अश्वगंधा के फायदे, गुण, नुकसान और औषधीय प्रयोग
अश्वगंधा अनेक रोगों की दवा जैसे:- बुखार, गंठिया, टी.बी. रोग, गर्भधारण, गर्भपात, सफ़ेद पानी, नपुंसकता, वीर्य वर्धक, खांसी, रक्तविकार, हृदय रोग, घेंघा रोग, नेत्र रोग, कब्ज, पेट कीड़े, कमर दर्द आदि बिमारियों के इलाज में अश्वगंधा के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:अश्वगंधा (असगंध) के गुण, फायदे, नुकसान और औषधीय प्रयोग
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
Click Here
बुखार में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
ज्वर (बुखार) में अश्वगंधा का चूर्ण पांच ग्राम, गिलोय की छाल का चूर्ण चार ग्राम बराबर मात्रा में मिलाकर मधु के साथ चाटने से सभी प्रकार के बुखार नष्ट हो जाते है।
गंठिया में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
गठिया में असगंध के पंचाग को कूटकर, छानकर 25-50 ग्राम तक सेवन करने से गठिया का दर्द दूर होता है। तथा गठिया में असगंध के 30 ग्राम ताजा पत्ते, 250 ग्राम पानी में उबालकर पानी शेष रह जाये तो छानकर पीने से एक सप्ताह में गठिया, जकड़ा और गांठ बिखर जाती है। तथा इसका लेप करने से लाभ होता है। अश्वगंधा के चूर्ण को दो ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध तथा गर्म पानी के साथ पीने से गठिया के रोगी को आराम मिलता है।
टी.बी. रोग में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
क्षयरोग (टी.बी.) में अश्वगंधा चूर्ण 2 ग्राम असगंध काढ़ा 20 ग्राम के साथ सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है। 2 ग्राम असगंध मूल के चूर्ण में 1 ग्राम बड़ी पीपल का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से टी.बी. रोग नष्ट हो जाता है।
गर्भधारण में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
गर्भधारण में असगंध के चूर्ण 20 ग्राम, एक लीटर जल तथा गाय का दूध 250 ग्राम तीनों को धीमी आंच पर पकाकर दूध मात्र शेष रह जाये तो इसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर मासिक धर्म की शुद्धिस्नान के तीन दिन बाद तीन दिन तक सेवन करने से स्त्रियां शीघ्र गर्भ धारण कर लेती है।
गर्भपात में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
गर्भपात में असगंध और सफेद कटेरी की जड़ इन दोनों का 10-10 ग्राम स्वरस पहले महीने से पांच महीने तक सेवन करने से अकाल में गर्भपात नहीं होगा अथवा गर्भपात के समय सेवन करने से गर्भ रुक जाता है।
सफ़ेद पानी में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
श्वेत प्रदर (सफ़ेद पानी) में असगंध चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर एक-एक चम्मच गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
नपुंसकता में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
नपुंसकता में असगंध का कपड़छन चूर्ण और चीनी बराबर मिलाकर रखे, इसको एक चम्मच गाय के दूध के साथ प्रातः भोजनोपरांत के दिन घंटे के बाद सेवन करें। चुटकी-चुटकी कर चूर्ण को खाते रहे और उसके बाद दूध पीने, रात्रि के समय इसके बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में अच्छी तरह घोंटकर लगाने से इन्द्रिय की शिथिलता दूर होकर वह कठोर और दृढ हो जाती हैं। अश्वगंधा, दालचीनी और कडुवा कूठ समभाग कूटकर छान लें और गाय के मक्खन में मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम सुपारी छोड़ शेष लिंग पर मलें, इसको मलने के पूर्व और बाद में लिगं को गर्म पानी से धो लें। नपुंसकता दूर होता है।
वीर्य वर्धक में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
वीर्य वधक में अश्वगंधा के एक साल तक यथाविधि सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल सर्दियों में ही इसके सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धा अवस्था दूर होकर नव यौनव प्राप्त होता है। अश्वगंधा का चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन ग्राम शहद मिलाकर नियमित शरद ऋतू में सेवन करके कृश शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है। अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर मात्रा लेकर पका लें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से या एक ग्राम असगंध के चूर्ण में 125 मिलीग्राम मिश्री डालकर औटाये हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है।
खांसी में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
खांसी में असगंध की 10 ग्राम जड़ों को कूट लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 ग्राम जल में पकाएं, जब आठवां हिस्सा बचे थोड़ा-थोड़ा पिलाने से कुकुर खांसी या वात जन्य कास पर विशेष लाभ होता हैं:खांसी में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
