तिल की घरेलू दवाएं, उपचार: तिल पुरुषार्थ, पथरी, बवासीर, दंतरोग, पायरिया रोग, नेत्ररोग, बालों को काला करने, मुलयम बाल, गंजापन, खांसी, स्मरण शक्ति, खूनी दस्त, हैजा रोग, जुकाम, दस्त, गर्भाशय के रुधिर जमाव, मासिक धर्म की रुकवाट, मासिक धर्म की पीड़ा, मासिक धर्म की अनियमिता, सफेद पानी, बच्चों का मूत्र रोग, सुजाक, पेशाब की जलन, गंठिया रोग, निरोगी काया, रक्त विकार, कमर दर्द, कटे-जेल, मस्तक पीड़ा, कील-मुंहासे, चोट-मोच, घाव, काँटा चुभने, सूजन, मकड़ी का विष, बिल्ली का विष, ततैया विष, बिच्छू विष, विषमज्वर आदि बिमारियों के इलाज में तिल की घरेलू दवाएं, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक उपचार, औषधीय चिकित्सा प्रयोग, सेवन विधि निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है: तिल के फायदे, लाभ, घरेलू दवाएं, उपचार, औषधीय गुण, सेवन विधि एवं नुकसान:-
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हिंदी – तिल, तिल्ली का तेल
अंग्रेजी – गिंजल्ली सेसमे
संस्कृत – तिल, तिल तेल
गुजराती – तल, मीठु तेल
मराठी – तिल, गोडा तेल
बंगाली – तिल
फ़ारसी – कुंजद, रोगन कुंजद
अरबी – शीरज, सिमसिम, समसम, हल
तिलों से एक धुंधले पीताभ वर्ण का द्रव प्राप्त होता है, जिसे तिल तेल अथवा आम भाषा में मीठा तेल कहते हैं, तिल में बहुत हल्की रुचिकर गंध होती हैं। इस तेल में प्रोटीन, अल्प मात्रा में कोलीन सेक्रोज एवं लेसिथीन आदि तत्व पाये जाते हैं। तिल के अतिरिक्त बीजों में सीमेमिआ, सीसेमोलिन, लाइपेज, निकोटिनिक एसिड तथा प्रधानतः ओलिक एवं लिनोलीक एसिड के तथा अल्पतः स्टीयरिक, पामिटिक एवं अरेकीडिक एसिड के ग्लिसराइडस पाये जाते हैं।
कॉपर – 0.7 मिलीग्राम
विटामिन बी 6 – 0.2 मिलीग्राम
लोहा – 4.1 मिलीग्राम
मैग्नीशियम – 99.7 मिलीग्राम
ट्रिप्टोफैन – 93 मिलीग्राम
जिंक – 2 मिलीग्राम
कैल्शियम – 277 मिलीग्राम
थियामीन – 0.2 मिलीग्राम
प्रोटीन – 4.7 ग्राम
फास्फोरस – 17 9 मिलीग्राम
मैंगनीज़ – 0.7 मिलीग्राम
फाइबर – 3. 9 ग्राम
तिल के औषधीय प्रयोग किये जाने वाले भाग-तिल की जड़, तिल की छाल, तिल की पत्ती, तिल का तना, तिल का फूल, तिल के फल, तिल का तेल आदि घरेलू दवाओं में प्रयोग किये जाने वाले तिल के भाग है।
पुरुषार्थ पाने के लिए तिल और 100 मिलीग्राम काढ़ा सुबह-शाम भोजन से पहले पिलाने से पुरुषार्थ की वृद्धि होती है।
पथरी रोग से छुटकारा पाने के लिए मरीज को तिल को छाया में सूखाकर कोमल कोपलों की राख सात ग्राम से दस ग्राम तक प्रतिदिन खाने से पथरी गलकर पेशाब की रास्ते से निकल जाती है। तिल पुष्पों के 4 ग्राम क्षार को 2 चम्मच शहद और 250 ग्राम दूध में मिला कर पिलाने से पथरी गल जाती है। तिल के पौधे की लकड़ी की सात ग्राम से 14 तक भस्म सिरके के साथ सुबह-शाम भोजन से पहले खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।
