इन्द्रायण की दवा:-गंठिया, मासिक धर्म, गर्भधारण, सुख प्रसव, स्तन पाक, योनि रोग, सिरदर्द, खांसी, श्वांस, पेट दर्द, पेशाब की जलन, बालों की सुंदरता, मिर्गी, हैजा, आंत के कीड़े, जलोदर, कर्णरोग, गांठ, बच्चों का डिब्बा रोग, महामारी, कखरवार,फोड़े-फुंसी, घाव, उपदंश, सर्प विष, बिच्छू विष, सूजन, मस्तक पीड़ा, अधकपारी, दंतकृमि, सफ़ेद बाल, गर्दा रोग, बहरापन आदि बिमारियों की इलाज में इन्द्रायण के घरेलु दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Indrayan Benefits And Side Effects In Hindi.इन्द्रायण के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि
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गठियाँ रोग में इन्द्रायण के गूदे के आधा किलो रस में हल्दी, सैंधा नमक, बड़े हुतनीला की छाल 11 ग्राम डालकर बारीक पीस लें। जब पानी सूख जाये तो 4-5 ग्राम की गोलीयां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से गठिया से जकड़ा हुआ रोगी जिसकों ज्यादा से ज्यादा सूजन तथा दर्द हो थोड़े ही दिनों के प्रयोग से अच्छा होकर चलने-फिरने लग जाता हैं।
मासिक धर्म की रुकावट में इंद्रवारुणी के बीज तीन ग्राम, काली मिर्च 5 नग, दोनों को पीसकर 250 ग्राम पानी में काढ़ा करें, जब एक चौथाई भाग जल शेष रह जाये तब छानकर पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म पुनः चालू हो जाता हैं।
गर्भधारण में बेल पत्रों के साथ इन्द्रायण की जड़ो को पीसकर 15-20 ग्राम की मात्रा नियमित सुबह-शाम पिलाने से स्त्री गर्भ धारण करती हैं। इन्द्रायण की जड़ों को पीस कर प्रसूता स्त्री के बढ़े हुए पेट पर लेप करने से पेट आसानी से अपनी जगह पर आ जाता है।
सुख प्रसव में इन्द्रायण की जड़ों को पीसकर गाय के घी में मिलाकर भग में मलने से बच्चा तुरंत सुख से पैदा हो जाता है। इन्द्रायण के फल के रस में रुई का फोहा भिगोकर योनि में धारण करने से बच्चा सुख पूर्वक हो जाता हैं।
स्तन-पाक स्त्रियों के स्तनों में फोड़ा हो जाने पर इन्द्रायण की जड़ को घिसकर लेप करने से या पुल्टिस बाँधने से स्तन पाक में लाभ होता है।
सुजाक (योनि रोग) में त्रिफला, हल्दी और लाल इन्द्रायण की जड़ तीनों का काढ़ा बनाकर 25 मिलीलीटर दिन में दो तीन बार पिलाने से योनि रोग में लाभ होता हैं।
शिरःशूल (सिरदर्द) में इन्द्रायण के फल के रस या जड़ की छाल को तिलों के तेल में उबालकर तेल को सिर पर मालिश करने सिरदर्द दूर होता है, अथवा बार-बार होने वाला सिरदर्द शीघ्र नष्ट हो जाता है। इन्द्रायण के फलों का रस या जड़ की छाल के काढ़े के साथ तेल को पकाकर, छानकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम उपयोग करने से आधाशीशी, शिरशूल, पीनस, कर्णशूल और अद्धांगशूल नष्ट हो जाते हैं।
श्वास रोग में इन्द्रायण के फल को चिलम में रखकर गांजा के तरह पीने से श्वास रोग नष्ट होती है।
कास (खांसी) में इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें काली मिर्च भरकर छेद बंद कर धूप में सूखा लें या आग के पास भूमल में कुछ दिन तक पड़ा रहने दें, फिर फल को फेंक दे और काली मिर्च के 6 दाने प्रतिदिन शहद तथा पीपल के साथ प्रयोग करने से खांसी में लाभ होता हैं।
उदर विकार (पेट दर्द) में इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट का दर्द मिटते हैं। इन्द्रायण के फल में सैंधा अजवायन भर कर धूप में सूखा लें, इस अजवायन की गर्म जल के साथ फंकी लेने से दस्त लगके पेट की पीड़ा मिटती है।
मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की जलन) में इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीस छानकर 5-10 ग्राम की मात्रा में आवश्यकतानुसार पिलाने से मूत्र की रुकावट या पेशाब की जलन नष्ट होती है। लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला सभी की 15-20 ग्राम मात्रा को 150 मिलीलीटर जल में उबालकर चतुर्थाश शेष काढ़ा में मधु में मिलाकर सुबह-शाम उपयोग करने से पेशाब के सभी प्रकार के दोष मिटते हैं।
केश (बालों की सुंदरता) में इन्द्रायण के बीजों का तेल बालों में लगाने से बाल काले और सुंदर हो जाते हैं। इन्द्रायण की जड़ के 4-5 ग्राम चूर्ण का गाय के दूध के साथ सेवन करने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
अपस्मार (मिर्गी) में इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण का नस्य दिन में दो तीन बार प्रयोग करने से मिर्गी शीघ्र आराम मिलता है।
विसूचिका (हैजा) में इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म जल के साथ या 3-5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ प्रयोग करने से हैजा में लाभदायक होता है।
आंत्रकृमि (पेट के कीड़े) में इन्द्रायण के फल के गूदे को गर्म करके पेट पर बांधने से आँतों के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।
जलोदर (पेट में आधीक पानी भर जाना) इस दशा में इन्द्रायण के फल को गुदा तथा बीजों से खाली करके इन्द्रायण के छिलके की प्याली में बकरी का दूध भरकर पूरी रात रखा रहने दें। प्रातः काल इस दूध में थोड़ी सी खंड मिलाकर रोगी को पिला दें। कुछ दिन तक पिलाने से पेट का अधिक पानी समान्य हो जाता है। इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा तथा फल का गूदा खिलाना भी लाभदायक हैं। परन्तु सावधानीपूर्वक प्रयोग करना चहिए औषधि तेज है।
कर्णघाव में लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल तेल के साथ गर्म करके कान के अंदर के घाव पर लगाने से वह साफ़ होकर भर जाता हैं।
गांठ में इन्द्रायण की जड़ और पीपल के चूर्ण समभाग को गुड़ में मिलाकर 15 ग्राम की मात्रा में नित्य प्रयोग करने से गांठ बिखर जाती है।
बच्चों का डिब्बा रोग में इन्द्रायण की जड़ के एक ग्राम चूर्ण में 275 मिलीग्राम सैंधा नमक मिलाकर गर्म जल के साथ दिन में दो तीन बार सेवन करने से बच्चों का डिब्बा रोग में लाभ होता है।
प्लेग (महामारी) में इन्द्रायण की जड़ की गांठ को ठंडे जल में घिसकर प्लेग की गांठ पर दिन में दो तीन बार लेप करें और डेढ़ से तीन ग्राम तक की खुराक में उसे पिलाना भी चाहिए। इस प्रयोग से गांठ एक दम बैठने लगती हैं और दस्त की राह से महामारी का जहर निकल जाता हैं और रोगी की बेहोशी दूर हो जाती हैं।
विद्रधि (कखरवार) में लाल इन्द्रायण की जड़ और बड़ी इन्द्रायण की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर लेप बनाकर दुष्ट कखरवार पर लेप करने से कखरवार में लाभ होता हैं।
फोड़े-फुंसी सर्दी-गर्मी से जो नाक में ऐसे फोड़े हो जाते हैं, जिनमें से पीप निकलता हो, उस पर इन्द्रायण फल को नारियल तेल के साथ लगाने से नाक की फुंसी ठीक हो जाती हैं।
घाव में लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल तेल के साथ गर्म करके घाव के अंदर लगाने से वह साफ़ होकर शीघ्र भर जाता हैं।
उपदंश (एलर्जी) में 110 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 450 ग्राम एरंड तेल में पकायें जब तेल शेष मात्र रह जाये तो 15 ग्राम तेल गाय के दूध के साथ दिन में दो तीन बार उपयोग करने से शरीर के ऊपर के दाने लालिमा मिटते हैं। तेल को शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। इन्द्रायण की जड़ों के टुकडों को पांच गुने पानी में उबालें जब तीन हिस्से पानी शेष रह जाये तब छानकर उसमें बराबर बूरा मिलाकर शर्बत बनाकर पिलाने से उपदंश और वात पीड़ा मिटती हैं।
