दूधी की अलौकिक दिव्य औषधियाँ
दूधी के औषधीय गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधि प्रयोग
दूधी अनेक रोग की दवा जैसे:- मासिक धर्म, दस्त, पेचिस, सफेद पानी, वीर्य वर्धक, दुग्धवर्धक, मुहांसे, मधुमेह, सर्प विष, दमा, गंजापन, खुजली, हकलेपन, नकसीर, रतौंधी, जलोदर, कांटा चुभ जाने पर आदि बीमारियों के इलाज में दूधी के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते हैं:-
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
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Table of Contents
हिन्दी : दूधी, दूधिया घास
अंग्रेजी : मिल्क एडज
संस्कृत : दुग्धिका, नागार्जुनी
गुजराती : दुधेली, नानी
पंजाबी : दुधी, दोधक
अरबी : फाशरा
फारसी : शीरेगियाह, शीरक
मराठी : लाहन, नायटी
मासिक धर्म (रक्त प्रदर) में हरी दूधी को छाया में सुखाकर कूट छानकर प्रतिदिन एक चम्मच दिन में दो बार खाने से वीर्य की उतपत्ति होती हैं और अनावश्यक मासिकस्राव रुक जाता है।
बच्चों के दस्त में दूधी के पत्तों के 2 ग्राम चूर्ण या बीज की फंकी देने से दस्त (अतिसार) में लाभ होता है और बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते हैं।
पेचिस में रक्तमिश्रित पेचिस तथा उदरशूल में दूधी के पंचांग का स्वरस 5-10 ग्राम, शहद 1 चम्मच में मिलाकर नियमित सेवन करने से लाभ होता है।
सफेद पानी (श्वेत प्रदर) में दूधी की 2 ग्राम जड़ को घोंटकर छानकर दिन में तीन बार पिलाने से योनि से निकल रहे सफ़ेद पानी और रक्त निकलना बंद हो जाता है।
पुरुषार्थ (वीर्य वर्धक) में दूधी को कूट छानकर इसके 2-5 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शक्कर के साथ सेवन करने से कामशक्ति बढ़ती हैं। छोटी दूधी प्रतिदिन उखाड़कर साफ़ करके 15 ग्राम की मात्रा में लेकर 6 बादाम गिरी के साथ मिलाकर दोपहर के समय सेवन करने से गर्मी और शुक्रप्रमेह आदि दूर होकर वीर्यकोष को शक्ति प्राप्त होती है।
दुग्धवर्धक (स्तनों में दूध की वृद्धि) में कोई भी माता को दूध आना बंद हो जाये तो दूधी का दूध 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम की मात्रा में 10-20 दिन प्रातः सांय पिला देने से लाभ होता है।
चेहरे पर मुहांसों और दाद पर दूधी का दूध लगाने से मुहांसे जड़ से खत्म हो जाता है।
मधुमेह रोग में छोटी दूधी, गुड़मार बूटी, पारासी कयवानी, जामुन की गुठली ये चारों बूटी लेकर बराबर-बराबर मात्रा में जल के साथ पीसकर झाडी के बेर जितनी गोलियां बना लें, इसमें से दो गोली सुबह और दो गोली शाम को ताजे जल के साथ सेवन करें। परहेज, मीठी, तली, भुनी, अलमवादी वाली वस्तुओं का सेवन न करें। मधुमेह जड़ से नष्ट हो जायेगा।
सर्प काटने पर दूधी की 15 ग्राम पत्तियों को पीसकर 5-7 नग काली मिर्च मिलाकर सांप के काटे हुए स्थान व व्यक्ति को खिलाने से सांप का विष उत्तर जाता है।
