धतूरा की दवा:- गंठिया, बुखार, गर्भधारण, स्तनों की सूजन, यौन शक्ति, पागलपन, बाला रोग, सिरदर्द, नेत्र रोग, दमा, हैजा, सूजन, सिर की जुएं, कर्णरोग, घाव, धतूरे तेल, बिच्छू विष, धतूरे का विष आदि बिमारियों की इलाज में धतूरा की औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:धतूरा के फायदे, गुण, नुकसान और सेवन विधि:
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गठिया में धतूरा के पंचाग का स्वरस निकालकर उसको तिल के तेल में पकाकर, जब तेल शेष रह जाये, तो इस तेल की मालिश करके ऊपर धतूरा के पत्ते बांधने से गठिया वाय का दर्द नष्ट हो जाता है इस तेल का लेप करने से सूखी खुजली और गठिया में लाभ होता है। जोड़ों के दर्द में धतूरा के सत का आधी ग्रेन की मात्रा में तीन बार सेवन करने से लाभ होता है। धतूरा के पत्रों के लेप से या धतूरा के पत्तों की पुल्टिस से गठिया और हड्डी के दर्द में आराम मिलता है।
बुखार में धतूरा के बीजों की राख, 125 मिलीग्राम की मात्रा में मलेरिया ज्वर के रोगियों को सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से लाभ होता है। धतूरे के बीजों के चूर्ण को 65 मिलीग्राम की मात्रा में ज्वर आने से पहले खिलाने से बुखार नष्ट हो जाता है। तीसरे दिन आने वाले में धतूरा के पत्तों का 5-6 बूँद रस, 25 ग्राम दही में डालकर खिलाने और ऊपर से 200 ग्राम दही पिलाने से तीसरे दिन का बुखार उत्तर जाता है।
गर्भधारण में धतूरा के फलों के चूर्ण को 1/4 ग्राम की मात्रा में विषम भाग घी और शहद के साथ चटाने से गर्भधारण में धतूरे की मदद मिलती है।
स्तनों की सूजन में धतूरा के पत्तों को गर्म करके स्तनों पर बांधने या लेप करने से लाभ होता है। जिस स्त्री के दूध अधिक होने से, स्तन में गांठे हो जाने का भय हो, तो उसके दूध को रोकने के लिए स्तन पर धतूरे के पत्ते बांधने से स्तनों की गांठ बिखर जाती है।
यौन शक्ति में धतूरा के बीज अकरकरा और लौंग इन तीनों की गोलियां बनाकर खिलाने से काम शक्ति-यौन शक्ति बढ़ जाती है। तथा धतूरा के बीजों के तेल पैरों के तलुवे पर मालिश करने के बाद स्त्री के साथ संभोग करने की इच्छाएं बढ़ती है। धतूरा के 15 फलों को बीज सहित लेकर, पीसकर, महीन चूर्ण को 20 मिलीग्राम दूध में डालकर दही जमा दें। अगले दिन दही को घोटकर घी निकाल लें। इस घी की 125 मिलीग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने से बाजीकरण होता है। कामेन्द्रिय पर मलने से उसकी शिथिलता दूर हो जाती हैं। और यौन शक्ति बढ़ जाती है।
उन्माद (पागलपन) में कृष्ण धतूरा के शुद्ध बीजों को पित्त पापड़ा के स्वरस में घोंटकर पीने से पागलपन की उत्दंडता शांत होता है। शुद्ध धतूरा के बीज और काली मिर्च बराबर लेकर, महीन चूर्ण करके 100-100 मिलीग्राम की गोली बना लें। जल के साथ गर्म करके 1-1 रत्ती की गोली बनायें। 1-2 गोली सुबह-शाम को मक्खन के साथ सेवन करने से उन्माद रोग शांत हो जाता है। पागलपन मस्तिष्क में आघात, जन्य अथवा शराब, गंजाम, सूर्य के ताप में भ्रमण आदि से या प्रसूतावस्था में हुआ हो जिसमें नींद न आती हो, उस अवस्था में इस उन्मत्त वटी का सेवन कराने से थोड़े ही दिनों में मन स्वस्था होकर उत्तेजनहीन हो जाता है।
नारू (बाला रोग) में धतूरे के पत्तों की पुल्टिस बांधने से बाला रोग में लाभदायक होता है।
मस्तक पीड़ा धतूरे के 2-3 बीज नित्य खाने से पुरानी सी पुरानी सिरदर्द की पीड़ा नष्ट हो जाती है।
नेत्र रोग में धतूरा के ताजे पत्तों का रस दुःखति आँख पर लेप करने से ललाई कट जाती है। सूजन और दाह नष्ट हो जाती हैं:नेत्र रोग में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
दमा में धतूरा के फल, शाखा तथा पत्तों को कूटकर और सुखाकर उसके चूर्ण का धूम्रपान करने से श्वास रोग नष्ट हो जाता है। धतूरा के आधे सूखे हुए पत्तों के टुकड़ों को 4 रत्ती की मात्रा में लेकर बीड़ी पिलाने से अगर 10 मिनट तक दमे का दौरा शांत न हो तो अधिक से अधिक 15 मिनट बाद दूसरी बीड़ी पिलाने से दमा में शीघ्र लाभ मिलता है।
