आक (मदार) के फायदे, गुण, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग
आक (अर्क) के दिव्य औषधीय गुण
आक (मदार) के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग
आक, अर्क (मदार) अनेक रोगों की दवा जैसे:- गंठिया, लकवा, बुखार, योनि रोग, नपुंसकता, बांझपन, बवासीर, सफ़ेद दाग, खांसी, पीलिया, पेट दर्द, खुनी दस्त, मुंह की झांई, सिर की खुजली, कर्णरोग, नेत्र रोग, मोतियाबिंद, मिर्गी, दन्त पीड़ा, हैजा, अंडकोष की सूजन, वमन, जलोदर, मूत्राधात, भगन्दर, दाद, हांथी पाँव, डिब्बारोग, आधाशीशी, उपदंश, गले की गांठ, खाज, जख्म, यकृत, सूनापन, ततैया विष आदि बिमारियों के इलाज में आक, अर्क के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
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गंठिया रोग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
गठिया में आक का फूल, काली मिर्च, सौंठ, हल्दी व नागरमोथा बराबर मात्रा लें। इन सबको जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। 2-2 गोली सुबह-सांय जल के साथ सेवन करें। तथा आक के 2-4 पत्तों को कूटकर पोटली बना, घी लगाकर गर्म कर सेंक करें। सेकने के पश्चात आक के पत्तों पर घी चुपड़कर गर्म करके बांध देने से गांठ बिखर जाती है। गंठिया रोग में अनार के फायदे
लकवा में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
लकवा में आक की आधा किलोग्राम जड़ों को 4 किलो ग्राम पानी में पकावें, एक किलो पानी शेष रहने जाने पर छान लें। उसमें बराबर मात्रा में चीनी तथा 6-6 ग्राम पीपल, इलायची, वंश लोचन, काली मिर्च और मुलेठी का चूर्ण मिलाकर धीमी आंच पर काढ़ा बनाकर नियमित सेवन करने से लकवा रोग ठीक होता है।
बुखार में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
ज्वर (बुखार) में आक की नई कोपल डेढ़ नग, आक के पुष्प की बंद कली 1 नग दोनों को गुड़ में लपेट गोली बना, ज्वर वेग के 2 घंटे पहले सेवन कराने से ज्वर वेग रुक जाता है। अर्क का दूध 4 बूंद, चिरायते का रस 15 बूंद और कच्चे पपीते का रस 10 बूंद मिश्रण करके दिन में 3 बार गौमूत्र के साथ सेवन करने सेब 3 दिन में मलेरिया ठीक हो जाता है। बुखार में अनार के फायदे
योनि रोग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
योनि रोग में – योनि सुदृढ़ करने के लिए आक की जड़ के चूर्ण को भांगरे के स्वरस में 2-3 बार अच्छी तरह पका कर मटर के बराबर गोलियां बनाकर 1-1 गोली सुबह-शाम गर्म पानी या दूध के साथ सेवन करने से योनि सुरक्षित रहती है, अतः जिन्हे रक्त प्रदर हो उन्हें सेवन नहीं करना चाहिए।
नपुंसकता में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
नपुंसकता व ध्वज भंग में छुआरों के अंदर की गुठली निकल कर उसमें आक का दूध मिला दें, फिर इसके ऊपरी परत पर लपेट कर पकावें, ऊपर का आटा जल जाने पर छुआरों को पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बना लें, रात के समय 1-2 गोली खाकर तथा दूध पीने से स्तम्भ होता है। आक की छाया शुष्क जड़ के 20 ग्राम चूर्ण को एक किलो दूध में उबालकर दही बनाकर घी तैयार करें, इसके सेवन से नामर्दी नपुंसकता दूर होती है।
बाँझपन में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
बाँझपन में सफेद आक की छाया में सुखी जड़ को महीन पीस, 1-2 ग्राम की मात्रा में 250 ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करने से तथा शीतल पदार्थो का पथ्य देने से गर्भाशय की बंद व ट्यूब नाड़ियां खुलती हैं, व मासिक धर्म व गभार्शय की गांठों में भी लाभ होता है।
बवासीर में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
