी व कपूर मिलाकर गर्म करके छाती पर मालिश करने से निमोनिया रोग में शीघ्र लाभ होता है।
पाचन शक्ति में सौंठ, अतीस, नागरमोथा, इन सबका काढ़ा बनाकर खिलाने से पाचन शक्ति में लाभ होता है। अथवा सौंठ, अतीस, नागरमोथा का कल्क केवल पथ्या का चूर्ण अथवा सौंठ का चूर्ण मिलाकर 1 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से भी आम का पाचन होता है। मात्रा- 500 मिलीग्राम से 2 ग्राम तक होना चहिए।
पेचिस में सौंठ, नागरमोथा, अतीस, गिलोय, इन्हें समभाग मिलाकर जल के साथ काढ़ा बनाकर इस काढ़ा को सुबह-शाम पीने से पेचिस पड़ना बंद हो जाता है। मात्रा 20 से 25 मिलीलीटर होनी चहिए।
खूनी पेचिस में सौंठ, नागरमोथा, अतीस, गिलोय, इन्हें समभाग मिलाकर मात्रा 20 से 25 मिलीलीटर जल के साथ काढ़ा बनाकर इस काढ़ा को सुबह-शाम पिलाने से खूनी पेचिस में लाभ होता है।
ग्रहणी रोग में गिलोय, अतीस, सौंठ, नागरमोथा, इन चारों की मात्रा 20 से 25 मिलीलीटर दिन में दो तीन बार सेवन करने से ग्रहणी रोग में शीघ्र लाभ होता है।
भूख वृद्धि में 2 ग्राम सौंठ का चूर्ण घृत के साथ अथवा केवल सौंठ का चूर्ण गर्म पानी के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल खाने से भूख में वृद्धि होती है। अदरक का अचार बनाकर खाने से भूख बढ़ती है।
जीभ की मैल प्रतिदिन भोजन के प्रारम्भ में लवण एवं अदरक की चटनी खाने से जीभ की मैल साफ हो जाती है।
कंठ की शुद्धता में प्रतिदिन भोजन के प्रारम्भ में लवण एवं अदरक की चटनी नियमित रूप खाने से कंठ की शुद्धता होती है।
हृदय रोग से परेशान मरीज को प्रतिदिन भोजन के प्रारम्भ में लवण एवं अदरक की चटनी सुबह-शाम खिलाने से हृदय रोग शीघ्र ठीक हो जाता है।
कब्जियत से छुटकारा पाने के लिए रात्रि का भोजन न पचने की शंका हो तो हरड़, सौंठ तथा सैंधा नमक चूर्ण जल के साथ एक चम्मच खा लेवें। दोपहर अथवा सांयकाल थोड़ा भोजन करने से कब्जियत में लाभ होता है।
भस्म रोग में सौंठ और पित्तपापड़ा का पाक ज्वरनाशक, अग्नि प्रदीप्त करने वाला तृष्णा तथा भोजन की अरुचि को शांत करने में यह सक्षम है। इसे 5-10 ग्राम की मात्रा में नित्य सेवन करने से भस्म रोग ठीक हो जाता है।
उदर रोग में सौंठ, हरीतकी, बहेड़ा, आंवला इनको समभाग मिलाकर कल्क बना ले, गाय का घी तथा तिल का तेल ढाई किलोग्राम, दही का पानी ढाई किलोग्राम इन सबको मिलाकर विधिपूर्वक घी को पका ले तैयार हो जाने पर छानकर रख लें। इस घृत का पान 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के उदर रोगों का नाश होता है।
पेट की वायु में सौंठ, हरीतकी, बहेड़ा, आंवला इनको समभाग मिलाकर कल्क बना ले, गाय का घी तथा तिल का तेल ढाई किलोग्राम, दही का पानी ढाई किलोग्राम इन सबको मिलाकर विधिपूर्वक घी को पका ले तैयार हो जाने पर छानकर रख लें। इस घृत का पान 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट की वायु ठीक हो जाती है। अजवायन, सैंधा नमक, हरड़, सौंठ इनके चूर्णों को समपरिमाण में एकत्रित करें। मात्रा 500 से 250 मिलीलीटर तक। यह चूर्ण पेट की वायु को नष्ट करता है।
