गेंदा की दवा:- कैंसर, ट्यूमर, बुखार, योनि संक्रमण, नपुंसकता, कामशक्ति, योनि शक्ति, सफ़ेद पानी, पथरी, बवासीर, मूत्र विकार, नेत्ररोग, त्वचा, स्तन की गांठ, श्वांस, खांसी, दमा, दंतपीड़ा, कर्णरोग, सूजन, कब्ज, दाद, घाव, बेवाई, चोट-मोच, फोड़े-फुंसी आदि बिमारियों के इलाज में गेंदा फूल के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:गेंदा के फूल के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि:
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गेंदा के पुष्प में अनेक रंजक द्रव्य, बीजों में प्रोटीन तथा तेल, इसके अतिरिक्त पौधे से भी एक उग्रगन्धि तेल प्राप्त किया जाता हैं। पुष्प भेद से गेंदा की कई जातियां होती है, परन्तु इनमें (1) हजारा इसका फूल बड़ा (2) सुरनाई (3) कौकहान-लाल और पीले रंग के दलचक्र वाला प्रमुख है।
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वैज्ञानिक के अनुसार गेंदा के फूल में पाये जाने वाले एन्टीऑक्सिडेंट कैंसर को नष्ट करने में सक्षम होता है। गेंदा के फूल-तना-पत्ती तथा पौधा में कैंसर से लड़ने की शक्ति होती है। गेंदा के फूल-तना-पौधा का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम नियमित सेवन करने से कैंसर में लाभ होता है।
गेंदा में ऐंटी-ऑक्सीडेंट ल्यूटेन ट्यूमर के विकास को रोकता है, गेंदा के फूल का काढ़ा शाम को भोजन करने के बाद तथा सोने से पहले काढ़ा पीने से ट्यूमर को जड़ से नष्ट कर देता है।
बुखार को नष्ट करने के लिए गेंदा का फूल गुणकारी होता है। गेंदा के फूल में एंटी- बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण पाये जाते हैं। गेंदा फूल की चाय पीने से बुखार के लक्षण जैसे कांपना, भावुकता बहुत ज्यादा ठंड लगना सभी प्रकार के बुखार में लाभकरी होता है।
योनि में संक्रमण में गेंदे के फूल की पंखुड़ी को एक गिलास पानी में अच्छे से उबाल लें। फिर इस पानी को ठंडा करके स्नान के पानी में मिलाकर स्नान करने से दो सप्ताह तक प्रयोग से योनि संक्रमण नष्ट हो जाते है।
नपुंसकता में गेंदा के फूलों को सुखाकर इनके बीज निकाल लें। उसके बाद इन बीज में थोड़ी सी मिश्री मिलाकर खाए। इस प्रयोग से आप की नपुंसकता नष्ट हो जाएगी। और नपुंशक पुरुष वीर्य वर्धक हो जाएगा।
कामशक्ति में गेंदा के 10 ग्राम बीजों को कूटकर खाने से काम शक्ति समाप्त हो जाती है।
स्तम्भन (योनि शक्ति) में एक चम्मच गेंदे के बीज और एक चम्मच मिश्री मिलाकर एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से वीर्य स्तम्भन और शक्ति बढ़ती है।
रक्त प्रदर (सफ़ेद पानी) में गेंदा के फूलों के स्वरस का 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से सफ़ेद पानी में लाभ होता है। गेंदा के फूलों का 20 ग्राम कल्क को 10 ग्राम घी में भूनकर सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
अश्मरी (पथरी) में गेंदा के पत्तों के 20-30 ग्राम काढ़ा को सुबह-शाम कुछ दिनों तक सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है।
बवासीर में गेंदा के पत्ते 10 ग्राम, काली मिर्च दो ग्राम, दोनों को एक साथ पीसकर पिलाने से बवासीर रोगी को लाभ होता है। गेंदा के फूल की पंखुड़ियों को 5 से 10 ग्राम तक घी में भूनकर दिन में दो तीन बार खिलाने से बवासीर से बहने वाला खून बंद हो जाता है। गेंदे के पत्तों का अर्क खींचकर पीने से अर्श में बहने वाला रक्त शीघ्र बंद हो जाता है। 250 ग्राम गेंदे के पत्ते और केले की जड़ दो किलो, इनको रात्रि में पानी में भिगो दें और सुबह अर्क खींच लें, इस अर्क की 15-20 ग्राम तक की मात्रा में सेवन सेवन करने से बवासीर नष्ट हो जाती है।
मूत्रविकार में गेंदे के 10 ग्राम पत्तों को पीसकर उनके रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो तीन बार पिलाने से पेशाब सुचारु रूप से होने लगती है
नेत्र रोग में गेंदा फूल की चाय में एंटीऑक्सीडेंट्स, जेक्सनथिन, ल्य्कोपेन, लुटेइन आदि तत्व पाए जाते हैं जो नेत्र रोग और अंधापन को रोकने में मदद करते हैं। गेंदा फूल आँखों के लिए एंटीसेप्टिक का काम करता है। आंखों का लालमा में गेंदे के रस से आंख धोने से बहुत आराम मिलता है।
गेंदा के फूल में ताकतवर हर्ब सूदिंग प्रॉपर्टीज यानि शांति कारक गुण होते हैं। इसलिए गेंदा के फूलों का इस्तेमाल करने से त्वचा की जलन कम हो जाती है। चोट लगने पर त्वचा को ठीक करने के लिए भी गेंदा के एक्सट्रेक्ट युक्त क्रीम का इस्तेमाल फायदेमंद होता है।