बवासीर में आक के कोमल पत्रों के सम भाग पाँचों नमक लेकर, उसमे सबके वजन से चौथाई तिल का तैल और उतना ही नींबू रस मिलाकर पात्र के मुख को कपड़ मिटटी से बंदकर आग पर चढ़ा दें। जब पत्र जल जाये तो सब चीजों को निकल पीस कर रख लें। 500 मिलीग्राम से 3 ग्राम तक आवश्यकतानुसार गर्म जल, काँजी, मट्ठा या मढ़ के साथ सेवन करने से बादी बवासीर नष्ट हो जाती है। शौच के बाद थूक में या जल में आक को घिसकर मस्सों पर लेप करने से कुछ ही दिनों में गांठ सुखकर नष्ट हो जाते है।
सफ़ेद दाग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
श्वेतकुष्ठ (सफ़ेद दाग) में आक के 20 मिलीलीटर दूध के साथ 5 ग्राम बावची और आधा ग्राम हरताल के चूर्ण को पीस कर लेप करें। अथवा पुरानी पक्की ईंट को पीसकर खूब महीन कर आक के दूध में मिलाकर सुखाकर और तौलकर प्रति 10 ग्राम में सात लंवग बारीक पीसकर मिला दें। इसमें से 125 मिलीग्राम या 250 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से सफ़ेद दाग में लाभदायक होता है।
खांसी में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
खांसी में आक पत्रों पर छाई सफेदी को इकट्ठा कर बाजरे जैसी गोलियाँ बनाकर 1-1 गोली सुबह-शाम खाकर उसके बाद पान खाने से 2-4 दिन में खांसी में लाभ होता है। पुराने से पुराने आक की जड़ को छाया शुष्क करके, निर्वात स्थान में जलाकर राख कर लें, इसमें से कोयले अलग कर दें। 1-2 ग्राम राख को शहद या पान में रखकर खाने से खांसी में लाभ होता है।
पीलिया में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
कमला (पीलिया) में आक के 24 पत्ते लेकर, 50 ग्राम मिश्री मिलाकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। दिन में 3 बार वयस्कों को दो गोली सेवन कराने से एक हपते में पूर्ण लाभ होता है। तेल, खटाई मिर्च आदि से परहेज रखें। आक की कोपल 1 नग, सुबह खाली पेट पत्ते में रखकर चबाकर खाने से 3-5 दिन में कामला ठीक हो जाता है।
पेट दर्द में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
उदरशूल (पेट दर्द) में आक की छाया शुष्क जड़ के महीन चूर्ण में समभाग त्रिफला सेंधा नमक व महीन सौंफ चूर्ण मिलाकर 1 ग्राम की मात्रा में 2-3 बार जल के साथ सेवन करें। आक की जड़ की ताज़ी छाल और अदरक 1-1 ग्राम, काली मिर्च और सैंधा नमक आधा-आधा भाग सबको महीन पीस मटर जैसी गोलियाँ बना, छाया शुष्क करके 1 या 2 गोली अर्क पुदीना के साथ सेवन करने से पेट दर्द में लाभदायक होता है।
खून दस्त में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
रक्त अतिसार (खुनी दस्त) में आक को छाया शुष्क एवं महीन पीसकर कपड़छन की हुई अर्क मज्जा की छाल, ठन्डे जल के साथ 50 से 125 मिलीग्राम ग्रहण करने से खून दस्त में लाभ होता है।
मुंह की झांई में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
मुँह की झाँई में आक के दुग्ध 5-7 बूँद हल्दी के 3 ग्राम चूर्ण को व् गुलाब जल में घोटकर आँखों को बचाकर झाई-युक्त स्थान पर लेप करने से मुंह की झांई व धब्बे नष्ट हो जाते है।
सिर की खुजली में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
सिर की खुजली में आक को सिर में लगाने से क्लेद, दाह वेदना एवं कण्डूयुक्त रुसी नष्ट हो जाती है।
कर्णरोग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
कर्णरोग में सरसों का तेल और लवण से युक्त आक के पत्तों को वैध बांये हाथ में लेकर दाहिने हाथ से एक लोहे की कड़छी को गर्म कर उसमें दाल दें। फिर इस तरह जो अर्क पत्रों का स्वरस कान में डालने से कान के समस्त रोग दूर होते है। कान में मवाद आना, साँय-साँय की आवाज होना आदि में आक गुणकारी है।
नेत्ररोग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
नेत्र रोग में अर्क जड़ की पिपड़ी सूखी 1 ग्राम कूटकर, 20 ग्राम गुलाब जल में 5 मिनट तक रखकर उसके बाद छान लें। बूँद-बूँद आँखों में डालने से 2 या 4 बूंद से अधिक न डालें नेत्र की लाली,भारीपन, दर्द, कीच का अधिक आना और खुजली दूर हो जाती है।
