हल्दी की दवाएं:- गंठिया, बुखार, बवासीर, कैंसर, वजन घटाने, स्तनरोग, योनि रोग, सफ़ेद पानी, कफज प्रमेह, प्रमेह, त्वचा कोमल, चेहरे की कोमलता, खांसी, जुखाम, पेट दर्द, दस्त, चर्मरोग, कर्णरोग, नेत्ररोग, पीलिया, पायरिया, चोट-मोच, घाव, जीर्णज्वर, प्लीहा, यकृत वृद्धि दाद, खुजली, फोड़ा, चर्मरोग, सूजन, स्वरभेद, वातरक्त आदि बिमारियों के इलाज में घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Haldi Benefits And Side Effects In Hindi.हल्दी के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि:
हल्दी में एक उड़नशील तेल 5-8 % होता हैं। हल्दी का मुख्य कार्यशील घटक कुकुर्मिन नामक यौगिक सुगंधित तेल टर्मरिक ऑयल तथा टर्पीनाइड पदार्थ है। इनके पतिरिक्त विटामिन ए. प्रोटीन 6.3 प्रतिशत, स्नेह द्रव्य 5.1 प्रतिशत, खनिज द्रव्य 3.6 प्रतिशत तथा कार्बोहाइड्रेट 69.4 प्रतिशत में पाये जाते है।
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गठिया रोग में दारू हल्दी की शाखाओं का 10-20 ग्राम काढ़ा पीने से पसीना और विरेचन होकर गठिया की पीड़ा शांत होती है। दारु हल्दी की जड़ का सूखा सत्व बच्चों को विरेचन में दिया जाता हैं। दुखती हुई आँख पर भी हल्दी के सत्व का लेप करने से आँख में सूर्य के देखने से जो आँख की ज्योति घट जाया करती हैं। बाह हल्दी के लेप से ठीक हो जाती हैं।
ज्वर (बुखार) में दारु हल्दी की जड़ की छाल में बहुत सा कड़वा सत्व होता हैं। इसलिये अंतराल से आने वाले ज्वर को नष्ट करने में काम आती हैं।
अर्श (बवासीर) में सेहुंड के दूध में 10 ग्राम हल्दी मिलाकर लेप करने से बवासीर नष्ट हो जाते हैं तथा अर्श पर कड़वी तुरई के चूर्ण के घर्षण करने से अर्श के अंकुर (मस्से) गिर जाते हैं। सरसों के तेल में हल्दी तथा ‘घोष लता’ के समभाग चूर्ण को मिलाकर लेप करने से बवासीर नष्ट हो जाती हैं।
कैंसर में हल्दी में कैंसररोधी गुण पाये जाते हैं। 150 से 200 मिलीग्राम हल्दी का प्रतिदिन सेवन करने से कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है। कैंसर के मरीजों को हल्दी का सेवन करने से उनके इम्यून सिस्टम के रसायन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में सक्षम होती है। हल्दी कैंसर को बढ़ने से रोकता है और कीमोथेरेपी को अधिक प्रभावी बनाने में मदद करता है। तथा कीमोथेरेपी कैंसर में लाभदायक होता है।
वजन घटाने में हल्दी का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि हल्दी लीवर के लिए भी फायदेमंद होता है। हल्दी में मौजूद कुरकुमिन नाम का यौगिक कोलेस्ट्रॉल को कम करता है तथा यह मांसपेशियों के मसाज के रूप में प्रयोग किया जाता है जब शरीर में किसी तरह का सूजन नहीं होती है तो वजन घटाना अपने आप काफी कम हो जाता है।
स्तन रोगों में हल्दी का सूखा कंद एवं लोध पानी में घिसकर स्तन पर लेप करने से स्तन के सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते है।
प्रदर (सफ़ेद पानी) में हल्दी का चूर्ण तथा गुग्गुल का चूर्ण समभाग मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से सफ़ेद प्रदर में लाभ होता हैं। हल्दी का चूर्ण दूध में उबालकर एवं गुड़ मिलाकर सेवन करने से सफ़ेद पानी में लाभ होता हैं।
कफज प्रमेह में हल्दी, दारु हल्दी, तगर बायविंड द्वारा बने काढ़ा को 50-60 ग्राम की मात्रा में लेकर 10 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कफज प्रमेह नष्ट होता हैं।
प्रमेह में 5 ग्राम हल्दी को आंवले के रस तथा शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेहों में लाभ होता हैं।
पांच ग्राम हल्दी और नीम की पत्तियों के ग्राम चूर्ण को मक्खन में मिलाकर लेप करने से त्वचा कोमल और कांतिवान हो जाती है, तथा इसके प्रयोग से चेहरा निखर जाता है।