पेट का अफारा से छुटकारा पाने के लिए मरीज को सौंठ, हरीतकी, बहेड़ा, आंवला इन सबको समान मात्रा में मिलाकर कल्क बना ले, गाय का घी तथा तिल का तेल ढाई किलोग्राम, दही का पानी ढाई किलोग्राम इन सबको मिलाकर विधिपूर्वक घी को पका ले तैयार हो जाने पर छानकर रख लें। इस घृत का पान 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट का अफारा दूर हो जाता है।
पेट की पीड़ा में शीघ्र लाभ पाने के लिए रोगी को सौंठ, हरीतकी, आंवला इनको समभाग मिलाकर कल्क बना ले, गाय का घी तथा तिल का तेल ढाई किलोग्राम, दही का पानी ढाई किलोग्राम इन सबको मिलाकर विधिपूर्वक घी को पका ले तैयार हो जाने पर छानकर रख लें। इस घृत का पान 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है। इसके 10-20 ग्राम रस में समभाग नींबू का रस मिलाकर पिलाने से मंदाग्नि दूर होती है।
पेट की ऐंठन में सौंठ, बहेड़ा, आंवला इन सबको बराबरा की मात्रा में मिलाकर कल्क बना ले, गाय का देशी घी तथा तिल का तेल ढाई किलोग्राम, दही का पानी ढाई किलोग्राम इन सबको मिलाकर विधिपूर्वक घी को पका ले तैयार हो जाने पर छानकर रख लें। इस घृत का पान 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट की ऐंठन ठीक हो जाती है।
वमन उल्टी होने पर अदरक के 10 ग्राम रस में 10 ग्राम प्याज का रस मिलाकर दो तीन बार पिलाने से उल्टी बंद हो जाती है।
बार-बार पेशाब लगने पर अदरक के 2 चम्मच रस में मिश्री मिला सुबह-शाम सेवन करने से पेशाब लगना कम हो जाता है।
अर्शजनित वेदना में दुरालभा और पाठा, वेल का गूदा और पाठा, अजवाइन व पाठा अथवा सौंठ और पाठा इनमे से किसी एक योग का सेवन करने से अर्शजनित वेदना का शांत हो जाती है।
पेशाब की जलन में सौंठ, कटेरी की जड़, बला मूल, गोखरू इन सबको 2-3 ग्राम की मात्रा तथा 10 ग्राम पुराना गुड़ को 250 ग्राम गाय के दूध में उबालकर सुबह-शाम पिलाने से मल-मूत्र की जलन शांत हो जाती है।
पेशाब की रुकवाट में सौंठ, कटेरी की जड़, बला मूल, गोखरू इन सबको 2-3 ग्राम की मात्रा तथा 10 ग्राम पुराना गुड़ को 250 ग्राम गाय के दूध में उबालकर सुबह-शाम पिलाने से मल-मूत्र की रूकावट में लाभ होता है।
लिंग की सूजन से परेशान मरीज को सौंठ, कटेरी की जड़, बला मूल, गोखरू इन सबको 2-3 ग्राम की मात्रा तथा 10 ग्राम पुराना गुड़ को 250 ग्राम गाय के दूध में उबालकर सुबह-शाम नियमित पिलाने से लिंग की सूजन बिखर जाती है।
अंडकोषवृद्धि में अदरक के 10-20 ग्राम स्वरस में 2 चम्मच शहद मिलाकर रोगी को पिलाने से अंडकोषवृद्धि नष्ट हो जाती है।
अंडकोष की सूजन में अदरक के 10-20 ग्राम स्वरस में 2 चम्मच शहद मिलाकर रोगी को पिलाने से अंडकोष की सूजन बिखर जाती है।
पीलिया रोग से ग्रसित मरीज को अदरक, त्रिफला और पुराना गुड़ मिलाकर पीलिया रोगी को खिलाने से पीलिया रोग मिटता है।
दस्त से ग्रसित मरीज को सौंठ, खस, विल्वगिरि, मोथा, धनियां, मोचरस तथा नेत्रबाला का काढ़ा दस्त नाशक होता है।
खूनी दस्त में धनिया 10 ग्राम, सौंठ, 10 ग्राम इनका विधिवत काढ़ा बनाकर कर रोगी को सुबह-शाम सेवन कराने से खूनी दस्त मिटता है।
