अंगूर के औषधीय गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग-Angur ke Aushadhiy Gun In Hindi.
अंगूर के अलौकिक औषधीय गुण
अंगूर अनेक रोग की दवा जैसे:- सिरदर्द, पेट दर्द, बवासीर, क्षय रोग, पथरी, सुखी खांसी, दाद, एसिडिटी, चर्म रोग, पीलिया, एसिडिटी, मुखपाक, मुख की दर्गन्ध, श्वांस, थायराइड, मूत्रकृछ, अंडकोषवृद्धि, बेहोशी, नकसीर, हृदय रोग, धतूरे का विष, हरताल के विष आदि बिमारियों के इलाज में अंगूर के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्मलिखित प्रकार से किये जाते है, अंगूर के औषधीय गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग:-
सिरदर्द में अंगूर के औषधीय गुण:
सिरदर्द में अंगूर के 8-10 नग मुनक्कों, 10 ग्राम मिश्री तथा 10 ग्राम मुलेठी तीनो को पीसकर गोलियां बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से पित्त एवं सिर का दर्द दूर होता है।
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पेट दर्द में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
पेट दर्द में अंगूर और अडूसे का काढ़ा 40-60 मिलीग्राम सिद्ध कर पिलाने से पित्त कफ जन्य पेट दर्द में आराम मिलता है।
बवासीर में अंगूर के औषधीय गुण:
बवासीर में अंगूरों के गुच्छों को हांड़ी में बंद कर राख बना लें। काले रंग की राख प्राप्त होगी। इसको 3-6 ग्राम की मात्रा में बराबर मिश्री मिला, 250 ग्राम गाय का पेशाब में शीघ्र बंद कर दें, 7-8 दिन के बाद सेवन करने से बवासीर में पूर्ण लाभ होता है।
क्षय रोग (टी.बी) में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
टी.बी रोग में अंगूर और घी, खजूर, चीनी, शहद तथा पिप्पली इन सबका चटनी बनाकर सेवन करने से स्वर भेद, कास, श्वास, जीर्ण ज्वर तथा क्षयरोग और टी.बी. नष्ट हो जाता है।
पथरी में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
पथरी में अंगूर काली दाख की लकड़ी की राख 10 ग्राम को पानी में घोटकर दिन तीन बार पीने से पेशाब के रास्ता में होने वाली पथरी का पैदा होना बंद हो जाता है। अंगूर की 6 ग्राम राख को गोखरू का काढ़ा 40-50 ग्राम या 10-20 ग्राम स्वरस के साथ पिलाने से पथरी नष्ट होती है। तथा 8-10 नग मुनक्कों को काली मिर्च के साथ घोटकर पिलाने से पथरी में लाभ होता है।
सुखी खांसी में अंगूर के औषधीय गुण:
सुखी खांसी में अंगूर, द्राक्षा, आंवला, खजूर, पिप्पली तथा काली मिर्च सबको बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इस चटनी के नियमित सेवन करने से सूखी खांसी तथा कुकुर खांसी में लाभदायक होता है।
दाद में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
दाद में 10-20 नग मुनक्का शाम को जल में भिगोकर प्रातः मसलकर छान लेवें तथा उसमे थोड़ा सफ़ेद जीरे का चूर्ण और मिश्री या शहद मिलाकर पिलाने से दाद नष्ट हो जाता है। 10 ग्राम किसमिस आधा किलो गाय के दूध में पकाकर ठंडा हो जाने पर रात्रि के समय नियमित सेवन करने से दाद शांत होती है।
एसिडिटी रोग में अंगूर के औषधीय गुण:
एसिडिटी रोग में अंगूर, दाख, हरड़ बराबर मात्रा लें। इसमें बराबर चीनी मिलाये, सबको एकत्र पीसकर 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली प्रातः सांय शीतल शुद्ध जल के साथ सेवन करने से एसिडिटी, हृदय-कंठ की जलन, प्यास तथा मदाग्नि का नाश होता है।
चर्म रोग में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
चर्मरोग में अंगूर की टहनियों में से एक प्रकार का मद निकाल कर चर्म रोगी के शरीर के ऊपर लेप करने से चर्म रोग शीघ्र ठीक हो जाता है।
पीलिया में अंगूर के औषधीय गुण:
पीलिया में अंगूर का कल्क बीजरहित (पत्थर पर पिसा हुआ) 500 ग्राम पुराना घी और जल 8 किलोग्राम सबको एकत्र मिला पकावे, जब केवल घी मात्र शेष रह जाये तो छानकर रख लें, 3 से 10 ग्राम तक प्रातः सांय सेवन करने से पीलिया में लाभदायक होता है।
मुखपाक में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
मुखरोग रोग में अंगूर 10 दाने, जामुन के पत्ते 3-4 ग्राम मिलाकर काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुख के रोग और मुख के छले फुट कर बह जाते है।
मुख का दुर्गन्ध में अंगूर के औषधि प्रयोग:
मुख दुर्गंध में कफ विकृति या अजीर्ण के कारण मुख से दुर्गंध आती हो तो 5-10 ग्राम अंगूर नियमपूर्वक खाने से मुख की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
श्वांस रोग में अंगूर के औषधीय गुण:
श्वांस रोग में अंगूर के 8-10 नग और हरीतकी के काढ़ा 40-60 ग्राम में चीनी 25-30 ग्राम और मधु 2 चम्मच मिलाकर पिलाने से श्वांस में लाभदायक होता है।
