बरगद अनेक रोगों की दवा जैसे:- मासिक धर्म, गर्भधारण, गर्भपात, योनि रोग, वीर्य वर्धक, मधुमेह, स्तन की गांठ, योनि की गांठ, गर्भाशय की गांठ, टी.बी. रोग, बवासीर, खुनी दस्त, सुंदर बाल, स्मरण शक्ति, सफ़ेद दाग, नेत्र रोग, प्रमेह, उपदंश, कर्णरोग, दंतपीड़ा, सूजन, खुजली, मुहाँसे, नकसीर, जुकाम, धड़कन, भगंदर, बहुमूत्र, पेशाब की जलन, तालू कंटक, घाव, अधिक प्यास आदि बिमारियों के इलाज में बरगद के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-बरगद के फायदे, गुण, नुकसान और औषधीय प्रयोग:-
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वट वृक्ष की छाल व इसकी जटाओं में 10 प्रतिशत टैनिन के अतिरिक्त ग्लूकोसाइड, बेंगलेनोसाइड एवं टालब्यूटामाइड्स, गैलेक्टोसाइड इत्यादि पाये जाते है।
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
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मासिक धर्म बरगद की जटा के अंकुर 10 ग्राम को गाय के दूध 100 ग्राम में पीसकर छानकर सुबह-शाम-दोपहर पिलाने से मासिक धर्म में लाभ होता है। बरगद के 20 ग्राम कोमल पत्तों को 100 से 200 ग्राम जल में घोटकर सुबह-शाम पिलाने से शीघ्र लाभ होता है। स्त्री या पुरुष के मूत्र में रक्त आता हो तो बरगद के सेवन से लाभ होता है:–
गर्भधारणार्थ में बरगद पुष्य नक्षत्र एवं शुक्ल पक्ष में लाये हुए कोपलों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा ऋतु काल में प्रातः जल के साथ 4-6 दिन सेवन करने से स्त्री अवश्य गर्भ धारण करती है अथवा कोपलों को पीसकर बेर जैसी 21 गोलिया बना 3 गोली घी के साथ सेवन करने से स्त्री गर्भधारण कर लेती।
गर्भपात में बरगद 4 ग्राम छाया शुष्क छाल चूर्ण दूध की लस्सी के साथ सेवन करें। बरगद की छाल के काढ़ा में लोध कल्क 3 से 5 ग्राम तक तथा थोड़ा मधु मिलाकर दिन में दो बार सेवन से शीघ्र ही लाभ होता है। योनि से स्त्राव यदि अधिक हो तो बरगद की छाल के काढ़ा में सूक्ष्म मुलायम कपड़े को 3-4 बार आसिंचन कर योनि में धारण करें। यह दोनों प्रयोग श्वेत प्रदर में भी लाभदायक है।
सुजाक (योनि रोग) में बरगद की छाया शुष्क जड़ की छाल के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शर्बत बजूरी या साधारण ताजे जल के साथ सेवन करने से पूयस्त्राव बंद होकर शीघ्र लाभ होता है।
वीर्य वर्धक में बरगद के वृक्ष के फलों को हवादार स्थान में कपड़े पर सुखाकर लोहे का स्पर्श न हो महीन चूर्ण लेकर समभाग मिश्री चूर्ण मिला लें। 6 ग्राम की मात्रा में प्रातः सुखोष्ण दूध के साथ सेवन से वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन आदि दोष दूर होते है। वीर्य सन्तानोपती में समर्थ हो जाता है। बरगद के पके फल व पीपल के कल दोनों को सूखा कर महीन चूर्ण बना ले। 25 ग्राम चूर्ण को 25 ग्राम घी में भूनकर, हलवा बना सुबह-शाम सेवन करने तथा ऊपर से बछड़े वाली गाय का दूध पीने से विशेष बल वृद्धि होती है। यदि स्त्री पुरुष दोनों सेवन करें तो रज वीर्य शुद्ध होकर सुंदर संतान उत्पन्न होती है।
