कसौंदी (कासमर्द) के फायदे और नुकसान एवं औषधीय गुण
कसौंदी की दवाएं:-वीर्य पुष्ट, प्रसव, दुर्बलता, कामोद्दीपन, सुजाक, सफ़ेद दाग, नेत्ररोग, कर्णरोग, गण्डमाला, मिर्गी, पागलपन, कफज्वर, श्वांस रोग, वमन, खांसी, जुकाम, कास रोग, हिचकी, कामला, पेट के कीड़े, पेशाब की जलन, जलोदर, बवासीर, मलरोध, बुखार, चर्मरोग, नारुरोग, खुजली, दाद, कण्डू, संक्रमण, दद्रु चर्मरोग, श्लीपद, विषध्न, घाव, विसर्प, मकड़ी विष, ततैया विष, विषैले कीड़ों का विष, बिच्छू विष, सर्पविष आदि बिमारियों के इलाज में कसौंदी के घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Kasaundi/kasmard Benefits And Side Effects In Hindi.कसौंदी के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि
कसौंदी (कासमर्द) पौधे के औषधीय प्रयोग किये जाने वाले भाग
कसौंदी (कासमर्द) वृक्ष के प्रयोग करने योग भाग जड़, तना, फूल, फल, पत्ते, फल के जूस, फल का चूर्ण, जड़ का चूर्ण, पत्तों का रस, फल का बीज आदि घरेलू दवाएं में प्रयोग किया जाता है।
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कसौंदी पौधे में पाये जाने वाले पोषक तत्व
कसौंदी की पत्तियों में सनाय जैसा विरेचक कथार्टिन, कुछ रंजक तत्व एवं लवण पाये जाते हैं। बीजों में टैनिन एसिड, वसा अम्ल लुआबि तत्व, इमोडिन, क्रिसेराबीन, अल्प मात्रा में सोडियम सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट तथा एक विषाक्त तत्व भी पाया जाता है।
वीर्य पुष्ट में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
वीर्यविकार में कसौंदी की मूलत्वक के चूर्ण को महीन पीसकर 1-4 ग्राम की मात्रा में 5-10 ग्राम शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम एक गिलास दूध के साथ प्रयोग करने से वीर्य का पतलापन दूर होकर वीर्य पुष्ट होता हैं तथा धातु क्षय ठीक हो जाता है।
प्रसव में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
महिलाओं के प्रसव के समय कसौंदी के पत्रों का स्वरस का सेवन कराने से प्रसव शीघ्र और आसानी से होता है।
शरीर की दुर्बलता में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
शारीरिक दुर्बलता में कासमर्द मूल का काढ़ा 20 ग्राम सुबह-शाम पिलाने से बल की वृद्धि होती है व कमजोरी नष्ट हो जाती है।
कामोद्दीपन में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
कासमर्द का पेय (कामोद्दीपन) में कसौंदी के बीजो को धीमी आंच में हल्का घी डालकर भूनकर तथा चूर्ण करके पाल्सन काफी की तरह प्रयोग जठरग्निदीपन, कामोद्दीपन, तथा सौमनसीजनं योग के रूप में प्रयोग करने से कामोद्दीपन की क्षमता बढ़ जाता है।
सुजाक में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
सुजाक उपदंश की उग्रावस्था के बाद की स्थिति में काली कसौंदी की 10-20 ग्राम ताज़ी पतियों को 200 ग्राम पानी में पकाकर तैयार फाँट-काढ़ा से घावों का प्रक्षालन करते हैं तथा उत्तर बस्ति देते हैं।
सफ़ेद दाग (कोढ़) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
श्वेतकुष्ठ में कसौंदी के और मूली के बीजों को समभाग लेकर दुगुनी मात्रा में गंधक के साथ पीसकर लेप करने से सफ़ेद दाग में नष्ट हो जाता है।
नेत्ररोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
नेत्ररोग में कसौंदी के ताजे पत्तों का रस आँख में एक बून्द सुबह-शाम प्रयोग करने तथा आँखों पर पत्तों को बांधने से नेत्राभिष्यन्द, नेत्र लालिमा-सूजन में एक हपते में नेत्ररोग में आराम मिलता है।
कान रोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
कर्णरोग में कसौंदी के पत्तों का रस को दूध में मिलाकर धीमी आंच में गुनगुना कर कान में 2-4 बून्द टपकाने से कर्णरोग का दोष मिटता है।
गण्डमाला में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