चेहरे को कोमल एवं स्वफ्ट रखने में हल्दी शहद को बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम तथा दोपहर नियमित सेवन करने से चेहरे पे निखार आ जाता है।
कण्डू रोग में 5 ग्राम हल्दी और नीम की पत्तियों के 20-30 ग्राम चूर्ण को मक्खन में मिलाकर लेप करने से कण्डू रोग नष्ट हो जाते हैं। दूब तथा हल्दी को एक साथ पीसकर लेप करने से कण्डू पामा, दाद एवं शीत पित्त नष्ट होता हैं।
खासी में हल्दी को भूनकर इसका 1-2 ग्राम चूर्ण शहद अथवा घी के साथ सोते समय चटाने से खासी में लाभ होता हैं।
जुकाम में जुकाम में हल्दी के धुंए को रात के समय सूंघते रहने से, उसके बाद कुछ देर तक पानी नहीं पीने से जुखाम में जल्दी लाभ होता है।
उदरशूल (पेट दर्द) में हल्दी की जड़ की 10 ग्राम छाल को 250 ग्राम पानी में उबालकर गुड़ मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पेट दर्द में आराम मिलता है।
अतिसार (दस्त) में दारु हल्दी की जड़ की छाल और सोंठ बराबर लेकर चूर्ण बनाकर 2-5 ग्राम की मात्रा में दिन में दो तीन बार फंकी देने से दस्त आना बंद हो जाता है।
कर्णस्राव में कान से पूय निकलता हो तो हल्दी और फिटकरी का फूला 1:20 के अनुपात के परिमाण में मिलाकर, दिन में दो तीन बार 2-2 बून्द कान में डालने से पुराना से पुराना कान का पूय निकलना बंद हो जाता है। तथा कान के सभी प्रकार के रोग शीघ्र ठीक हो जाते है।
नेत्राभिष्यन्द में 1ग्राम हल्दी 25 मिलीलीटर पानी में उबालकर छानकर आँख में दो तीन बार डालने से आँख की जलन दर्द कम होती है। हल्दी के काढ़ा से रंगे हुये कपड़े का प्रयोग नेत्राच्छादन के लिये किया जाता हैं।
कामला (पिलाया) में 6 ग्राम हल्दी चूर्ण को मटठे में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से 4-5 दिन में पीलिया रोग शांत हो जाता हैं। पीलिया रोग में 12 ग्राम हल्दी का चूर्ण 50 ग्राम दही में मिलाकर सेवन करने से पीलिया में लाभ होता हैं। लौह भस्म, हरड़, हल्दी इनको समभाग में मिलाकर 375 मिग्रा घी एवं शहद से अथवा केवल हरड़ को गुड़ और शहद के साथ चाटने से पीलिया रोग नष्ट हो जाता है।
पायरिया में सरसों का तेल, हल्दी तथा सैंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम मसूड़ों पर लगाकर अच्छी प्रकार लेप करने तथा बाद में गर्म पानी से कुल्ले करने पर मंसूड़ों के सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। तथा मुख से आने वाली दुर्गंध भी दूर हो जाती है।
चोट-मोच में हल्दी, चुना और सरसों का तेल मिलाकर लेप करने से चोट-मोच में लाभ होता हैं। चोट के कारण उत्पन्न शोथ ठीक हो जाता है।
घाव में हल्दी और चुना तथा सरसों का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम घाव पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।
जीर्णज्वर में दारू हल्दी की जड़ का 10-20 ग्राम काढ़ा पिलाने से निरंतर रहने वाला ज्वर शांत हो जाता हैं। यह काढ़ा प्लीहा और यकृत वृद्धि में भी लाभ आराम मिलता हैं।
प्लीहा रोग में दारू हल्दी की जड़ का पांच दस ग्राम का काढ़ा निरंतर पिलाते रहने से प्लीहा रोग ठीक हो जाता है।
यकृत वृद्धि में दारू हल्दी की जड़ का काढ़ा पन्दह बीस ग्राम की मात्रा में सेवन करने से यकृत वृद्धि में लाभ होता है।
दाद रोग में दूब तथा हल्दी को एक साथ पीसकर लेप करने से दाद का शीघ्र पतन हो जाता है।
खुजली में हल्दी के 2-5 ग्राम चूर्ण को गोमूत्र के साथ दिन में दो तीन बार सेवन करने से खुजली में लाभ होता है, हल्दी के चूर्ण को मक्खन में मिलाकर रोग-ग्रस्त भाग पर इसका लेप करने से या 5 ग्राम हल्दी के साथ 2 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खुजली नष्ट हो जाती है।
फोड़ा में हल्दी और सरसों के तेल को खरल करके शहत शहत लेप करने से फोड़ा धीरे-धीरे सूख जाता है।
चर्मरोग में हल्दी के 2-5 ग्राम चूर्ण को गोमूत्र के साथ दिन में दो तीन बार सेवन करने से चर्मरोग में शीघ्र लाभ होता हैं। हल्दी के चूर्ण को मक्खन में मिलाकर रोग-ग्रस्त भाग पर इसका लेप करने से चर्मरोग शीघ्र नष्ट हो जाता है।
