जामुन की दवाएं:-मधुमेह, बवासीर, पथरी, गर्भावस्था में रक्तस्त्राव, सफ़ेद दाग, गले के दोष, पेशाब के साथ शुगर, धड़कन, नेत्ररोग, जी मिचलाना, दंतपीड़ा, मोतियाबिंद, दमा, कंठ रोग, दस्त, स्वर भेद, उपदंश, खांसी, अफरा, प्लीहा की सूजन, थकावट, यकृतविकार, पीलिया, वमन, रक्त अतिसार, रक्तपित्त, जूते का घाव, मुंह के छाले, मुखपाक, मुंह की दुर्गंध, मुखग्लानि, कर्णपूय, खुनी दस्त, पेचिस, घाव, फोड़े-फूंसी, सर्पविष, बिच्छू विष, ततैया विष, कुचला विष आदि बिमारियों के इलाज में जामुन के घरेलु दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Jamun Benefits And Side Effects In Hindi. जामुन के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि
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मदुमेह रोग में जामुन की 110 ग्राम जड़, साफ कर, 240 ग्राम पानी में पीसकर 20 ग्राम मिश्री डालकर सुबह-शाम भोजन से पहले प्रयोग करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है। जामुन की गुठली का चूर्ण 1 भाग और गुड़मार बूटी 2 भाग, इन तीनों चीजों को कपड़छन करके मिश्रण को घृतकुमारी के रस में मिलाकर गोलियाँ बना लें। दीन में दो तीन बार 1-1 गोली शहद के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग एवं प्रमेह रोग में पेशाब में जाने वाली शक्कर 1 महीने में बंद हो जाती है। तथा मधुमेह से होने वाली प्रमेह पीडिकाएँ तथा कारबंकल इत्यादि रोग में लाभदायक है।
अर्श (बवासीर) में जामुन कोमल कोपलों के 20 ग्राम रस में थोड़ी सी खंड मिलाकर दिन में दो तीन बार पीने से बवासीर में बहने वाला खून बंद हो जाता हैं। 11 ग्राम जामुन के पत्तों को 245 ग्राम गाय के दूध में घोटकर 1 सप्ताह तक सुबह-शाम तथा दोपहर प्रयोग करने से बवासीर से गिरने वाला खून बंद हो जाता है।
अश्मरी (पथरी) में पके हुये जामुन खाने से पथरी गल कर निकल जाती है। जामुन के 10 ग्राम रस में 245 मिलीग्राम सैंधा नमक मिलाकर दिन में 2-3 बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशय की पथरी नष्ट होती है। जमणु के 10-15 ग्राम कोमल पत्तों को कल्क बनाकर इसमें काली मिर्च 2-4 नग का चूर्ण बुरककर सुबह-शाम उपयोग करने से पथरी के टुकड़े-टुकड़े होकर मूत्र द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
रक्तस्त्राव (गर्भावस्था में रक्तस्राव) में जामुन की गुठली के 3-5 ग्राम चूर्ण में बराबर खंड मिलाकर खाने से पेट से खून का बहना बंद हो जाता है।
अग्निदग्ध (सफ़ेद दाग) में जामुन के 10-15 पत्तों को पीसकर लेप करने से अग्निदग्ध का सफ़ेद दाग नष्ट हो जाता है।
गले के दोष में जामुन के पत्तों और फल 450 ग्राम सम्भाग मिलाकर शर्बत बना लें, तथा उस शर्बत का नियमित सुबह-शाम सेवन करने से गले के सभी प्रकार का दोष दूर हो जाता है।
पेशाब के रास्ते से शुगर आने पर जामुन के सूखे बीजों का चूर्ण 350 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक दिन में दो तीन बार प्रयोग करने से पेशाब के साथ शक्कर का आना बंद हो जाता है। जामुन की छाल की राख मधुमेह की उत्तम औषधि है। 620 मिलीग्राम से 2 ग्राम तक की मात्रा में दिन में 4 बार सेवन करने से पेशाब में शक्कर निकलना बंद हो जाता है।
बढ़ी हुई धड़कन में जामुन के फल एवं पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर नित्य प्रातः सुबह-शाम उपयोग करने से दिल की धड़कन में लाभ होता है।
नेत्र रोग में बच्चों के जब दांत निकलते हो, उस समय होने वाले नेत्राभिष्यन्द में जामुन के कोमल 20-25 पत्रों को 450 ग्राम जल में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा से आँख को धोने से नेत्र रोग में शीघ्र लाभ होता है।
किसी गलत खान पान से जी मिचलाने पर जामुन के फल का शर्बत बनाकर नियमित सेवन करने से उल्टी होकर मन शुद्ध हो जाता है।