गण्डमाला रोग में कासमर्द कसौंदी पत्रों 10 ग्राम के साथ 2-4 नग काली मिर्च पीसकर लेप करने से गण्डमाला रोग में आराम मिलता है, कसौंदी के पत्तों का लेप गण्डमाला के घावों का शोधन-रोपण करने से सहायक है।
अपस्मार (मिर्गी) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
अपस्मार, अपतन्त्रक एवं आक्षेपक रोगों में कसौंदी की मूलत्वक या पंचांग का काढ़ा 10-20 ग्राम दिन में 3-4 बार प्रयोग करने से मिर्गी में लाभ होता है।
मानसिक रोग (पागलपन) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
मानसिक रोग अपस्मार, हिस्टीरिया में कसौंदी के फूलों को मसलकर रोगी को सुंघाने से पागलपन में लाभ होता है। कसौंदी के सूखे फूलों का काढ़ा 20 ग्राम दिन में दो तीन बार हिस्टीरिया से ग्रस्त रोगी को खिलाने से पागलपन में लाभ होता है।
कफज्वर में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
कफज्वर में कसौंदी के पत्रों का स्वरस 10-15 ग्राम 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से कफज्वर में लाभ होता है, इस प्रयोग का सेवन करने से वमन तथा विरेचन भी होता है।
श्वांस रोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
श्वास रोग में कसौंदी के पत्तों का शाक अत्यंत लाभकारी होता है कसौंदी की ताजी फलियों को भूनकर काला नमक मिलाकर सेवन करने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।
वनम (उल्टी) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
वमन में कसौंदी के पत्रों का स्वरस 10-15 ग्राम 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से वमन में लाभ होता है, इस प्रयोग का सेवन करने से वमन शीघ्र ठीक हो जाता है।
खांसी में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
खांसी में कसौंदी की 8 से 10 ताज़ी फलियों को सेंककर खाने से खासी में शीघ्र लाभ होता है। कफज कास तथा कृच्छ्रश्वास में कसौंदी के बीजों का चूर्ण, पिप्पली छोटी, काला नमक, तीनों को समभाग लेकर पानी में मिलाकर खरल करके 250 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर, प्रातः या रात्रि में 1-2 गोली मुँह में रखकर चूसने से खांसी में लाभ होता है।
जुकाम में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
जुकाम और प्रतिश्याय, नासा रोग तथा विशेष रूप से नासरंध्र अवरोध की दशा में कसौंदी पत्र स्वरस की एक-दो बूंदों को नाक में टपकाने से जुकाम में आराम मिलता है।
कास रोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
कास रोग में कसौंदी के बीजों का चूर्ण 1-3 ग्राम, गर्म जल के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से कास रोग में लाभ होता है। कसौंदी के पंचांग का चूर्ण 20 ग्राम, जल 350 ग्राम में उबालकर जब 40 ग्राम शेष रह जाये, तब छानकर एवं थोड़ा सा शहद मिलाकर सुबह-शाम प्रयोग करने से कास रोग में लाभ होता है।
हिचकी में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
हिचकी में कसौंदी के 10 ग्राम पत्रों को 400 ग्राम पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा का सेवन करने से हिचकी और श्वास रोग में लाभ होता है।
कामला रोग (पीलिया) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
कामला रोग में कासमर्द (कसौंदी) के 20 ग्राम पत्तों को 2-4 नग काली मिर्च के साथ पीस छानकर सुबह-शाम पिलाने से पीलिया रोग जड़ से नष्ट हो जाता है।
पेट के कीड़े में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
उदरकृमि (पेट के कीड़े) में कसौंदी के 20 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम जल में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा पिलाने से सूत्रकृमि तथा अन्य पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ उपयुक्त रेचन देकर कोष्ठ शुद्धि भी की जाती है।
