लौंग की दवाएं:-कैंसर, स्त्रियों की योनि शक्ति, गर्भकाल के उल्टी, पुरुष यौन शक्ति, सिरदर्द, अधकारी, नेत्ररोग, नजला, कफ निष्कासन, श्वांस की दुर्गंध, मुख की दुर्गंध, दमा, हृदय की जलन, कुक्कुर खांसी, हैजे की प्यास, कब्ज, जी मिचलाना, पाचन शक्ति, निर्बलता, अफारे, उदर रोग, दस्त, दस्त में आंव, खुनी दस्त, उदरवात, अम्ल रोग, नासूर आदि बिमारियों के इलाज में लौंग की घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:- लौंग के फायदे एवं सेवन विधि
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लौंग का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किये जाने वाला भाग लौंग के सबसे ज्यादा फूल का प्रयोग किया जाता है, भाग- लौंग के फूल, तना, जड़, फल आदि प्रयोग किये जाने वाले भाग है।
हिंदी – लवंग, लौंग
अंग्रेजी – क्लोवे
संस्कृत – लवंग, देवकुसुम, श्रीप्रसून
पंजाबी – कालीव
बंगाली – लवंग
गुजराती – लवंग
मराठी – लवंग
तैलगू – करावल्लु
अरबी – करनफ
फ़ारसी – मेडक, मेख्त
उत्तर प्रदेश – लवंग, लौंग आदि नामों से जानी जाती है।
लौंग में एक उड़नशील तेल पाया जाता है जिसमें यूजीनोल, एमिल यूजीनोल, केरियोंफाइलीन आदि मुख्य घटक होते है। इसके अतिरिक्त लौंग में अनेक तत्व कैलोरी, 21%, कार्बोस 1 %, फाइबर 1%, मैग्नीज तथा आरडी आई का 30%, विटामिन K 4%, विटामिन C 3 %, लौंग में अन्य पोषक तत्व मैग्नीशियम, कैल्शियम, और विटामिन E भी कुछ मात्रा भी पाई जाती है।
लौंग में पाए जाने वाले यौगिक कैंसर जैसी जटिल बीमारी में मदद करती है। लौंग कैंसर के ट्यूमर के विकास को नियंत्रित रखने में मदद करता है। इसके प्रयोग करने से कैंसर में लाभ होता है।
स्त्रियों के योनि शक्ति में लौंग व जायफल को घिसकर नाभि पर लेपकर स्त्री के साथ सेक्स करने से स्त्री और पुरुष की कामशक्ति बढ़ जाती है।
गर्भकाल में महिलाओं को अक्सर तर उल्टी होती है उस समय महिलाओं को 1 ग्राम लौंग चूर्ण को मिश्री की चाशनी व अनार के रस में मिलाकर चाटने से गर्भवती स्त्री को उल्टी आना बंद होती है। लौंग का फाँट पिलाने से गर्भवती की वमन बंद हो जाती है।
पुरुष यौन शक्ति को बढ़ाने में लौंग व जायफल को घिसकर नाभि पर लेपकर स्त्री के साथ सेक्स करने से पुरुष की कामशक्ति बढ़ जाती है।
सिरदर्द में 8 ग्राम लौंग को पानी में पीसकर हल्का गर्म करके गाढ़ा लेप कनपटियों पर करने से सिरदर्द में शीघ्र आराम मिलता है।
सिर के अधकपारी दर्द में 5 ग्राम लौंग को शुद्ध पानी में पीसकर धीमी आंच पर गर्म करके मस्तक पर लेप करने से सिर का अधकपारी दर्द नष्ट हो जाता है।
नेत्ररोग में लौंग को तांबे के बर्तन पर पीसकर मधु मिलाकर आँख के आसपास लेप करने से नेत्र के सफेद भाग के रोग मिटते हैं।
नजले में 3 लौंग और 1/2 ग्राम अफीम को पानी के साथ पीसकर गर्म करके ललाट पर लेप करने से नजले के कारण उत्पन्न शिरोवेदना शांत होती है।
कफ निष्कासन में लौंग के 2 ग्राम जौकुट किये हुये चूर्ण को 120 ग्राम पानी में उबालें, चार भाग शेष रहने पर उतार छानकर थोड़ा गर्म कर पी लेवें।
यह कफ को द्रवित कर निकाल देने में अति उत्तम प्रयोग है।
