हरड़ के गुण: हरड़ की दवाएं: बुखार, बवासीर, सफ़ेद दाग, अंडकोष की वृद्धि, दस्त, खुनी दस्त, पाचन शक्ति, पेशाब की जलन, सिरदर्द, दंतपीड़ा, नेत्ररोग, मोतियाबिंद, प्रमेह, विषमज्वर, रक्तपित्त,सूजन, घाव, पशुओं का थनैला रोग, श्वांस, खांसी, मुखरोग, मूर्छा, वमन, भूख न लगना, कब्ज, पीलिया, सन्निपात, हांथी पांव, ओजोविसृंस, कफ निष्कासनार्थ आदि बिमारियों के घरेलू इलाज एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है, हरड़ या हरीतकी के फायदे, नुकसान और औषधीय गुण Haritaki (Harad) Benefits And Side Effects In Hindi:-हरड़ (हरीतकी) के फायदे एवं सेवन विधि
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हरड़ फल में टैनिन 24-32 प्रतिशत, चेबुलेजिक एसिड तथा कोरिलेजिन, शर्करा, 18 अमीनो एसिड तथा अल्प मात्रा में फास्फोरिक, सक्सिनिक, कविनिक, एवं शिकिमिक अम्ल होते हैं। ज्यों-ज्यों फल पकता हैं टैनिन की मात्रा घटती जाती हैं और अम्लता बढ़ती जाती हैं। बीज मज्जा से एक पीले रंग का तेल निकलता है जो 36.4 प्रतिशत तक होता हैं। पेड़ से एक प्रकार का गोंद भी निकलता हैं।
हरीतकी को नमक के साथ कफ रोग को, शक्कर के साथ पित्त को, घृत के साथ वात-विकारों को और गुड़ के साथ सब रोगों को दूर करती हैं। जो रसायनार्थ हरीतकी का सेवन करना चाहते है, उन्हें वर्षा ऋतु में नमक से, शरद में शक्कर से, हेमंत में सौंठ से, शिशिर में पीप्पली के साथ, बसंत ऋतु में मधु के साथ और ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ हरड़ का सेवन करना चाहिये।
ज्वर (बुखार) में हरड़, नागरमोथा, नीम की छाल, पटोलपत्र, मुलहठी इनके काढ़ा को यथायोग्य मात्रा में हल्का गर्म पिलाने से बालकों के सम्पूर्ण ज्वर नष्ट होते हैं।
अर्श (बवासीर) में हरड़ के काढ़ा की पिचकारी मस्सों पर देने से बवासीर और योनिस्त्राव बंद हो जाता है।
कुष्ठ रोग (सफ़ेद दाग) के निवारण के लिये गोमूत्र अत्यंत श्रेष्ठ औषधि है। 20-50 मिलीलीटर गोमूत्र का 3-6 ग्राम हरड़ के साथ सुबह-शाम सेवन करने से निश्चय ही लाभ होता हैं। हरड़ तथा गुड़, मिर्च, तिल तेल, सौंठ, पीपल समभाग में एक माह तक सुबह-शाम सेवन करने से कुष्ठ रोग नष्ट हो जाता हैं।
अंडकोषवृद्धि में 5 ग्राम जवा हरड़ 1 ग्राम सैंधा नमक को 50 ग्राम एरंड के तेल और 50 ग्राम गोमूत्र में पकाकर तेल मात्र शेष रहने पर छानकर गर्म जल के साथ सुबह-शाम लेने से पुरानी अंडकोष वृद्धि रूकती हैं।
अतिसार (दस्त) जिस रोगी को अतिसार अथवा थोड़ा-थोड़ा रुक-रुक कर दर्द के साथ मलत्याग हो उसे बड़ी हरड़ तथा पीप्पली के 2-5 ग्राम चूर्ण को सुहाते गर्म जल के साथ सेवन करने से दस्त में लाभ होता है:दस्त में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
पाचन शक्ति में हरड़ के 3-6 ग्राम चूर्ण में बराबर मिश्री मिलाकर सुबह-शाम भोजनोपरांत सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती हैं।
मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की जलन) में हरीतकी, गोखरू, धान्यक, यवसा, पाषाण भेद समभाग लेकर 500 ग्राम जल में मिलाकर लें। 250 ग्राम रहने पर उतार लें, यह काढ़ा शहद में मिलाकर सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से पेशाब मूत्र मार्ग की जलन आदि में लाभ होता है।
शिरःशूल (सिरदर्द) में हरड़ की गुठली को पानी के साथ पीस कर लेप करने से आधाशीशी तथा मस्तक पीड़ा मिटती है। 10 बड़ी हरड़ की छाल को कूटकर जल में भिगोकर तीन दिन धूप में रखे, चौड़े दिन मसलकर छान लें, उसमें फिर 11 बड़ी हरड़ की छाल डालकर तीन दिन धूप में रख छानकर उसमें 500 ग्राम बूरा डाल कर शर्बत बनाके सेवन करने से मस्तक पीड़ा और पित्त के दोष मिटते है।
दन्त में हरड़ के चूर्ण को पीसकर मंजन करने से दांत साफ और निरोगी हो जाते हैं।
नेत्र में हरड़ को रातभर पानी में भिगोकर सुबह आँखे धोने से शीतल हो जाती है, और आंख के सभी प्रकार के रोग शीघ्र ठीक हो जाते है। हरड़ की मींगी को पानी में एक दिन तक भिगोकर, घिसकर अंजन करने से मोतियाबिंद रोग में लाभदायक होता है। हरड़ की छाल को पीसकर अंजन करने से नेत्रों से पानी का बहना बंद होता हैं।
प्रमेह में हरड़ के 2-5 ग्राम चूर्ण को 1 चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से प्रमेह नष्ट होता हैं।
विषमज्वर में हरड़ का 2-5 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से विषमज्वर उत्तर जाता है।
रक्तपित्त में हरड़ के 2-5 ग्राम चूर्ण को 1 चम्मच शहद और थोड़ी सी चीनी के साथ सेवन करने से रक्तपित्त रोग में लाभप्रद होता हैं।
शोथ रोग (सूजन) में हरड़ गुड़ मिलाकर सुबह-शाम सूजन वाले स्थान पर लेप करने से या पीड़ित व्यक्ति को खिलाना चाहिए। सूजन शीघ्र बिखर जाती है। हरड़, सौंठ और हल्दी समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से बुखार के बाद होने वाला सूजन दूर होता हैं।
घाव में फैले हुये घाव को हरड़ के काढ़ा से धोने से घाव सिकुड़ जाता हैं। तथा घाव में होने वाल दर्द और घाव शीघ्र भर जाता है। हरड़ की 1-2 ग्राम भस्म को 5-10 ग्राम मक्खन में मिलाकर घाव पर लेप करने से घाव लाभ होता है।
दग्ध (पशुओं का थनैल) में 5 ग्राम हरड़ को थोड़े पानी के साथ घिसकर उसमें क्षारोदक और अलसी का तेल बराबर मात्रा मिलाकर अग्नि से जले हुये या गर्म जल आदि से जले हुये घाव पर लेप करने से घाव जल्दी अच्छे हो जाते हैं।
श्वास में हरड़, मुनक्का, अंडूसा की पत्ती, छोटी इलायची, इन सब के बने काढ़ा में शहद और चीनी मिलाकर थोड़ा-थोड़ा दिन में दो तीन बार पिलाने से श्वास, कास और रक्त पित्त रोग शांत होता हैं। हरड़ और सौंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें, इसे मंदोष्ण जल के साथ 2-5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कास, श्वास और कामला का नाश होता हैं।
