निर्गुन्डी के फायदे, नुकसान एवं औषधीय गुण

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निर्गुन्डी के फायदे, नुकसान एवं औषधीय गुण, निर्गुन्डी की दवा:-मस्तक रोग, सिरदर्द, कंठशूल, मुखपाक, गले की खराश, गले की सूजन, कान के रोग, गण्डमाला, बुखार, जुकाम, गंठिया रोग, पाचन शक्ति, पेट दर्द, मासिक धर्म, यकृत रोग, त्वचा की सुंदरता, बालों की वृद्धि, प्लीहा रोग, जिगर वृद्धि, मलेरिया बुखार, सूतिका बुखार, प्रसव सुख, सुजाक, सटीक रोग, मांस पेशियों का झटका, यौन शक्ति, कामेन्द्रियों की शिथिलता, दुर्बलता, नरोग, दीर्घायु, दमा, खांसी, क्षय रोग, वमन, विरेचन, कफज्वर, फेफड़ों की सूजन, जंघाओं के बल, तेज बुखार, न्यूमोनिया, छाती की जकड़न, श्लीपद, नारू, सर्वरोग, घाव, दुष्ट घाव, खुजली, बंदगांठ, टिटनेस, अंडकोष की सूजन, गर्भाशय की सूजन, जोड़ों की सूजन, जोड़ों का दर्द, वृषण (लिंग) की सूजन, गुर्दे की सूजन, कटे-जले आदि बिमारियों के इलाज में निर्गुन्डी की घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-निर्गुन्डी के फायदे, नुकसान एवं सेवन विधि:Nirgundi Benefits And Side Effects In Hindi.

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Table of Contents

निर्गुन्डी के विभिन्न भाषाओँ में नाम

हिंदी            –       सम्हालू, मेऊड़ी
अंग्रेजी        –        फाइव लवेड चेस्ट
संस्कृत       –        सिंदुवार, निर्गुन्डी, सिन्दुक
गुजराती     –         नगड़, नगोड़
मराठी        –         निगड, निर्गुन्डी
बंगाली       –         निशिन्दा
अरबी         –        असलक
फ़ारसी       –        पंजनगुस्त
तेलगू         –        तेल्लागावली
तमिल       –         नौची
मलयालम –         इंद्राणी

निर्गुन्डी के औषधीय प्रयोग किये जाने वाले भाग

निर्गुन्डी का औषधीय घरेलू दवाओं में उपयोग किये जाने वाले भाग-निर्गुन्डी की जड़, तना, पत्ती, फूल, फल, तथा निर्गुन्डी का तेल का प्रयोग मालिश के रूप में किया जाता है।

मस्तक रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

मस्तक संबंधी रोग में निर्गुन्डी के फल के 2-4 ग्राम चूर्ण की फंकी दिन में दो तीन बार देने से स्नायु और मस्तक संबंधी रोग मिटते है।

सिरदर्द में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

सिरदर्द में निर्गुन्डी के पत्तों को कूटकर, टिकिया बनाकर, कनपटी पर बांधने या लेप करने से सिरदर्द नष्ट होता है।

कंठशूल में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

कंठशूल में निर्गुन्डी के पत्तों के काढ़ा से कुल्ले करने से कंठशूल की पीड़ा मिटती है।

मुखपाक में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

मुंह में छाले हो जाने पर तथा मुखपाक में निर्गुन्डी का तेल मुंह, जीभ तथा होटों में लेप करने से तथा हल्के गरम् पानी में तेल मिलाकर मुंह में कुछ समय तक धारण करने से मुंह के छाले में लाभ होता है।

गले की खराश में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

गले की खराश में, गला पक जाने पर तथा गले की सूजन आदि में हल्के गुनगुने पानी में निर्गुन्डी के तेल को मिलाकर तथा थोड़ा पिसा नमक मिलाकर कुल्ला करने से गले की खराश में लाभ होता है। फ़टे होटों पर भी निर्गुन्डी तेल लगाने से होट मुलायम हो जाते है।

कान के रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

कर्णरोग (कान) कान के अंदर अगर पीप पड़ गई हो तो निर्गुन्डी के पत्तों के स्वरस सिद्ध किये हुए तेल को मधु के साथ मिलाकर 1-2 बून्द कान में डालने से कान के रोग में लाभ होता है।

गण्डमाला में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

गण्डमाला में निर्गुन्डी की जड़ को जल से यथावत पीसकर नस्य लेने से गण्डमाला में आराम मिलता है।