पेशाब की जलन में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की जलन) में कसौंदी की मूल का काढ़ा 10-12 ग्राम दिन में 2 से 3 बार प्रयोग करने से पेशाब की जलन, मूत्राघात, ज्वर, शोथ, विष, मूत्र विकार तथा अन्य रोग जहाँ मूत्रल औषधि प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ने पर प्रयोग करने से लाभ होता है।
जलोदर (पेट में अधिक पानी भरना) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
जलोदर में कसौंदी की 10 ग्राम जड़ को नींबू के रस में पीसकर उदर तथा बस्ति प्रदेश पर लेप करने से पेट के अधिक पानी में लाभ होता है। कसौंदी के साथ ही मूल का 2 ग्राम चूर्ण मटठे के साथ दिन में 1-2 बार पिलाने से जलोदर (पेट के अधिक पानी) में शीघ्र लाभ होता है।
बवासीर (रक्तार्श) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
रक्तार्श में कसौंदी के बीज 10 तथा काली मिर्च के 1-2 दानों को मिलाकर पानी मे पीसकर घोंट कर सुबह-शाम जल के साथ पिलाने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। इस को सुखरेचन के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।
मलरोध में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
मलावरोध तथा उदर विकारों में, कसौंदी के पुष्पों का गुलकंद 3-6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मलरोध ठीक प्रकार होने लगता है।
बुखार में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
ज्वर (बुखार) में कसौंदी मूल का काढ़ा 10-20 ग्राम सुबह-शाम पिलाने से विषमज्वर, मलेरिया तथा अन्य दीर्घः कालिक ज्वरों में लाभदायक है। विशेष रूप से विषमज्वर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है।
चर्मरोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
चर्मरोग में कसौंदी के पंचाग का 40-60 ग्राम काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से रक्तशोधक एवं चर्म रोगों में भी लाभकारी हैं। कसौंदी के पंचाग के काढ़ा से स्नान करने से विकारग्रस्त देहिक स्थलों को धोने से और कुछ दिन तक स्नान करने से पामा, विसर्प, दाद, कण्डु, संक्रमण आदि रोग शीघ्र ठीक हो जाते हैं।
नारुरोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
नारुरोग में कसौंदी के पत्तों का कल्क, प्याज और नमक मिलाकर खूब महीन पीसकर पीड़ित स्थान पर बांधने से या लेप करने नारू बाहर निकल जाता है।
खुजली में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
खुजली में कसौंदी के स्वरस का काढ़ा बनाकर एक सप्ताह तक स्नान करने से खुजली ठीक हो जाती है।
दाद में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
दाद में कसौंदी की जड़ को सिरके में पीसकर दाद पर लेप करने से दाद शीघ्र नष्ट हो जाता है। जड़ को नीबू के रस में घिसकर लगाने से भी दाद में लाभ होता है।
कण्डू रोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
कण्डू रोग में कसौंदी की जड़ को पीसकर नियमित प्रातः समय लेप करने से कण्डू रोग में लाभ होता है।
संक्रमण में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
संक्रमण में कसौंदी के पंचाग के काढ़ा से स्नान करने से विकारग्रस्त देहिक स्थलों को धोने से और कुछ दिन तक स्नान करने से संक्रमण में शीघ्र आराम मिलता है।
दद्रु चर्मरोग में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
दद्रु चर्मरोग में कसौंदी की जड़ अत्यंत लाभकारी है, कसौंदी के बीजों का मलहम बनाकर प्रयोग करने से दद्रु चर्मरोग में लाभ होता है। इसके बीजों को मटठे के साथ पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
श्लीपद (हांथी पांव) में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
श्लीपद रोग में कसौंदी के मूल का 10 ग्राम कल्क समभाग गोघृत के साथ सुबह-शाम सेवन करने से एक दो महीनों में हांथी पाँव में लाभ होता है।