मोतियाबिंद में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
मोतिया बिन्द में आक के दूध में पुरानी ईट का महीन चूर्ण 10 ग्राम तर कार सूखा लें। फिर उसमें लौंग 6 नग मिलायें, खरल में भली प्रकार से महीन करके और बारीक कपड़छन कर लें। इस चूर्ण को चावल भर नासिका द्वारा प्रतिदिन प्रातः नस्य लेने से शीघ्र लाभ होता है। यह प्रयोग सर्दी-जुकाम में भी लाभ करता है।
मिर्गी में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
मिर्गी में सफ़ेद आक के फूल 1 भाग और पुराना गुड़ 3 भाग लेकर पहले फूलों को पीस लें, फिर गुड़ के साथ खूब पीस ले। चने जैसी गोलियाँ बना लें, प्रातः -सांय 1 या 2 गोली ताजे जल के साथ सेवन करें। आक के ताजे फूल और काली मिर्च महीन पीसकर 300 मिलीग्राम की गोलियाँ बना ले और सुबह-शाम, दोपहर सेवन सेवन करे, आक के दूध में आवश्यकता अनुसार चीनी या मिश्री पीसकर 125 मिलीग्राम मात्रा प्रतिदिन प्रातः 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सेवन करने मिर्गी जड़ से नष्ट हो जाती है।
दंतपीड़ा में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
दंतपीड़ा में आक के दूध में रुई भिगोकर, घी में मसलकर दाढ़ की पीड़ा में लेप करने से दन्त शूल में आराम मिलता है, आक के दूध में नमक मिलाकर दांत पर लगाने से दन्त पीड़ा मिटटी है।
हैजा में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
हैजा में आक की जड़ की छाया शुष्क छाल 2 भाग और काली मिर्च 1 भाग दोनों को कूट छानकर अदरक के रस में अथवा प्याज के रस में मिलाकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। हैजा आने पर 1-1 गोली 2-2 घंटे में देने से लाभ होता है। आक के बिना खिले फूल 10 ग्राम तथा भुना सुहागा, सौंठ, लौंग, पीपल और काला नमक 5-5 ग्राम इन सबको कूट-पीसकर 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें और थोड़ी-थोड़ी देर में 1-1 गोली सेवन करना है।
अंडकोष की सूजन में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
अंडकोष की सूजन में 8-10 ग्राम आक की छाया शुष्क छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पैर और अंडकोष की गजचर्म के समान मोटी पड़ी हुई चमड़ी पतली हो जाती है। अर्क के 2-4 पत्तों को तिल्ली के तैल के साथ पत्थर पर पीसकर मलहम बना फोड़े, अंड कोष के दर्द में लेप कर लंगोट कस देने से शीघ्र आराम होता है।
वमन में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
वमन (उल्टी) में अर्क की जड़ शुष्क छाल को समभाग अदरक के रस में भली प्रकार मिलाकर 125 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर धुप में सुखाकर मधु के साथ सेवन करने से किसी भी प्रकार का वमन हो बंद हो जायेगा।
जलोदर में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
जलोदर (पेट अधिक पानी) जलोदर में अर्क के पत्र का स्वरस 1 किलो, 20 ग्राम हल्दी चूर्ण मिला धीमी आग में पकार जब गोली बनाने लायक हो जायें तो नीचे उतारकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। 2-2 गोली सुबह-शाम सौंफ कासनी आदि अर्क के साथ सेवन करने तथा जल के साथ सेवन करने से या आक के 8-10 पत्तों को सैंधा नमक के साथ कूट मिटटी के बर्तन में बंद कर जला कर 250 मिलीग्राम भस्म को सुबह, दोपहर, शाम छाछ मट्ठा के साथ सेवन करने से जलोदर में गुणकारी होता है।
मूत्राघात में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
मूत्राधात (पेशाब की जलन) में आक के दूध में बबूल की छाल का रस मिलाकर नाभि के आसपास और पेडू पर लेप करने से पेशाब की जलन दूर होती है।
भगंदर में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
