कनेर फूल के फायदे और नुकसान एवं औषधीय गुण कनेर की दवा:-सफ़ेद दाग, गुप्त रोग, बवासीर, पथरी, पीठ दर्द, बदन दर्द, सिरदर्द, नेत्ररोग, दातुन, चेहरे की सुंदरता, उपदंश, लकवा, जोड़ों की पीड़ा, घाव, दाद, चर्मरोग, खुजली, कुष्ठरोग, संक्रामक, पेट के कीड़े, अफीम की नशा, सर्पविष, बिच्छू का विष, ततैया का विष, सूजन, हृदय रोग, मूत्रकृच्छ आदि बिमारियों के इलाज में कनेर के घरेलु दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Kaner Benefits And Side Effects In Hindi.कनेर के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि
Table of Contents
हिंदी – कनेर , कनैल
अंग्रेजी – Oleander, Sweet Scented
संस्कृत – करवीर, अश्वमारक , शतकुम्भ , हयमार
बंगाली – करवी
मराठी – कणहेर
तेलगु – कस्तूरीपिटे
अरबी – दिफ्ली
पंजाबी – कनिर
गुजराती – करेण’
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
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सफ़ेद दाग में कनेर के 50 ग्राम ताजे फूलों को 100 ग्राम मीठे तेल में पीसकर एक हफ्ते तक रख दें। फिर 200 ग्राम जैतून के तेल में मिलाकर कुष्ठ, सफेद दाग, पीठ का दर्द, बदन दर्द तथा कामेंद्रिय पर उभरी नसों की कमजोरी दूर करने के लिए 2-3 बार नियमित मालिश प्रयोग करने से सफ़ेद दाग में लाभ होता है।
अर्श (बवासीर) में कनेर की जड़ को ठंढे पानी के साथ पीसकर toilet जाते समय जो अर्श बाहर निकल जाते हैं उन पर लगाने से मस्से कट कर गिर जाती हैं।
कामेन्द्रिय (गुप्त रोग) में सफेद कनेर की 10 ग्राम जड़ पीसकर 20 ग्राम वनस्पति घी में पकायें, फिर ठंडा करके जमने पर कामेन्द्रिय पर मालिश करने से लाभ होता है।
शिरोवेदना (सिरदर्द) में कनेर के पुष्प तथा आंवले को कांजी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से सिरदर्द में लाभ होता है। सफेद कनेर के पीले पत्तों को सूखा महीन पीस जिस ओर पीड़ा हो उसी ओर के नासिकाछिद्र में एक दो चावल भर सुंघाने से छींक आकर और नाक टपक मस्तक पीड़ा मिट जाती हैं।
नेत्र रोग में पीले कनेर की जड़ को सौंफ और कंरज के रस के साथ पीसकर आँख में लगाने से नजला, पलकों की मुटाई जाला, फूली इत्यादि नेत्र रोगों में आराम होता है।
दंतपीड़ा में सफेद कनेर की डाली से दातुन करने से हिलते हुए दांत मजबूत होते हैं और दांतों में बड़ा लाभ होता है। दन्त रोग ठीक हो जाता है और दांत सफ़ेद हो जाता है।
उबटन (चेहरे की सुंदरता) में सफेद कनेर के फूलों को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है। कनेर के प्रयोग से कील मुंहासे और दाग धब्बे नष्ट हो जाते है।
हृदय शूल में कनेर के जड़ की छाल 100-200 मिलीग्राम अल्प मात्रा में भोजन के पश्चात प्रयोग करने से मूत्र होता है तथा हृदय वेदना कम हो जाती है।
उपदंश में सफेद कनेर की जड़ को पानी के साथ पीसकर उपदंश के घावों पर लगाने से लाभ होता है।
पक्षाघात (लकवा) में सफेद कनेर की जड़ की छाल, सफेद गुंजा की दाल तथा काले धतूरे के पत्ते इनको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बना लेना चाहिए, इसके पश्चात, चार गुने जल में तथा काढ़ा के समभाग तेल मिलाकर कलई वाले बर्तन में धीमी आंच पर पकाना चाहिए, जब केवल तेल शेष रह जाये, तब कपड़ छानकर इस तेल की मालिश करने से लकवा ठीक हो जाता है।
जोड़ों की पीड़ा में कनेर के पत्तों को पीसकर तेल में मिलाकर लेप करने से जोड़ों की पीड़ा शांत होती है। सफेद कनेर के पत्तों के क्वाथ से उपदंश के ब्राणों को धोने से घाव शीघ्र भर जाता है।
दाह में सफेद कनेर की जड़ की छाल का तेल बनाकर लगाने से कई प्रकार के दाह और कोढ़ मिटते हैं।
दाद में कनेर की जड़ की छाल का तेल बनाकर दाद पर लेप करने से दाद नष्ट हो जाती है।