श्वास की दुर्गंध में लौंग को मुँह में रखने से मुँह और श्वास की दुर्गंध मिटती है।
मुख की दुर्गंध में लौंग के एक फूल को मुख में धारण करके चूसने से मुख की दुर्गंध नष्ट हो जाती है।
दमा रोग में लौंग, आंकड़े के फल और काला नमक समभाग लेकर चने के आकार की गोली बनाकर मुख में रखकर चूसने से दमा और श्वास नलिका के रोग ठीक हो जाते हैं।
हृदय की जलन में 2-4 नग लौंग को शीतल जल में पीसकर, मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से हृदय की जलन मिटती है।
खांसी से परेशान व्यक्ति 50 ग्राम लौंग को तवा पर धीमी आंच पर भूनकर मुख में धारण करके चूसते रहने से साधारण खांसी ठीक हो जाती है।
कुक्कुर खांसी में 3-6 नग लौंग को आग पर भूनकर पीसकर शहद मिलाकर चाटने से कुक्कुर खांसी मिटती है।
हैजे की प्यास में एक या 1/2 ग्राम लौंग को करीब डेढ़ किलों जल में डालकर उबाले 2-3 उबाल आने पर नीचे उतार कर ढक देवें, इसमें से 20-25 ग्राम जल बार-बार पिलाने से हैजे से उत्पन्न प्यास मिटटी है।
कब्ज में लौंग 1 ग्राम और हरड़ 3 ग्राम का काढ़ा कर उसमें थोड़ा सा सैंधा नमक डालकर पिलाने से कब्ज मिटता है और दस्त साफ होता है।
हृल्लास (जी मिचलाना) पर लौंग को पानी के साथ पीसकर हल्का गर्म कर थोड़ा-थोड़ा पिलाने से जी मिचलाना और प्यास मिटती है।
पाचन शक्ति में लौंग और छोटी पीपल दोनों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को 1 1/2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम नियमित शहद के साथ चाटने से पाचन शक्ति व निर्बलता दूर होती है। मंदाग्नि अजीर्ण आदि में 1-2 ग्राम लौंग को जौ कूटकर 100 ग्राम जल में काढ़ा कर 20-25 ग्राम शेष रहने पर छानकर ठंडाकर पीने से, मदाग्नि, अजीर्ण एवं हैजे में लाभ होता है।
निर्बलता को दूर करने में लौंग एक उत्तम औषधि है, लौंग और छोटी पीपल को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना ले अब इस चूर्ण को एक से ढेड़ ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम नित्य शहद के साथ प्रयोग करने से शरीर की दुर्बलता दूर हो जाती है।
अफारे से परेशान मरीज को लौंग, सौंठ, अजवायन और सैंधा नमक 10-10 ग्राम, गुड़ 45 ग्राम पीसकर 320-325 मिलीग्राम की गोलियों बना 1 गोली दिन में दो तीन बार सेवन करने से अफारा दूर होती है। अफारे में लौंग का फाँट, या लौंग का तेल देने से तुरंत लाभ होता है।
उदर रोग में बदहजमी, खट्टी डकारें आदि में लौंग, शुंठी, मिर्च, पीपल, अजवायन 10-10 ग्राम, सैंधा नमक 40 ग्राम, मिश्री 50 ग्राम इनकों महीन पीसकर चीनी के बरनत में रखकर, नींबू का रस इतना डाले कि सब चूर्ण उसमें मिश्रत हो जाये, धूप में सुखाकर सुरक्षित रख लें, इसे एक चम्मच भोजनोपरान्त प्रयोग करने से मुँह का स्वाद अच्छा हो जाता है, तथा बदहजमी खट्टी डकारे आदि बंद हो जाती है।
दस्त से परेशान मरीज को लौंग, जायफल, जीरा इन सब को बराबर मिलाकर चूर्ण बना ले, इसमें 2-4 ग्राम की मात्रा में लेकर मधु और खंड को मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से दस्त में आराम मिलता है।