भगन्दर में आक का 10 मिलीग्राम दूध और दारुहल्दी का 2 ग्राम महीन चूर्ण, दोनों को एक साथ मिलाकर बत्ती बना व्रणों में रखने से शीघ्र लाभ होता है। आक के दूध में कपास की रुई भिगोकर छाया शुष्क कर बत्ती बनाकर, सरसों के तैल में भिगोकर व्रणों पर लगाने से लाभ होता है।
दाद में अर्क के फायदे एवं सेवन विधि:
दाद में आक के दूध में बराबर मात्रा में मधु मिलाकर लेप करने से दाद नष्ट हो जाती है। आक की जड़ 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच दही में पीसकर लेप करने से भी दाद में लाभ होता है।
श्लीपद में आक के फायदे एवं सेवन विध:
श्लीपद (हांथी पाँव) में अर्क जड़ की छाल 10 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 10 ग्राम, एक साथ आधा किलो जल में काढ़ा बनाकर उसमें 1 ग्राम शहद और 3 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करने और साथ ही अर्क मूल को मट्ठा में पीसकर हांथी पाँव पर गाढ़ा-गाढ़ा लेप करें,40 दिन में पूर्णरूप से लाभ होता है।
डिब्बारोग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
बच्चों के डिब्बारोग में अर्क पत्र का रस 10 बूँद 30 मिलीग्राम सैंधा नमक मिलाकर पीला देने से उल्टी-दस्त होकर बच्चों का दिब्बा रोग शीघ्र शांत हो जाता है। पेट में अफारा हो तो गर्म तेल लगाकर आक पत्र से सेंक करने से भी लाभ होता है।
अधकपारी में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
आधाशीशी (अधकपारी) में जंगली कंडो की राख को आक के दूध में तरकर छाया में सुखा लेना चाहिये। इसमें से 125 मि० ग्रा ० सुंघाने से छीकें आकर सिर का दर्द, आधाशीशी, जुकाम, बेहोशी इत्यादि रोग में लाभ होता है। पीले पड़े हुये आक के 1-2 पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता हैं। किन्तु कडुवा बहुत है, अतः सावधानी से प्रयोग करें।
नजला में आक के फायदे एवं सेवन विधि :
नजला में अनार की 40 ग्राम खूब महीन पीसकर छाल को आक के दूध में गूंथ कर रोटी की तरह धीमी आंच से पका लें। फिर इसे सुखाकर महीन पीसकर, जटामांसी, छरीला 3-3 ग्राम,इलायची और कायफल प्रत्येक 1.5 ग्राम मिलाकर राख बना लें। इसकी नस्य से कुछ देर बाद छीकें आकर दिमागी नजला दूर होता है।
पाचन शक्ति में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
पाचन शक्ति में आक के ताजे फूलों का दो किलो रस निकल लें। इसमें आक का दूध 250 ग्राम और गाय का घी डेढ़ किलो मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। घी शेष रहने पर छान कर बोतल में भर लें। इस घी को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 ग्राम पकाये हुये दूध में मिलाकर सेवन करने से आंत्रकृमि नष्ट होकर पाचन शक्ति तथा अर्श में भी लाभ होता है
उपदंश में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
उपदंश में सफ़ेद अर्क की छाया शुष्क जड़ छाल का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दो चम्मच खंड के साथ सुबह-शाम सेवन करने से उपदंश और रक्त दोष में लाभ होता है। अर्क के 8-10 पत्तों को आधा किलो पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा से उपदंश के ब्राण धोने से लाभ होता है।
बंदग्रंथि में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
बंद ग्रन्थि (गले की गांठ) में आक के दूध में सफेद उषारेबंद थोड़ा-थोड़ा मिलाकर दिन में 2-3 बार लेप करने से 3-4 दिन में कच्ची गाँठ बैठ जाती है। आक के 2-2 पत्तों पर एरंड तैल चुपड़कर गर्म कर बांधने से बंद ग्रन्थि बैठ जाती है, या फट जाती है।
खाज में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
