धातकी की दवा पित्तज ज्वर, गर्भधारण, सफ़ेद पानी, बवासीर, प्रमेह, दस्त, दंतपीड़ा, नकसीर, प्लीहा रोग, पेट के कीड़े, पेचिस, रक्त पित्त, नासूर, जख्म, दाह, दन्तोद्गम की पीड़ा आदि बिमारियों के इलाज में धातकी के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Dhatki Benefits And Side Effects In Hindi.धातकी के फायदे एवं सेवन विधि:
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पित्तज ज्वर में धातकी के फूलों का 1 चम्मच चूर्ण गुलकंद के साथ सुबह शाम दूध या जल के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।
गर्भधारण में सम्पूर्ण चिकित्स्कीय परीक्षण सामान्य होने पर भी जिन महिलाओं को गर्भस्थापन नहीं होता है। उनके लिए नील कमल का चूर्ण तथा धातकी पुष्प चूर्ण दोनों को समभाग मिलाकर ऋतुकाल प्रारम्भ होने के दिन से 5 दिन तक मधु के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करने से स्त्री गर्भधारण करती हैं। प्रयोग असफल होने पर अगले मासिक धर्म से पुनः प्रयोग करना चाहिए।
सफ़ेद पानी में -स्त्रियों के श्वेत प्रदर में धातकी के फूलों का चूर्ण 2 चम्मच लगभग 3 ग्राम शहद के साथ सुबह खाली पेट व शाम को भोजन से एक घंटा पहले सेवन करने से स्त्रियों के सफ़ेद पानी में लाभ होता है। धातकी के पुष्पों का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में, समभाग मिश्री मिलाकर रखें। सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ समय तक दूध या जल के साथ दिन में दो या तीन बार सेवन से शीघ्र लाभ होता है।
रक्तार्श (बवासीर) में धातकी के फूलों का शर्बत पिलाने से बवासीर नष्ट होती है। खूनी बवासीर, रक्त प्रदर या अन्य किसी प्रकार का रक्त स्राव रोकने के लिए एक चम्मच चूर्ण में दो चम्मच मधु मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से रक्तस्राव में बंद हो जाता है।
प्रमेह में धातकी के पुष्प, पठानी लोध्र, चंदन सभी समान भाग पीसकर एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो तीन बार मधु के साथ दो हपते तक सेवन करने से प्रमेह नष्ट होता है।
दस्त -अतिसार व प्रवाहिका में धातकी के पुष्पों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में 2 चम्मच मधु या एक कप मठठे के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ होता हैं। जिन्हें बार-बार शौच जाना पड़ता हैं, उन्हें इस निरापद दिव्य औषध का सेवन करने से लाभ होता है:दस्त में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
दन्त पीड़ा में धातकी के पत्ते तथा फूल, दोनों को समभाग लेकर, बनाये गया काढ़ा से गरारे कुल्ले से सभी प्रकार के दन्त पीड़ा में लाभ होता है।
नकसीर में धाय के फूल, मोचरस, पठानी लोध्रं, आम की गुठली का रस तथा मंजीठ के रस को शक्कर के शर्बत में पीसकर कपड़े से छानकर, निचोड़ लें, इस रस का अवपीड़ नस्य दें, इसके प्रयोग करने से नकसीर में आराम मिलता है।
प्लीहा रोग में 2-3 ग्राम धातकी के फूलों का चूर्ण, चित्रक मूल चूर्ण, हल्दी चूर्ण वा मदार का पत्ता, इनमें से किसी एक का भी सेवन 50 ग्राम गुड़ के साथ करने से प्लीहा रोग नष्ट हो जाता हैं।
उदर कृमि (पेट के कीड़े) में धातकी के चूर्ण को 3 ग्राम प्रातः खाली पेट ताजे जल के साथ एक सप्ताह तक सेवन करने से पेट में कीड़े मर जाते हैं।