बुखार में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

ज्वर में निर्गुन्डी के 20 ग्राम पत्रों का 400 ग्राम पानी में उबालकर चतुर्थाश शेष काढ़ा में पीपल का चूर्ण 2 ग्राम बुरक कर सुबह-शाम 10-20 ग्राम दिन में दो तीन बार पिलाने से प्रतिश्याय, ज्वर और सिर का भारीपन और बाधिर्य में लाभ होता है।

जुकाम में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

जुकाम से परेशान मरीज को निर्गुन्डी के 10 ग्राम पत्तों को 100 ग्राम पानी में उबालकर सुबह-शाम पिलाने से जुकाम में लाभ होता है।

गंठिया रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

गंठिया रोग से ग्रसित मरीज को निर्गुन्डी के 10 ग्राम पत्तों को 100 ग्राम पानी में उबालकर सुबह-शाम तथा दोपहर उपयोग में लाने से गंठिया रोग में आराम मिलता है। निर्गुन्डी के पत्तों से सिद्ध तेल की मालिश करने से तथा हल्का गरम् करके तेल लगाकर कपड़ा बांधने से गंठिया रोग बहुत आराम मिलता है।

पाचन शक्ति में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

पाचन शक्ति में निर्गुन्डी के पत्तों के 10 ग्राम स्वरस को 2 नग काली मिर्च और अजवायन के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पाचन शक्ति में सुधर आती है। तथा शूल मिट जाता है। वायु बाहर निकलकर अफारा दूर हो जाता हैं।

पेट दर्द में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

पेट दर्द में निर्गुन्डी के पत्तों के 10 ग्राम स्वरस को 2 नग काली मिर्च और अजवायन के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पेट दर्द में आराम मिलता है। तथा पेट दर्द मिट जाता है।

मासिक धर्म में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

मासिक धर्म में कष्टार्तव तथा मासिक धर्म कम होने पर निर्गुन्डी के बीजो के 2 ग्राम चूर्ण की फंकी सुबह-शाम प्रयोग करने से मासिक धर्म ठीक होने लगता है।

यकृत रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

यकृत रोग में अगर रोगी की प्लीहा और जिगर बढ़ गई हो तो निर्गुन्डी के पत्तों का 2 ग्राम चूर्ण हरड़ 1 ग्राम और गोमूत्र 10 मिलीग्राम के साथ सेवन करने अथवा 2 ग्राम निर्गुन्डी चूर्ण को काली कुटकी व रंसोत 500-500 मिलीग्राम के साथ सुबह-शाम प्रयोग करने से यकृत रोग में लाभ होता है।

त्वचा की सुंदरता में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

त्वचा की सुंदरता को बरकरार रखने में निर्गुन्डी के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। त्वचा से रूखापन चेहरे से कील मुंहासों को नष्ट करने में निर्गुन्डी बहुत गुणकारी ती है। निर्गुन्डी के प्रयोग सही मात्रा में करने से त्वचा की सुंदरता बढ़ जाती है।

बाल की वृद्धि में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

बालों की वृद्धि में निर्गुन्डी का नियमित रूप से सेवन करने बालों का गिरना बंद हो जाता है, तथा बालों की वृद्धि होती है। अथवा आप निर्गुन्डी का प्रयोग नियमित रूप से बालों के लिए करते हैं। तो आपके बाल का सफेद होना बंद हो जाता है। इस प्रकार से निर्गुन्डी के पत्रों के तेल को बालों के लिए टॉनिक के रुप में उपयोग में लाया जाता हैं।

प्लीहा रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

प्लीहा रोग में निर्गुन्डी के पत्तों का 2 ग्राम चूर्ण हरड़ 1 ग्राम और गोमूत्र 10 मिलीग्राम के साथ सेवन करने अथवा 2 ग्राम निर्गुन्डी चूर्ण को काली कुटकी व रंसोत 500-500 मिलीग्राम के साथ सुबह-शाम प्रयोग करने से प्लीहा रोग में लाभ होता है।

जिगर वृद्धि में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

जिगर बढ़ गई हो तो निर्गुन्डी के पत्तों का 2 ग्राम चूर्ण हरड़ 1 ग्राम और गोमूत्र 10 मिलीग्राम के साथ सेवन करने अथवा 2 ग्राम निर्गुन्डी चूर्ण को काली कुटकी व रंसोत 500-500 मिलीग्राम के साथ सुबह-शाम प्रयोग करने से जिगर समान हो जाता है।

सूतिका बुखार में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

सूतिका ज्वर में निर्गुन्डी के प्रयोग से गर्भाशय का संकोच होता है और भीतर की गंदगी निकल कर बाहर आ जाती है। आंतरिक सूजन भी उतर जाती है और गर्भाशय अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है।