अर्श में तिल को जल के साथ पीसकर मक्खन के साथ दिन में दो तीन बार भोजन से 1 घंटे पहले चाटने से बवासीर में लाभ होता है। रुधिर का निकलना बंद हो जाता है। तिल को पीसकर गर्म करके अर्श पर पुल्टिस की तरह बांधना चाहिये। तिल के तेल की बस्ति (एनिमा) देने से गुदा के अंदर काफी दूर तक आँतों स्निघ्ध होकर मल के गुच्छे निकल जाते हैं, जिससे बवासीर में राहत महसूस होती है।
दंतरोग में तिल को दांतों के लिये गुणकारी माना जाता है। प्रतिदिन 25 ग्राम तिल को चबा-चबा कर खाने से दांत मजबूत होते हैं।
पायरिया रोग में मुंह में तिल को भरकर 5-10 मिनट रखने से पायरिया रोग ठीक होकर दांत मजबूत हो जाते हैं।
नेत्ररोग से ग्रसित मरीज को तिल पुष्पों पर शरद ऋतु में पड़ी ओस की बूंदों को मलमल के कपड़े या किसी और प्रकार से उठाकर शीशी में भर कर रख लें। इन ओस कणों को आँख में टपकाने से नेत्रों के रोग ठीक हो जाते हैं।
काले बालों के लिए तिल की जड़ और पत्तों के काढ़ा से बाल धोने से बालों पर काला रंग पैदा हो जाता है।
मुलयम बालों के लिए काले तिलों के तेल को शुद्ध अवस्था में बालों में लगाने से बाल असमय सफेद नहीं होते। प्रतिदिन सिर में तेल की मालिश करने से बाल सदैव मुलायम और काले और घने रहते हैं।
गंजेपन में जब सिर के बालों में रुसी पड़ गई हो तो तिल के फूल तथा गोक्षुर बराबर मात्रा में लेकर गाय के घी तथा शहद में पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।
खांसी से अति शीघ्र छुटकारा पाने के लिए तिल के 100 मिलिगरम काढ़े में 2 चम्मच खंड में डालकर पीने से खांसी मिटती है। तिल और मिश्री को उबालकर पिलाने से सूखी खांसी मिटती है।
स्मरण शक्ति के लिए तिल के सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होकर मेधा बढ़ती है। इससे बुद्धि, स्मरण शक्ति तथा ग्रहण शक्ति की वृद्धि होती है।
रक्तातिसार (खूनी दस्त) में तिलों के 5 ग्राम चूर्ण में बराबर मिश्री मिलाकर बकरी के चार गुने दूध के साथ सेवन करने से रक्तातिसार खूनी दस्त में लाभ होता है।
आमातिसार (पेचिस) की समस्या से परेशान मरीज को तिल के पत्रों को पानी में भिगोने से पानी में लुआब आ जाता है, यह चेप या लुआब बच्चों की पेचिस को ठीक कर देता है।
हैजा रोग में यदि दस्त बंद न हो तो तिल के पत्तों के लुआब में थोड़ी अफीम डालकर सुबह-शाम पिलाने से हैजा रोग का दस्त बंद हो जाता है।
जुकाम से ग्रसित मरीज को शीघ्र छुटकारा पाने के लिए तिल के पत्रों को पानी में भिगोने से पानी में लुआब बनाकर खिलाने से जुकाम नष्ट हो जाता है।
दस्त से ग्रसित मरीज को तिल के पत्रों को पानी में भिगोने से पानी में लुआब बनाकर सुबह-शाम नियमित खिलाने से दस्त शीघ्र ही बंद हो जाता है।
गर्भाशय के रुधिर जमाव को बिखेरने के लिए 625-625 मिलग्राम तिलों का चूर्ण दिन में तीन चार बार सेवन करने और गर्म जल में स्त्री को बैठना चाहिए एवं जल कमर तक पहुंचना 5 मिनट तक बैठाने से स्त्री को गर्भाशय का जमा हुआ खून बिखर जाता है।