मधुमेह में 20 ग्राम छाल बरगद की जटा के जौकुट चूर्ण को आधा किलो जल में पकायें, अष्टमांश से भी कम शेष रहने पर उतर कर ठंडा होने पर छान कर सेवन करने से इस प्रकार पथ्यपूर्वक 1 महीने तक सुबह-शाम सेवन से पूर्णरूप से लाभ होता है।
स्तन की गांठ में बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तंतुओं को पीसकर लेप करने से स्तन की गांठ बिखर जाती है।
योनि की गांठ में बरगद कोपलों के स्वरस में फोया बाती बनाकर भिगो कर योनि में प्रतिदिन 1बार 15 दिन तक धारण करने से या पिचकारी देने से योनि की गांठ का शीघ्र पतन हो जाता है।
गर्भाशय की गांठ में बरगद को कूठ व सेंधा नमक को बड़ के दूध में मिलाकर लेप करें तथा ऊपर छाल का पतला टुकड़ा बाँध दें, सात दिन तक दो बार उपचार करने से बढ़ा हुआ अर्वुद (गाँठ) दूर हो जाता है।
टी.बी. रोग में बरगद की शाखा तथा बड़ की छोटी-छोटी कोमल शाखाओं का शीत निर्यास या हिम 10-20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कफ स्त्राव में लाभ दायक है। तथा रक्त की वमन (उल्टी) में बरगद की नरम शाखाओं के फ़ॉन्ट में खंड या बतासा मिलाकर सेवन करने से रक्त की वमन बंद हो जाती है। बरगद की जटा के 6 ग्राम अकुंरो, को जल में घोट छानकर पिलने से वमन व रक्त की वमन बंद होती है।
बवासीर में बरगद के 25 ग्राम कोमल पत्तों को 200 ग्राम जल में घोटकर पिलाने से 2-3 दिन में ही रक्तस्त्राव बंद हो जाता है। अर्श के मस्सों पर इसके पिले पत्तों की राख को समभाग सरसों के तेल में मिलाकर लेप करने से शीघ्र लाभ होता है।
बादी बवासीर में बरगद के फायदे एवं सेवन विधि:
बादी बवासीर में बरगद 20 ग्राम छाल को 400 ग्राम जल में पकावें, आधा जल शेष रहने पर छानकर उसमें गाय का घी और चीनी 10-10 ग्राम मिला सुखोष्ण सेवन से एक सप्ताह में लाभ हो जाता है।
रक्तातिसार (खुनी दस्त) में बरगद वृक्ष की 20 ग्राम कोपलों को पीसकर रात्रि के समय पकावें, घी मात्र शेष रहने पर 20 से 25 ग्राम तक घी में मधु व खंड मिलाकर सेवन करने से खुनी दस्त में लाभ होता है:खूनी दस्त में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
केश विकार में बरगद के पत्तों की 20-25 ग्राम राख को 100 ग्राम अलसी के तेल में मिलाकर बालों में लेप करने से सिर के बाल सुंदर और गंजापन दूर हो जाते है।
स्मरण शक्ति में बरगद की छाया शुषक पिपड़ी के महीन चूर्ण में दो गुना चीनी या मिश्री मिलाकर 6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पकाये हुये सुखोष्ण गाय के दूध के साथ सेवन करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। खट्टे पदार्थों से परहेज रखें।
कुष्ठ (सफ़ेद दाग) में बरगद को रात्रि के समय इसके दूध का लेप करने तथा उस पर इसकी छाल का कल्क बाँधने से सात दिन में सफ़ेद दाग एवं रोमक शांत हो जाता है।
नेत्ररोग में बरगद के 10 ग्राम दूध में 125 मिलीग्राम कपूर और 2 चम्मच शहद मिलाकर आँख में लेप करने से नेत्र फूली कटती है।
