गुड़हल फूल की दवाएं:- बुखार, सफ़ेद दाग, गर्भधारण, गर्भ निरोधक, सफ़ेद पानी, सुजाक, योनि शक्ति, पुरुषार्थ, बलसंवृद्धि, खून की कमी, बवासीर, गंजापन, खांसी, बेहोशी, चमकीले बाल, लम्बे बाल, मुंह के छाले, खुनी दस्त, सूजन, दर्द, शिरदर्द, जी मिचलाना, चक्कर, नकसीर, नेत्र की जलन, अरुचि, छाती की जलन, पागलपन, निद्रानाशक, लू लगना, ह्रदय रोग, दारुणरोग, उपदंश, रक्तप्रदर, आदि बिमारियों के इलाज में गुड़हल के घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Gudhal Phoole Benefits And Side Effects In Hindi.गुड़हल फूल के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि
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गुड़हल के पुष्प में लौह, कैल्शियम, फास्फोरस, थियामीन, राइबोफ्लेविन नियासिन व विटामिन सी अल्पमात्रा में होता है। गुड़हल के पत्तों में थोड़ी मात्रा में कैरोटिन पाया जाता है।
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बुखार में गुड़हल के 100 पुष्प लेकर शीशी की बरनी में डालकर 15 नीबू निचोड़ कर ढक दें। रात भर रखने के बाद, प्रातः काल मसलकर कपड़े में छानकर रस निकाल लें। स्वरस में 800 ग्राम मिश्री 200 ग्राम गुले गाजबांन का अर्क 180 ग्राम मीठे अनार का रस 150 ग्राम संतरे का रस मिलाकर धीमी आंच पर पकायें। जब चासनी गाढ़ा हो जाये तो उतारकर 220 मिलीग्राम कस्तूरी अंबर 3 ग्राम केसर तथा गुलाब अर्क मिलाकर अच्छी तरह हिलायें। इसके बाद सुबह-शाम तथा दोपहर नियमित रूप से सेवन करने से सभी प्रकार के बुखार शीघ्र नष्ट हो जाते है।
श्वित्र रोग (सफ़ेद दाग) में गुड़हल के चार पुष्प सुबह-शाम 2 वर्ष तक लगातार सेवन करने से सफ़ेद दाग जड़ से नष्ट हो जाता है।
गर्भधारण में सफ़ेद गुड़हल की जड़ को गाय के दूध में पीसकर उसमें बिजौरा नींबू के बीज का महीन चूर्ण मिलाकर, मासिक धर्म के समय पिलाने से गर्भधारण होता है। इसके अलावा गुड़हल का मूल और फूलों का 30-40 मिलीलीटर काढ़ा प्रातः काल पिलाते रहने से गर्भ स्थित और बालक का विकास होता है।
गर्भ निरोधक में गुड़हल के पुष्पों को कांजी गाजर में पीसकर 40 ग्राम तक पुराना गुड़ मिलाकर मासिक धर्म के समय तीन दिन तक लगातार सेवन करने से स्त्री गर्भधारण नहीं करती।
प्रदर रोग (सफ़ेद पानी) में गुड़हल की 4-6 कलियों को घी में तलकर प्रातः एक सप्ताह तक नियमित मिश्री के साथ खाने तथा गाय का दूध पीने से सफ़ेद पानी में आराम होता है। गुड़हल के मूल के चूर्ण में समभाग कमल मूल चूर्ण व सफ़ेद सेमल की छाल का चूर्ण मिलाकर 4 से 6 ग्राम तक जल के साथ सेवन करने से सफ़ेद पानी में लाभ होता है। गुड़हल के पुष्पों को घी में तलकर बूरा के साथ खिलाने से रक्त प्रदर नष्ट होता है।
सुजाक (योनि रोग) में गुड़हल की 11 पत्तियों को साफ़ जल में पीस-छानकर उसमें यवकक्षार 10 ग्राम व मिश्री 20 ग्राम मिलाकर सुबह-शाम पीने से अनोखा लाभ होता है। प्रथम दिन 1 पुष्प, दूसरे दिन दो पुष्प तथा पांचवें दिन 5 पुष्प, बतासे या मिश्री के साथ खायें। फिर 1-1 फूल घटाते हुए दसवें फूल खायें तथा पथ्य और परहेज से रहें।
स्मरण शक्ति (योनि शक्ति) में गुड़हल के फूलों और पत्रों को सुखाकर समभाग पीसकर मिलाकर शीशी में भर लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम एक कप गाय के मीठे दूध के साथ नियमित रूप से सेवन करने से योनिशक्ति में वृद्धि होती है।
