बहेड़ा बुखार, खांसी, नपुंसकता, नेत्र रोग, श्वांस, हृदय रोग, पाचन शक्ति, बालों की सुंदरता, मूत्रकृच्छ, पित्तशोथ, पित्तज प्रमेह, दस्त, लार का बहना, आंत उतरना, बंद गांठ, खुजली आदि बिमारियों के इलाज में बहेड़ा के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है, बहेड़ा के गुण, फायदे, नुकसान और औषधीय प्रयोग:-
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फल में टेनिन, बी-सीटोस्टेरॉल, गैलिक एसिड, इलेगिकएसिड, एथिल गैलेट, चेबुलेजिक एसिड, मैनिटाल, ग्लूकोज, गैलेक्टोज फ्रक्टोज तथा रैमनोज होते है, बीज मज्जा से चमकीले पीले रंग का स्थिर तेल निकलता हैं। बहेड़ा की छाल में टैनिन होता है।
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ज्वर (बुखार) में बहेड़े का 40-60 ग्राम काढ़ा सुबह-शाम पीने से पित्त, कफ, ज्वर में लाभ मिलता है। बहेड़े और जवासे के 40-60 ग्राम काढ़ा में 1 चम्मच घी मिलकर सुबह-शाम-दोपहर पीने से पित्त और कफ का बुखार छूट जाता है। और आँखों के आगे अँधेरा होना व चक्कर आना बंद हो जाता है।
खांसी में बहेड़े के छिलके को मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी नष्ट हो जाती है। तथा कफ बाहर निकल जाता है। बकरी के दूध में अडूसा, काला नमक और बहेड़े डालकर पकाकर खाने से तर और सूखी दोनों प्रकार की खांसी शीघ्र नष्ट हो जाती है:खांसी में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
नपुंसकता में 3 ग्राम बहेड़े के चूर्ण में 6 ग्राम गुड़ मिलाकर प्रतिदिन नियमित रूप से सुबह-शांम सेवन करने से नपुंसकता मिटती है और कामोद्दीपन होता है।
नेत्र ज्योति में बहेड़े और खंड के समभाग मिश्रण का सेवन करने से नेत्रों की ज्योति को बढ़ता है। नेत्र पीड़ा में बहेड़ा की छाल का शहद के साथ लेप करने से नेत्र की पीड़ा मिटती है।
श्वास में बहेड़े और हरड़ की छाल बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें तथा 4 ग्राम की मात्रा नियमित देने से श्वास और कास नष्ट होता है।
हृदय रोग में बहेड़ा के फल का चूर्ण तथा अश्वगंधा का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा लेकर गुड़ में मिलाकर उष्ण जल के साथ सेवन करने से हृदय रोग की समस्या दूर हो जाती है।
मंदाग्नि (पाचन शक्ति) में विभीतक फल के 3 से 6 ग्राम चूर्ण की भोजनोपरांत फंकी लेने से पाचन शक्ति तीव्र होती है और मंदाग्नि मिटती है। आमाशय को ताकत मिलती है।
केश्यकल्प में बहेड़ा के फल की मींगी का तेल बालों के लिए अत्यंत पौष्टिक है। इससे बाल स्वस्थ और लम्बा होता है।
मूत्रकृच्छ् (पेशाब की जलन) में बहेड़ा के फल की मींगी का चूर्ण 3-4 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से पेशाब की जलन एवं अश्मरी में लाभ होता है।
पित्तशोथ में बहेड़े की गिरी का लेप करने से पित्त शोथ बिखर जाती है। नेत्र को पित्त शोथपर बहेड़े का लेप करने से गांठ नष्ट हो जाती है।
