शरपुन्खा की घरेलू दवाएं, उपचार: शरपुन्खा बवासीर, दन्तरोग, खांसी, श्वांस रोग, गुल्मरोग, भूख की वृद्धि, पेचिस, अफारा, पेट दर्द, असाध्य रोग, अतिसार, पेट के कीड़े, बच्चों के पेट के कीड़े, हैजा रोग, पेशाब की जलन, प्लीहा वृद्धि, यकृत रोग, चर्मरोग, कुष्ठ रोग (कोढ़), घाव, दाह, फोड़े-फुंसी, रुधिर शुद्ध आदि बिमारियों के इलाज में शरपुन्खा की घरेलू दवाएं, होम्योपैथिक आयुर्वेदिक औषधीय चिकित्सा प्रयोग एवं सेवन विधि निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है: शरपुन्खा के फायदे, लाभ, घरेलू दवाएं, उपचार, सेवन विधि एवं नुकसान:-
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
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Table of Contents
हिंदी – सरफोंका
अंग्रेजी – Purple tephrosia, Wild indigo
संस्कृत – शरपुन्खा, प्लीह शत्रु, नील वृक्षाकृति
गुजराती – शरपुंखों
मराठी – उन्हाली, शीरपुंखा
बंगाली – बननील
तेलगू – वेप्ली
फ़ारसी – वर्गसुफार आदि नामों से शरपुन्खा को जाना जाता है।
शरपुन्खा के औषधीय प्रयोग किये जाने वाले भाग-शरपुन्खा की जड़, शरपुन्खा की छाल, शरपुन्खा की पत्ती, शरपुन्खा का तना, शरपुन्खा का फूल, शरपुन्खा के फल, शरपुन्खा का तेल आदि घरेलू दवाओं में प्रयोग किये जाने वाले भाग है।
शरपुन्खा के पौधे से 6 प्रतिशत राख प्राप्त होती है, जिसमें अल्प मात्रा में मैंगनीज, क्लोरोफिल, भूरे रंग का रालीय पदार्थ, मोम, किंचित एल्ब्यूमिन, रंजक द्रव्य एवं क्वेसटीन या क्वेरसाइट्रीन के समान एक द्रव्य होता है।
बवासीर की समस्या से छुटकारा पाने के लिए मरीज को शरपुंखे के पत्ते और भांग के पत्तों को समान मात्रा में पीसकर उनकी लुग्दी बनाकर, गुदा पर बांधने से बवासीर नष्ट हो जाती है।
खूनी बवासीर में शरपुंखे के पत्ते और भांग के पत्तों को समान मात्रा में पीसकर उनकी लुग्दी बनाकर, गुदा पर बांधने से खूनी बवासीर नष्ट हो जाती है।
दंतरोग रोग में शरपुन्खा के मूल के 100 ग्राम काढ़ा में हरड़ की लुगदी 10 ग्राम डालकर 100 ग्राम तेल में पकायें, जब तेल का जलीयांश जल जाये तब उतारकर ठंडा कर ले उसके बाद रुई के फोहे में लगाकर दंत शूल के लिए प्रयोग किया जाता है। दंत रोगो में शरपुन्खा के मूल को कूटकर दुखते दांत के नीचे दबाने से दांत में बहुत लाभ होता है।
खांसी की समस्या से ग्रसित मरीज को शरपुन्खा के सूखे मूल का को जलाकर उसका धुंआ सूंघने से खांसी में लाभ होता है।
श्वास रोग में शरपुन्खा का 2 ग्राम लवण शहद के साथ दिन में दो तीन बार चाटने से श्वांस रोग में शीघ्र लाभ होता है।
पेट की गांठ में शरपुन्खा के क्षार में समान भाग हरड़ का चूर्ण मिलाकर चार ग्राम की मात्रा में भोजनोपरांत सुबह-शाम सेवन करने से गुल्म रोग मिटता है।
मंदाग्नि (भूख की वृद्धि) में शरपुखे की 10 ग्राम कड़वी जड़ को 200 ग्राम पानी में उबालकर सुबह-शाम सेवन करने से भूख बढ़ती है।
संग्रहणी (पेचिस) अधिक पेचिस पड़ रही हो तो शरपुंखे के 20 ग्राम काढ़ा में 2 ग्राम सौंठ डालकर सुबह-शाम सेवन करने से पेचिस में आराम मिलता है।
पेट के अफारा में शरपुंखी की जड़ के 10-20 ग्राम काढ़ा में भुनी हुई हींग 250 से 500 मिलीग्राम मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से पेट का अफारा दूर होता है।
उदरशूल (पेट दर्द) में शरपुन्खा की ताजी जड़ की छाल 10 ग्राम को 2-3 नग काली मिर्च के साथ पीसकर गोली बनाकर दिन में दो तीन बार प्रयोग करने से हठीला और दुःसाध्य पेट दर्द मिटता है।
असाध्य रोग में शरपुन्खा की ताजी जड़ की छाल 10 ग्राम को 2-3 नग काली मिर्च के साथ पीसकर गोली बनाकर दिन में दो तीन बार प्रयोग करने से असाध्य रोग में लाभ होता है।
अतिसार दस्त से परेशान मरीज को शरपुंखे के 5 ग्राम काढ़ा में 1-2 नग लौंग डालकर दिन में तीन चार बार पीने से दस्त मिटता है।