पुरुषार्थ में गुड़हल के छाया शुष्क पुष्पों या पत्तों के चूर्ण में समभाग शक्कर मिलाकर 35 दिन तक 6 ग्राम की मात्रा लगातार पिलाने से पुरुषार्थ बढ़ता है।
बलसंवृद्धि में गुड़हल के सूखे फूलों का एक-एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से एक दो माह में रक्त की कमी दूर होकर शारीरिक स्फूर्ति व बलवृद्धि हो जाती है।
रक्ताल्पता (खुनी कमी) में गुड़हल के सूखे फूलों का एक-एक चम्मच चूर्ण, एक गिलास गाय का दूध के साथ सुबह-शाम नित्य सेवन करते रहने से कुछ ही माह में रक्त की कमी दूर होकर शारीरिक फुर्तीली हो जाती है।
अर्श (बवासीर) में गुड़हल की कलियों को घी में भून कर उसमें मिश्री व नागकेशर मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
इन्द्रलुप्त (गंजापन) में काली गाय के मूत्र में गुड़हल के फूलों को पीसकर बालों पर लेप करने से बाल बढ़ते हैं। तथा गंजापन दूर होता है। गुड़हल के पत्तों को पीसकर लुगदी बनाकर बालों में लगा लें। दो घंटे बाद बाल धोकर साफ़ कर लें। इसका प्रयोग को नियमित रूप से करते रहने से न केवल बालों को पोषण मिलता है, बल्कि सिर में शीतलता का भी अनुभव होता है।
खांसी में गुड़हल की जड़ का चूर्ण पानी के साथ पीसकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से दोनों प्रकार की खांसी में लाभकारी होता है।
बेहोशी आने पर गुड़हल के 100 फूल लेकर पंखुड़ियों को नीबू के साफ रस में रात्रि में किसी खुले स्थान पर कांच के बरनी में मुंह बंद करके भिगोकर दें। प्रातः मसल छानकर इसमें 600 ग्राम मिश्री या शक्कर तथा 1 बोतल उत्तम गुलाब जल मिलाकर बंद कर धूप में 2 दिन तक रख दे। मिश्री अच्छी तरह घुल जाने पर शर्बत बन जाता है। 15 से 30 मिलीलीटर तक की मात्रा पिलाने से बेहोशी में शीघ्र लाभ होता है।
चमकीले बालों के लिए गुड़हल के ताजे फूलों के रस में समभाग जैतून का तेल मिलाकर आग में पका लें। जब केवल तेल शेष रह जाये तो शीशी में भरकर रख लें। प्रतिदिन बालों में मल कर जड़ो तक लगाने से बाल चमकीले होते है।
लम्बे बालों के लिए गुड़हल के फूल और भृंगराज के फूल भेड़ के दूध में पीसकर मिलाकर लोहे के पात्र में रखें, सात दिन बाद निकालकर भृंगराज के पंचांग के स्वरस में मिलाकर रात को गर्म कर बालों में लगायें। प्रातः सिर धोने से बाल काले और लम्बे हो जाते हैं।
मुंह के छाले में गुड़हल की जड़ को साफ़ कर धोकर एक-एक इंच के टुकड़ों में काट कर रख लें। दिन में 3-4 बार एक-एक टुकड़ा चबाकर राल थूकते जायें। एक दो दिन में ही छाले फुट कर नष्ट हो जाते है।
खुनी दस्त में गुड़हल की कलियों को घी में तलकर उसमें मिश्री व नागकेशर मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खुनी दस्त में लाभ होता है।
सूजन में गुड़हल के पत्तों को पानी में पीसकर गाढ़ा लेप सूजन पर लेप करने से सूजन और दर्द में आराम मिलता है।