प्रमेह में ताजी बरगद की छाल के महीन चूर्ण में समभाग चीनी मिलाकर 4 ग्राम की मात्रा में ताजे जल के साथ सेवन करें। बार-बार वीर्य स्राव होता हो तो शक्कर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उपदंश में बरगद की जटा के साथ अर्जुन की छाल, हरड़, लोध व हल्दी समभाग जल में पीसकर लेप करने से उपदंश में लाभदायक होता है।
कर्णरोग में कान में यदि फुंसी हो या कीड़े पड़ गये हो तो बरगद के दूध की चार से पांच बूँदों में सरसों के तेल मिलाकर डालने से ही कान का दर्द तथा कान की फुंसी नष्ट हो जाती है।
दन्त पीड़ा में बरगद की छाल 10 ग्राम के साथ 5 ग्राम कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च इन तीनों को खूब महीन चूर्ण बना मंजन करने से दांत का हिलना, मैल, दुर्गंध आदि दोष दूर होकर दांत स्वच्छ एवं सफ़ेद हो जाते है। दांत के दर्द पर इसका दूध लगाने से दर्द दूर हो जाता है। दूध में एक रुई की फुरेरी भिगों कर छिद्र में रख देने से दुर्गंध दूर होकर दांत ठीक हो जाते है।
सूजन में बरगद के पत्तों पर घी चुपड़कर सूजन पर बाँधने से सूजन बिखर जाती है।
खुजली में बरगद के आधा किलो पत्तों को कूटकर, 4 किलो पानी में रात्रि के समय भिगोकर खाली पेट सेवन करें। काढ़ा का एक किलो जल शेष रहने पर आधा किलो सरसों का तेल डालकर पुनः पकावें, तेल मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें, इस तेल की मालिश से गीली और खुष्क दोनों प्रकार की खुजली दूर होती है।
मुहाँसे में बरगद के 5-6 कोमल पत्तों को या बरगद जटा को 10-20 ग्राम मसूर के साथ पीसकर लेप करने से मुहांसे दूर हो जाते हैं। बरगद की जड़ के पीले पके पत्तों के साथ, लाल चंदन, चमेली के पत्ते, कूट, काला अगर और पठानी लोध 1-1 भाग, सबको जल के साथ पीसकर लेप करने से मुहांसे, झाई आदि दूर हो जाते है।
नकसीर (नाक से अनावश्यक खून बैहना) बरगद की जटा का चूर्ण 3 ग्राम तक दूध की लस्सी के साथ पिलाने से नाक से अनावश्यक खून आना बंद हो जाता है।
प्रतिश्याय (जुकाम) में बरगद के कोमल लाल रंग के पत्तों को छाया में सूखाकर कूटकर रखें। 1 या डेढ़ चम्मच आधा किलो जल में पकाकर चौथाई शेष रहने पर 3 चम्मच खंड मिलाकर सुबह-शाम चाय की भाँती पीने से जुकाम व नजला दूर होकर मस्तिष्क वृद्धि होती है।
हृदय की धड़कन में बरगद 10 ग्राम कोमल हरे रंग के पत्तों को 150 ग्राम जल में खूब पीस छानकर इसमें थोड़ी मिश्री मिला सुबह-शाम 15 दिन पिलाने से लाभ होता है।
भगंदर में बरगद के पत्ते, पुरानी ईंट के चूर्ण, सौंठ, गिलोय तथा पुननर्वा मूल का चूर्ण समभाग लेकर जल के साथ पीसकर लेप करने से भगंदर में शीघ्र लाभ होता है।
बहुमूत्र (अधिक पेशाब आना) बरगद के फलों के बीज महीन पीसकर 1 या 2 ग्राम तक, प्रातः काल गौदुग्ध के साथ नियमित सेवन करने से लाभ होता है।
मूत्र कृच्छ (पेशाब की जलन) में बरगद की जटा का महीन चूर्ण 9 ग्राम, कमली शोरा, सफ़ेद जीरा, छोटी इलायची के बीज प्रत्येक का महीन चूर्ण 2-2 ग्राम मिलाकर जल में घोटकर एक ही वटी बना प्रातः काल गाय के ताजा दूध के साथ सेवन करने से पेशाब की जलन व सुजाक में लाभ होता है।