प्रसव सुख में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

प्रसव सुख में निर्गुन्डी को पीसकर नाभि, बस्ती प्रदेश और योनि पर लेप करने से प्रसव सुख पूर्वक से हो जाता है।

सुजाक में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

सूजाक की प्रथम अवस्था में निर्गुन्डी के पत्तों का काढ़ा बहुत फायदेमंद है। जिस रोगी का मूत्रबंद हो गया हो, उसमें निर्गुन्डी के 20 ग्राम को 400 ग्राम पानी में उबालकर चतुर्थाश शेष काढ़े को 10-20 ग्राम दिन मेंदो तीन बार पिलाने से पेशाब बहुत जल्दी आता है।

साटिका रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

गृध्रसी (साटिका रोग) धीमी आंच पर सिद्ध किये हुये 50 ग्राम निर्गुन्डी के पत्तों का आधा किलो पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा 10-20 ग्राम दिन में दो-तीन बार सेवन करने से साटिका रोग का कष्ट तुरंत समाप्त हो जाता है।

मांस पेशियों के सूजन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

मांस पेशियों की सूजन सियाटिक, स्लिपडिस्क, मांस पेशियों को झटका लगने के कारण आई सूजन में निर्गुन्डी की छाल का 5 ग्राम चूर्ण या पत्र का काढ़ा धीमी आंच में पकाकर 20 ग्राम की मात्रा में दिन में दो तीन बार सेवन करने से मांस पेशियों की सूजन शीघ्र ही बिखर जाती है।

यौन शक्ति में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

कामशक्ति (यौन शक्ति) में 40 ग्राम निर्गुन्डी और 40 ग्राम शुंठी को एक साथ पीसकर आठ खुराक बनाकर एक खुराक रोज दूध के साथ सेवन करने से मनुष्य की काम शक्ति बढ़ती है।

कामेन्द्रिय की शिथिलता में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

कामेन्द्रिय की शिथिलता में निर्गुन्डी को घिसकर कामेन्द्रिय पर लेप करने से, कामेन्द्रिय की शिथिलता दूर हो जाती है।

दुर्बलता में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

दुर्बलता में सामान्य दुर्बलता में पैरों की बीमारी इत्यादि में निर्गुन्डी के तेल की मालिश नियमित रूप से दुर्बलता दूर हो जाती है।

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निरोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

निरोग में निर्गुन्डी की मूल, फल और पत्रों के स्वरस से शुद्ध घी की 10-20 ग्राम की मात्रा को नियमित पिलाने से क्षय का ह्रास होता है और मनुष्य देवताओं की भांति निरोग हो जाते है।

दीर्घायु में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

दीर्घायु में निर्गुन्डी के एक किलो रस को हल्की आंच पर तब तक पकायें जब तक यह गुड़ की चाशनी के समान गाढ़ा न हो जाये, इसके पश्चात् एक सप्ताह सेवन करने से दीर्घायु बढ़ जाती है। पथ्य में केवल दूध पीना का प्रयोग करना चहिए। तीन महीने तक इसका प्रयोग करने से मनुष्य की वृद्धावस्था दूर होकर दीर्धायु प्राप्त होती है।

दमा रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

दमा रोग में निर्गुन्डी के एक किलो स्वरस को हल्की आंच पर पकाकर गुड़ के चाशनी के समान गाढ़ा होने पर इसका प्रयोग नियमित रूप करने से दमा रोग में लाभ होता है। पथ्य में केवल दूध का ही सेवन करने चहिए।

खांसी में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

खांसी से परेशान मरीज को निर्गुन्डी के एक किलों स्वरस को धीमी आंच में पकाकर गुड़ की चाशनी जैसी बनाकर सुबह-शाम नित्य प्रयोग करने से खांसी में आराम मिलता है। पथ्य में केवल दूध को उपयोग में लेना चहिए।

क्षय रोग (टी.बी.) में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

टी.बी के रोगी को निर्गुन्डी के एक किलों स्वरस को धीमी आंच में पकाकर गुड़ की चाशनी जैसी बनाकर सुबह-शाम तथा दोपहर नित्य प्रयोग करने से टी.बी. रोगी को फौरन आराम मिल जायेगा। पथ्य में केवल दूध का सेवन करना चहिए।

वमन (उल्टी) में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

उल्टी के अधिक आने पर निगुण्डी के डेढ़ किलो रस मंद आंच पर पकाकर गुड़ की चाशनी जैसी बनाकर सुबह-शाम नित्य सेवन करने से उल्टी शांत हो जाती है।