खांसी में हरड़ में इलायची, मुनक्का, इन तीनों को समभाग मिलाकर पीसकर कर सुबह-शाम गर्म जल के साथ नियमित सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
मुखरोग में 10 ग्राम हरड़ को आधा किलो पानी में उबालकर चतुर्थाश शेष काढ़ा में किंचित फिटकरी घोलकर केवल मुंह में धारण करने से शीघ्र ही मुख व कंठ में होने वाला रक्तस्त्राव शांत हो जाता हैं।
मूर्च्छा (बेहोशी) में हरड़ के काढ़ा से सिद्ध किये हुये घी का सेवन करने से मद और मूर्च्छा बेहोशी में लाभदायक होता हैं।
छर्दि (उल्टी) में हरड़ के चूर्ण को शहद में मिलाकर प्रातः-शाम सेवन करने से उल्टी में आराम मिलता हैं यह योग पित्तज वमन बहुत उपयोगी हैं।
मंदग्नि (भूख न लगना) 2 ग्राम हरड़ तथा 1 ग्राम सोंठ को गुड़ अथवा 250 मिलीग्राम सैंधा नामक के साथ सेवन करने से भूख खुल कर लगने लगती है। हरड़ का मुरब्बा मंदाग्नि व आमातिसार में लाभदायक होता हैं। यदि प्रातः काल अजीर्ण की शंका हो तो हरड़, सौंठ तथा सैंधा नमक का 2-5 ग्राम चूर्ण शीतल जल के साथ खायें, परन्तु दोपहर और सांयकाल भोजन थोड़ी मात्रा में करें। हरड़, सैंधा नमक, पीप्पली, चित्रक इन्हें समभाग में मिश्रित कर चूर्ण के 1 से 2 ग्राम की मात्रा में गर्म जल के साथ सेवन करने से मंदाग्नि में लाभ होता हैं। इनके सेवन से घी, मांस और नये चावलों का ओदन शीघ्र पच जाता हैं।
बद्धकोष्ठता (कब्ज) में हरड़ सनाय और गुलाब के गुलकंद की गोलियां बनाकर खाने से कब्ज मिटता हैं। छं हरड़ और साढ़े तीन ग्राम दालचीनी या लौंग को 100 ग्राम जल में 10 मिनट तक उबालकर, छानकर खाली पेट पिलाने से कब्ज नष्ट हो जाता हैं।
कामला (पीलिया) में लौह भस्म, हरड़, हल्दी को समभाग में मिलाकर 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम हरड़ को गुड़ और शहद के साथ सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से पीलिया रोगी को शीघ्र आराम मिलता है।
सन्निपात ज्वर में हरड़, हींग, पीपल और सौंठ बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 500 मिलीग्राम की मात्रा में बिजौरे निम्बू के रस में मिलाकर सेवन करने से सन्निपात ज्वर में लाभ होता हैं।
श्लीपद रोग (हांथी पांव) में 10 ग्राम हरड़ को 50 ग्राम एरंड के तेल में पकाकर 6 दिन पीने से हांथी पांव रोग नष्ट हो जाता है
ओजोविसर्न्स में हरड़, अनार का छिलका, शतपुष्पा, आंवला, बबूल की छाल, इनके काढ़ा को 20 से 30 मिली सुबह-शाम पीने से अत्यंत बढ़ा हुआ ओजोविसर्न्स निश्चय ही नष्ट होता हैं।
कफ निष्कासनार्थ में कफ को निकालने में हरड़ का चूर्ण बहुत अच्छा है। हरड़ चूर्ण की 2-5 ग्राम की मात्रा में नित्य सेवन करने से कफ निष्कासनार्थ में लाभ होता है।