दमे में दूधी के पंचाग का काढ़ा या स्वरस 5-10 ग्राम मात्रा में शहद के साथ 1 चम्मच मिलाकर पीने से आराम दायक होता है।
गंजापन में दूधी के पंचाग का स्वरस तथा कनेर के पत्तों के रस को मिलाकर सिर के गंजे पर लेप करने से बाल सफेद होना बंद होकर गंजापन दूर होता है।
खुजली में ताजी दूधी या सूखी हुई दूधी 20 ग्राम लेकर बारीक पीसकर इसमें 10 ग्राम गाय का मक्खन मिलाकर इसका लेप खुजली के स्थान पर करें और चार घंटे बाद साबुन से धो डालें। कुछ दिन के सेवन से ही सभी प्रकार की खुजली दूर हो जाएगी।
हकलापन में दूधी की जड़ दो ग्राम की मात्रा में पान में रखकर चूसते रहने से हकलापन दूर होता है।
नाक से खून आने पर छाया शुष्क दूधी में बराबर की सेंगरी मिश्री मिलाकर महीन चूर्ण बना लें। प्रातः सांय एक चम्मच चूर्ण गाय के दूध के साथ लेने से नकसीर, नाक से खून आना बंद हो जायेगा और गर्मी इत्यादि दूर होती है।
रतौंधी में छोटी दूधी के दूध से सलाई को तर करके रतौंधी के रोगी के नेत्रों में सलाई को अच्छी प्रकार फिरा दें। कुछ देर बाद नेत्रों में बहुत वेदना होगी। जो एक प्रहर के पश्चात शांत हो जाएगी, एक बार प्रयोग में ही रतौंधी का रोग जड़ से निकल जायेगा।
जलोदर (पेट में पानी भरना) के रोगी को पानी की जगह दूधी के पंचाग स्वरस को पिलाया जाये तो बहुत लाभ होता है।
पैर में कांटा चुभ जाये तो दूधी को पीसकर लेप करने से काँटा निकल जाता है।
दूधी का अधिक प्रयोग हृदय के लिए हानिकारक है।
निचली पहाड़ियों पर तथा मैदानी भागों में दूधी के स्वयंजात प्रसरण शील क्षुप पाये जाते हैं। दूधी का एक भेद भी पाया जाता हैं जिसे बड़ी दूधी (Eupborbia birta Linn.) कहते हैं। रंग भेद से छोटी दूधी भी सफेद तथा लाल दो प्रकार की होती है। दूधी की कोमल शाखाओं को तोड़ने से सफेद दूध जैसा पदार्थ निकलता है।
छोटी दूधी का क्षुप जमीन पर छत्ते की भांति चारों ओर फैला रहता है, मूल से अनेक पतली शाखाएं लाल और सफेद की हरिताभ सफ़ेद होती है। पत्तियां सूक्ष्म, अभिमुख, पुष्प हरे या गुलाबी गुच्छों में लगते है फल और बीज दोनों ही बहुत छोटे होते हैं। बड़ी दूधी का क्षुप 1-2 फुट ऊंचा होता है। पत्र अभिमुख हरित ताम्रवर्ण के एक से डेढ़ इंच लम्बे तथा आधा इंच से कुछ ही कम चौड़े होते हैं। फूल हरिताभ गुच्छों में लगते हैं।
दूधी में एक हरितवर्ण सुगंधित तेल, जिसमें साइमोल, कार्बोकरोल, लाइमोनीन तथा सेलिसीलिक अम्ल होते हैं। पत्तियों और तने में ग्लाइकोसाइड होता है।
कफपित्तनाशक, वाटर्धक, अनुलोमन, वीर्य वर्द्धक, काम उत्तेजक, रक्त-शोधक, कफध्न, श्वास हर, मूत्रल, अश्मरीधन, आर्तवजनन, कुष्ठघ्न विषध्न आदि।
Subject- Dudhi ke Aushadhiy Gun, Dudhi ke Gharelu Upchar, Dudhi ke Aushadhiy Prayog, Dudhi ke Labh, Dudhi ke Nuksan, Dudhi ki Davayen, Dudhi ke Fayde, Dudhi ke Gharelu Upachar.
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