चालमोंगरा अनेक रोगों की दवा जैसे:- गंठिया, मधुमेह, क्षयरोग, सफ़ेद दाग, एलर्जी, रक्त विकार, कमजोरी, दाद, खाज-खुजली, कंठमाला, हैजा, उपदंश, घाव आदि बिमारियों के इलाज चालमोंगरा के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:चालमोंगरा के गुण, फायदे, नुकसान और औषधीय प्रयोग
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गठिया में चालमोंगरा के बीजों का चूर्ण एक ग्राम की मात्रा में दिन में दो तीन बार खिलाने से गठिया में आराम दायक होता है।
मधुमेह में चालमोंगरा की फल गिरी का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो तीन बार सेवन करने से पेशाब से खंड जाना कम हो जाती है, जब मूत्र में शक़्कर जाना बंद हो जाये तो प्रयोग बंद कर देना चाहिए:मधुमेह में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:
क्षयरोग में चालमोंगरा के तेल की 5-6 बूंदे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन तथा मक्खन में मिलाकर छाती पर मालिश करने से टी.बी. रोग में लाभदायक होता है।
कुष्ठ रोग (सफ़ेद दाग) में चालमोंगरा के 10 बूंदे तेल को पीलाने से जिससे वमन होकर शरीर के सभी प्रकार के दोष बाहर निकल जाते है, तत्पश्चात 5-6 बूँदों को कैप्सूल में डालकर या दूध व मक्खन में भोजनोपरांत सुबह-शाम सेवन करने से धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाकर 60 बूंदे तक ले जायें। इस तेल को नीम के तेल में मिलाकर शरीर पर लेप करे, कुष्ठ की प्रारम्भिक अवस्था में इस औषधिक का सेवन करें। परहेज – खटाई मिर्च मसालें वर्जित है।
एलर्जी में अरंड के बीजों के छिलके तथा चालमोंगरा के जड़ सहित पीसकर अरंड तेल में मिलाकर पामा पर लेप करने से एलर्जी नष्ट हो जाती है। चालमोंगरा के बीजों को गौमूत्र में पीसकर दिन में 2-3 बार लेप करने से वेदना कम होती है।
रक्त विकार में नाखून काले पद जायें या रक्त में कोई ओर विकार हो तो चालमुगरा तेल की 5 बूँद कैप्सूल में भरकर या मक्खन के साथ आधा घंटे के पश्चात सुबह-शाम सेवन करने से रक्त विकार दूर होते हैं। इस तेल का बाह्य लेप करें, इसको नीम के चार गुने तेल में मिलाकर या मक्खन में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
कमजोरी में चालमोंगरा के बीजों का चूर्ण मस्तक पर लेप करने से मूर्च्छा दूर होती है।
दाद के ऊपर चालमोंगरा के तेल की मालिश नीम के तेल या मक्खन में मिलाकर करने से एक महीने में दाद ठीक हो जाती है। 10 ग्राम तेल को 50 ग्राम वैसलीन में मिलाकर रख लें और प्रयोग करने से दाद में लाभदायक है।
खाज-खुजली में चालमोंगरा तेल को एरंड तेल में मिलाकर उसमें गंधक, कपूर और नींबू का रस मिलाकर लेप करने से खुजली में शीघ्र लाभ होता है।
कंठमाला में चालमोंगरा की फल की गिरी चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में दिन में दो तीन बार सेवन करने से कंठमाला में लाभ होता है। चालमोंगरा के तेल को मक्खन में मिलाकर गांठों पर लेप करने से गांठ बिखर जाती है।
हैजा में चालमोंगरा की फल की गिरी का एक ग्राम चूर्ण जल में पीसकर 2-3 बार पिलाने से हैजा में आराम मिलता है।
उपदंश में पूरे शरीर में फैले हुए उपदंश के रोग और पुरानी गठिया में चालमोंगरा के तेल की 5-6 बूदों का सेवन करने से या 60 बूँदों तक सेवन करने से उपदंश शांत होता है। परहेज जब तक इस दवा का सेवन करें तब तक मिर्च, मसालें खटाई का परहेज रखें। दूध घी और मक्खन का अधिक सेवन करें।
घाव में चालमोंगरा के बीजों को खूब महीन पीसकर उनका बारीक चूर्ण घाव पर लेप करने से रक्तस्राव बंद होकर घाव शीघ्र भर जाता है।
चालमोंगरा के वंयज वृक्ष दक्षिण भारत में पश्चिम घाट के पर्वतों पर तथा दक्षिण कोंकण और ट्रावनकोर में तथा लंका में बहुतायत में पाये जाते हैं। इसके बीजों से प्राप्त होने वाले तेल का तथा बीजों का औषधीय व्यवहार किया जाता है।
तुवरक के वृक्ष अति सुंदर, 50 फुट या इससे अधिक ऊँचे होते हैं। पत्र -शरीफे की भांति 10 इंच लम्बे, डेढ़ से 4इंच तक चौड़े, लट्वाकार, मालाकार, चिकने, कोमल तथा चमकीले व अग्रभग पर नुकीले होते हैं। पुष्प-श्वेत गुच्छों में तथा एकलिंगी होते हैं नर और मादा पुष्प अलग-अलग वृक्षों पर खिलते हैं फल 2-4 इंच व्यास के सेव के सदृश परन्तु रोमश होते हैं। बीज, घूसर वर्ण अनेक कोणीय छोटे बादाम जैसे पुष्कल और हर फल में 10-20 तक बीज होते हैं।
तुवरक के बीजों से स्थिर तेल प्राप्त होता है। जिसमें चालमोगरिक एसिड, हिडनोकार्पिक एसिड पामिटिक एसिड आदि होते हैं। तुबरक तेल पीताभ या भूरे-पीले रंग का गाढ़ा होता है। इसमें एक विशिष्ट प्रकार की गंध होती है तथा 25 डिग्री सेल्सियस या इससे कम तापक्रम पर यह जमकर घी के समान सफेद और घनरूप हो जाता है।
स्थानिक प्रयोग से कण्डुघ्न, कुष्ठघ्न, व्रणरोपण, व्रणशोथघ्न, अन्तः प्रयोग से रेचक, वमन कराने वाला, कीड़ा-नाशक, तथा रक्त प्रसादं है।
विशेष :- चालमोगरा का तेल एक कुष्ठ-नाशक औषधि है, आजकल इंजेक्शन द्वारा भी इसका प्रयोग किया जाता है।
चालमोंगरा का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि यह आमाशय को हानि पहुंचाता है। तेल को मक्खन में मिलाकर या कैप्सूल में भरकर भोजन के बाद ही लेना चाहिए।
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