स्तनशोथ (स्तन की गांठ) में गेंदा के पत्तो को पीसकर स्तनों पर लगाने और कपड़ा डालकर सिकाई करने से सूजन बिखर जाती है।
श्वास रोग में गेंदा के पुष्पों के बीजों की घुंडी का 2-5 ग्राम चूर्ण, 10 ग्राम खंड और एक चम्मच दही के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से श्वाँस, दमा और खांसी दूर होती है।
खांसी रोगी को गेंदा के बीजों का चूर्ण बनाकर उसमें समभाग मिश्री मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में पानी के साथ 2-3 बार सेवन करने से खांसी में लाभ होता हैं।
दमा रोगी को गेंदा के बीजों का चूर्ण का काढ़ा बनाकर एक ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम एक चम्मच शुद्ध जल के साथ सेवन करने से दमा रोगी को आराम मिलता है।
दंतशूल में गेंदा के पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के दर्द में शीघ्र आराम मिलता है और इसके अलावा मुख की दर्गन्ध दूर हो जाती है।
कर्णशूल (कान का दर्द) में गेंदा के पत्तों का रस 2-2 बूँद कान में डालने से कान का दर्द मिट जाता है।
कब्ज के रोगी गेंदा के 10 पत्तों को दो चम्मच पानी में पीसकर 5 ग्राम मिश्री मिलाकर छानकर सेवन करने से कब्ज में आराम मिलता है।
दाद में गेंदा के फूलों का स्वरस को दिन में 3 से 4 बार सेवन करने से दाद कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
गेंदा में एंटी-इंफ्लेमेंट्री गुण होते है इसलिए सूजन को कम करने के लिए यह काफी उपयोगी होता है। गेंदा की चाय बनाकर पीने से या लेप लगाने से सूजन कम करने में मदद मिलती है। आंतरिक अंगों की सूजन को कम करने के लिए गेंदे का काढ़ा बनाकर पिलाने से अंदर की सूजन को नष्ट कर देती है।
चोटे- मोच में गेंदे के पंचाग का रस निकाल कर चोट-मोच और सूजन पर लेप करने से चोट-मोच में आराम मिलता है।
बिवाई में गेंदा के पत्तों का रस वैसलीन में मिलाकर हाथ पैरों पर लेप करने से बिवाई और हाथ पैरों की खुश्की दूर होती है।
घाव में गेंदे के पत्तों को पीसकर फोड़ें-फुंसी और घाव पर लगाने से आराम होता है। अर्श के मस्सों पर भी आराम होता है।
फोड़े-फुंसी में गेंदा के पत्तों को पानी के साथ पीसकर शरीर पर लेप करने से फोड़े-फुंसी नष्ट होती है।
गेंदे का पौधा अपने सुंदर आकर्षक पुष्पों, पत्तियों से निकलती मदमस्त खुशबू मसलने पर की वजह से घरों और उद्यानों में लगाया जाता है पुष्प भेद से गेंदा की कई जातियां होती है, परन्तु इनमें (1) हजारा इसका फूल बड़ा (2) सुरनाई, (3) कौकहान-लाल और पीले रंग के दलचक्र वाला प्रमुख है।
भारत में गेंदा फूल का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि गेंदा फूल का उपयोग धार्मिक तथा सामाजिक अवसरों में सजाने के रूप में किया जाता है। गेंदा फूल को पूजा अर्चना के अलावा शादी-विवाह, जन्म दिन, सरकारी एवं निजी संस्थानों में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अवसर पर पंडाल, मंडप-द्वार तथा गाड़ी, सेज आदि सजाने एवं अतिथियों के स्वागत के लिए माला, बुक तथा फूलदान सुसज्जित करने में भी गेंदा का प्रयोग किया जाता है। गेंदा के फूल का प्रयोग मुर्गियों के भोजन के रूप में भी किया जा रहा है। गेंदे के प्रयोग से मुर्गी के अंडे का रंग पीला हो जाता है, जिस प्रकार अण्डे की गुणवत्ता तो बढ़ती है। साथ ही गेंदा फूल अपनी और आकर्षित कर लेता है।
यह 2-3 फुट ऊँचा रोमश क्षुप होता है। कांड और शाखाएं रोमयुक्त लाल बैंगनी रंग की, पत्र एकांतर पक्षवत, विभक्त रोमश, उग्रगन्धि (मसलने पर खुश्बू आती है) मालाकार, दंतुर, पुष्प बड़े मुण्डकों में गहरे पीले या नारंगी रंग के, बीज लम्बे कृष्ण वर्ण होते हैं।
गेंदा कफ पित्त प्रशमन, शोथहर, रक्तरोधक एवं रक्त शोथहर है।
गेंदा का अत्यधिक प्रयोग हानिकारक है। यह कामशक्ति को घटाता है। गेंदा के 10 ग्राम बीजों को कूटकर खाने से काम शक्ति समाप्त हो जाती है।
गेंदा का अधिक सेवन करने एलर्जी का खतरा रहता है जिससे त्वचा पर रैशेज हो सकते है। गेंदा का अधिक उपयोग फर्टीलिटी को कम करता है।
गेंदा पीरियड्स को प्रभावित कर सकता है इसलिए गेंदे का प्रयोग उपयोग गर्भावस्था और दूधपान के समय नहीं करना चाहिए।
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