विरेचन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

विरेचन निर्गुन्डी के एक किलो रस को हल्की आंच पर तब तक पकायें जब तक यह गुड़ की चाशनी के समान गाढ़ा न हो जाये, इसके पश्चात् एक सप्ताह सेवन करने से विरेचन में लाभ होता है।

कफज्वर में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

कफज्वर में निर्गुन्डी का स्वरस अथवा निर्गुन्डी के पत्तों का 10 ग्राम काढ़ा, 1 ग्राम पीपल चूर्ण मिलाकर प्रयोग करने और इसके पत्तों का सेंक करने से कफज्वर में लाभ होता है।

फेफड़ो की सूजन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

फेफड़ों की सूजन में निर्गुन्डी का स्वरस अथवा निर्गुन्डी के पत्तों का 10 ग्राम काढ़ा, 1 ग्राम पीपल चूर्ण मिलाकर प्रयोग करने और इसके पत्तों का सेंक करने से फेफड़ों की सूजन बिखर जाती है।

जंघाओं के बल में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

जंघाओं के बल देने के लिए निर्गुन्डी का स्वरस अथवा निर्गुन्डी के पत्तों का 10 ग्राम काढ़ा, 1 ग्राम पीपल चूर्ण मिलाकर प्रयोग करने और इसके पत्तों का सेंक करने से जंघाओं को बल की प्राप्ति होती है।

तेज बुखार में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

तेज बुखार में निर्गुन्डी के पत्तों के 30-40 मिलीलीटर काढ़े की एक मात्रा में 500 मिलीग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से तेज बुखार में शीघ्र आराम मिलता है।

न्युमोनियाँ में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

न्युमोनियाँ बुखार में निर्गुन्डी के पत्तों के 30-40 मिलीलीटर काढ़े की एक मात्रा में 500 मिलीग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से न्युमोनियाँ का बुखार फौरन उत्तर जाता है।

छाती की जकड़न में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

छाती की जकड़न से परेशान रोगी को निर्गुन्डी के तेल में अजवायन और लहसुन की 2-3 ज्वा डालकर तेल को हल्का गर्म करके गर्म ही गर्म मालिश करने से छाती की जकड़न दूर हो जाती है।

श्लीपद (हांथी पाँव) में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

श्लीपद रोग में धतूरा, एरंड मूल, निर्गुन्डी, पुनर्नवा, सहजन की छाल, सरसों इन्हे एक साथ मिलाकर कर लेप करने से श्लीपद हांथी पाँव की सूजन बिखर जाती हैं।

नारू रोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

नारू रोग में निर्गुन्डी के पत्तों का 10-20 ग्राम स्वरस सुबह-शाम पिलाने अथवा इसके पत्तों से सेंक करने से नारू रोग में लाभ होता है।

सर्वरोग में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

सभी प्रकार के रोगों में निर्गुन्डी को शिलाजीत के साथ प्रयोग करने से शीघ्र लाभ होता है। इन दोनों का योग अमृत के समान है।

घाव में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

घाव में निर्गुन्डी के पत्तों से सिद्ध किये हुये तेल को लेप करने से पुराने से पुराना घाव शीघ्र भर जाता है।

दुष्ट घावों में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

दुष्ट घावों में निर्गुन्डी की मूल और पत्तों से सिद्ध किये तेल को लगाने से, दुष्ट घाव, पामा, खुजली, विष्फोटक व सभी प्रकार के घावों में फायदेमंद होता हैं।

बंदगांठ में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

बंदगांठ में निर्गुन्डी के पत्तों को गरम् करके बांधने या हल्का गर्म-गर्म ही लेप करने से बंद गांठ बिखर जाती है।

टिटनेस में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

टिटनेस की संभावना में निर्गुन्डी का स्वरस 3-5 ग्राम दिन में दो तीन बार मधु के साथ प्रयोग करने से टिटनेस जैसे रोग में लाभ होता है।

अंडकोष की सूजन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

अंडकोष की सूजन में निर्गुन्डी के पत्तों को हल्का गर्म करने से गर्म ही गर्म अंडकोष पर बाँधने या हल्का गर्म ही गर्म लेप करने से अंडकोष की सूजन फौरन बिखर जाती है।

जोड़ों की सूजन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

जोड़ो की सूजन से ग्रसित मरीज को निर्गुन्डी के पत्रों को हल्का गर्म करके जोड़ों की सूजन पर लेप करने या हल्का गर्म ही गर्म लेप करने से जोड़ों की सूजन बिखर जाती है।