दांत के रोग में जामुन के पत्तों की राख दांत और मसूड़ों पर मलने से दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं तथा पायरिया रोग में पके हुये फलों के रस को मुख में भरकर, अच्छी तरह हिलाकर कुल्ला करने से पायरिया रोग ठीक होता है।
मोतियाबिंद रोग में जामुन की गुठली के चूर्ण को शहद में घोटकर 3-4 ग्राम की गोलियां बनाकर प्रतिदिन 1-2 गोली सुबह-शाम खाने से और इन्ही गोलियों को मधु में घिसकर आँख पर लेप करने से मोतिया बिन्द के रोग में लाभ होता है।
दमा रोग से परेशान रोगी को जामुन के फल पते दोनों को समान मात्रा में पीसकर पिलाने से दमा के रोगी को आराम मिलता है।
कंठरोग में जामुन के रस के 15-20 मिलीलीटर की मात्रा में नियमित प्रयोग करने से कंठरोग तथा मुख में हुई गर्मी दूर होती है।
दस्त से परेशान मरीज को जामुन की गुठली मलरोधक है। इसे समभाग में आम की गुठली और काली हरड़ के साथ भूनकर खिलाने से पुराने से पुराने दस्त शीघ्र ही बंद हो जाते हैं:दस्त में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
स्वरभेद के रोगी को जामुन के फल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन कराने से स्वरभेद ठीक हो जाता है।
उपदंश (एलर्जी) उपदंश फिरंग आदि त्वग्विकारों में जामुन के पत्तों को सिद्ध करके सेवन करने से उपदंश में लाभ होता है।
खांसी भी एक प्रकार की जटिल समस्या है, खांसी में जरा भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए क्योंकि दो तीन हपते से ज्यादा खाँसी आने पर टी.बी. जैसी बीमारी का समाना करना पड़ सकता है। खांसी के रोगी को जामुन के फल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम नियमित प्रयोग करने से खांसी शीघ्र नष्ट हो जाती है।
अफारा रोग में जामुन का सिरका 10-15 मिलीलीटर की मात्रा में पौष्टिक संकोचक तथा पेट के अफारे को दूर करता है।
प्लीहा सूजन (शोथ) में जामुन की गुठली का रस 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से प्लीहा की सूजन बिखर जाती है।
किसी भी प्रकार की थकावट में वो थकावट चाहे काम करने से हो या शरीर का अस्वस्थ रहने से हो इस प्रकार की थकावट में जामुन का फल और छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम प्रयोग करने से थकावट उत्तर जाती है।
यकृतविकार में जामुन फल के अंदर लोहे का अंश पाया जाता है, जो सौम्य होने से कोई अनिष्ट पैदा नहीं करता, इसलिये जामुन का 10 ग्राम सिरका नित्य सेवन करने से तिल्ली और यकृत की वृद्धि में बहुत लाभ होता है।
मुँह के छाले में जामुन के कोमल और ताजे 5-6 पत्तों को पीसकर उससे कुल्ला करने से मुँह के खराब छाले नष्ट हो जाते हैं।
मुखपाक में जामुन के कोमल पत्तों को पीसकर हल्का गर्म जल के साथ कुल्ला करने से मुखपाक में लाभ होता है।
मुंह की दुर्गंध में जामुन के फल को अच्छी तरह से साफ करके उसमें 8-10 पत्ते जामुन के मिलाकर मुंह में रखकर चबाते रहे और थुंकते रहने से मुंह की दुर्गंध नष्ट हो जाती है।
कर्णपूय स्राव में जामुन की गुठली का चूर्ण के साथ मधु मिलाकर घोटकर कान में डालने से कान से पूय निकलना बंद हो जाता है।
खुनी दस्त में जामुन के ताजे कोमल पत्तों के 8 से 10 ग्राम रस को बकरी के दूध 100 ग्राम के साथ पीलाने से दस्त व खुनी दस्त दोनों प्रकार के दस्त में शीघ्र आराम मिलता है।
संग्रहणी (पेट की चर्बी) में बच्चों के पेट में अगर चर्बी हो जाये तो जामुन की छाल के रस के बराबर बकरी का दूध मिलाकर पिलाने से बच्चों के पेट की चर्बी में आराम हो जाता है।
रक्त अतिसार (पेचिस) में जामुन की छाल का चूर्ण 2-5 ग्राम को 250 ग्राम गाय दूध के साथ 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से दस्त के साथ आने वाला खून रुक जाता है।
वमन (उल्टी) में आम तथा जामुन दोनों के समभाग कोमल पत्रों 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 350 ग्राम पानी में पकाये चतुर्थाश शेष काढ़ा ठंडा कर पिलाने से पित्तज से आने वाला वमन बंद हो जाती है।