उदर कृमि (पेट के कीड़े) में शरपुंखे के 10 ग्राम काढ़ा में वायबिड़ग का 2 ग्राम चूर्ण समभाग मिलाकर रात में सोने से पहले पिलाने से बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते है।
विसूचिका (हैजा रोग) में शरपुन्खा की जड़ों को पीसकर दो ग्राम की मात्रा में सुबह शाम पिलाने से हैजे रोग में लाभ होता है।
मूत्रकृछ्र (पेशाब की जलन) में शरपुन्खा के 20-25 पत्तों को पीसकर पानी के साथ उनमें 3-4 नग काली मिर्च डालकर रोगी को पिलाने से बहुत लाभ होता है।
प्लीहावृद्धि शरपुन्खा की जड़ के 10 ग्राम कल्क को 250 ग्राम मट्ठा के साथ दिन में दो तीन बार पिलाने से बढ़ी हुई तिल्ली कम हो जाती है। यकृत एवं प्लीहावृद्धि में शरपुन्खा मूल को दातुन की तरह चबाकर इसका रस अंदर उदर में उतारने से बहुत लाभ होता है। प्लीहावृद्धि में शरपुन्खा के पादप को जड़ सहित उखाड़कर छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर 3 से 5 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम सेवन करने से प्लीहा रोग ठीक हो जाता है।
यकृत रोग में शरपुंखे की मूल की 10 से 20 ग्राम कल्क का प्रयोग 2 ग्राम हरड़ और एक गिलास मटठे के साथ सुबह-शाम सेवन करने से यकृत रोग में लाभ होता है।
चर्मरोग में ग्रसित शरपुन्खा के बीजों के तल को कण्डू, खुजली आदि दुःसहाय चर्म रोगों पर लेप करने से चर्मरोग में लाभ होता है।
कुष्ठ रोग की समस्या को दूर करने के लिए शरपुन्खा के पत्रों का 10-20 मिलीलीटर स्वरस दिन में दो तीन बार से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
व्रण (घाव) में शरपुन्खा की 15-20 ग्राम मूल को जल में पीसकर उसमें 2 चम्मच शहद में मिलाकर घाव पर लेप करने से दुष्ट घाव का रोपण शीघ्र हो जाता है। शरपुन्खा, काकजंघा, नवजात भैसे का प्रथम मल, लज्जालु इनमें से किसी एक को आवश्यकतानुसार लेकर लेप कर लेने से सदयाक्षत नष्ट होता है।
दाह से छुटकारा पाने के लिए मरीज को शरपुन्खा के 10-20 ग्राम बीजों को एक गिलास ठडें पानी में भिगोकर मसल कर, छानकर पिलाने से शरीर की दाह और उष्मा मिटती है।
फोड़ें फुंसी में शरपुंखे के 10-20 ग्राम काढ़ा में शहद 2 चम्मच मिलाकर खाली पेट सुबह-शाम पिलाने से फोड़ा-फुंसी ठीक हो जाती है।
रुधिर करने में शरपुंखे के 10-20 ग्राम काढ़ा में शहद 2 चम्मच मिलाकर खाली पेट सुबह-शाम नियमित रूप से पिलाने से खून शुद्ध होता है।
समस्त भारतवर्ष में, तथा हिमालय क्षेत्रों में 6,000 फुट की ऊंचाई तक इसके स्वयंजात पौधे होते हैं। पुष्प भेद से शरपुन्खा के दो भेद होते हैं: रक्त पुष्पी और श्वेत पुष्पी। प्रायः शरपुन्खा के नाम से लाल या बैगनी रंग के फूल वाली वनस्पति का ग्रहण एवं प्रयोग किया जाता हैं। शरपुंख पर फूल वर्षा ऋतु में तथा फल शरद ऋतु में लगते हैं।
शरपुन्खा के बहुशाखी पादप 1-3 फुट ऊँचे, सीधे, काण्ड बेलनाकार, चिकने व किंचित रोमशः, पत्तियां, विषम पक्षवत जिनमें 5-9 जोड़ें पत्रक होते हैं, पत्रक 1 इंच लम्बे, 1/2 इंच चौड़े, प्रति भालाकार नताग्र या रोमशाग्र होते हैं। पत्रकों को तोड़ने पर बाण के समान नुकीले टूटते हैं। पुष्प लाल या बैगनी रंग के 3-6 इंच लम्बी मजरीयों में निकलते हैं, फली 1-2 इंच लम्बी, सीधी किंचित चपटी रोमश, कुण्ठिताग्र एक चोंच जैसी नोक, बीज 4-10 छोटे वृक्काकार पीतवर्ण द्विदल तथा इनका बाह्य छिलका चितकबरा होता हैं।
यह कफ वातशामक, प्लीहोदर नाशक है। इसका-बाहालेप शोथहर, कुष्ठघ्न, विषध्न, जन्तुघ्न व्रणरोपण, रक्त रोधक और दन्त्य है। आंतरिक प्रयोग में यह दीपन, अनुलोमन, पित्तसारक, कृमिघ्न और प्लीहाधन है। यह रक्तशोधक और कफ निःसारक है। यह मूत्रल और गर्भाशय उत्तेजक है। कुषध्न, ज्वरध्न व विषध्न है। श्वेत शरपुन्खा अधिक गुणकारी और रसायन है।
यह औषधि बहुत कड़वी होती है, इसका अधिक सेवन करने से मरीज को उल्टी की समस्या हो सकती है।
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