पित्त दोष में सौंठ और इंद्र जौ के समभाग चूर्ण को चावल के पानी के साथ रोगी को पीने को दें, जब चूर्ण पच जाए तो उसके बाद चांगेरी, तक्र, दाड़िम का रस मिलाकर पकाये पक जाने पर सुबह-शाम सेवन करने से पित्त दोष ठीक हो जाता है।
वातरक्त में अंशुमति के काढ़ा से 640 ग्राम दूध को पकाकर उसे 80 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से या उसकी प्रकार पिप्पली और सौंठ का काढ़ा बनाकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम पिलाने से वातरक्त के रोगी को आराम मिलता है।
वातशूल रोग में सौंठ तथा अररंडमूल के काढ़ा में हींग और सौवर्चल नमक मिलाकर सेवन करने से वातशूल नष्ट होता है।
शोथ सूजन होने पर सौंठ, पिप्पली, जमालगोटा की जड़, चित्रक मूल, वाय विडंग इन सभी द्रव्यों को समान मात्रा में लें और दूनी मात्रा में हरीतकी चूर्ण मिलाकर इस चूर्ण का सेवन 3-6 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ सुबह-शाम करने से सूजन बिखर जाती है।
शूल दर्द में सौंठ के काढ़ा के साथ काला नमक, हींग तथा सौंठ के मिश्रण चूर्ण का सेवन करने से कफवातज हृच्छूल, पाश्र्व शूल, पृष्ठःशूल, उदरजल, तथा विसूचिका, प्रभृति रोग नष्ट होते है। यदि मल बंध होता है तो इसके चूर्ण को जों के कड़ा के साथ पीने से दर्द शीघ्र नष्ट हो जाता है।
खांसी जैसी जटिल समस्या से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए सौंठ के काढ़ा के साथ काला नमक, हींग तथा सौंठ के मिश्रण चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से खांसी की समस्या से फौरन आराम मिलता है।
छाती के दर्द में सौंठ के काढ़ा के साथ काला नमक, हींग तथा सौंठ के मिश्रण चूर्ण नियमित सुबह-शाम सेवन करने से छाती जैसी जटिल समस्या से छुटकारा मिलता है।
पाँजर की पीड़ा में सौंठ के काढ़ा के साथ काला नमक, हींग तथा सौंठ के मिश्रण चूर्ण का सेवन करने से पाँजर की पीड़ा शांत होती है।
पीठ के दर्द जैसे गम्भीर समस्या से छुटकारा पाने के लिए मरीज को सौंठ के काढ़ा के साथ काला नमक, हींग तथा सौंठ के मिश्रण चूर्ण का सेवन सुबह-शाम तथा दोपहर प्रयोग करने से पीठ के दर्द में शीघ्र आराम मिलता है।
जोड़ी के दर्द में अदरक के एक किलोग्राम रस में 500 ग्राम तिल का तेल डालकर आग पर पकाकर लेना चहिए जब रस जलकर तेल मात्र रह जाये तो उतारकर छान लेना चाहिये। इस तेल की शरीर पर मालिश करने से जोड़ों की पीड़ा शांत होती है।
घुटनों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए अदरक के एक किलोग्राम रस को 500 ग्राम तिल तेल में डालकर धीमी आंच पर पका ले जब रस जलकर तेल मात्र शेष रह जाये तो आग से उतारकर रख ले, सुबह-शाम नियमित मालिश करने से घुटनों की पीड़ा शांत होती है।
गंठिया रोग में अदरक के एक किलोग्राम रस में 500 ग्राम तिल का तेल डालकर आग पर पकाकर लेना चहिए जब रस जलकर तेल मात्र रह जाये तो उतारकर छान लेना चाहिये। इस तेल की शरीर पर मालिश करने से गंठिया रोग में शीघ्र लाभ होता है।
ज्वर तृषा में सौंठ, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, खस लाल चंदन, सुगंध बेला इन सबको समभाग लेकर बताये गये काढ़ा को थोड़ा-थोड़ा पीने से तृषा ज्वर तथा प्यास शांत होती है। यह उस रोगी को देना चाहिये जिसे तृषा ज्वर में बार-बार प्यास लगती है।
