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यह बीमारी ज्यादातर बाल्यावस्था में प्रारम्भ होती है। यह बीमारी बालकों की तुलना से वयस्कों में बहुत कम ही देखने को मिलती है। अगर किसी व्यस्क में पहली बार मिर्गी का दौरा पड़ा हो तो यह लक्ष्नात्मक दौरों की श्रेणी में आता है। बिना किसी कारण बस बार-बार मुँह से झाग या शरीर में अकड़न आने लगे तो इसे मिर्गी रोग कहते है। आयुर्वेद की भाषा में मिर्गी को अपस्मार और आधुनिक साइंस में इसे Epilepsy Disease भी कहा जाता है। इस प्रकार की मिर्गी में दौरे लम्बे समय तक चलते हैं। अगर इस अवस्था में रोगी व्यक्ति को अधिक समय तक ध्यान न दिया गया तो व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
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मिर्गी पीड़ित व्यक्ति के मुख से सफ़ेद रंग का झाग निकलने लगता है और पीड़ित को बेहोशी आ जाती है। ये बेहोशी लगभग 10 मिनट से 2 घंटे तक रहे तो इस अवस्था को मिर्गी का लक्षण कहा जाता है। मिर्गी आने के बहुत सारे कारण हो सकते है जैसे कि बचपन में बच्चे की सर पर चोट लगने के कारण और ये एक अनुवांशिक रोग भी हो सकता है। जन्म के समय यदि शिशु के शरीर या मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है। जिस व्यक्ति को ब्रेन ट्यूमर हो उसे मिर्गी के दौरे बार-बार आते ही रहते हैं और ब्रेन स्ट्रोक होने पर ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुँचती है।
मिर्गी रोग में वचा के 500 मिलीग्राम चूर्ण में शहद के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से एक दो माह तक निरंतर सेवन करने से मिर्गी रोग शीघ्र ठीक हो जाता है।
मिर्गी रोग से ग्रसित मरीज को 2 ग्राम तगर और फलों को नियमित रूप से सुबह-शाम तथा दोपहर एक माह तक लगातार सेवन करने से मिर्गी रोग में लाभ होता है।
मिर्गी रोग में सिरस के बीज, मुलेठी, हींग, लहसुन, सौंठ, वच इन सब को एक साथ कूटकर समान भाग लेकर, बकरी के मूत्र में घोंटकर अंजन बना के इसकी नस्य देने से तथा इसी का अंजन करने से मिर्गी रोग में शीघ्र आराम मिलता है।
मिर्गी रोग में शंखपुष्पी का स्वरस 2 भाग सुबह-शाम शहद के साथ मिलाकर रोगी को पिलाने से मिर्गी रोग नष्ट हो जाता हैं। शंखपुष्पी, बच और ब्राही को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार रोगी को खिलने से अपस्मार, हिस्टीरिया और उन्माद जैसे रोगों में लाभ होता हैं।
अपस्मार (मिर्गी) और स्त्रियों के आवेश के रोग में सहिजन की मूल का काढ़ा 25-50 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप पिलाने से मिर्गी रोग में लाभ होता है।
मिर्गी रोग में रीठे के बीज, गुठली और छिलके समेत पीसकर मिर्गी के रोगियों को सुबह-शाम सुंघाने से मिर्गी रोग में राहत मिलती है।
मिर्गी रोग बहुत ही खतरनाक बीमारी होती है, इस रोग में व्यक्ति की जान भी जा सकती है मिर्गी रोग में पर्णबीज के पत्तों का 5 मिलीलीटर रस निकलकर रोगी को सुबह-शाम सेवन कराने से रोगी को फौरन आराम मिलता है।
मिर्गी रोग में पलाश की जड़ों को पीसकर 4 से 5 बून्द तक नाक में टपकाने से मिर्गी का दौरा शीघ्र ही शांत हो जाता है और रोगी को कुछ ही देर में आराम मिल जाता है।
मिर्गी रोग में नागरमोथा को उत्तर दिशा की तरफ से पुण्य नक्षत्र में अच्छे दिन में उखाड़ कर, गाय के दूध में मिलाकर रोगी को पिलाने से मिर्गी रोग में लाभ होता हैं।
अर्दित रोग (मिर्गी रोग) में यदि जीभ में जकड़न हो तो काली मिर्च के चूर्ण करके जीभ पर घिसने से जीभ के जकड़न में शीघ्र लाभ होता हैं।
अपस्मार, अपतन्त्रक एवं आक्षेपक रोग में कसौंदी की मूलत्वक या पंचांग का काढ़ा 15 से 20 ग्राम दिन में दो-तीन बार सेवन करने से मिर्गी में लाभ होता हैं।
मिर्गी रोग में लता करंज के पत्तों का 15 से 20 ग्राम रस दिन में दो-तीन बार प्रयोग करने से मिर्गी रोग में फौरन आराम मिलता है।
मिर्गी रोग में कटेरी की जड़ को नींबू के रस में घिसकर आँख में अंजन लगाने से धुंध और मिर्गी रोग में लाभ होता है।
मिर्गी रोग में इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण का नस्य दिन में दो तीन बार लेने से मिर्गी शीघ्र आराम मिलता है।
दूब के पंचांग का स्वरस, मासिक धर्म, भूतोन्माद और अपस्मार में गुणकारी हैं। दूब के रस में सफेद चंदन का चूर्ण और मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से मिर्गी रोग में लाभ होता है।
मिर्गी रोग में सफ़ेद आक के एक भाग फूल और पुराना गुड़ 3 भाग लेकर दोनों को एक साथ पीस लें, और चने जैसी गोलियाँ बना लें, प्रातः-सांय 1 या 2 गोली ताजे जल के साथ सेवन करने से मिर्गी रोग में तत्काल आराम मिलता है।
काली मिर्च और आक के ताजे फूल को महीन पीसकर 300 मिलीग्राम की गोलियाँ बना ले और सुबह-शाम सेवन करे, या फिर आक के दूध में आवश्यकता अनुसार चीनी या मिश्री पीसकर 125 मिलीग्राम की मात्रा में प्रतिदिन प्रातः कॉल 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सेवन करने से मिर्गी रोग जड़ से नष्ट हो जाती है।
मिर्गी रोगी को अखरोट गिरी को निर्गुन्डी के रस में पीसकर आँखों में अंजन और नस्य देने मिर्गी में लाभ होता है।
शहतूत का रस और आंवले का मुरब्बा मिर्गी रोग में बहुत लाभदायी होता है।
एक गिलास दूध के साथ चार चम्मच मेंहदी के पतों का रस निकालकर रोगी को पिलाने से शीघ्र आराम हो जाता है।
मिर्गी रोग में नारियल के तेल में आक (मदार) का दूध मिलाकर रोगी के पैरों, हथेलियों और बांहों पर नियमित मालिश करने से दौरा का समय घटता है और मिर्गी रोग में लाभ होता है।
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