शंखपुष्पी की घरेलू दवाएं, उपचार: शंखपुष्पी स्मरणशक्ति, बच्चों के बुद्धि वृद्धि, मिर्गी रोग, मस्तिष्क बलवान , पागलपन, सिरदर्द, वमन (उल्टी), शैय्यामूत्र, मधुमेह रोग, लू लगने पर, रक्तस्त्राव, उच्चरक्त चाप आदि बिमारियों के इलाज में शंखपुष्पी की घरेलू दवाएं, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक उपचार, औषधीय चिकित्सा प्रयोग एवं सेवन विधि निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है: शंखपुष्पी के फायदे, लाभ, घरेलू दवाएं, उपचार, औषधीय गुण, सेवन विधि एवं नुकसान:-
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Table of Contents
हिंदी – शंखाहुली, शंखपुष्पी
अंग्रेजी – शंख पुष्पी, Shankhapushpee
संस्कृत – शंख मालिन, शंखपुष्पी, शंखाहा
गुजराती – शंखावली, संखावली
मराठी – शंखाहुली
बंगाली – शंखाहुली
कुलनाम – Convolvulaceae
वैज्ञानिक नाम – Convolvulus micropbyllus Side. ex Spreng.
शंखपुष्पी के औषधीय प्रयोग किये जाने वाले भाग-शंखपुष्पी की जड़, शंखपुष्पी की छाल, शंखपुष्पी की पत्ती, शंखपुष्पी का तना, शंखपुष्पी का फूल, शंखपुष्पी के फल, शंखपुष्पी का तेल आदि घरेलू दवाओं में प्रयोग किये जाने वाले शंखपुष्पी के भाग है।
स्मरणशक्ति 3 से 6 ग्राम तक शंखपुष्पी का चूर्ण खंड व दूध के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल प्रयोग करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। अध्ययन से उत्पन्न थकावट दूर होती हैं। शंखपुष्पी का 3-6 ग्राम, चूर्ण मधु में मिलाकर चाटने और ऊपर से दूध पीने से बुद्धि बढ़ती हैं।
बच्चों की बुद्धि वृद्धि में शंखपुष्पी 2-4 ग्राम एवं बच मीठी का लगभग 1 ग्राम चूर्ण बच्चों को खिलाने से बच्चा बहुत बुद्धिशाली एवं चतुर होते है। प्रातःकाल शंखपुष्पी स्वरस 10-20 मिलीग्राम अथवा चूर्ण 2-4 ग्राम शहद गाय का घी एवं चीनी के साथ 6 माह तक निरंतर सेवन करने से वृद्धावस्था की झुर्रिया दूर होकर शरीर में बल एवं स्मरण शक्ति तथा मेधा की वृद्धि होती है।
अपस्मार मिर्गी रोग में शंखपुष्पी का रस 2 भाग सुबह-शाम मधु में मिलाकर पिलाने से मिर्गी रोग में लाभ हो जाता हैं। शंखपुष्पी, बच और ब्राही को बराबर-बराबर लेकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार देने से अपस्मार, हिस्टीरिया और उन्माद रोग में लाभ हो जाता हैं।
मस्तिष्क बलवान छाया में सुखाई हुई शंखपुष्पी 1 किलोग्राम, शर्करा 2 किलोग्राम दोनों को पीसकर छान कर बोतलों में भरकर रख लें। इस चूर्ण को 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लेने से मस्तिष्क बलवान होता है।
पागलपन में शंखपुष्पी का रस 10 से 20 ग्राम तक, कुठ का चूर्ण 500 मिलीग्राम थोड़े मधु के साथ सेवन करने से उन्माद पागलपन रोग मिटता है। इसका स्वरस 10-20 मिलीग्राम शहद के साथ प्रयोग करने से सभी प्रकार के उन्माद रोग में शीघ्र लाभ होता है।
सिरदर्द में शंखपुष्पी 1 ग्राम, खुरासानी अजवायन 250 मिलीग्राम, गर्म जल के साथ सेवन करने से सिर की वेदना दूर हो जाती हैं।