खाज में आक का पुष्प गुच्छ तोड़ने पर जो दूध मिकलता है उसमें नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली शीघ्र दूर होती है। आक के ताजे पत्तों का स्वरस 1 किलोग्राम गाय का दूध 2 किलोग्राम सफेद चंदन, हल्दी, सौंठ, लाल चंदन, सफेद जीरा 6-6 ग्राम इन सबका काढ़ा बनाकर 1 किलोग्राम घी में पकावें। घी शेष रहने पर नियमित मालिश करे, मालिश करने से खुजली में लाभ होता है।
जख्म में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
जख्म में आक के 4-5 पत्रों को सुखाकर कूट-छानकर ख़राब जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर होकर शुद्ध मांस की उत्पति होती है। सफ़ेद अर्क की 5 ग्राम जड़ को 20 ग्राम नीबू के रस में लोहे पर घिसकर लेप करने से जख्म भर जाता है। आक की जड़ो के पास की गीली मिटटी लाकर टिकिया बनाकर, अत्यंत दर्द तथा कीड़े पड़े हुये जख्म पर बांधने से अंदर के कीड़े मर जाते है तथा जख्म भर जाते है।
यकृत रोग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
यकृत रोग में आक का पत्ता महीन कतरकर 50 ग्राम जल में पकावें। जब आधा जल शेष रह जाने पर उसमें सैंधा नमक 125 मिलीग्राम मिला, तीन वर्ष तक के बालक को एक सप्ताह तक पिलाने से पथ्य में खिचड़ी चावल, मट्ठा, कांजी, युक्त सेवन करने से यकृत रोग शीघ्र नष्ट हो जाता है।
सूनापन में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
सूनापन में आक के 8-10 पत्रों को 250 ग्राम तेल में तलकर, तेल की मालिश करने से अंग के सूनापन में लाभ होता है। आक के दूध को कांच या चीनी के पात्र में रखे उसमें माल कांगनी का तेल मिलाकर मालिश करने से अर्दित, सूनापन आदि में विशेष लाभ होता है।
ततैया विष में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
ततैया में आक के पत्रों के पीछे जो खार की तरह सफेदी जमी होती है, उस पर आटे की लोई घुमाकर उतार लें, तथा लोई की काली मिर्च जैसी गोलियाँ बना लें, सुबह-शाम 1-1 गोली निगलवा कर निराहार 15 दिन तक थोड़ा घी और चीनी खिलाने पर आराम मिलता है।
पैरों के छाले में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
पैरों के छाले पैदल यात्रा करने से जो छाले पड़ जाते है, अर्क के दूध को लगाने से छाले नष्ट हो जाते है। तथा पैरों के फोड़े में एक ईंट को गर्म करके उस पर 6-7 आक के पत्ते रखकर, पैर को सेंकने से पैर के फोड़े नष्ट हो जाते है।
कटे जले में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
फूला जाला में आक के दूध में पुरानी रुई को 3 बार तर कर सूखा ले, गाय के घी में तर कर बड़ी सी बत्ती बनाकर जला ले। बत्ती जल कर सफेद नहीं होनी चाहिये इसे थोड़ी मात्रा में सलाई से रात्रि के समय कटे या जले हुए स्थान पर लगाने से 2-3 दिन में लाभ होता है।
नारू बाला रोग में आक के फायदे एवं सेवन विधि:
नारू बाला रोग में आक के कोमल पत्र 7 नग और गुड़ 50 ग्राम दोनों को कूट कर गोलियाँ बना लें। 1-1 गोली करके सुबह-शाम-दोपहर पानी के साथ सेवन करने से नारू बाला रोग में लाभदायक होता है। आक के 8-10 फूलों को पीस पुल्टिस बनाकर बांधने से या दूध का लेप करने से नहरुवा निकल जाता है।
अर्क (मदार) के नुकसान
आक (मदार) का पौधा विषैला होता है। अर्क के दूध का अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी-दस्त होकर मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। अतः इसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिये।
आँख में दूध नहीं लगना चाहिये, नहीं तो भयंकर परिणाम होगा। गर्भवती स्त्री और बालक इसका प्रयोग न करें।
अर्क (मदार) का परिचय