गर्भाशय की सूजन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

गर्भाशय की सूजन से परेशान महिला को निर्गुन्डी के पत्रों को हल्का गर्म करके पेट पर लेप करने या हल्का गर्म ही गर्म लेप करने से गर्भाशय की सूजन शीघ्र बिखर जाती है।

वृषण (लिंग) की सूजन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

वृषण की सूजन से ग्रसित रोगी को निर्गुन्डी के पत्रों को हल्का गर्म करके लिंग के आसपास लेप करने या हल्का गर्म ही गर्म लेप करने से लिंग की सूजन शीघ्र नष्ट हो जाती है।

गुर्दे की सूजन में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

गुर्दे की सूजन में निर्गुन्डी के पत्रों को हल्का गर्म करके पेट पर लेप करने या हल्का गर्म ही गर्म लेप करने से गुर्दे की सूजन फौरन ठीक हो जाती है।

कटे-जले में निर्गुन्डी के फायदे एवं सेवन विधि:

कटे-जले में सर्दी में अधिक पानी के साथ काम करने से हाथ छील जाते है। निर्गुन्डी का तेल की मालिश करने से कटे-जले में बहुत फायदा होता है। शरीर में किसी भी जगह कट फट जाने पर, रगड़ लगने या छील जाने पर या ऐसी ही अन्य अभिघातज या शस्त्र जनित अवस्थाओं में निर्गुन्डी के तेल का बाह्यलेप बहुत लाभदायक है। यदि रक्त निकलता हो, और घाव बन जाये तो पीसी हुई हल्दी बुरक कर पट्टी बाँधने से शीघ्र लाभ होता है।

निर्गुण्डी का परिचय

”निर्गुन्डती शरीरं रक्षति रेगेभ्यः तस्माद निर्गुण्डी” अर्थात जो शरीर की रोगों से रक्षा करे वह निर्गुण्डी कहलाती है। इसके स्वंय-जात क्षुप यत्र तत्र सर्वत्र पाये जाते हैं। इसके पत्रों को मसलने पर उनमें से एक विशिष्ट प्रकार की दुर्गंध आती है। यह बूटी वातव्याधियों के लिये एक प्रसिद्ध औषधि है। पुष्प भेद से निघुटंओ ने इसकी दो जातियाँ नील तथा श्वेत पुष्पी बतलाई हैं। नील पुष्पी का नाम निर्गुण्डी परन्तु श्वेत पुष्पी का सिंदुवार है।

निर्गुन्डी के बाह्य-स्वरूप

निर्गुन्डी का 6-12 फुट ऊँचा, बहुशाखीय झाड़ीनुमा क्षुप, सूक्ष्म रोमों से ढका रहता हैं। काण्ड़त्वक, पतली चिकनी, किंचित नीलाभ, पर्णवृन्त लम्बा और अग्र भाग पर 3-5 पत्रक निकलते है। पत्रको के किनारे सादे या कंगूरेदार, पुष्प 2-6 इंच लम्बी मंजरियों में छोटे, बैंगनी आभा लिये नीले या श्वेत होते हैं। फल छोटे गोल सफेद और काले मिश्रित रंग के होते हैं। मूलत्वक हरितवर्ण, अन्तरछाल पीले रंग की होती हैं।

निर्गुन्डी के औषधीय गुण-धर्म

कफवात शामक, वेदनास्थापन और मध्य है। इसका बाह्य लेप वेदनास्थापन, शोथहर, व्रणशोधन, व्रणरोपण, केश्य तथा जन्तुघ्न है। आंतरिक प्रयोग में यह दीपन, आम पाचन, यकृत उत्तेजक, कृमिघ्न तथा शोथहर हैं। यह कफध्न और कासहर है, मूत्रजनन एवं उष्णता के कारण आर्तवजनन है, कुष्ठघ्न एवं कण्डुघ्न, ज्वरध्न विशेषतः विषमज्वर प्रतिबंधक है। यह बल्य और रसायन चक्षुष्य है तथा कर्णस्राव को मिटाता है।

निर्गुन्डी के नुकसान

निर्गुन्डी का अधिक मात्रा में सेवन करने से आप के शरीर में जलन और मस्तक पीड़ा जैसी समस्या को झेलना पड़ सकता है। इसके अलावा किडनी पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

गर्म प्रकृति वाले व्यक्तियों निर्गुन्डी का सेवन नहीं करना चहिए क्योंकि उनको एलर्जी की समस्या हो सकती है।

निर्गुन्डी के आंतरिक उपयोग में करने के लिए किसी भी चिकित्सक की सलाह ले लेनी चहिए।

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