रक्तविकार में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
रक्तविकार (खून की अशुद्धता) में 4 ग्राम चोपचीनी और असगंध का बारीक पीसा चूर्ण दोनों बराबर लें मधु के साथ नियमित सुबह-शाम चाटने से रक्त विकार मिटते हैं।
हृदय विकार में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
हृदय शूल में वात के कारण हृदय रोग में असगंध का चीन 2 ग्राम गर्म जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है। अश्वगंधा चूर्ण में बहेड़े का चूर्ण समभाग मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा गुड़ के साथ सेवन करने से हृदय संबंधी हृदय की पीड़ा दूर होती है।
गण्डमाला में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
गण्डमाला (घेंघा रोग) में अश्वगंधा के कोमल पत्रों को समान मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर तथा पीसकर झाडी के बेर जितनी गोलियां बना कर प्रातः काल जल के साथ खा लेने और असगंधा के पत्तों को पीसकर गण्डमाला पर लेप करने से घेंघा रोग ठीक होता है।
नेत्र रोग में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
नेत्र ज्योति बढ़ाने में अश्वगंधा का चूर्ण 2 ग्राम, धात्री फल चूर्ण दो ग्राम तथा एक ग्राम मुलेठी चूर्ण मिलाकर एक चम्मच सुबह-शाम जल के साथ सेवन करने से नेत्रों की ज्योति में वृद्धि होती है।
कब्ज में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
बद्धकोष्ठ (कब्ज) में 5 ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण की फंकी गर्म जल के साथ देने से कब्ज ठीक हो जाता है।
कृमि रोग में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
कृमि रोग (पेट के कीड़े) में अश्वगंधा के चूर्ण में बराबर गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ 5-10 ग्राम नियमित सेवन करने से लाभ होता है।
कमर दर्द में अश्वगंधा के फायदे एवं सेवन विधि:
कटिशूल यानि कमर दर्द में अश्वगंधा के 2-5 ग्राम चूर्ण को गोघृत या खंड के साथ चाटने से कमर दर्द और निद्रानाश दूर होता है।
अश्वगंधा (असगंध) का परिचय
सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषतः शुष्क प्रदेशों में असगंध के स्वयंजात वंयज या कृषिजन्य पौधे 5,500 फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। वंयज पादपों की अपेक्षा कृषिजन्य पौधे गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होते हैं, परंतु तैलदी के लिए वंयज पौधों का व्यवहार ही बेहतर है। यह देश भेद से कई प्रकार की कहि गयी है, परन्तु असली असगंध के पौधे को मसलने पर अश्व के मूत्र जैसी गंध आती है। जो इसकी ताज़ी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है।
असगंध के बाह्य-स्वरूप
असगंध के 1-5 मीटर ऊँचे शाखा बहुल सीधे गुल्म होते हैं। पत्रयुग्म में 2-4 इंच लम्बे, 1-2 इंच चौड़े, आगरा पर नुकीले या कम चौड़े, पुष्प हरिताभ अथवा बैगनी आभा लिये पीताभ, वृन्त रहित छत्रक समगुच्छों में, कैलिक्स घंटिकाकर तथा मृदु रोमश जो फलों के साथ वधकर रसभरी की भाँती फलों को आवृत कर लेता है। फल मटर के आकार वाले, लाल तथा बाह आवरण शिखर पर खुला होता है। बीज असंख्य, अतिक्षुद्र, वृक्काकार तथा बीज चोल मधुमक्खी के छाती की भांति होता है। मूल शंक्वाकार, मूली की तरह परन्तु उससे कुछ पतली होती है।
असगंध के रासायनिक संघटन
असगंध की जड़ में एक उड़नशील तेल तथा बीथेनिओल नामक तत्व पाया जाता है। इसके सिवाय सोम्मीफेरिन नामक क्रिस्टेलाइन एल्केलायड एवं फाइटोस्टेरोल आदि तत्व भी पाये जाते हैं।
अश्वगंधा के औषधीय गुण-धर्म
कफ वातनाशक, बल्य, वृंहण, रसायन, बाजीकरण, नाड़ी-बल्य दीपन, पाचन आदि।
अश्वगंधा वृक्ष के नुकसान
शुगर ब्लड प्रेशर व गठिया जैसे रोग के उपचार के लिए अगर अश्वगंधा पाउडर का सेवन करते है तो ध्यान रखे और आप इसका सेवन अधिक मात्रा में सेवन करने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।
अश्वगंधा का सेवन अधिक मात्रा सेवन करने से शरीर में कई तरह के बदलाव होने लगते है, जैसे शरीर का तापमान में वृद्धि और बुखार आना। आप को अगर कोई समस्या हो तो अश्वगंधा सेवन बंद कर देना और अगर को परेशानी हो तो डॉक्टर से मिले।
नींद न आने की समस्या को दूर करने में ये काफ़ी उपयोगी है पर अश्वगंधा दवाई का सेवन अधिक मात्रा में करने पर जादा नींद आना या फिर नींद नहीं आना जैसी समस्याएं का समना करना पड़ता है, जिसका दुष्प्रभाव सेहत पर पड़ता है।
लम्बे समय तक इसके सेवन से दूसरी मेडिसिन शरीर पर जल्दी असर नहीं कर पाती, ऐसे में किसी दूसरी बीमारी के इलाज में ली जाने वाली दवा से लाभ नहीं मिलता।
Subject- Ashvagndha ke Gun, Ashvagndha ke Aushadhiy Prayog, Ashvagndha ke Gharelu Upchar, Ashvagndha ki Davayen Evam Sevan Vidhi, Ashvagndha ke Labh, Ashvagndha ke Fayde, Ashvagndha ke Nuksan In Hindi.