आक के पौधे, शुष्क, ऊसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है तथा यह मनुष्य के लिये घातक है। इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है। यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्टी -दस्त होकर मनुष्य यमराज के घर जा सकता है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्र में, योग्य तरीके से, चतुर वैध की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा फायदा होता है। इसका हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है एवं यह सूर्य के समान तीक्ष्ण, तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायन धर्मा है। कहीं-कहीं इसे ‘वानस्पतिक पारद’ भी कहा गया हैं। इसकी तीन जातियाँ पाई जाती है, जो निम्न प्रकार है।
1. रक्तार्क :- इसके फूल श्वेत रंग के छोटे, कटोरीनुमा और भीतर लाल और बैंगनी रंग की चित्ती वाले होते है। इसमें दूध कम होता है।
2. श्वेतार्क :- इसका फूल लाल आक के पुष्प से कुछ बड़ा और हल्की पीली आभा लिये सफेद कनेर के फूल जैसा होता है।इसकी केशर भी बिलकुल सफेद होती है। इसे मदार भी कहते हैं। यह प्रायः मंदिरों में लगाया जाता है। इसमें दूध अधिक होता है।
है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते हैं। इसके फूल चांदी के रंग जैसे श्वेत होते है, यह बहुत दुर्लभ जाति है।
इसके अतिरिक्त आक की एक और जाति पाई जाती है, जिसमें पिस्तई रंग के फूल लगते हैं।
अर्क के बाह्य स्वरुप
आक के बहुवर्षीय व् बहुशाखीय गुल्म 4- 12 फुट ऊँचे काण्ड़त्वक बहुत कोमल व् धूसर होती है। इसके पौधों के सभी अंग रुई की तरह धुनें हुये सफ़ेद रोमों से आच्छादित रहते है। पत्र वृंत बहुत ही छोटे, 4-6 इंच लम्बे, 1-3 इंच चौड़े मांसल व हृदयाकार होते हैं। पुष्प सुगंधित गुच्छों में सफ़ेद या लाल बैंगनी रंग के, पुंकेसर पांच और पुष्प दंत भी होते है। फल 2-3 इंच लम्बें,1 से 2 इंच तक चौड़े,अंडाकार, बीच में कुछ मुड़े हुये होने के करण तोते की चोंच जैसी लगते हैं, इसलिए इन्हें शुकफल भी कहते है। फल के भीतर छोटे-छोटे भूरे रंग के बीज होते है जो रुई जैसे मुलायम रेशे द्वारा आपस में चिपके रहते हैं। परिपक्व होने पर फल जब फटते है, तब बीज हवा में उड़कर गोल हो जाते है। और सब जगह फ़ैल जाते है। आक का सम्पूर्ण पौधा एक प्रकार के दुग्धामय एवं चरपरे रस से परिपूर्ण होता है। इसके किसी भी भाग को तोड़ने से सफेद रसमय दुग्ध निकलता है।
आक के रासायनिक संघटन
आक के सर्वांग में प्रायः एक प्रकार का कडुवा और और चरपरा पीला राल जैसा पदार्थ पाया जाता है, और यही इसका प्रभावशाली अंश है। जड़ की छाल में मडराएलबन और भंडार फ्युएबिल नामक दो वस्तुएँ और पाई जाती है। मँडराएलबन आक का एक रवेदार एवं प्रभावात्मक सार है, इसे मंदारिन भी कहते है। यह सार ईथर और मधसार में घुलता है, शीतल जल तथा जैतुन के तेल में यह अघुलनशील है। इसमें एक विचित्रता है कि यह गर्मी में जम जाता है और शीत में खुले रखने पर पिघल उठता है। ये दोनों तत्व इसके दूध या रस में भी अधिक मात्रा में पाये जाते है। नवीन आक की अपेक्षा पुराने आक की जड़ अधिक वीर्यवान होती है।
अर्क के औषधीय गुण-धर्म
दोनों प्रकार के आक दस्तावर है, वात जन्य कुष्ठ, कण्डू, विष,व्रण, प्लीहा, गुल्म,बवासीर, कफ जन्य उदर रोग और मल कृमि को नष्ट कर्म वाले है। सफेद आक का फूल वीर्य- वर्धक, हल्का, दीपनपाचन, अरुचि, मुँह से पानी आना, लाला स्राब्द्य बवासीर, खांसी तथा श्वास का नाशक है। लाल आक का फूल मधुर एवं कुछ कडुवा, ग्राही, कुष्ठ, कृमि, कफ, बवासीर, विष, रक्तपित्त, गुल्म तथा सूजन को नष्ट करने वाला है। आक का दूध कड़वा, गर्म, चिकना, खारा, हल्का, कोढ़ एवं गुल्म तथा उदररोग नाशक है। विरेचन करने में यह अति उत्तम है। मूलत्वक हृदयोत्तेजक, रक्त शोधक और शोथहर है। इससे हृदय की गति एवं संकोच शक्ति बढ़ती है, तथा रक्त भार भी बढ़ता है। यह ज्वरध्न और विषमज्वर प्रतिबंधक है। पत्र दोनों प्रकार के आक के पत्ते वामक, रेचक, भ्रमकारक तथा कास्श्वास, कर्णशूल, शोथ, उरूस्तम्भ, पामा, कुष्ठ आदि नाशक है।
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