पित्तज प्रमेह में बहेड़ा, कुटज, रोहिणी, सर्ज, छतिबन, कैथ, कबीला के फूलों का चूर्ण बनाकर 2 से 3 ग्राम की मात्रा लेकर 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर पित्तज प्रमेह के रोगी को सुबह-शाम-दोपहर सेवन कराने से पित्तज प्रमेह में लाभदायक होता है।
दस्त में बहेड़ा के पेड़ की 2-5 ग्राम छाल और 1-2 नग लौंग को 1 चम्मच मधु में पीसकर दिन तीन-चार बार चटाने से दस्त बंद हो जाते है। 2-3 नग भुना हुआ बहेड़ा पुराने दस्तों को बंद कर देता है: दस्त में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
लार में डेढ़ ग्राम बहेड़े में समान मात्रा में खंड मिलाकर कुछ दिन खाने से मुंह से अत्यधिक लार का बहना बंद हो जाता है।
आंत उतरना (हर्निया) पोतों में आंत उतरने पर बहेड़े का पीसकर लेप करने से पहले ही दिन से फायदा होता है।
खुजली में बहेड़े के फल की गिरी का तेल कण्डू रोग में लाभकारी है दाहशामक है। बहेड़े की मालिश से खुजली और जलन मिट जाती है।
बंद गांठ में अरंडी के तेल में बहेड़े के छिलके को भूनकर तेज सिरके में पीसकर बंदगांठ पर लेप करने से 2-3 दिन में बंदगांठ बैठ जाती है।
बहेड़ा भारतवर्ष में सर्वत्र पाया जाता है, विशेषकर निचले पर्वतीय प्रदेशों में अधिक होता है। फरवरी- मार्च में पत्र विहीन होने के पश्चात इस पर नये ताम्रवर्ण पल्ल्व निकलते हैं, उसी के साथ मई तक पुष्प खिलते हैं तथा अगली जनवरी-फरवरी तक फल पक जाते है।
बहेड़ा का वृक्ष 60-80 फुट ऊँचा, काण्ड सीधा, कांड त्वक गहरे भूरे रंग का, पत्र 3-8 इंच लम्बे, एकांतर, चौड़े, अंडाकार, सवृन्त शाखाओं के अग्रभाग पर समूहबद्ध लगते हैं। पुष्प सफेद या पीले रंग के 3-6 इंच लम्बी मंजरियों में होते हैं, ऊपर के पुष्प पुल्लिंगी तथा नीचे के उभय लिंगी होते हैं। फल 1/2 इंच व्यास का धूसरवरण, रोमश, गोलाकार, पीछे की ओर वृन्त पर संकरा हो जाता है। फल सूखने पर धारीदार या हल्का पंचकोणीय मालूम होता है। यह एक बीजी होता है।
बहेड़ा त्रिदोषहर है, परन्तु इसका मुख प्रयोग कफ प्रधान विकारों में होता है। यह नेत्रों को हितकारी, केशवर्धक, भेदक तथा पलित रोग, स्वरभंग, नासारोग, रुधिर दोष, कंठ रोग, नेत्र रोग, कास, हृदय रोग में गुणकारी और कृमिघ्न होता है। बहेड़े के फल की मगज आंख के फूले को दूर करती है। इसकी छाल रक्ताल्पता पांडुरोग और श्वेत कुष्ठ में लाभदायक है। इसके बीज कडुवे, मादक, तृषा, वमन नाशक, वातहर तथा ब्रोंकाइटिस का नाश करने वाले है। इसके फलों का छिलका संकोचन और कफनाशक है। इसकी विशेष क्रिया कंठ और श्वासनलिका पर होती हैं। इसके बीजों की गिरी वेदनाशामक और शोथहर है, अधिक मात्रा में यह वामन होती है। बहेड़ा, आंवला हरीतकी यह सब मुस्तादिगण कफ नाशक, योनिदोषनाशक, दूध का शोधन करने वाले और पाचक है। बहेड़ा, हरड़ तथा आंवला ये सभी प्रमेह कुष्ठ को नष्ट करते हैं, आँखों के लिए हितकारी, अग्नि दीपक और विषम ज्वर को नष्ट करते है। इनका रस, रक्त एवं मेद्गट दोषों को दूर करता है तथा स्वरभेद, कफ, क्लेद एवं पर्त रोग को नष्ट करता है।
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