दर्द में गुड़हल के 90 पुष्प लेकर शीशी की बरनी में डालक 15 नीबू निचोड़ कर ढक दें। रात भर रखने के बाद प्रातः काल मसलकर कपड़े में छानकर रस निकाल लें। रस में 450 ग्राम मिश्री, 210 ग्राम गुले गाजबांन का अर्क, 150 ग्राम मीठे अनार का स्वरस 200 ग्राम संतरे का स्वरस में मिलाकर धीमी आंच पर पकायें। जब चासनी गाढ़ी हो जाये तो उतारकर 250 मिलीग्राम कस्तूरी अंबर 3 ग्राम केसर तथा गुलाब अर्क मिलाकर अच्छी तरह हिलायें। यह शर्बत सभी प्रकार के दर्द में गुणकारी होता है।
जी मिचलाना में गुड़हल के 100 फूल लेकर हरे डंठल को दूर कर पंखुड़ियों को नीबू के साफ रस में रात्रि भर किसी खुले स्थान पर कांच के बर्तन में मुंह बंद कर भिगोकर रख दें। प्रातः मसल छानकर इसमें 550 ग्राम मिश्री या खंड 1 बोतल उत्तम गुलाब जल मिलाकर दो बोतलों में बंद कर धूप में दो दिन तक हिलाते रहें। मिश्री अच्छी तरह घुल जाने पर शर्बत बन जाता है। 15 से 40 मिलीलीटर तक की मात्रा सेवन करने से जी मिचलाना बंद हो जाता है।
चक्कर आने पर गुड़हल के 100 फूल, कलियाँ तथा पंखुड़ियों को नीबू के रस में रात भर खुले स्थान में कांच की बरनी में मुंह बंद कर दें। प्रातः पीस छानकर इसमें 650 ग्राम मिश्री या खंड अथवा एक बोतल शुद्ध गुलाब जल मिलाकर बंद कर धूप में दो तीन दिन तक धुप में रख दें। 15 से 35 मिलीलीटर तक की मात्रा पीते रहने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
नकसीर (नाक से खून का आना) गुड़हल के 100 फूल कलियों को नीबू के शुद्ध रस में रात भर खुली जगह पर कांच के बर्तन में मुंह बंद कर रख दें। प्रातः मसल छानकर इसमें 650 ग्राम मिश्री या शहद 1 बोतल स्वच्छ गुलाब जल मिलाकर बंद कर धूप में 2-4 दिन तक रख दे। उसके बाद 20 से 40 मिलीलीटर तक की मात्रा सेवन करने से नकसीर (नाक) से खून का आना बंद हो जाता है।
आँख की जलन में गुड़हल के 95 फूल को लेकर उसमें गुड़हल की पंखुड़ियों को नीबू के रस के साथ रात भर किसी खुले स्थान में कांच की बरनी में मुंह बंद कर रख दें। प्रातःकाल पीस छानकर इसमें 600 ग्राम मिश्री या खंड 1 बोतल शुद्ध गुलाब जल मिलाकर बंद कर धूप में रख दें। उसके बाद 25 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में नित्य सेवन करने से आँख की सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते है।
अरुचि (भूख न लगना) गुड़हल के 100 फूल तथा पंखुड़ियों को नीबू के स्वच्छ स्वरस में रात भर किसी खुले स्थान पर कांच के बर्तन में मुंह बंद कर रख दें। प्रातः कॉल पीसकर छानकर इसमें 650 ग्राम मिश्री व खंड 1 बोतल शुद्ध गुलाब जल मिलाकर बंद कर धूप में दो तीन दिन तक रख रहे। उसके बाद 15 से 40 मिलीलीटर की मात्रा नियमित पिलाते रहने से खुलकर भूख लगती है।
छाती की जलन में गुड़हल के की जड़ को 100 फूल में मिलाकर पीस छानकर धुप में रख दे। उसके बाद एक बोतल शुद्ध गुलाब जल मिलाकर पंद्रह से बीस मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने से या छाती पर लेप करने से छाती की जलन दर्द, शीघ्र नष्ट हो जाते है।
पागलपन में गुड़हल के 100 पुष्प लेकर शीशी की बरणी में डालकर 20 नीबू निचोड़ कर ढक दें। रात भर रखने के बाद, प्रातः काल मसलकर कपड़े में छानकर रस निकाल लें। रस में 700 ग्राम मिश्री 200 ग्राम गुले गाजबांन का अर्क 220 ग्राम मीठे अनार का रस 200 ग्राम संतरे का रस मिलाकर धीमी आंच पर पका ले। जब चाशनी बन जाए तो उतारकर 250 मिलीग्राम कस्तूरी, केसर तथा गुलाब जल मिलाकर अच्छी तरह पकाएं इसका प्रयोग करने से पागलपन में लाभ होता है।
