गन्ना (ईख) की दवा:-बुखार, बवासीर, पथरी, गर्भाशय, वीर्यवर्धक, सफ़ेद पानी, स्तन्य वृद्धि, सिरदर्द, श्वांस, पाचन शक्ति, पेशाब की जलन, दस्त, पेट दर्द, पीलिया, गुर्दा दर्द, जुखाम, अरुचि, गलगण्ड, स्वरभंग, कुकुर खांसी, दाह, कनखजूरा, कंटकशूल, नेत्र रोग, हृदय रोग, पित्त नाश, नकसीर, हिचकी, अफारा, कब्ज, प्रसूत विकार, पित्तजन्य, मुँह के छाले, वात विकार आदि बिमारियों के इलाज में ईख (गन्ना) के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-गन्ना (ईख) के फायदे एवं सेवन विधि
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ईख के रस में सुक्रोज, लुवाब, राल वसा एवं जल तथा ग्वानीन नामक एक जल में घुलनशील सफेद स्फटिकीय चूर्ण तथा कैल्सियम आक्जलेट, कोबाल्ट, फ़ास्फ़रोस, पोटैशियम, मैग्नीशियम, और कॉपर से भरपूर मात्रा में पाया जाता है। गन्ने के रस के फायदे विटामिन A, C, B1, B2, B5 , B6 और प्रोटीन , लौह तत्व एंटीऑक्सिडेंट, घुलनशील फाइबर भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
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रक्तार्श (बवासीर) में गन्ना रस से भीगी हुई पट्टी मस्सों पर बांधने से या गन्ना रस मस्सों पर लेप करने से बवासीर में लाभ होता है।
अश्मरी (पथरी) में अश्मरी के निकल जाने के बाद रोगी को गर्म पानी में बैठा दें। और मूत्र वृद्धि के लिये गन्ना रस को दूध में मिलाकर गर्म कर पीला देने से पथरी में लाभदायक होता है।
गर्भाशय के अत्याधिक रक्तस्राव में गन्ना रस में भीगी पट्टी योनि मार्ग पर धारण करने से गर्भशाय में लाभ होता है।
वीर्यवृद्धि में गन्ना रस को आंवले के 2-4 ग्रामं चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्यवृद्धि, तृप्ति, श्रमनाशक (थकान को दूर करने वाला), दाह, रक्त पित्त, शूल और पेशाब की जलन का नाश होता है।
प्रदर रोग (सफ़ेद पानी) में गन्ने के बने गुड़ की खली बोरी जिसमें 2-3 साल तक गुड़ भरा रहा हो, लेकर जला दे और भस्म को छानकर रख लें, सफ़ेद पानी और रक्त प्रदर प्रातः 3 ग्राम सेवन करने से कुछ ही दिनों में सफ़ेद पानी का गिरना बंद हो जाता है।
स्तन्य वृद्धि में ईख गन्ना की 10-5 ग्राम जड़ को पीसकर कांजी के साथ सेवन करने से स्त्री का दूध बढ़ता है।
सिरोवेदना (सिरदर्द) में गन्ना 10 ग्राम गन्ना रस और तिल 6 ग्राम, इन्हें दूध के साथ पीसकर इसमें 6 ग्राम घी मिलाकर गर्म कर सेवन करने से सिरदर्द में लाभ होता है।
श्वास में गन्ना व गुड़ 3 से 60 ग्राम तक, समान भाग सरसों के तेल से मिलाकर सेवन करने से श्वास व खांसी में लाभ होता है।
अग्निमांध (पाचन शक्ति) में गन्ना व गुड़ के साथ थोड़ा सा जीरा मिलाकर सेवन करने से पाचन शक्ति और वात रोग में लाभ होता है। भोजन के मध्य में गन्ने के सेवन से आहार का अच्छी तरह परिपक्व होता है। भोजन के बाद सेवन से आहार का अच्छी तरह परिपाक होता हैं:पाचन शक्ति में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