पेचिस व प्रवाहिका में 10 ग्राम धातकी के पुष्पों को लगभग 400 ग्राम पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा रहने पर प्रातः खाली पेट व सांयकाल भोजन से 1 घंटा पहले सेवन करने से या हल्का व सुपाच्य भोजन का सेवन करें। परहेज कुछ समय के लिए दूध व घी का भी सेवन न करें, निश्चित लाभ प्राप्त होगा।
रक्त पित्त में धातकी के फूल, चंदन, महुआ, पठानीम लोध्र, फूल प्रिंयगु, अनंत मूल, नागरमोथा, अभया इन सब द्रव्यों को सम्मिलित कूटकर 30 ग्राम चूर्ण काढ़ा लगभग एक किलो पानी में भिगों दें। बाद में निथारे हुए जल में पकी हुई मिटटी लगभग 5 ग्राम को भी भिगो दें। थोड़ी देर बाद पानी निथार लें, अब इसमें मुलेठी अच्छी तरह भीग जाये तो निथार लें। निथारे हुए स्वरस में मिश्री या खंड मिलाकर पीने से रक्तपित्त वेग युक्त रक्त पित्त रुकता है।
नासूर में अलसी के तेल में धातकी के पुष्प चूर्ण को फेंटकर अल्पमात्रा में मधु मिलाकर प्रतिदिन नासूर में लगाने से नासूर भर जाता है:नासूर में लाजवंती/छुई-मुई के फायदे एवं सेवन विधि CLICK HERE
जख्म में जो घाव जल्दी नहीं भरता हो, उसको भरने के लिए धातकी के फूलों का चूर्ण जख्म पर लगाने से जख्म शीघ्र भर जाता है।
दाह में शरीर के किसी अंग में दाह व जलन को दूर करने के लिए धातकी के फूलों को गुलाब जल में पीसकर लेप करने से दाह में लाभदायक होता है।
दन्तोद्गम जन्य पीड़ा में आंवला, पिप्पली और धातकी के फूल तीनो को बराबर लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण को मधु मिलाकर सुबह शाम प्रतिदिन बच्चों के दांत में लगाने से कष्ट दूर होकर, दांत सहजता से निकल जाते हैं।
धातकी के लगभग 10 से 15 फुट ऊँचे गुल्म समस्त भारतवर्ष में 5,000 फुट की ऊंचाई तक देखने को मिल जाते है, प्रायः बंगाल के जलीय प्रदेश और दक्षिण भारत में देखने को नहीं मिलते। जनवरी से अप्रैल तक, जब यह फूलों से भर जाता है, तब इसके पत्ते झड़ जाते हैं तथा फरवरी से मार्च में यह नये पत्ते धारण करता है।
कांड छोटा, बहुशाखीय, कांड त्वक, रक्ताभ, भूरे रंग की पतले टुकडों में छूटती रहती है। पत्र संवृन्त दाड़िम की भाँती परन्तु आकार में उनसे छोटे, पीट वर्ण के अभिमुख, अधर तल पर सूक्ष्म रोमयुक्त होते हैं इसकी शाखाओं और पत्तों पर विशेष प्रकार के काले-काले बिन्दुओं का जमघट होता है। पुष्प चमकीले लाल रंग के, पत्रों के नीचे से निकले पुष्प दंड पर गुच्छों में लगते हैं। फल पतले व अंडाकार फल में भूरे रंग के छोटे, चिकने बीज भरे रहते हैं।
धातकी के पुष्पों में टैनिन 24.1 प्रतिशत तथा शर्करा 11.81 प्रतिशत होती हैं। पतियों में 12-20 प्रतिशत टैनिन तथा मेहदी की तरह का रंजक पदार्थ लासोन होता है। धातकी की छाल में भी टैनिन 20-27.1 प्रतिशत पाया जाता है तथा तने से एक प्रकार का गोंद निकलता है।
धातकी के फूल चरपरे, शीतल, मृदुता करने वाले, कसैले, हल्के तथा तृषा, अतिसार, पित्त, रुधिर दोष, विष्कृमि तथा विसर्प नाशक है। यह गर्भ-स्थापक तथा योनि से होने वाले विविध प्रकार के स्रावों को रोकता है। धातकी, नागपुष्पी, चंदन यह सब अतिसार का नाश करने वाले हैं, टूटी अस्थियों को जोड़ने वाले, पित्त में हितकारी और व्रणों का रोपण करने वाले हैं।
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