अनानास की दवाएं:- बुखार, मासिक धर्म, मधुमेह, टी.बी., खून की कमी, त्वचा, पीलिया, पेट दर्द, पेट के कीड़े, श्वांस, जलोदर, अजीर्ण, सूजन, पित्त आदि बिमारियों के इलाज में अनानास के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्मलिखित प्रकार से किये जाते है:-अनानास के फायदे और नुकसान एवं औषधीय गुण:Anaanaas Benefits And Side Effects In Hindi.
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अनानास में ब्रोमेलिन नामक तत्व 0.008 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है, जो हाजमा बढ़ाता है। ताजे फल के रस में शर्करा, अम्ल, विटामिन, ए. तथा सी और एक मानस्तत्व को पचाने वाला किण्व, तथा दूध को जमाने वाला किण्ड पाया जाता है। भस्म में फास्फोरिक एसिड, चूना, मैगनीशियम तथा सोडियम पोटाशियम के लवण पाये जाते है।
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अनानास के फलों का स्वरस अथवा 20 ग्राम रस में मधु मिलाकर पिलाने से पसीना के साथ मूत्र खुलकर आता है और बुखार की गति कम हो जाता है।
मासिक धर्म की रुकावट में अनानास के कच्चे फलों के 10 ग्राम रस में, पीपल की छाल का चूर्ण और गुड़ 1-1 ग्राम मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म की रुकावट दूर होती है। अनानास के पत्तो का क्वाथ 40-60 मिलीग्राम पीने से भी मासिक धर्म की रुकावट दूर हो जाती है।
टीबी रोग में अनानास का रस रोगी के बलगम के संक्रमण कम करने में असरकारी होता है। तथा क्षय रोग की आधुनिक चिकित्सा विकसित नहीं थी तब, मरीज को अनन्नास के रस का सेवन कराया जाता था। और लाभदायक होता है।
अनन्नास रक्ताल्पता (खून की कमी ) में तेजी से खून की कमी को दूर कर देता है, तथा शरीर को उत्साह वर्धक बना देता है।
मोटापा में नियमित रूप से अनन्नास खाने से वजन का शीघ्र ही पतन होता है, क्योंकि अनन्नास वसा (चर्बी) को खत्म करता है।
श्वांस रोग में अनानास फल के रस में छोटी-कटेरी की जड़ आंवला और जीरा बराबर मात्रा में चूर्ण बनाकर शहद के साथ सेवन करने से श्वांस रोग लाभदायक होती है, अनानास के पके फल के 10 ग्राम स्वरस में पीपल मूल, सौंठ और बहेड़े का चूर्ण 2-2 ग्राम तथा भूना हुआ सुहागा व शहद मिलाकर सेवन करने से श्वास रोग में लाभ होता है।
अनानास का रस त्वचा पर लेप करने से फुंसी दाने पिम्पल आदि धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं। कई गंभीर त्वचा रोगों (सफ़ेद दाग सहित) के उपचार में भी यह लाभदायक है। कच्चे फल का ताजा रस यदि घाव पर लगाया जाए तो घाव भरने का कार्य करता है।
पाचन शक्ति में अनानास के पके हुए फल को बारीक टुकड़े सैंधा नमक और काली मिर्च मिलाकर खाने से कब्ज दूर होता हैं। तथा पाचन शक्ति ठीक हो जाता है। भोजनोपरान्त यदि पेट फूल जाये या बैचेनी हो तो अनानास के 20-50 ग्राम रस के सेवन से लाभ होता है।
मधुमेह में अनानास बहुत लाभकारी होता है। अनानास के 100 ग्राम रस में हरड़, तिल, बहेड़ा, आंवला, गोखरू और जामन के बीज 10-10 ग्राम मिला दें। सूखने जाने पर पाउडर बनाकर रख लें। इस चूर्ण को प्रातः सांय 3 ग्राम की मात्रा में सेवन बहुमूत्ररोग तथा मधुमेह में अत्यंत गुणकारी है।