चर्मरोग में सफेद कनेर की जड़ के काढ़ा को राई के तेल में उबालकर त्वचा रोगों में लेप करने से त्वचा संबंधित रोग नष्ट हो जाता हैं।
खुजली में कनेर के पत्रों से सिद्ध तेल को खुजली पर लेप करने से 1 घंटे के अंदर खुजली कम कर देता है। पीले कनेर के पत्ते या फूलों का जैतून के तेल में बनाया हुआ मलहम, हर प्रकार की खुजली में लाभदायक है।
कुष्ठ रोग में कनेर की जड़, कुटज फल, करंज के फल, दारु हल्दी की छाल और चमेली की नयी पत्तियों का लेप करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है। कनेर के पत्तों के क्वाथ से नियमित रूप से कुछ काल तक स्नान करने से कुष्ठ रोग में बहुत लाभ होता है। कनेर की छाल का लेप करने से चर्म कुष्ठ मिटता है।
संक्रामक में कनेर के पत्तों के तेल की मालिश करने से जिन जीवों से संक्रामक रोग लगते है वैसे कोई भी जीव शरीर पर नहीं बैठते हैं।
कृमि कनेर के पत्तों का तेल में पुल्टिस बनाकर बांधने से घाव के कीड़े मरते हैं।
पेट के कीड़े में कनेर के फूल का काढ़ा बनाकर प्रयोग करने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाता है।
कीड़ों के खाये अंगों पर कनेर की मूल, वायविंडग उनको गोमूत्र में पीसकर लेप करें। इस पर गोमूत्र का प्रयोग करने से कीड़े खाये अंगों का कीड़ा शीघ्र मर जाते है।
अफीम की नशा छुड़ाने में कनेर की जड़ का महीन चूर्ण 100 मिलीग्राम की मात्रा में दूध के साथ कुछ हफ्ते तक दिन में दो बार खिलते रहने से अफीम की आदत छूट जायेगी।
सर्प के विष में कनेर की जड़ की छाल 125 से 250 निलिग्राम की मात्रा या पत्ते 1-2 थोड़े-थोड़े अंतर् पर देते रहें, जिसके कारण वमन होकर विष उत्तर जाता है।
बिच्छू विष में कनेर की जल की छाल 130 ग्राम से 200 मिलीग्राम की मात्रा में पत्ते मिलाकर पीसकर लेप करने से बिच्छू विष उत्तर जाता है:बिच्छू विष में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
कनेर के पौधे भारतवर्ष में मदिरों, उद्यानों और गृहवाटिकाओं में फूलों के लिए से लगाये जाते हैं। इसकी तीन प्रजातियां पायी जाती हैं। लाल, श्वेत और पीली कनेर। इस पर वर्ष पर्यन्त फूल आता है। श्वेत और पीली कनेर जहां सात्विक भाव जगाती है, वहीं लाल (गुलाबी) कनेर को देखकर ऐसा भ्रम होता है कि जैसे यह बसंत और सावन का मिलन तो नहीं है।
कनेर का पौधा 10-20 फुट तक ऊँचा झाड़ीनुमा पेड़ होता है, जिसका काण्ड छोटा बहुशाखीय और शाखाओं पर दोनों ओर 3-3 के जोड़े में 6-9 इंच लम्बे, नोकदार, 1 इंच चौड़े पत्ते लगते हैं। सफेद और लाल कनेर के पत्ते रूखे, परन्तु पीले कनेर के पत्ते बिल्कुल हरे, चिकने चमकीले और कुछ छोटे होते हैं।
कनेर पौधे का सर्वांग विषाक्त होता है। कनेर के मूल, त्वक, बीज में हृदय पर कार्य करने वाले ग्लाइकोसाइडों तथा कैरोबिन स्कोपोलिन है। पतियों में मुख्य हृदय पदार्थ ओलिएंड्रिन पाया जाता है। पीले कनेर में पेरुबोसाइड आदि पाये जाते हैं। कनेर की भस्म में पोटेशियम लवण अधिक होते हैं।
बाह्कर्म में यह कुष्ठघ्न, व्रणरोपण तथा शोथहर है। कुष्ठ, व्रण तथा शोथ में एवं विशेषतः उपदंश और फिरंग में लाभकारी है। यह कफवात शामक है तथा दीपन, विदाही तथा भेदन है इसलिए उदर रोग में यह प्रयुक्त होता है। कनेर की हृदय पर तुरंत क्रिया होता है, उचित मात्रा में यह अमृत है, परन्तु अधिक लेने पर हृदय के लिए यह विष है। यह रक्तशोधक भी है। यह श्वाहार हैं, हृदयजनित श्वास विकरों में यह प्रयुक्त होता है। ज्वरध्न और विषम ज्वर प्रतिबंधक है, मूत्रकृच्छ्र और अश्मरी में प्रयुक्त होता है।
कनेर का सर्वांग विषैला होता है। इसलिए इसका आंतरिक प्रयोग कभी खाली पेट नहीं करना चाहिए। इसका प्रयोग किसी चतुर वैद्य की निगरानी में ही करना चाहिए।
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