हैजा में केवल धतूरा की देसर को बताशे में रखकर खाने से हैजा में आराम मिलता है।
सूजन में धतूरा के पिसे हर पत्तों में शिलाजीत मिश्रित कर, लेप करने से अंडकोष की सूजन, पेट के अंदर की सूजनम फुफ्फुस के पर्दे की सूजन, संधियों की सूजन और हडिड्यों की सूजन में शीघ्र लाभ होता है।
सिर की जुएं में सरसों का तेल 4 सेर, धतूरे के पत्तों का रस 16 सेर तथा धतूरे के पत्तों का कल्क 16 सेर, इन सबको धीमी आंच पर पकाकर जब तेल मात्र शेष रह जाये तो बोतल में बहकर रख लें। इस तेल को बालों में लगाने से सिर की जुएं नष्ट हो जाती हैं।
कर्णरोग में धतूरे के पत्तों के रस को आग पर काढ़ा बना कर, कान के पीछे की सूजन पर लेप करने से कर्णरोग में आराम होता है। कान में अगर मवाद बहती हो तो 8 भाग सरसों का तेल, 1 भाग गंधक, 32 भाग धतूरा पत्रों का स्वरस मिलाकर विधिपूर्वक तरल सिद्ध करके, इसके तेल की 1 बूँद कान में सुबह-शाम डालने से कर्णरोग में शीघ्र लाभ होता है।
जिस घाव पर गहरा पीप या पीपड़ी जम गये होम उसको गुनगुने पानी की धार से धो कर दिन में 3-4 बार धतूरा के पत्तों की पुल्टिस बांधने से घाव जल्दी भर जाता है।
धतूरा के स्वरस 400 ग्राम, धतूरा के रस में चटनी की तरह पीसी गई हल्दी 25 ग्राम और तिल का तेल 100 ग्रामं लेकर धीमी आंच पर पकायें। तरल शेष रहने पर उबाल कर छान लें। यह कान के नाड़ी व्रण पर गुणकारी है।
बिच्छू दंश में धतूरा के पत्तों की लुगदी, बिच्छू दंश पर लेप करने से बिच्छू दंश में आराम मिलता है।
धतूरे के विष में कपास के फूल और पत्र, इनका शीत निर्यास सेवन करने से धतूरे का विष उत्तर जाता है।
चरक संहिता में कनक नाम से तथा सुश्रुत संहिता में उन्मत्त नाम से निर्दिष्ट धत्तूर शिव का प्रिय है धतूरा के फल और पुष्प शिव पर चढ़ाये जाते हैं। रस ग्रंथों में धतूरा की गणना विशवर्ग में की गयी है तथा रस चिकित्सा में धत्तूर बीज अनेक योगों में पड़ता है। धत्तूरा के पौधें समस्त भारत में पाये जाते हैं। धतूरा की निम्न प्रजातियां देखने को मिलती हैं।
1. यह वास्तव में विदेशी पौधा हैं, परन्तु अब समस्त भारत में फ़ैल गया है। धतूरा का क्षुप से बिल्कुल मिलता जुलता है।
2. कृष्ण धतूरा के क्षुप कहीं-कहीं पाये जाते हैं। अन्य प्रजातियों की अपेक्षा यह अधिक बीर्यवान होता है।
धतूरा के एकवर्षीय क्षुप 2-5 फुट तक ऊँचे, कांड चिकना, पत्तियों लम्बाकार, भालाकार, लम्बाग्र या आगरा पर नुकीली तथा आधार पर मध्य नाड़ी के दोनों पाश्र्व विषम होते हैं। पत्रतट लहरदार, दंतुर या किंचित मुड़े हुए होते हैं। धतूरा पुष्प 5-6 इंच लम्बे, प्रायः दो या तीन एक साथ, बाहर से बैगनी और भीतर से श्वेत होते हैं। धतूरा फल गोलाकार, कागदी नीबू जितने बड़े, कंटकित तथा नीचे की ओर झुके हुए। बीज चपटे पिले या हल्के भूरे रंग के होते हैं। कृष्ण धतूरे के बीज चपटे वृक्काकार तथा काले रंग के होते हैं।
धतूरा के पत्र एवं बीज हायोसायमीन और हायोसीन नामक दो क्षाराभ, 0.25 से 0.25 प्रतिशत तक पाये जाते हैं। यही इसके प्रधान सक्रिय तत्व हैं और यही दोनों क्षाराभ, अजवायन, खुरासानी में भी से 30 प्रतिशत तक स्थिर तेल भी पाया जाता है।
धतूरा मड़कारक, व्रण को उत्तम करने वाला, अग्नि तथा वायुकारक, कषाय, मधुर, कटु, जूं-लीख को नष्ट करने वाला और ज्वर, कोढ़, व्रण, कफ, खुजली, कृमि तथा विषनाशक है। धतूरा कडुवा, रक्ष, क्रांतिकारी, घावों को भरने वाला, त्वग दोषहर, ज्वरध्न और भ्रम पैदा करता है। यह कफ नाशक है। श्वास नलिका के संकोच, विस्फार प्रधान रोगों में धतूरा की बहुत उपयोगिता है।
धतूरे का सेवन अधिक मात्रा में धतूरा विष है। यह अपनी खुश्की की वजह से बदन को सुन्न कर देता है। सिर में दर्द पैदा करता है तथा पागलपन और बेहोशी पैदा कर मनुष्य को मार देता है। इसका बाह्य प्रयोग करना ही अच्छा है। अतः प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिए।
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