मूत्रकृच्छ (पेशाब की जलन) में गन्ना रस के साथ जौ का खार मिला, उष्ण जल के साथ सेवन करने से शर्करा, मूत्रकृच्छ और वातज रोगों में लाभ होता है। गन्ने के ताजे रस को भरपेट पीने से मूत्र साफ़ होकर सर्व मूत्र संबंधी विकार दूर होते हैं (ईख) के ताजे रस के अभाव में ईख की जड़ काम में ले सकते हैं। गन्ना रस में आंवले का रस और शहद मिलाकर सेवन करने से पेशाब की जलन नष्ट होती है।
रक्तातिसार (खुनी दस्त) में गन्ने के रस में अनार का रस समभग मिलाकर पीने से खुनी दस्त में लाभ होता है।
उदरशूल (पेट दर्द) में 5 किलो गन्ने के रस को चिकनी मिटटी के बर्तन में भरकर मुँह कपड़ मिटटी बाँध दें। एक सप्ताह बाद खोलकर छान लें। एक महीने बाद रस की 10 ग्राम मात्रा में 3 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर, थोड़ा गर्म कर पिलाने से पेट का दर्द शीघ्र नष्ट हो जाता है।
कामला (पीलिया) में गन्ने के टुकड़े कर रात्रि के समय घर के ऊपर छप्पर पर ओस में रख दें और प्रातः मंजन करने के बाद उन्हें चूसकर रस सेवन करें। 4 दिन में पीलिया में लाभ होता है। ईख के शुद्ध ताजे रस के साथ जौ के सत्तू का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
वृक्क्शूल (गुर्दा का दर्द) में गन्ना रस 11 ग्राम और भूंजा हुआ चुना 500 मिलीग्राम दोनों को एकत्र कर दो गोलियां बना लें, पहले 1 गोली गर्म जल के साथ सेवन करें, अगर गुर्दा का दर्द शांत न हो तो दूसरी गोली का सेवन करना चाहिए दर्द शांत हो जायेगा।
प्रतिश्याय (जुकाम) में गन्ने का स्वरस 10 ग्राम, दही 40 ग्राम, मिर्च चूर्ण 3 ग्राम, तीनों को मिलाकर प्रातः काल तीन दिन तक सेवन करने से बिगड़ा हुआ सूखा जुकाम नाक मुंह से दुर्गंध आना, गला पक जाना कास श्वास युक्त जुकाम नष्ट हो जाता है।
अरुचि (अधिक भूख लगना) गन्ने के रस को धूप में या आग में तपाकर, एक उफान आने पर शीशी या चीनी मिटटी के बर्तन में भरकर रखें। एक सप्ताह बाद प्रयोग करें। यह उत्तम पाचक स्वादिष्ट होता है, अरुचि को दूर करता है। इसके कुल्ले करने से कंठरोध साफ़ हो जाता है। मात्रा 10 से 20 ग्राम होनी चाहिए।
गलगंड में हरड़ का चूर्ण 2-4 ग्राम फांक कर ऊपर से गन्ने का रस मिलाने से गलगण्ड में लाभ होता है।
स्वरभंग में गन्ने को भूभल में सेंक कर चूसने से रवरभंग में लाभ होता है।
कुकुर खांसी में गन्ना रस ताजा 1 किलो, 250 ग्राम ताजा शुद्ध घी मिलाकर पकायें, घी मात्र शेष रहने पर, 10 ग्राम तक सुबह-शाम सेवन करने से कुकुर खांसी में लाभ होता है। 3. पुराना गुड़ अदरक के साथ सेवन करने से खांसी के साथ आने वाला कफ भी नष्ट हो जाता है।
दाह में गन्ना रस को जल में घोलकर 25 बार वस्त्र में छानकर सेवन करने से दाह शांत होती हैं। ज्वर की ऊष्मा शांति के लिए इसे पिलाया जाता हैं। गन्ने की ताज़ी जड़ का काढ़ा 40-60 ग्राम पिलाने से मूत्र दाह में शांति होती है।
कनखजुरा आदि जंतुओं के काटने या चिपक जाने पर गन्ना रस को जलाकर भस्म बनाकर लेप करने से कनखजुरा में लाभदायक होता है।
कंटक शूल में काँटा, पत्थर कांच आदि के गड़ जाने पर गन्ना रस को आग पर रखकर गर्म-गर्म कंटक स्थान पर लेप करने से लाभ होता है।
