कचनार अनेक रोग की दवा जैसे – खूनी वबासीर, श्वेत प्रदर, भूख न लगना, सूजन, खूनी दस्त, स्तनों की गांठ, दांत का दर्द, खांसी, दमे, कटे जले, अफरा, कुबड़ापन, कचनार कली की सब्जी, लीवर दोष आदि बिमारियों का इलाज निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है :-कचनार के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि
Table of Contents
हिंदी | कचनार |
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अंग्रेजी | Kannakar, (Mountain Ebony ) |
संस्कृत | काचनार |
गुजराती | કન્નકાર, चंपाकाटी |
पंजाबी | ਕੰਨਕਰ, कनकारा |
मराठी | कन्न्नर,कांचन, कोरल |
बंगाली | Bauhinia, कांचन |
मलयालम | കണ്ണർ, कन्न्नर |
तेलगू | బౌహినియా, बॉहिनिया |
तमिल | Bauhinia, बुहिनिया |
अरबी | بوهينيا, बुहिनिया |
अगर आप वबासीर से परेशान है तो कचनार की छाल को पीसले और इसे छाछ के साथ दिन में दो बार सेवन करने से वबासीर में आने वाले रक्त और साथ ही आँतों से निकलने वाले कीड़े भी मर जाते हैं।
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
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महिलाओं में श्वेत प्रदर भी एक गंभीर रोग है। श्वेत प्रदर से पीड़ित महिला का शरीर काटने लगता है श्वेत प्रदर में कचनार की पत्तियों को पानी में उबाल लें। दही के साथ या दही के रायते के साथ नियमित सेवन करने से श्वेत प्रदर रोग में लाभदायक है।
कचनार के फूल की कलियां को देशी घी में भूनकर सुबह-शाम नियमित रूप से खाने से भूख बढ़ती है।
शरीर के किसी भी अंग या भाग में सूजन है तो कचनार की जड़ को पानी में घिस कर गर्म कर लें और सूजे हुए स्थान पर लेप करने से सूजन ठीक हो जाती है।
दस्त के साथ खून आने पर कचनार के फूल का क्वाथ को सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। कचनार के सेवन से खूनी दस्त (रक्तातिसर) में शीघ्र लाभ मिलता है।
कचनार की जड़ को पीसकर बारीक़ चूर्ण बना लें। तथा चूर्ण को लगभग आधे ग्राम की मात्रा में सौंठ और चावल के पानी के (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से गांठ ठीक हो जाती है।
दांत के दर्द को ठीक करने के लिए कचनार का प्रयोग किया जाता है। दांत के दर्द के लिए कचनार की छाल को आग में जलाकर राख बनालें, फिर उसी राख का मंजन करने से दांत का दर्द मसूड़ों से रक्तस्त्राव की शिकायत दूर हो जायेगी।
खांसी हो या दमा हो दोनों में कचनार उपयोगी है। मधु के साथ कचनार की छाल का क्वाथ दो चम्मच की मात्रा मे 3 बार खाने से खांसी और दमे में आराम मिलता है।
कटे जले में कचनार बहुत लाभदायक है कचनार के फूल या छाल को कटे हुए स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है।
अगर आप को कुबड़ापन का रोग हो तो कचनार का फूल बिछाकर सोने से कुबड़ापन दूर होता है। तथा पीठ पर लेप करने से भी कुबड़ापन दूर होता है। 1 ग्राम कचनार और गुग्गुल को शहद का काढ़ा बनाकर नियमित सेवन करने से कुबड़ापन दूर होता है।
कचनार कली की सब्जी बेहद स्वादिष्ट बनती है कचनार की सब्जी बनाने के लिये एकदम बन्द कली का प्रयोग करते हैं तथा ताजी कली को ही लाना चाहिए।
अजवायन 3 ग्राम के चूर्ण के साथ कचनार का मूल क्वाथ पिलाने से अफारा यानि पेट की गैस ठीक हो जाती है।
लीवर के दोष या कमजोरी हो तो कचनार की जड़ का काढ़ा सुबह शाम सेवन करने से लीवर दोष और कमजोरी में लाभप्रद है।
कचनार को मुँह में रखकर चूसते रहने से आवाज मीठी एवं सुरीली मधुर हो जाती है। गाला का बैठना कचनार को मुख में भर कर चूसते रहने से गाला साफ़ हो जाता है यह गाना गाने वाले व्यक्तियों को विशेष लाभकारी है।
कचनार सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है । पुष्प भेद से कचनार की तीन जातिया पायी जाती हैं। रक्त पुष्पी, श्वेत पुष्पी तथा पीत पुष्पी/पीले कचनार के वृक्ष वृहदाकार तथा पर्वतीय प्रदेशों में होते हैं। बाग-बगीचों में सुंदरता को बढ़ाने के लिए कचनार के वृक्ष लगाए जाते हैं। फरवरी-मार्च में पतझड़ के समय कचनार में फूल आते हैं अप्रैल-मई में फल आते हैं। कचनार वृक्ष 15 -20 फुट ऊँचे, शाखाएं नाजुक झुकी हुई काण्ड़त्वक 1 इंच मोटी, खुरदरी, भूरी व श्वेत वर्ण, पत्र एकांतर 2-6 इंच लम्बे, 3-7 इंच चौड़े, 2 पत्र एक साथ जुड़े हुए मालुम होते हैं। कचनार के पुष्प बड़े, श्वेत, बैगनी या गुलाबी जिनमे एक अंतरदल किंचित पीतवर्ण होता है। फली आधे से एक फिट तक लम्बी, चपटी, चिकनी, कड़ी और मुड़ी होती है।
Subject- Kachnar Ke Gharelu Prayog, Kachnar Ke Aushadhiy Prayog, Kachnar Ke Aushadhiy Gun, Kachnar Se Hone Vale Fayde, Kachnar Ke Gharelu Fayde, Kachnar ki Davayen In Hindi.
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