हरड़ के वृक्ष का तना बहुत लम्बा और 8-12 फुट तक मोटा होता हैं। छाल गहरे भूरे रंग, पत्ते – 3-8 इंच लम्बे 2-3 इंच चौड़े, लट्वाकार या अंडाकार तथा पत्र वृन्त के शीर्ष भाग पर दो बड़ी ग्रंथियां होती हैं। पत्र शिराये 6-8 जोड़ी होती हैं। फूल छोटे, पीताभ-श्वेत, लम्बी मंजरियों में लगते हैं। फल 1-2 इंच लम्बे, अंडाकार, फलों के पृष्ठ भाग पर पांच रेखायें पाई जाती हैं जो फल कच्ची अवस्था में गुठली पड़ने से पहले तोड़ लिये जाते हैं, वही छोटी हरड़ के नाम से जाने जाते हैं। इनका रंग स्याह पीला होता हैं। जो फल प्रौढ़वस्था अर्थात अर्धपक्व अवस्था में तोड़ लिये जाते हैं, उनका रंग पीला होता हैं। पूर्ण परिपक्व अवस्था में इसके फल को बड़ी हरड़ कहते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। फरवरी-मार्च में पत्तियां झड़ जाती हैं। अप्रैल-मई में नये पल्ल्वों के साथ पुष्प लगते हैं तथा फल शीतकाल में लगते हैं। पक्व फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल तक करते हैं।
हरड़ के गुण/ गुन/गुर: यह रूखी, गर्म, हल्की, मधुर पाक वाली, त्रिदोष हर हैं। यह मधुर तिक्त कषाय होने से पित्त, कटुतिक्तकषाय होने से कफ तथा अम्ल मधुर होने से वात का शमन करता हैं। इस प्रकार यह त्रिदोष-हर हैं। प्रभाव से यह वात प्रकोप नहीं करती, इसलिये त्रिदोष-हर हैं। यह रूखी गर्म उद्राग्नि वर्धक, बुद्धि को बढ़ाने वाली, नेत्रों के लिये लाभकारी, हल्की, आयुवर्द्धक, शरीर को बल देने वाली तथा वात को शांत करने वाली हैं। यह श्वास, कास, प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, सूजन, उदर रोग, कृमिरोग, स्वर भंग, ग्रहणी, विबंध, गुल्म, आध्मान, व्रण, थकान, हिचकी, कंठ और हृदय के रोग, कामला, शूल, आनाह, प्लीहा व यकृत के रोग, पथरी, मूत्रकृच्र और मूत्रघातादि रोगों को दूर करती हैं। हरड़, देवदारु, हल्दी यह सब दोषों का पाचन करने वाला है। हरड़ कफ पित्तनाशक हैं। प्रमेह कुष्ठ को नष्ट करता हैं। आँखों के लिये हितकारी है। हरड़, आंवला, पीप्पली यह सब ज्वरों को नष्ट करने वाले है। आँखों के लिये हितकारी, अग्निदीपक व्रण कफ एवं अरुचि को नष्ट करता हैं। हरड़ का फल व्रण के लिये हितकारी, उष्ण, सर, मध्य, दोषनाशक, शोथ, कुष्ठनाशक, कषाय, अग्निदीपक अम्ल तथा आँखों के लिये हितकारी हैं। हरड़ का चूर्ण नीम के पत्ते, आम की छाल, अनार पुष्प की कली, मेहँदी के पत्ते, इनका उबटन राजाओं के योग्य अंगराज हैं।
हरड़ का वृक्ष पर्वत प्रदेशों और जंगलों में 5,000 फुट की ऊंचाई तक पाया जाता हैं। मूलतः निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल, असम तथा देश के ऊँचे वनों में पाया जाता हैं। इसका वृक्ष 80-100 फुट तक ऊंचा और काफी मोटा होता हैं। संहिताओं में हरड़ को सात प्रकार की कहा गया हैं। वर्तमान में यह तीन प्रकार की ही मिलती हैं। जिसको लोग अवस्था भेद से एक ही वृक्ष मानते है परन्तु यह सत्य नहीं हैं।
जो मनुष्य मार्ग चलने से थका हुआ हो दुर्बल व रुक्ष हो, कृशकाय हो या ना खाने से दुर्बल हो गया हो, अधिक पित्त वाला हो, जिसका खून अधिक निकल गया हो तथा गर्भवती स्त्री को इन सभी को हरड़ का सेवन नहीं करना चाहिये।
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