मरुआ के फ़ायदे, नुकसान एवं औषधीय गुण मरुआ की दवा:- गंठिया रोग, मासिक धर्म, क्षय रोग (टी.बी.), पेट दर्द, सिरदर्द, दस्त, कब्ज, मोच, दर्द, सूजन, जोड़ो का दर्द, मस्तक पीड़ा, पेचिस आदि बिमारियों के इलाज में मरुआ की घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:- मरुआ के फायदे, नुक्सान एवं सेवन विधि
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मरुआ पौधे का घरेलू दवाओं में उपयोग भाग मरुआ पौधे की जड़, तना, पत्ती, फूल, फल, पौधे का चूर्ण, जड़ का चूर्ण आदि इसका प्रयोग घरेलू दवाओं में किया जाता है।
हिंदी – मरुआ
अंग्रेजी – स्वीट मर्जोरम/Sweet Marjoram
संस्कृत – मरुबक, खरपत्र
गुजराती – मरबो
मराठी – सब्जा, मर्बा
तैलगू – मरुवमु
तमिल – मुर्रू
मलयालम – मरुवमु
फ़ारसी – मरजनजोश
अरबी – मरजनजोश
पंजाबी – मरुआ
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
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गठिया रोग में मरुआ के पंचांग का काढ़ा बनाकर 100 मिलीलीटर दिन में दो तीन बार गंठिया रोगी को पिलाने से गठिया रोग में लाभ होता है।
मासिक धर्म में मरुआ का 20-30 ग्राम फाँट नियमित रूप से सेवन करने रजः स्राव पुनः आरम्भ हो जाता है।
क्षय (टी.बी) में मरुआ की जड़ का रस 5 से 10 ग्राम तक सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी. रोग में शीघ्र लाभ होता है।
उदरशूल (पेट दर्द) में मरुआ के पत्ते और बीजों का 4 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम गर्म जल के साथ प्रयोग करने से पेट दर्द में लाभ होता है।
शिरःशूल (सिरदर्द) में मरुआ के ताजा पौधे से तैयार किया हुआ शीतनिर्यास मज्जा तंतुओं की खराबी से होने वाले सिरदर्द में लाभ होता है।
दस्त से परेशान मरीज को मरुआ के पत्तों को हल्का गर्म करके पेट पर बांधने से या पत्ते के ऊपर से सेंकाई करने से दस्त में लाभ होता है।
खुनी दस्त से ग्रस्त रोगी को मरुआ का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा सा शहद मिलाकर सुबह-शाम तथा दोपहर नियमित सेवन करने से खुनी दस्त में लाभ होता है।
तीव्र प्रवाहिका (पेचिस) में मरुआ के तले को पेट पर मलकर पेट की सिकाई करने से पेचिस में लाभ होता है।
कब्ज में मरुआ का 20-40 ग्राम फाँट बनाकर नियमित प्रयोग करने से कब्जियत दूर हो जाती है।
मरुआ में पाये जाने वाले उड़नशील तेल की मालिश नियमित रूप से सुबह-शाम करने से चोट-मोच और रगड़ पर आश्चर्यजनक लाभ होता है।
दर्द में मरुआ पौधे की टहनियों को पानी में उबालकर वेदना युक्त दर्द पर बफारा देने से दर्द में शीघ्र लाभ होता है।
शोथ (सूजन) मरुआ वनस्पति की टहनियों को पानी में उबालकर बफारा देने से वेदना युक्त सूजन बिखर जाती है। तथा सूजन में होने वाला दर्द में आराम मिलता है।
मरुवे का मूल स्थान यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया माइनर है, परन्तु आजकल भारतवर्ष में यह सब जगह पाया जाता है।
मरुआ का बहुशाखीय, सुगंधित बहुवर्षायु क्षुप 1-3 फुट ऊँचा पत्र आयताकार, पर्णवृन्त दीर्घ एवं पुष्प अन्त्य गुच्छों में छोटे, श्वेत व बैगनी, बीज छोटे, भूरे अंडाकार होते हैं।
मरुआ में एक उड़नशील तेल तथा एक स्थिर तेल पाया जाता है।
मरुआ हल्का, तीक्ष्ण, कडुवा, चरपरा तथा गर्म होता है। तथा कफवात-शामक और पित्तवर्धक है। यह कुष्ठघ्न कृमिघ्न, विषध्न, वेदनास्थापन तथा दुर्गंधनाशक है। यह रोपण, दीपन, आर्तवजनन, हृदय-जत्तेजक, ज्वरध्न तथा कटु, पौष्टिक है। मरूबा, कसौंदी, सिंदुवार, भार्गी यह सब कफ को दूर करने वाले एवं कृमिनाशक है। प्रतिश्याय, अरुचि, श्वास, कासनाशक एवं व्रणनाशक है।
इस पौधे का अधिक सेवन करने से दस्त में तीव्र गति हो सकती है। इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चहिए।
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