हृदय रोग में गन्ने की पपड़ी या गुड़ की चीज खाने से हृदय मजबूत होता हैं। हृदय के सभी प्रकार के दोष कट जाते है।
नेत्र रोग में गन्ना रस को जल के साथ घिस कर नेत्रों में लेप करने से नेत्रों की सफाई होती हैं तथा दृष्टिमांध दूर होता है।
पित्त दोष में पुराने गुड़ को हरड़ के साथ सेवन करने से पित्त का नष्ट होता है। भोजन से पूर्व गन्ने के सेवन से पित्त में शीघ्र आराम मिलता है।
नकसीर में गन्ने व ईख के स्वरस की नस्य देने से नकसीर में लाभ होता है। तथा आवश्य्क नाक से खून आना बंद हो जाता है।
हिक्का (हिचकी) में गन्ना रस को पानी में घोलकर और उसमें थोड़ी सौंठ को घिसकर रोगी के नकुने में टपकाने से हिचकी व मस्तक पीड़ा नष्ट होती है। केवल गन्ने रस का सेवन 10-20 ग्राम की मात्रा में करने से हिचकी में लाभ होता है।
अफरा में ईख के रस को धीमी आंच प्र पकाकर, ठंडा कर पीने से अफरा मिटता है।
कब्ज में ईख रस के साथ जौ की डांग या जौ की बाल पीसकर पीने से कोष्ठबद्धता (कब्ज) में लाभ होता है।
प्रसूत विकार में पुराना गन्ना रस प्रसूत संबंधी विकारों को भी दूर करता है। प्रसूत के समय होने कष्ट दूर हो जाते हैं।
पित्तजन्य दाह में गन्ने व ईख के रस में मधु के साथ मिलाकर पीने से पित्तजन्य दाह दूर होता है।
मुंह के छाले में गन्ना के टुकड़े के साथ एक छोटा सा कत्थे का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह के छाले में लाभ होता है।
वात विकार में पुराने गन्ना को सौंठ के साथ सेवन करने से यह समस्त वात संबंधी विकार को नष्ट करता है।
विशेष:- 5 ग्राम गुड़ के साथ, 5 ग्राम अदरक या सौंठ या हरड़ अथवा पीपल इनसे से किसी एक चूर्ण को मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन से शोथ, प्रतिश्याय, गलरोग, मुखरोग, कास, श्वास, अरुचि, पीनस, जीर्ण ज्वर, बवासीर, संग्रहणी आदि रोगों तथा कफवातज विविध जन्य विकार भी दूर हो जाते हैं। एक वर्ष पुराना गुड़ नवीन गुड़ की अपेक्षा अधिक गुणयुक्त होता है।
गन्ना भारतवर्ष की मख्य फसलों में से एक है। उष्ण प्रदेशों में इसे खेती द्वारा उगाया जाता है। लाल, सफेद, काला, पौंड्रक मनोगुप्ता इत्यादि ईख की अनेक जातियां पाई जाती हैं।
ईख के पौधे से सब परिचित हैं। इसका कांड 6-12 फुट ऊंचा, गोलाकार, स्थूल एवं ग्रंथियुक्त होता है। पत्र-चपटे 3-4 फुट लम्बे 2-3 इंच चौंड़े होते हैं। पुष्प गुच्छ बड़ा और अनेकशाखीय होता है। वर्षा में पुष्प और शीतकाल में फल लगते हैं।
रक्तपित्त नाशक, बलदायक, वीर्यवर्धक, कफ कारक, पाक में तथा रस में मधुर, स्निग्ध, भारी, मूत्रवर्धक और शीतल है। बाल, युवा और वृद्ध ईख के गुण बाल ईख कफकारक और मेद तथा प्रमेह को उत्पन्न्न करने वाली हैं। युवा (अधपकी) ईख वातहर, मधुर, किंचित तीक्ष्ण और पित्त नाशक है तथा वृद्ध (पकी) ईख, रक्त पित्त तथा स्तन्य नाशक और बल तथा वीर्यवर्धक है। लघु, किंचित अभिष्यंदी अग्निजनक पुष्टिवर्धक, मधुर, रुचिकारक, रक्त दोष निवारक, वीर्यवर्धक, हृदय के लिए हितकारी, त्रिदोषनाशक श्रमनाशक और पथ्य है।
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