त्रिफला के औषधीय गुण
त्रिफला की घरेलू दवाएं, उपचार: त्रिफला केश रोग, गंजापन, नेत्ररोग, पित्तजनित गुल्म, अरुचि, एसिडिटी, कब्ज, कफपित्तज, कृमिनाशक, पीलिया रोग, बवासीर, बहुमूत्र रोग, प्रमेह रोग, सूजन, दीर्घायु, बुखार, रक्तपित्त, कुष्ठ रोग, वजन घटाने आदि बिमारियों के इलाज में त्रिफला की घरेलू दवाएं, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक उपचार, औषधीय चिकित्सा प्रयोग सेवन विधि निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है: त्रिफला के फायदे, लाभ, घरेलू दवाएं, उपचार औषधीय गुण, सेवन विधि एवं नुकसान:-
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त्रिफला के औषधीय प्रयोग किये जाने वाले भाग-त्रिफला की जड़, त्रिफला की छाल, त्रिफला की पत्ती, त्रिफला का तना, त्रिफला का फूल, त्रिफला के फल, त्रिफला चूर्ण आदि घरेलू दवाओं में प्रयोग किये जाने वाले त्रिफला के भाग है.
केश रोग में 2 से 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण में 125 मिलीग्राम लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बाल के सभी प्रकार के रोग ठीक हो जाते है।
गंजापन रोग में 2 से 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण में 125 मिलीग्राम लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बाल झड़ने बंद हो जाते हैं।
नेत्ररोग में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात्रि को ठंडे पानी में भिगोकर सुबह उस जल से नेत्रों को धोने से नेत्रों के रोग नष्ट हो जाते हैं।
पित्तजनित गुल्म में द्राक्षा एवं हरड़ का 1-2 चम्मच स्वरस पुराना गुड़ मिलाकर पीने अथवा त्रिफला चूर्ण की 3-5 ग्राम मात्रा को खंड में मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से पित्तजनित गुल्म रोग ठीक हो जाता है।
भूख न लगने पर रोगी को त्रिफला, दाड़िम, अजवाइन यह सब वायुनाशक, मूत्रदोष को मिटाने वाला है। हृदय के लिये पिपासानाशक है एवं अरुचि को उत्पन्न करने है यह प्रयोग भूख में वृद्धि लाता है।
अम्लपित्त (एसिडिटी) में त्रिफला चूर्ण आधा चम्मच दिन में दो तीन बार जल के साथ फांकने से एसिडिटी में लाभ होता है।
कब्ज से ग्रसित मरीज को रात्रि में सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण का सेवन गर्म जल के साथ सेवन करने से कब्ज मिटती है।
किसी भी प्रकार के कीड़े को मरने के लिए त्रिफला, हल्दी, निम्ब, यह तिक्त, मधुर रस कफपित्तज रोग को नष्ट करने वाला, कुष्ठ, कृमिनाशक एवं दूषित घावों का शोधक है।
पीलिया रोग में त्रिफला, गिलोय, वासा, चिरायता, नीम की छाल मिश्रित कर 20 ग्राम लेकर आठ गुने जल में पकाकर चौथाई शेष रहने पर इस काढ़ा में शहद का प्रक्षेप देकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया रोग तथा पाण्डु रोग नष्ट होता हैं। त्रिफला, कुटज, पलाश यह मेडोनाशक तथा शुक्रदोष को मिटाने वाला है। अर्श, पांडुरोग नाशक एवं शर्करा को दूर करने के लिये श्रेष्ठ है।
बवासीर से छुटकारा पाने के लिए त्रिफला, कुटज, पलाश इन सबको कूटकर चूर्ण बनाकर काढ़ा बनाकर नियमित रूप सेवन करने से बवासीर में शीघ्र लाभ होता है।
