खुरासानी अजवायन की दवा:- गंठिया, साटिका, कमर दर्द, गर्भाशय की पीड़ा, पागलपन, दंतपीड़ा, कान का दर्द, पेट दर्द, मूत्र रोग, आंत के कीड़े, यकृत रोग, मसूड़ों से खून आना आदि बिमारियों के इलाज में खुरासानी अजवायन के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Khurasani Ajwain Benefits And Side Effects In Hindi.खुरासानी अजवायन के फायदे एवं सेवन विधि:
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सन्धिवात (गंठिया) में तिल के तेल में खुरासानी अजवायन को सिद्ध कर मालिश करने से गंठिया, गृध्रसी, कमर दर्द इत्यादि रोगो में लाभ होता है।
गृध्रसी (साटिका) में खुरासानी अजवायन के स्वरस और तिल तेल बराबर मात्रा में मिलाकर मालिश करने से या शरीर पर लेप करने से साटिका में लाभदायक होता है।
कमर दर्द में खुरासानी अजवायन का तेल तिल तेल को समान मात्रा में मिलाकर कमर पर मालिश करने से कमर दर्द शीघ्र नष्ट हो जाता है।
गर्भाशय की पीड़ा में खुरासानी अजवायन के स्वरस को फोहा में लेप करके इसकी बत्ती बनाकर योनि में धारण करने से गर्भाशय की पीड़ा शांत होती है।
आवेश रोग (पागलपन) में खुरासानी अजवायन की 30 बूँद 1-1 घंटे के अंतर् से 25-25 ग्राम पानी में मिलाकर सेवन करने से स्त्रियों या पुरुषों का हिस्टीरिया रोग तथा पागलपन में तथा दर्द में लाभ होता है।
दन्त पीड़ा में खुरासानी अजवायन को समभाग राल के साथ पीसकर दांतो की छेद में धारण करने से दन्त पीड़ा नष्ट हो जाती है।
कर्णशूल (कान की पीड़ा) में खुरासानी अजवायन को तिल के तेल में सिद्ध करके कान में 2-3 बूँद टपकाने से कान की पीड़ा शीघ्र ही मिटता है।
मसूड़ों से खून आना पर खुरासानी अजवायन के पत्तों का काढ़ा से कुल्ला करने से मसूड़ों से खून आना बंद हो जाता है तथा मुख की दुर्गंध दूर होती है।
उदर शूल (पेट दर्द) में खुरासानी अजवायन की गुड़ में गोली बना के खाने से पेट की वायु पीड़ा मिटती है। खुरासानी के 10 ग्राम चूर्ण में 250 मिलीग्राम काला नमक मिलाकर खिलाने से भी लाभ होता है। खुरासानी अजवायन के तेल की 3-4 बूंदे, एक ग्राम सौंठ चूर्ण में मिलाकर खाने से तथा ऊपर से गर्म सौंफ का अर्क 15-20 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से पेट की पीड़ा शांत हो जाती है:पेट दर्द में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
यकृत पीड़ा में खुरासानी अजवायन के तेल का लेप यकृत पर करने से पुरानी यकृत की पीड़ा तथा छाती के दर्द में बहुत फायदेमंद होता है।
कृमि विकार (आंत के कीड़े) जिस पुरुष व स्त्री के पेट में कीड़े हों, वह खाली पेट 5 ग्राम गुड़ खाकर, कुछ समय बाद खुरासानी अजवायन के 1-2 ग्राम चूर्ण की फंकी बासी पानी के साथ पीने से आँतों कीड़े नष्ट हो जाते है।
मूत्र रोग में खुरासानी अजवायन के बीजों का स्वरस 15-20 बूंद की मात्रा में दिन में 3-4 बार देने से मूत्रेन्द्रिय संबंधी पीड़ा, पथरी इत्यादि रोगों में सेवन करने से मूत्र विरेचन होकर मूत्र रोग में आराम मिलता है।
खुरासानी अजवायन भारतवर्ष में कश्मीर से गढ़वाल तक 8000 से 10.000 फीट की ऊंचाई तक पाई जाती हैं। सहारनपुर, कोलकाता, आगरा, अजमेर, पूना इत्यादि के सरकारी उद्यानों एवं खेतों में यह बोयी जाती है।
खुरासानी जवायन का पौंधा अजवायन के पौधे से कुछ बड़ा, 1 वर्षायु या द्विवर्षायु होता है। खुरासानी अजवायन की मूल तंतुयुक्त तथा तना गोल, सीधा और पुष्ट होता है। पत्र लम्बे-चौड़े, भिन्न -भिन्न प्रमाण के, किनारे कटे हुए या कंगूरेदार, हरे रंग के रोमशः होते हैं। शाखाओं पर भी रोम होते हैं। खुरासानी अजवायन के पुष्प गुच्छों में पीताभ हरे रंगे के बैगनी रंग की रेखाओं से युक्त फल छोटे-छोटे 1/2 इंच व्यास के द्विकोषीय, प्रत्येक कोष में लाल मिर्च जैसे चपटे वृक्काकार अजवायन से 2 श्यामवर्ण के बीज होते है।
खुरासानी अजवायन के बीजों में 25 से 30 प्रतिशत तक स्थिर तेल, पत्रों एवं पुष्पों में हायोसायमिन तथा हायोसान नामक क्षाराभ के साथ एट्रोपिन तथा स्कोपिन भी अल्प मात्रा में पाये जाते हैं। एट्रोपिन द्विशायु पौधे की जड़ में मिलता है।
खुरासानी कफध्न, स्वास-हर, हृदयावसादक, हृदय और कामावसादक है। शामक होने से बस्तिशोध, अश्मरी, हस्ति मेह आदि विकारों में तथा शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, रजःकृच्छता, प्रदर तथा अनियमित मासिक धर्म में यह लाभकर है। अति काम वासना को शांत करने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं। खुरासानी अजवायन निन्द्राजनक, संकोच विकास प्रतिबंधक तथा कुछ मूत्रल होता है। थोड़ी मात्रा में यह हृदय की गति को धीमाकर उसे बल देता है। परन्तु अधिक मात्रा में इसका सेवन हृदय के लिए हानिकारक है। खुरासानी अजवायन की अवसादक क्रिया मस्तिष्क, जननेन्द्रियों और आँतों पर मुख्य रूप से होती है। अफीम और धतूरे इसकी समानांतर औषधियां है, परन्तु अफीम कब्ज करती है, जबकि पारसीक यवानी इस दोष से मुक्त है। धतूरे के प्रयोग से मद और भ्रम पैदा होता है, परन्तु इस बूटी से भ्रम नहीं होता, इसलिए पारसीक अजवायन इन दोनों से बेहतर कार्य करती है। नींद लाने ओर वेदनाशमन द्रव्यों में इसे मुख्य स्थान प्राप्त है। स्नायुतंत्र पर इसका शामक प्रभाव होने के कारण यह मन को शांत करती है, प्रगाढ़ निंद्रा आती है, धतूरे से गाढ़ी नींद नहीं आती। किसी भी कारण से मानसिक अस्वस्थता और अनिंद्रा होने पर यह औषधि तत्काल लाभ करती है। इससे मन शांत होता है, दस्त साफ़ होता है और सुखदायक नींद आती है।
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