कामला (पीलिया) में जामुन के 10-15 ग्राम रस में 3 चम्मच शहद मिलाकर प्रयोग करने से पीलिया रोग तथा रक्त विकार में लाभ होता है।
रक्तपित्त में 5-10 ग्राम जामुन के पत्र स्वरस का दिन में दो तीन बार भोजन से पहले नियमित सेवन रक्त पित्त में गुणकारी है। जामुन की एक चम्मच छाल को रात में 1 गिलास शुद्ध जल में भिगोकर रखें, सुबह उसे मसलकर छान लेवें। इस प्रकार तैयार काढ़ा को शहद मिलाकर पिलाने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
वर्ण (घाव) में जामुन की छाल का 4-5 ग्राम महीन चूर्ण घाव पर छिड़कने से घाव शीघ्र भर जाता हैं। जामुन के 5-6 पत्तों की पुल्टिस बांधने से दुष्ट व्रणों में से पीब बाहर निकल जाती हैं एवं व्रण स्वच्छ हो जाते हैं।
जूते का घाव-जूता काटने से या तंग जूतों से पाँव में जख्म हो जाये तो जामुन की गुठली को जल के साथ पीसकर लेप करने से जूते का घाव अच्छा हो जाता है।
सर्प के काटने पर जामुन की सुखी हुई गुठली का चूर्ण 10-15 ग्राम की मात्रा में पानी में पीसकर कान में टपकने से सर्प विष शीघ्र उत्तर जाता है।
बिच्छू के डंक मारने पर जामुन के फल की सुखी हुई गुठली को चूर्ण बनाकर जल के साथ पीसकर बिच्छू डंक पर लेप करने से विष उत्तर जाता है।
ततैया के विष में जामुन फल की सुखी गुठली का चूर्ण 15-20 ग्राम जल के साथ मिलाकर नाक में टपकने से ततैया विष उत्तर जाता है।
कुचला विष में जामुन फल की सुखी गुठली का चूर्ण 10 ग्राम खिलाने से कुचला विष शीघ्र नष्ट हो जाता है। जामुन के ढाई पत्तों को पानी में पीसकर जहरीले जानवर के दंश में पीड़ित व्यक्ति को पीलाने से शान्ति मिलती है।
जामुन के सदाहरित वृक्ष जंगली और बोये हुये सर्वत्र पाये जाते हैं। जम्बूफल और वृक्ष से सबका परिचय है, जामुन फल के भीतर 1-2 सेंटीमीटर लम्बी गुठली होती है। पुष्प अप्रैल-जून तथा फल जून-जुलाई में लगते हैं।
जामुन के बीज में एक क्षाराभ अल्पमात्रा में तथा एक पाण्डुपित उड़नशील तेल, गैलिक एसिड, क्लोरोफिल, वसा, राल, एल्ब्युमिन आदि टब पाये जाते हैं। जामुन की गुठली क मधुमेह निवारक क्रिया उक्त ग्लूकोसाइड के ही कारण है। छाल में लगभग 12 प्रतिशत टैनिन पाया जाता है, तथा विजयसार के गोंद की भांति इसमें से एक गोंद भी निकलता है।
1. पत्र, 2. काण्ड त्वक 3. काष्ठ 4. फल का गूदा 5. गुठली का मठाज (गिरी) जामुन के पके फलों का सिरका भी बनाया जाता हैं, तथा रस से आसवन द्वारा एक आसव भी बनाया जाता हैं, जिसे जाम्ब्न कहते हैं।
जामुन का चिरहरित बड़ा वृक्ष 100 फुट तक ऊँचा और 12 फुट तक मोटा होता है। पत्र 3-6 इंच लम्बे, 2-3 इंच चौड़े, भालाकार या लट्वाकार, चर्मवत चिकने होते हैं। पुष्प हरिताभ श्वेत सुगंधित होते हैं। फल 1/2 से 1 1/2 इंच लम्बे, अंडाकार, कच्चे में हरित, प्रौढ़ावस्था में रक्त और बैंगनी तथा परिपक्वावस्था में गहरे नीले-काले वर्ण के हो जाते हैं। फल के भीतर 1-2 सेंटीमीटर लम्बी गुठली होती है। पुष्प अप्रैल-जून तथा फल जून-जुलाई में लगते हैं।
पित्तशामक, त्वगदोषहर, दाह-प्रशमन, छर्दि निग्रहण तथा स्तम्भन है। जामुन का फल अग्निवर्धक, पाचन, यकृत को उत्तेजित करने वाला, वातवर्धक तथा अधिक मात्रा में खा लेने से यह विष्टम्भ जनक है। जम्बूफल की गिरी पाचन क्रिया को सुधारती हैं। इससे रक्तगत तथा मूत्रगत शर्करा कम होती हैं। और मूत्र का प्रमाण भी कम होता है।
जामुन का पका हुआ फल अधिक खाने से पेट और फेफड़ों को नुक्सान पहुंचाता है। यह देर से पचता है, कफ बढ़ता है, जामुन में नमक मिलाकर खाना चाहिए।
जामुन का अधिक खाली पेट सेवन करने से उल्टी होने लगती है और पेट में ऐठन की सम्भावन बढ़ जाती है।
जामुन के अधिक सेवन करने से दस्त गंभीर रूप से होने लगत है।
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