सर्पदंश में बड़ी इन्द्रायण के जड़ का 4 ग्राम चूर्ण को पत्ते में रखकर खाने से सर्प विष उत्तर जाता है।
सूजन में इन्द्रायण की जड़ों को सिरके में पीसकर गर्म करके सूजे हुए स्थान पर लेप करने से सूजन बिखर जाती हैं।
मस्तक पीड़ा में इन्द्रायण के फल का स्वरस या जड़ की छाल को तिल तेल में उबालकर तेल को मस्तक पर लेप करने से मस्तक पीड़ा मिटती हैं।
अधकपारी में इन्द्रायण के फलों का रस या जड़ की छाल के काढ़े के साथ तेल को पकाकर, छानकर 25 मिलीलीटर सुबह-शाम उपयोग करने से आधाशीशी, शिरशूल नष्ट होता हैं।
बिच्छू विष में इन्द्रायण के फल का 5 ग्राम गूदा खाने से बिच्छू का विष उतरता हैं:बिच्छू विष में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
दंतकृमि में इन्द्रायण के पके हुए फल की धूनी दांतों में देने से दांतों के कीड़े मर जाते हैं।
सफ़ेद बाल में इन्द्रायण के बीजों का लेल निकाल कर सिर के बाल मुंडवाकर सिर पर इस तेल का लेप करने से बाल काले उगने लगते हैं।
बाधिर्य (बहरापन) में इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबालकर, छानकर कान में 3-4 बून्द टपकाने से बहरापन मिटता हैं।
विरेचन (गुर्दा दोष) में इन्द्रायण की फल गुदा को पानी में उबालकर तत्पश्चात मलछानकर गाढ़ा करके उसकी छोटी-छोटी चने के बराबर गोलियां बना लें, इसमें से 2-2 गोली ठंडे दूध से प्रयोग करने से गुर्दा का दोष ठीक हो जाता हैं।
इन्द्रायण की समस्त भारतवर्ष में, विशेषतः बालुका मिश्रित भूमि में स्वयंजात वंयज या कृषिजन्य बेलें पाई जाती हैं। इन्द्रायण की तीन जातियाँ पाई जाती हैं :1. छोटी इद्रायण, 2. बड़ी इद्रायण एवं 3. लाल इद्रायण। हर प्रकार की इन्द्रायण में 50-100 तक फल लगते है।
इन्द्रायण की कली में कोलोसिंथिन तथा एक तरह का गोंद जैसा पदार्थ तथा कोलोसिंथिटिन, पैंटीन, गम तथा भस्म पाये जाते हैं। इन्द्रायण के बीजों में स्थिर तेल, एल्ब्युमिन तथा भस्म तीन प्रतिशत रहती हैं।
इन्द्रायण तीरवरेचक, कफ पित्तनाशक तथा कामला, प्लीहा, उदररोग, श्वास कास, कुष्ठ, गुल्म, गाँठ, व्रण, प्रमेह, गण्डमाला तथा विषरोग नाशक हैं। ये गुण छोटी बड़ी दोनों इन्द्रायण में पाये जाते हैं।
1. छोटी इन्द्रायण: ऐन्द्री, चित्रा, गवाक्षी, इंद्रवारुणी ये छोटी इन्द्रायण के संस्कृत नाम हैं। इन्द्रायण का वैज्ञानिक नाम हैं। इसकी आरोहिणी बेलों के पत्र साधारण, खंडित डंठलों में रोम होते हैं। पत्र वृन्त के निकट से पुष्प तथा एक लम्बा सूत्र निकलता हैं जो वृक्षों से लिपटकर बेल को आगे बढ़ने में सहायता करता हैं। पुष्प घंटाकार, पीतवर्णी, एकलिंगी, नर और मादा पुष्प अलग-अलग होते हैं। फल गोल।
2. बड़ी इन्द्रायण: महाफला, विशाला ये बड़ी इन्द्रायण के संस्कृत नाम हैं। इसकी लताएं अपेक्षा कृत बड़ी, पत्र-तरबूज के सदृश बहुखंडित, पुष्प-पीतवर्ण, फल 1-4 इंच व्यास के लम्बे व गोल, कच्चे फल में सफेद हरी धारियां दिखाई पड़ती हैं। छोटा रहने पर रोम व्याप्त रहता है और पकने पर धारियां स्पष्ट हो जाती है और फल का वर्ण नीलाभ हरित हो जाता हैं। फल मज्जा-लालवर्ण की तथा बीज पीत तथा कृष्ण वर्ण का होता हैं।
3. लाल इन्द्रायण: इन्द्रायण का वैज्ञानिक नाम है इन्द्रायण की बेल बड़ी इन्द्रायण की ही तरह होती हैं, परन्तु पुष्प सफ़ेद और फल पकने पर लाल रंग का नीबू की भाँती होता हैं।
इन्द्रायण का अधिक पयोग करने से गर्भिणी, स्त्रियों, बच्चों एवं दुर्बल व्यक्तियों में इन्द्रायण का प्रयोग यथा संभव नहीं अथवा सतर्कता से करना चाहिए। क्योंकि अधिक सेवन नुकसान दायक है।
इन्द्रायण का अधिक सेवन करने से आपको एलर्जी की समस्या हो सकती है।
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