वमन में शंखपुष्पी के पंचांग के दो चम्मच रस में एक चुटकी काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ बार-बार पिलाने से वमन बंद हो जाता हैं।
शैय्यामूत्र बच्चे रात्रि में सोते समय विस्तर पर पेशाब कर देते हो तो उनको रात्रि में सोते समय शंखपुष्पी चूर्ण 2 ग्राम व काले तिल 1 ग्राम मिलाकर बकरी के दूध के साथ पिलाने से बच्चे विस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते है।
मधुमेह रोग में शंखपुष्पी के 6 ग्राम चूर्ण को सुबह-शाम गाय के मक्खन के साथ या पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग में बहुत लाभ होता है। मधुमेह की कमजोरी को दूर करने के लिये शंखपुष्पी का 2-4 ग्राम चूर्ण अथवा स्वरस 10-20 मिलीग्राम प्रयोग में लाने से गुणकारी होता है।
लू लगने से ज्वर में जब रोगी बेसुध हो जाता है, और प्रलाप करने लगता है, उस समय नींद लाने के लिये शंखपुष्पी चूर्ण 5-10 ग्राम चूर्ण को भैंस का दूध एवं शहद के साथ पिलाने से लू में शीघ्र लाभ होता है।
रक्तस्त्राव में शंखपुष्पी का 10-20 मिलीग्राम स्वरस सुबह-शाम तथा दोपहर कुछ दिनों तक सेवन करने से उच्चरक्त चाप से हमेशा के लिये छुटकारा मिल जाता है।
उच्चरक्त चाप में शंखपुष्पी का 10-20 मिलीग्राम स्वरस सुबह-शाम तथा दोपहर कुछ दिनों तक सेवन करने से उच्चरक्त चाप शीघ्र लाभ होता है।
वर्षा ऋतु में समस्त भारतवर्ष में पथरीली एवं परती भूमि में नैसर्गिक रूप से उत्पन्न शंखपुष्पी के प्रसरणशील छोटे-छोटे घास के समान पौधे पाये जाते है। बहुत से स्थानों पर यह बारह मॉस देखी जा सकती है। मूलस्तम्भ प्रायः बहुवर्षायु होता हैं। पुष्प के रंग भेद से इसकी तीन जातियां पाई जाती है, (1) श्वेत, (2) नील (3) औषध कर्म में श्वेत फूल वाली शंखपुष्पी का ही व्यवहार करना चाहिये। प्रस्तुत विवरण इसी के विषम में है।
काष्ठीय मूल स्तम्भ से 4-12 इंच लम्बी, रोमश, शखाएं कुछ ऊँचा उठकर, बाद में जमीन पर फ़ैल जाती है। पत्र 1/2 इंच से 1 1/2 इंच तक लम्बे, कुछ मोटे वृन्त की ओर संकरे सिरे की ओर चौड़े तथा चिकने होते हैं, मलने से मूली के पत्ते जैसी गंध आती है। फूल, श्वेत या फीके अथवा गहरे गुलाबी रंग के, फनेल के आकार के गोल होते हैं। फल भूरे रंग का, छोटा, चिकना और चमकदार होता हैं, इसमें भूरे या काले रंग के 4 बीज होते है। पूरे क्षुप पर जामुनी या भूरे रंग के रोये होते हैं।
शंखपुष्पी में एक क्षाराभ शंखपुष्पीं एवं दो स्फटिकीय द्रव्य पाये जाते है।
कषाय, शीतवीर्य, स्निग्ध, पिच्छिल, तिक्त, मध्य, रसायनी, अपस्मार आदि मानसिक रोगों को दूर करने वाली, स्मृति कांति तथा वलवर्धक। कुष्ठ, कृमि और विष को नष्ट करने वाली हैं।
प्रयोज्य अंग :- पत्र पुष्प, फल बीज, मूल – पंचाग
गर्भवती स्त्रियों को शंखपुष्पी अधिक मात्रा में प्रयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि उनकों नुकसान कर सकता है।
निम्न रक्तचाप वाले व्यक्तियों को शंखपुष्पी का प्रयोग नहीं करना चहिए।
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