शोथ (सूजन) में हल्दी, पाठा, सौंठ, छोटी कटेरी, जीरा, पीप्पली, चित्रकमूल, पीप्पला मूल, मोथा को समभाग मिलाकर इसके कपड़छन चूर्ण को मिलाकर रख लें। इस चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सूजन तथा चिरकाल जनित सूजन का विनाश होता हैं।
स्वरभेद में अजमोदा, हल्दी, आंवला, यवक्षार, चित्रक इनके 2-5 ग्राम चूर्ण को 1 चम्मच शहद के साथ चाटने से स्वर भेद भी दूर होता हैं।
वातरक्त में हल्दी, धात्री, नागरमोथा, इनके 100 ग्राम काढ़ा को शीतल होने पर 1 चम्मच शहद मिलाकर कफ प्रधान वातरक्त रोगी को दिन में दो बार पिलाने से वातरक्त नष्ट हो जाता है।
रसोई घर में प्रयोग होने वाले मसालों में हल्दी अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। कोई भी मांगलिक कार्य बिना हल्दी के पूरा नहीं होता हैं। सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका इस्तेमाल होता हैं। हल्दी की कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं।
1. Curcuma longa: मसालों में इसका प्रयोग करते हैं।
2. Curcuma aromatic इसके कंद और पत्तों में कपुरमिश्रित आम्र की तरह गंध होती हैं। इसीलिये इसे आमाहल्दी (Mango ginger) कहा जाता हैं।
3. Curcuma zedoaria : यह बंगाल में बहुत पाई जाती हैं। यह रंगने के काम आती हैं। इसको जंगली हल्दी भी कहते हैं।
4. Berberis aristata : यह दारू हरिद्रा के नाम से प्रसिद्ध है और यह हल्दी के समान गुणवाली हैं। इसके क्वाथ में बराबर का दूध डालकर पकाते हैं। जब वह चतुर्थाश रहकर गाढ़ा जो जाता हैं। तब उसे उतार लेते हैं। इसी को रसांजन या रसोत कहते हैं। यह नेत्रों के लिये परम् हितकारी हैं।
सामान्य प्रयोग में जाने वाली हल्दी के पौधे 2-3 फुट ऊँचे, पत्ते लम्बे भालाकार बॉस के पत्तों की तरह व कुछ-कुछ केले के पत्तों की तरह होते हैं। पत्रों में आम के समान गंध आती हैं। पुष्प पीट वर्ण थोड़ी संख्या में पुष्प दंड लम्बा होता हैं। इसमें भूमिगत अदरक के समान पीले रंग के कंद पाये जाते हैं। जिनका रंग अंदर से लाल या पीला होता है भूमिगत कंदों पर मूल व पर्णवृंतों के चिन्ह पाये जाते हैं। कंदों को उबालकर फिर सूखा लिया जाता हैं। इसे ही हल्दी कहते हैं तथा यही मसाले के रूप में प्रयोग में लाई जाती हैं।
उष्ण वीर्य होने के कारण यह कफवात शामक, पित्तरेचक तथा वेदना स्थापन हैं। तिक्त होने के कारण पित्तशामक, कफध्न, रक्त प्रसादं, रक्तवर्धक एवं रक्त स्तम्भन हैं। यह रुचिवर्धक तथा अनुलोमन हैं। मूत्र संग्रहणीय एवं मूत्र विरंजनीय हैं। प्रमेह के लिये यह श्रेष्ठ हैं। इसका लेप शोथहर, वेदनास्थापन, वर्ण्य, कुष्ठघ्न, व्रणशोथन, वरारोपण, लेखन है। इसका प्रयोग कफ विकार, यकृत विकार, रक्त विकार, अतिसार, प्रतिश्याय, प्रमेह, कामला, चर्मरोग एवं नेत्राभिष्यन्द में किया जाता हैं। तथा हल्दी, दारुहल्दी, मुस्ता, यह सब आम अतिसार नाशक खासकर दोषों का पाचन करने वाले है। हल्दी, दारुहल्दी, आंवला, बहेड़ा यह सब मुस्तादिगण कफ नाशक है। योनिदोष नाशक, दूध का शोधन करने वाल और पाचन हैं। हल्दी, दारुहल्दी, निम्ब, त्रिफला यह सब तिक्त मधुर रस, कफ पित्तरोगों को नष्ट करने वाले कुष्ठ कृमिनाशक एवं दूषित व्रण के शोधक हैं।
गर्भावस्था के समय हल्दी का सेवन करने से यह मासिक धर्म और गर्भाशय को उत्तेजित करने लगता है इसलिए गर्भावस्था के समय हल्दी का अधिक सेवन नहीं करना चहिए।
अधिक हल्दी के सेवन से गुर्दे की पथरी हो सकता है इसलिए पथरी के रोगी को हल्दी का प्रयोग करने से पहले अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह लेनी चहिए।
हल्दी का अधिक सेवन करने से जी चक्कर आना, मिचलाना और दस्त की समस्या बढ़ सकती है।
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