थायराइड में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
गले की बीमारी में अंगूर के 10 मिलीग्राम रस में हरड़ का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम नियमपूर्वक पीने से गले की बीमारी मिटती है। गले के रोगों में इसके रस से कल्ले करने पर आराम मिलता है।
पेशाब की जलन में अंगूर के औषधीय गुण:
पेशाब की जलन में 8-10 अंगूर एवं 10-20 ग्राम चीनी को पीसकर, दही के पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है। पेशाब की जलन एवं तद्जन्य उदावर्त रोग भी दूर होता है। 8-10 नग अंगूर को बासी जल में पीसकर चटनी की तरह जल के साथ लेने से पेशाब की जलन में लाभ होता है।
अंडकोषवृद्धि में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
अण्डकोष की सूजन में अंगूर के 5-6 पत्तों पर घी चुपड़कर तथा आग पर खूब गर्म कर बाँधने से अंडकोष की सूजन बिखर जाती है।
बेहोशी में अंगूर के औषधीय गुण:
मूर्च्छा, बेहोशी अंगूर और आंवलों को समान भाग लेकर, उबालकर पीसकर थोड़ा शुंठी चूर्ण मिलाकर, मधु के साथ चटाने से ज्वर युक्त मूर्च्छा मिटटी है। 25 ग्राम अंगूर, मिश्री, अनार की छाल और खस 12-12 ग्राम, जौकूट कर 500 ग्राम पानी में रात भर भिगो दें, प्रातः छानकर, 3 खुराक बनाकर दिन में 3 बार पीला देवें। 100-200 ग्राम अंगूर को घी में भूनकर थोड़ा सौंधा नमक मिला, नित्य 5-10 ग्राम तक खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
नकसीर (नाक से खून आने) में अंगूर के औषधीय गुण:
अंगूर के 2-2 बूँद रस को नाक में डाल देने से नकसीर नाक से खून आना बंद हो जाता है।
हृदय रोग में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
हृदय रोग में शूल हो तो अंगूर काढ़ा 3 भाग, मधु 1 भाग तथा लौंग 1/2 भाग, मिलाकर कुछ दिन सेवन करने से हृदय रोग में लाभदायक होता है।
धतूरे के विष में अंगूर के औषधीय गुण:
धतूरे के विष में अंगूर का 10 ग्राम सिरका 100 ग्राम दूध में मिलाकर सेवन करने से धतूरे का विष शीघ्र ही ठीक हो जाता है।
हरताल के विष में अंगूर के औषधीय प्रयोग:
हरताल के विष रोगी को वमन कराकर किसमिस 10-20 ग्राम 250 ग्राम दूध में पकाकर पिलाने से हरताल के विष उतर जाता है।
अंगूर का परिचय
अंगूर एक बहुवर्षायु सुदीर्घलता के प्रसिद्ध फल हैं। फलों में यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है, क्योंकि यह सभी प्रकार की प्रकृति के मनुष्य के लिये अनुकूल है। निरोगी के लिये यह उत्तम पौष्टिक खाद्य है तो रोगी के लिये बलवर्धक पथ्य। जब कोई खाद्य पदार्थ पथ्य रूप में न दिया जा सके तब ‘द्राक्षा’ (मुनक्का) का सेवन किया जा सकता है। रंग और आकर तथा स्वाद भिन्नता से अंगूर की कई किस्में होती है। काले अंगूर, बैगंनी रंग के अंगूर, लम्बे अंगूर, छोटे अंगूर, बीज रहित, जिनकी सुखाकर किशमिश बनाई जाती है। काले अंगूरों को सूखकर मुनक्का बनाई जाती है।
अंगूर का बाह्य-स्वरूप
अंगूर की बेलें लकड़ियों के मकानों पर चलती हैं, इसके पत्ते गोलाकार, पञ्चखंडिय हाथ की आकृति के और फल गुच्छों में लगते है।
अंगूर के रासायनिक संघठन
ताजे फलों में ग्लूकोज निर्यास, टैनिन, टरटैरिक एसिड, सीट्रिक एसिड, तथा द्राक्षामल या मैलिक एसिड एवं विविध क्षारद्रव्य, सोडियम तथा पोटेशियम क्लोराइड, पोटेशियम सल्फेट एवं लौहा आदि तत्व होते है। मुनक्का या सूखे फलों में शर्करा एवं निर्यास के अतिरिक्त कैल्शियम, मैग्नीशयम, पोटेशियम, लौह एवं फास्फोरस आदि तत्व पाये जाते है। फल के छिलके में टैनिन पाया जाता है।
अंगूर के गुण-धर्म
पके फल दस्तावर, शीतल, नेत्रों को हितकारी, पुष्टि कारक, पाक या रस में मधुर, स्वर को उत्तम करने वाला, कसैला, मल तथा मूत्र को निकालने वाला, वीर्यवर्धक, पौष्टिक, कफ कारक, रुचिकारक है। यह प्यास, ज्वर, श्वास, कास, वात, वातरक्त, कामला, मूत्रकृच्छ्र, रक्तपित्त, मोह, दाह, शोष तथा मेह को नष्ट करने वाला वाला है।
कच्चा अंगूर गुणों में हीन, भारी और कफ पित्तहरी और रक्त पित्त हरने वाला है।
काली दाख या गोल मुनक्का या डेढ़ इंच लम्बे गोस्तन की तरह वीर्य वर्धक, भारी और कफ पित्त नाशक है।
किशमिश बिना बीज की छोटी किशमिश मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, रूचिप्रद, खट्टी तथा श्वास, कास, ज्वर, हृदय की पीड़ा रक्त पित्त, क्षत क्षय, स्वर भेद प्यास, वात पित्त और मुख के कड़वेपन को दूर करती है।
ताजेफल रुधिर को पतला करने वाले छाती के रोगों में लाभ पहुंचाने वाले बहुत जल्दी पचने वाले रक्त शोधक तथा खून बढ़ाने वाले होते हैं।
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