विषध्न में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
विषध्न में सिंह की मूछ का बाल खाने से जो विष चढ़ जाता है, उसे उतारने के लिये कसौंदी का पत्रस्वरस 50 ग्राम की मात्रा में तीन दिन तक पिलाने से विषध्न में आराम मिलता है।
घाव में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
व्रण शोथ (घाव की सूजन) तथा दाह युक्त चर्मरोगों में कसौंदी के ताजे पत्तों को पीसकर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है। कसौंदी के पत्तों को पीसकर ताजे घाव पर लेप करने से घाव तुरंत भर जाते हैं।
विसर्प में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
विसर्प में कसौंदी की मूल का प्रयोग करने से विसर्प में लाभदायक होता है।
मकड़ी विष में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
मकड़ी विष में कसौंदी की पत्रों का स्वरस तथा पत्र कल्क का प्रयोग करने से मकड़ी विष उत्तर जाता है।
ततैया विष में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
ततैया विष में कसौंदी के पत्रों का स्वरस तथा जड़ को पीसकर लेप करने से ततैया विष में शीघ्र लाभ होता है।
बिषैले कीड़ों के विष में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
विषैले कीड़े के काटने पर कसौंदी के पत्रों का स्वरस तथा मूल का प्रयोग या दर्शित स्थान पर लेप करने से विषैले कीड़े का विष उत्तर जाता है।
बिच्छू विष में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
वृश्चिकदंश (बिच्छू विष) में कसौंदी की मूल कासेवन बिच्छू के विष को उतारने के लिये किया जाता है। कसौंदी की जड़ को मुंह में धारण करके बिच्छू के काटे व्यक्ति के कान में फूँक मरने से वह शीघ्र ही बिच्छू के विष को दूर करता है। साथ ही वृश्चिक दंश स्थल पर मूल को पीसकर लेप करने से बिच्छू विष उत्तर जाता है:बिच्छू विष में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
सर्प विष में कसौंदी के फायदे एवं सेवन विधि:
सर्प विष में कसौंदी के पंचाग को देशी गाय का घी में मिलाकर प्रयोग करने से सर्प विष उत्तर जाता है। सर्प दंश के स्थान पर इसका लेप करने से सर्प विष शीघ्र उत्तर जाता है।
कसौंदी (कासमर्द) पौधे का परिचय
कसौंदी का झाड़ीनुमा पादप वर्षा ऋतु में खाली भूमि तथा कूड़े करकट में अपने आप उग जाता है। कसौंदी भारतवर्ष के प्रायः सभी प्रांतों में पाया जाता है। इसका एक और भेद पाया जाता है जिसे काली कसौंदी कहते हैं। इसकी शाखाएं कृष्णाभ बैंगनी आभा लिये होती है। मूलत्वक काली होती है जिससे जड़ जली हुई सी मालूम होती है। कसौंदी से कस्तूरी जैसी गंध आती है।
कसौंदी वृक्ष के बाह्य-स्वरूप
कसौंदी का क्षुप बहुशाखीय, शाखायें जड़ के पास से अथवा उससे किंचित ऊपर से निकली होती है। पत्तियाँ पक्षकार संयुक्त और पत्रक 3 से 5 जोड़े 2-4 इंच लम्बे, तथा आधा इंच से डेढ़ इंच चौड़े, अंडकार भालाकार और नोकदार होते हैं। पुष्प पीले, फलिया, 3 इंच तक लम्बी 1 सेंटीमीटर चौड़ी चपटी और चिकनी होती है। कसौंदी जाड़े के दिनों में फलता-फूलता और हेमंत में परिपक्व फलों के सहित शुष्कता को प्राप्त होता है। कसौंदी को सूंघने से एक खराब गंध आती है।
कसौंदी पेड़ के औषधीय गुण-धर्म
वात, कफ शामक एवं पित्त सारक है। बाह्य प्रयोग से यह कुषध्न तथा विषध्न है। आभ्यांतर प्रयोग में यह दीपन, वातनुलोमन, पित्त सारक एवं रेचन है। यह आक्षेप शामक तथा वेदना स्थापन है। यह कफध्न, श्वासहर, मूत्रल तथा ज्वरध्न है।
कसौंदी खाने के नुकसान
कसौंदी का फल बहुत तीखा होता है इसका अधिक सेवन करने से वमन की समस्या होने लगती है।
कसौंदी का अधिक सेवन करने से वीर्य का शीघ्र पतन हो जाता है। यौन शक्ति को कम करता है।
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