उदर रोग (पेट दर्द) में अनानास के पके हुये फल का 10 ग्राम रस में भूनी हुई हींग 125 मिलीग्राम मिलाकर प्रातः सांय सेवन करने से पेट दर्द और गुल्म रोग में लाभ होता है।
जलोदर (पेट में पानी भरना) अनानास के पत्रों के काढ़ा में छोटी हरड़ और बहेड़ा का चूर्ण मिलाकर लेने से दस्त और मूत्र साफ होकर, पेट के पानी में आरामदायक होता है।
कामला (पीलिया) में अनानास के पके हुये फलों के 10 ग्राम स्वरस में मिश्री 3 ग्राम हल्दी चूर्ण 2 ग्राम मिलाकर सेवन करने से पीलिया रोग में गुणकारी होता है।
कृमि रोग (पेट के कीड़े) में अनानास के पके हुये फल का स्वरस में खुरासानी अजवायन और बायविडंग, छुआरा का चूर्ण समभाग मिलाकर, शहद के साथ 5-10 ग्राम की मात्रा में चटाने से बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते है। अनानास के पत्तों के स्वरस में थोड़ा मधु मिलाकर सुबह-शाम 2 ग्राम से 10 ग्राम तक सेवन करने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते है।
शोथ (सूजन) में अनानास रस का सेवन 7-8 दिन तक करने से अंगों की सूजन, मूत्र, मूत्र में एल्ब्युमिन, यकृत वृद्धि, अग्निमांध तथा नेत्रों के नीचे सूजन हो तो इच्छानुसार अनानास का प्रयोग 15-20 दिन तक करने से सूजन में लाभ होता है। अनानास के पत्तों पर एरंड तेल चुपड़कर गर्म करे और सूजे हुए स्थान पर बाँध दें। सूजन बिखर जाएगी।
पित्त में अनानास का रस 1 भाग, चाशनी 2 ग्राम में डालकर सेवन करने से पित्त को शांत कर देता है। तथा हृदय को बल देने वाला वनस्पति है।
अनानास का मुरब्बा पके फलों के टुकड़े को रात भर चूने के पानी में रखकर, धुप में सुखाकर, शक्कर की चासनी में डालकर मुरब्बा बना लें। यह पित्त का शमन और चित्त को प्रसन्न करता है।
अनानास ब्राजील का आदिवासी पौधा है, परन्तु आजकल पूरे भारतवर्ष में अनानास की खेती, विशेषतः बंगाल, आसाम तथा पश्चिमी समुद्र तटवर्ती प्रदेशों में बड़े पैमाने पर की जाती है।
अनानास के द्विवर्षायु 2 फुट तक ऊँचे शाकीय पौधे, देखने में केवड़े या घृतकुमारी के जैसे लगते है। पौधे के मध्य भाग से छोटा काण्ड निकलता है, जिसके मूल में चारों ओर पत्र पुंज होता है। पत्तियां 1-2 फुट लम्बी, पतली, मजबूत रेशेदार और किनारे पर छोटे तीक्ष्णाग्र कंटक होते है। पौधे के बीच में शंक्वाकार पुष्पव्यूह होता है, जिसमें शल्कपत्र प्रचुरता से होते है, यह पुष्प समूह ही वृद्धि को प्राप्त कर मांसल फल के रूप में परिवर्तित हो जाता है। यह पकने पर नारंगी के समान पीतवर्ण का हो जाता है, तथा इस पर अनेक छोटे-छोटे कंटकमय पत्र होते है जिन्हें छत्रक कहते हैं।
वात पित्त शामक, रोचन, दीपन, अनुलोमन, रेचन, हृद, रक्त पित्त शामक, अश्मरी भेदन, मूत्रल, बल्य, ज्वरध्न। कच्चे फल का स्वरस तीव्र/पत्रस्वरस तीव्र रेचन एवं कृमिघ्न।
कच्चा अनानास खाने से दस्त की संभावना बढ़ जाती है और जीभ पर दरारें पड़ जाते है।
गर्भवती महिलाओं को शुरुवाती दिनों में अनानास का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि अनानास से गर्भपात होने का खतरा रहता है।
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