बहुमूत्र रोग में त्रिफला, बांस के पत्ते, मोथा, पाठा इनके 3-4 ग्राम चूर्ण को मधु तथा गाय के देशी घी के साथ सेवन करने से बहुमूत्र का रोग शीघ्र नष्ट हो जाता है। 2 चम्मच त्रिफला चूर्ण कल्क में थोड़ा सा सैंधा नमक मिलाकर प्रयोग करने से बहुमूत्र रोग ठीक होता है।
प्रमेह रोग से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए त्रिफला, दारुहल्दी, देवदारु, नागरमोथा इन सबको समान भाग में लेकर यथाविधि इनका काढ़ा बनाकर प्रमेह के रोगी को दिन में दो तीन बार पिलाने से प्रमेह रोग ठीक हो जाता है।
शोथ (सूजन) में गोमूत्र में त्रिफला का काढ़ा सिद्ध करके सुबह-शाम पीने से वृषण स्थित वात श्लेष्मज शोथ नष्ट होता है।
दीर्घायु के कमाना करने वाले को त्रिफला, सम्पूर्ण रोगनाशक, आयुस्थापन होता हैं। इसके निरंतर सेवन करने से बुढ़ापा दूर हो जाता है।
रक्तपित्त में हरड़, बहेड़ा, आंवला तथा अमलतास के 20 मिलीलीटर काढ़ा में शहद और खंड मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से रक्त पित्त में लाभ होता है।
दाह से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए हरड़, बहेड़ा, आंवला तथा अमलतास के 20 मिलीलीटर काढ़ा में शहद और खंड मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से दाह से शीघ्र छुटकारा मिलता है।
ज्वर (बुखार) में यह औषधि ज्वर विनाशक होती हैं। इसका काढ़ा 10-20 ग्राम की मात्रा में ज्वर आने से 1 घंटे पूर्व पिलाने से बुखार उतर जाता है। 20 मिलीलीटर त्रिफला का काढ़ा अथवा गिलोय का रस स्वरस पीने से विषम ज्वर में लाभ पहुंचता है।
कुष्ठ रोग में त्रिफला एवं वासा के काढ़ा का स्नान तथा पान करने से कुष्ठ रोग का सर्वनाश होता है।
वजन घटाने के लिए एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात्रि में 200 ग्राम पानी में भिगोकर रखे। प्रातःकॉल गर्म करके आधा शेष रहने पर छान लें। 2 चम्मच मधु मिलाकर गर्म-गर्म शता हुआ पीने से कुछ ही दिनों के सेवन करने से वजन घटा है।
भावमिश्र हरीतकी, विभीतकी तथा धात्री फल के समभाग मिश्रण को त्रिफला कहते है। दूसरे बैध दो तथा तीन भाग के मिश्रण को त्रिफला कहते है। कैयदेव निघण्टु में त्रिफला एक हरीतकी दो विभीतक तथा चार आंवले मिलाने से बनता है।
त्रिफला कफ, पित्त, प्रमेह तथा कुष्ठ को हरने वाला, दस्तावर, नेत्रों को हितकारी, अग्नि प्रदीप्त करने वाला, रुचिवर्धक एवं विषम ज्वर नाशक है। हरड़, बहेड़ा और आंवला क्वाथ तिक्त तथा मधुर रस युक्त है।
गर्भावस्था के समय त्रिफला चूर्ण का अधिक मात्रा में सेवन करने से यह आंत्रशोथ को तीव्र कर देता है। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसके प्रभाव से कभी-कभी गर्भपात की संभावना बन जाती है । इसलिए इसका प्रयोग आमतौर पर गर्भपात के समय महिला को त्रिफला चूर्ण का सेवन नहीं करना चहिए।
त्रिफला का अधिक मात्रा में सेवन करने आपको डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। अधिक मात्रा में त्रिफला चूर्ण का सेवन तीव्रगति से पेट की सफाई करता है जिस के कारण शरीर से अधिक पानी निकल जाता है। जिसकी वजह से शरीर में पानी की मात्रा में कमी हो जाती है और कभी-कभी व्यक्ति की हालत गंभीर हो जाती है।
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