निद्रानाशक में नीबू के शुद्ध स्वरस में गुड़हल की पंखुड़ियों को रात्रि में किसी खुले स्थान पर कांच के बर्तन में मुंह बंद कर रख दें। प्रातः कॉल पीस छानकर इसमें 650 ग्राम मिश्री गुलाब जल मिलाकर बंद कर धूप में दो दिन तक रख दें। इसके बाद 30 से 40 मिलीलीटर की मात्रा सेवन करने से नींद का अधिक आना बंध हो जाता है।
लू में गुड़हल के 80 फूल लेकर, हरे डंठल को दूर कर पंखुड़ियों को नीबू के साफ रस में रात्रि में किसी खुले स्थान पर कांच के बर्तन में मुंह बंद कर भिगोकर रख दें। प्रातः मसल छानकर इसमें 650 ग्राम मिश्री या चीनी, 1 बोतल उत्तम गुलाब जल मिलाकर, दो बोतलों में बंद कर धूप में दो दिन तक हिलाते रहें। मिश्री अच्छी तरह घुल जाने पर शर्बत बन जाता है। 15 से 30 मिलीलीटर तक की मात्रा पीते रहने से खून की गर्मी दूर होकर
हृदय रोग में नीबू नोछड़ कर गुड़हल के 100 पुष्प लेकर शीशी की बरणी में डालकर ढक दें। रात भर रखने के बाद, प्रातः काल पीसकर कपड़े में छानकर रस निकाल लें। 150 ग्राम गुले गाजबांन का अर्क, 200 ग्राम मीठे अनार का रस रस में 600 ग्राम मिश्री 180 ग्राम संतरे का रस मिलाकर धीमी आंच में पाकर जब चासनी बन जाये तो उतारकर 250 मिलीग्राम कस्तूरी तथा गुलाब अर्क मिलाकर मिलाले इसका नियमित सेवन करने से हृदय के सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते है।
दारुणरोग गुड़हल के पुष्पों के रस में बराबर तिल तेल मिला कर उबाले, तेल शेष रहने पर उसको उतार छानकर शीशी में भर लें। इस तेल के लेप से दारुण रोग मिटता हैं।
फिरंग व्रण (उपदंश) में गुड़हल के पत्रों के काढ़ा से लेप करने से उपदंश से होने वाले फिरंग व्रण शीघ्र नष्ट हो जाते है।
रक्तप्रदर में गुड़हल के 100 फूल व पंखुड़ियों को बिजौरा नीबू के स्वच्छ रस में रात भर खुले स्थान पर कांच के बर्तन में मुंह बंद कर रख दें। प्रातः कॉल पीस छानकर इसमें 650 ग्राम मिश्री या मधु 1 बोतल शुद्ध गुलाब जल मिलाकर धूप में दो तीन दिन तक रख दें। इसके बाद 15 से 40 मिलीलीटर तक की मात्रा नियमित सेवन करने से रक्तप्रदर में आराम मिलता है।
गुड़हल के फूल का वृक्ष अपने आकर्षक रंगों, नैसर्गिक सौंदर्य तथा अत्यंत लुभावने घंटाकार पुष्प के कारण उद्यान, घर, और मंदिरों में लगाये जाते हैं। पुष्प इकहरा, दुहरा, तिहरा, लाल, सफ़ेद या लाल, बैंगनी पीला, नारंगी इत्यादि कई रंगों का होता हैं। श्वेत या श्वेताभ लाल रंग के पुष्पवाला गुड़हल विशेष गुणकारी होता हैं। गुड़हल की केसर बाहर निकली हुई अलग से दिखाई पड़ती हैं। इसमें अलग से कोई फल नहीं लगता है।
गुड़हल का सदाबहार क्षुप 5-9 फुट ऊंचा, पत्र चमकीले, चिकने गहरे हरे रंग के कंगूरेदार तथा पुष्प बड़े घटाकार होते हैं।
गुड़हल वृक्ष कफ पित्त शामक है तथा पैत्तिक विकारों में प्रयुक्त होता है। यह रक्तरोधक, केश्य, स्तम्भन, शोणित स्थापन, गर्भनिरोधक, प्रदर्नाशक, मूत्र संग्रहणीय तथा बल्य है.
गुड़हल फूल-पत्ती-कलियों का अधिक मात्रा में सेवन करने से यह आँखों में जलन उत्पन्न करता है। यह शीत प्रकृति वालों के लिये हानिकारक हैं। हानि निवारणार्थ काली मिर्च व मिश्री का सेवन करना चाहिये।
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