मासिक धर्म यदि कष्ट से आता हो तो तिलों का 100 मिलीग्राम काढ़ा बनाकर पिलाने से मासिक धर्म का कष्ट दूर होता है। तिल के 100 मिलीग्राम काढ़ा में 2 ग्राम सौंठ, 2 ग्राम काली मिर्च और 2 ग्राम पीपल का चूर्ण बुरककर कर दिन में तीन बार पिलाने से मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।
मासिक धर्म की पीड़ा में तिलों के तेल में पीसकर हल्का गर्म करके नाभि के नीचे लेप करने से मासिक धर्म की पीड़ा मिटती है।
मासिक धर्म को नियमित करने के लिए तिलों का चूर्ण आधा ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार जल के साथ प्रयोग करने से ऋतु स्त्राव नियमित हो जाता है। तिल का काढ़ा बनाकर लगभग 100 मिलग्राम सुबह-शाम पीने से मासिक-धर्म नियमित हो जाता है।
सफेद पानी से छुटकारा पाने के लिए रुई के फोहे को तिल के तेल में भिगोकर योनि के अंदर धारण करने से सफ़ेद पानी रोग मिट जाता है। 10 ग्राम तिल और 10 ग्राम गोखरू को रातभर पानी में भिगोकर प्रातःकाल उनका चेप निकालकर उसमें थोड़ा बूरा डालकर पिलाने से बंद हुआ मासिक धर्म फिर से जारी हो जाता है।
रात्रि में बच्चों बिस्तर गीला कर देते है। उनको तिल का लम्बे समय तक सेवन कराने से रोग ठीक हो जाता है।
नवीन सुजाक में तिल के ताजे पत्तों को 12 घंटे तक पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने से अथवा तिल के 5 ग्राम क्षार को दूध या मधु के साथ पिलाने से सुजाक रोग ठीक हो जाता है।
पेशाब की जलन में ताजे पत्तों को 12 घंटे तक पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने से अथवा तिल के 5 ग्राम क्षार को दूध या मधु के साथ पिलाने से पेशाब की जलन कम हो जाती है और पेशाब साफ होने लगती है।
सन्धिवात (गंठिया रोग) में तिल तथा सौंठ समभाग लेकर प्रतिदिन 5-5 ग्राम तीन से चार बार सेवन करने से गंठिया रोग में लाभ होता है।
निरोगी काया पाने के लिए तिल का तेल त्वचा में लाभकारी है। प्रतिदिन तिल के तेल की मालिश करने से मनुष्य कभी भी बीमार नहीं होता।
रक्तविकार में तिल के तेल की मालिश नियमित सुबह-शाम करने से रक्तविकार में लाभ होता है।
कमर दर्द की समस्या से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए तिल के तेल की मालिश नियमित रूप करने से कमर दर्द में शीघ्र लाभ होता है।
कटे-जले में तिल को पीसकर जले हुए स्थान पर लेप करने से कटे-जेल की पीड़ा और वेदना शांति मिलती है।
मस्तक पीड़ा में तिल के पत्तों को सिरके या पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से मस्तक पीड़ा मिट जाती है।
कील-मुंहासे की समस्या से छुटकारा पाने के लिए तिलों की सिरस की छाल और सिरके के साथ पीसकर मुंह पर लगाने से कील-मुहांसे ठीक हो जाते हैं।
चोट और मोच पर तिल की खरी को पानी के साथ पीसकर गर्म करके चोट-मोच पर बांधने से शीघ्र लाभ होता है। तिल और अरंडी को अलग-अलग कूटकर दोनों को तिल्ली तेल में मिलाकर लेप करने से चोट की पीड़ा मिटती है। और सूखा हुआ अंग अपनी पूर्व दशा जाता है।