प्यास को नियंत्रित रखने में सौंठ, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, खस लाल चंदन, सुगंध बेला इन सबको समभाग लेकर बताये गये काढ़ा को थोड़ा-थोड़ा पीने से प्यास शांत होती है।
दाह के कारण होने वाले ज्वर में सौंठ, गन्धबाला, पित्तपापड़ा खस, मोथा, लाल चंदन इन सबका काढ़ा बनाकर ठंडा करके सेवन करने से तृषा-वमन पित्तज्वर तथा दाह का निवारण होता है।
पित्तज्वर के रोगी को सौंठ, गन्धबाला, पित्तपापड़ा खस, मोथा, लाल चंदन इन सबका काढ़ा बनाकर ठंडा करके सेवन करने से तृषा-वमन पित्तज्वर ठीक हो जाता है।
हैजा रोग में अदरक का 10 ग्राम, आक की जड़ 10 ग्राम, इन दोनों को अच्छी तरह से खरल कर काली मिर्च के समान गोली बनालें। इन गोलियों को गुनगुने पानी के साथ दिन में दो तीन बार देने से हैजे में लाभ होता है।
महामारी के रोगी को 6 ग्राम अदरक के रस में 6 ग्राम मधु मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से महामारी खत्म हो जाती है।
सन्निपात ज्वर से ग्रसित मरीज को त्रिकूट, सैंधा नमक और अदरक का रस मिलाकर कुछ दिनों तक सुबह-शाम प्रयोग करने से सन्निपात का ज्वर उतर जाता है।
शरीर में गर्मी पैदा करने के लिए सन्निपात की दशा में जब शरीर ठंडा पड़ जाये तो अदरक के रस में थोड़ा लहसुन का रस मिलाकर मालिश करने से शरीर में गर्मी आ जाती है।
सौंठ सूखी अदरक भारतवर्ष के सभी स्थानों में सौंठ यानि की सूखी अदरक की खेती होती है। भूमि के अंदर उगने वाला कंद आर्द्र अवस्था में अदरक, व सूखी अवस्था में सौंठ कहलाता है।
यह उर्वरा तथा रेट मिश्रित भूमि में पैदा होने वाली गुल्म जाति की वनस्पति का कंद है, हर कोई इसे जानता है। सौंठ यानि सूखी अदरक के पत्ते बांस के पत्तों से मिलते जुलते तथा एक या डेढ़ फीट ऊँचे लगते हैं।
यह उष्ण होने से कफ-वात शामक है। सर्दी का नाश करने वाला, शोथहर और वेदनास्थापन है। यह नाड़ियों को उत्तेजना देने वाला और वातशामक है। यह तृप्तिध्न, रोचन, दीपन, पाचन, वातानुलोमन, शूल प्रशमन तथा अर्शोधन है। उष्ण होने के कारण हृदय एवं रक्तवह संस्थान को उत्तेजित करता है। यह शोथहर तथा रक्त शोधक है। अदरक कटु और स्निघ्ध के कारण कफध्न और श्वास हर है। यह मधुर विपाक होने से वृष्य और उष्ण होने से उत्तेजक है। यह ज्वरध्न और शीत प्रशमन है। सौंठ एक उत्तम आमपाचन है। अतः शरीस्थ आमदोष का पाचन कर आम से उत्पन्न होने वाले विविध विकारों को दूर करती है। तीक्ष्णता के कारण यह स्त्रोतोवरोधक का भी निवारण करती है।
किसी-किसी लोगों को गर्म चीजे खाने से एलर्जी होती है, उन व्यक्तियों को सौंठ का अधिक मात्रा में प्रयोग नहीं करना चहिए। क्योंकि सौंठ बहुत गर्म होती है।
अधिक मात्रा में सोंठ या ताजे अदरक का उपयोग करने से आपके पेट में समस्या पैदा हो सकती है। अधिक मात्रा में सोंठ का प्रयोग करने से पेट में जलन हो सकती है। तथा पेट में ऐंठन और दस्त जैसे जटिल समस्या का समना करना पड़ सकता है।
अत्याधिक मात्रा में सोंठ का सेवन करने से मासिक धर्म के दौरान में रक्त और तेजी से बहना शुरू हो जाता है।
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