रक्तपित्त में बरगद की कोपलों या पत्तों को 10 से 20 ग्राम तक पीसकर लुगदी में मधु व शक्कर मिलाकर सेवन करने से रक्त पित्त में लाभ होता है।
तालु कंटक में तालु कंटक या तालु के नीचे की ओर चुभ जाने पर बरगद के दूध को मिटटी की टिकिया पर लगाकर तालू पर बांधने से या लेप करने से तालू यथास्थान पर आ जाता है।
घाव में बरगद की कोपले तथा कोमल पत्तों को पीसकर जल में छान लें, जल में समभाग तिल का तेल सिद्ध कर लें। इस तेल को सुबह-शाम-दोपहर व्रण पर लेप करने से लाभ होता है। बरगद के दूध में सांप की केंचुली की भस्म मिलाकर उसमे पतले कपड़े या रुई की बत्ती को भिगोकर नाड़ी व्रण में भीतर रखने से 10 दिन में शीघ्र लाभ होता है।
अधिक प्यासा में बरगद की कोपलों के साथ दूब घास, लोध, अनार की फली, और मुलेठी समभाग लेकर, एक साथ पीस मधु में मिला चावलों के धोवन के साथ सेवन करने से वमन और प्यासा की शान्ति होती है।
फोड़े-फुंसियों में बरगद के पत्तों को गर्म कर बाँधने देने फोड़े-फुंसी शीघ्र ही पक कर फूट जाते है। बरगद के पत्तों को जलाकर उसकी भस्म में मोम और घी मिला मलहम जैसा बनाकर घावों में लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
पीढ़िया आती हैं, चली जाती है, परिस्थितियां बनती-बिगड़ती है, साल- सदिया व्यतीत हो जाती है, परन्तु वट वृक्ष शताब्दियों के वैभव-पराभव का साक्षी, भौगोलीक परिवर्तनों से बेअसर, आंधी तूफ़ान में अविचल दिनों दिन उत्कर्ष को प्राप्त होता हुआ अपनी घनी छाया तले युगों का इतिहास समेटे किसी महान काल द्रष्टा, यति योगी, मुनि की तरह अचल खड़ा रहता है। हिन्दुओं की धार्मिक परम्पराओं से इस वृक्ष का अभिन्न रिश्ता है, इसे सभी पहचानते है, अतः विवरण विशेष की आवश्यकता नहीं है।
बरगद वृक्ष की शाखाएं बहुत दूर तक चारों ओर फैली रहती है और बढ़कर भूमि में लग जाते है। कण्डट्वक-श्वेत-धूसर मोटी होती है। पत्र-मोटे, लट्वाकार 4-6 इंच लम्बे-चौड़े चर्मवत होते है। पत्रमूल में 3-5 सिराएँ होती है। फल गोलाकार होते है। अदृश्य पुष्प होने के कारण इसे वनस्पति कहा गया है। मई-जून में नई पत्तियां निकलती है। फल प्रायः वर्ष भर दृष्टिगत होते है।
कफ पित्तनाशक, वेदनास्थापन, व्रण रोपण, रक्तशोधक, शोथहर चक्षुष्य, स्तम्भन, रक्त पित्तहर, शुक्रस्तम्भन, और गर्भाशय शोधक है। यह बल्य व कषाय है। वृक्ष, शीतल, कषाय व रुक्ष है, तथा तृष्णा, छर्दि, मूर्च्छा, और रक्त पीट नाशक है।
यदि आप किसी भी प्रकार की दवाओं का प्रयोग कर रहें हो तो बरगद का उपयोग करने से पहले अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह ले लेनी चहिए।
बरगद के पत्रों, जड़, छाल या बरगद के दूध का प्रयोग करने पर यदि आपको कोई नुकसान तो इनका प्रयोग शीघ्र बंद कर दें और डॉक्टर से सलाह ले लेना चहिए।
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