घाव में तिलों की पुल्टिस बनाकर घाव पर बाँधने से घाव जल्दी भर जाते हैं। सभी प्रकार के घावों पर तिल्ली का तेल लगाने से घाव शीघ्र अच्छा होता है।
शरीर के किसी भी अंग में नागफनी या थूहर का कांटा यदि घुस जाये और निकालने में दिक्क्त होती हो तो तिल्ली का तेल बार-बार लगाने से कुछ समय में वह कांटा निकल जाता है।
सूजन में तिल और मक्खन को पीसकर मालिश करने से सूजन बिखर जाती है।
मकड़ी विष में तिल की छाल और हल्दी को पानी में पीसकर लेप करने से मकड़ी का विष उतर जाता है।
बिल्ली का विष उतरने के लिए तिलों को पानी में पीसकर लेप करने से बिल्ली का विष उतर जाता है।
ततैया विष को उतरने के लिए तिल को पानी के साथ पीसकर लेप करने से ततैया का विष शीघ्र उतर जाता है।
बिच्छू विष को उतरने के लिए तिल को जल के साथ पीसकर बिच्छू दंश जनित स्थान पर लेप करने से विष फौरन उतर जाता है।
विषमज्वर की समस्या से फौरन छुटकारा पाने के लिए तिल की लुगदी को गाय के देशी घी के साथ सेवन करने से विषम ज्वर में लाभ होता हैं।
तिल और तिलों के तेल से सब परिचित हैं। जाड़े की ऋतु में तिल के मोदक बड़े चाव से खाये जाते हैं। रंग भेद से तिल तीन प्रकार का होता है, श्वेत, लाल एवं काला। औषधि कर्म में काले तिलों से प्राप्त तेल अधिक उत्तम समझा जाता हैं। भारतवर्ष में तिल की प्रचुर मात्रा में खेती की जाती हैं। तिल (बीज) एवं तेल भारतवर्ष के प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य है।
तिल के एक वर्षायु, कोमल, रोमावृत 1-3 फुट ऊँचे क्षुप हल्की दुर्गंध युक्त होते हैं। इस पौधे पर जगह-जगह स्रावी ग्रंथियां पाई जाती है। ऊपरी भाग की पत्तियां सरल, एकांतर, मालाकार, आयताकार, पत्राग्र प्रायः रेखाकार, मध्य भाग में लट्वाकार, किनारे दतूर तथा निचले भाग की पत्तियां अभिमुख तथा खंडित होती है। पुष्प डेढ़ इंच तक लम्बम बैगनी श्वेताभ वर्ण के रोमश एवं बैगनी या पीले बिंदुओं से युक्त होते हैं। फली 2 इंच लम्बी, लम्ब गोल चतुष्कोणाकार तथा अग्रपर कुंठित सी होती हैं। जिसमे से अलसी के समान चपटे, किन्तु उससे छोटे अनेक क्षुद्र बीज निकलते हैं।
तिल रस में चरपरे-कड़वे-मधुर-कसैले-भारी, पाक में चरपरे-स्वादिष्ट, स्निग्ध-उष्ण कफ तथा पित्त को नष्ट करने वाले, बलदायक, केशों को हितकारी, स्पर्श में शीतल, त्वचा को हितकारी, दूध को बढ़ाने वाले, व्रणरोग में लाभकारी, दांतों को उत्तम करने वाले, मूत्र का प्रवाह कम करने वाले, ग्राही, वात नाशक, दीपन और मध्य है। कृष्ण तिल सर्वोत्तम व वीर्यवर्धक है, सफेद तिल माध्यम है, लाल तिल हीन गुण वाले हैं।
तिल के बीज का अधिक सेवन करने आपका अत्यधिक वजन बढ़ा देती हैं, जिस कारण आपको कई अन्य प्रकार के शारीरिक बीमारियां का समाना करना पड़ सकता है। तिल के बीज आपको दस्त, एलर्जी, नुकम, कैंसर जैसी संकटपूर्ण बीमारियां का समाना करना पड़ सकता है।
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