दस्त के साथ आंव आने पर जायफल, जीरा इन दोनों को सम्भाग मिलाकर चूर्ण बनाकर 5-6 ग्राम की मात्रा में खंड और शहद मिलाकर प्रयोग करने से दस्त के साथ आंव आना बंद हो जाता है।
खुनी दस्त से परेशान मरीज को जायफल, लौंग, जीरा, समान भाग लेकर चूर्ण बनावें, इसे 2-3 ग्राम की मात्रा में लेकर मधु और चीनी के साथ सेवन करने से खुनी दस्त और दर्द नष्ट होता है।
पेट दर्द होने पर लौंग के दरदरे 10 ग्राम चूर्ण को 1/2 किलोग्रान उबलते हुये जल में डालकर ढक दें, आधे घंटे बाद छान लें। 20-50 ग्राम जल दिन में दो तीन बार पिलाने से पेट का दर्द और अपचन दूर होकर पेट को आराम मिलता है।
अम्ल रोग में लौंग, सौंठ, 10-10 ग्राम अजवायन, सैंधा नमक 12-14 ग्राम इन सबका चूर्ण बनाकर भोजनोपरान्त 1 1/2 ग्राम जल के साथ प्रयोग करने से अजीर्ण और अम्ल रोग का नाश होता है।
नासूर में 5-6 लौंग और 10 ग्राम हल्दी को पीसकर लेप करने से नासूर ठीक हो जाता है।
लौंग का मूल उत्पति स्थल मलक्का द्धीप है, परन्तु भारत में दक्षिण में केरल और तमिलनाडु में इसकी खेती की जाती है। भारतवर्ष में इसका अधिकांश आयात सिंगापुर से किया जाता है। लौंग के वृक्ष पर लगभग 9 वर्ष की आयु में फूल लगने शूर हो जाते हैं। लौंग की पुष्प कलियों को ही सुखाकर बाजार में लौंग के नाम से बेचते है।
लौंग का सदा हरित वृक्ष 40-40 फुट ऊँचा होता है। काण्ड से चारों ओर कोमल और अवनत शाखायें निकल कर फैली रहती है। पत्र हरितवर्ण 3-6 इंच अण्डाकृति होता है। पुष्प सुगंधित, बैगनी रंग के होते हैं। फल लवंगाकृति होता है जो मातृलवंग कहा जाता है।
लौंग चरपरी, कड़वी, नेत्रे हितकारी, शीतल, दीपन-पाचन, रुचिकारक, कफ-पित्त, रक्तरोग, प्यास, चमन, अफारा, शूल, श्वास हिचकी और क्षय रोग का नाश करता हैं। लवंग तेल, अग्निवर्धक, वातनाशक, दंतशूल, कफ और गर्भिणी का वमन का नाशक है।
लौंग के कुछ विशेष गुण :- 1. लौंग के सेवन से भूख बढ़ती है। आमाशय की रस क्रिया को बल मिलता है, भोजन के प्रति रूचि पैदा होती है। और मन प्रसन्न होता है।
2. लौंग कृमिनाशक है, जिन सूक्ष्म जंतुओं के कारण से मनुष्य का पेट फूलता है, उन्हें यह नष्ट कर देती हैं, जिससे मनुष्य की रोग निवारण क्षमता बढ़ती है।
3. यह चेतना शक्ति को जाग्रत करती है।
4. यह शरीर की दुर्गंध को नष्ट करती है। शरीर के किसी भी बाह्य अंग पर लेप करने से लौंग चेतना कारक, वेदना नाशक, व्रणशोधक और व्रणरोपक है।
5. लौंग मूत्रल हैं। यह मूत्रमार्ग की शुद्धि कर, शरीर के बीजातीय द्रव्यों को मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देती है।
लौंग का प्रयोग गर्भवती महिला को बुखार के समय प्रयोग न कराये क्योंकि उल्टी होने की सम्भावन बढ़ जाती है।
सूखे लौंग को अगर बड़ी मात्रा में प्रयोग में लाया जाता है तो यह स्वास्थय समस्याओं का कारण बन जाता है। लौंग का सेवन बच्चों को विशेष रूप से लौंग तेल का सेवन नहीं करना चाहिए कयोंकि स्वास्थ्य में खतरे की संभावना बढ़ जाती है।
लौंग तेल हमारे शरीर के खून को पतला करने के लिए प्रसिद्ध है। गर्भवती स्त्रियों को भी लौंग तेल के प्रयोग नहीं करना चाहिए।
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