इलायची की दवा:-बुखार, सिरदर्द, नपुंसकता, स्वप्नदोष, रक्तचाप, मुहाँसे कील, पथरी, सफ़ेद दाग, मुखपाक, हैजा, पाचन शक्ति, दन्त की पीड़ा, दस्त, पेशाब की जलन, हृदय रोग, वमन, लार का बहना, दमा, वात वेदना, सूजन, अफारा, गर्भज अन्न द्वेष आदि बिमारियों की इलाज में इलायची के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-इलायची के फायदे एवं सेवन विधि:
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इलायची निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:- 1. छोटी इलायची 2. बड़ी इलायची
इलायची केवल आम भाषा में छोटी इलायची है। गुणवत्ता के आधार पर यह बड़ी इलायची को भी पीछे छोड़ देती है, इलायची छोटी सी हल्के हरे रंग की होती है, इलायची के अंदर बहुत छोटे छोटे काले रंग के दाने पाये जाते है। इलायची एक प्रकार की माउथफ्रेशनर के रूप में प्रयोग की जाती है। इलायची को भोजन के उपरांत चाबने से बहुत फायदा होता है।
बड़ी इलायची काले रंग की होती है, इसे मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह खड़ा मसाले यानि गराम मसाला के रूप मे काम आती है। बड़ी इलायची को मसालो की रानी कहा जाता है। मसालेदार खाने मे स्वाद और सुगंध दोनों के लिए बड़ी इलायची का प्रयोग किया जाता है। बड़ी इलायची में एंटीओक्सीडेंट पाए जाते है कैंसर जैसे बीमारी में कोशिकाओ को नष्ट कर देती है। इलायची के नियमितरूप से सेवन करने से श्वांस-खांसी आदि बीमारी में आराम लाभदायक है। बड़ी इलायची हमारे शरीर के विष नाशक पदार्थो को बाहर निकालने का भी काम करती है। इलायची की पैदावारी सबसे ज्यादा भारत में पायी जाती है।
इलायची के बीजों में एक सुगंधित तेल होता है। जिसमें सिनिओल की प्रचुर मात्रा होती है। इलायची के पोषक तत्व पोटेशियम, रिबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन-C, मैग्नीशियम, कैल्शियम तथा लौह मैगनीज कार्बोहाइड्रेट, डाइटरी फाइबर, फॉस्फोरस आदि इलायची में पोषक तत्व पाये जाते है। जो सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती है।
ज्वर (बुखार) में इलायची के बीज 2 भाग तथा बेल वृक्ष के मूल की छाल 1 भाग को कूटकर चूर्ण बनाकर 1 चम्मच चूर्ण दूध और पानी में मिलाकर पकावें और केवल दूध शेष रहने पर 20 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से बुखार में लाभदायक है।
सिरदर्द में इलायची को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से एवं बीजों को पीसकर सूँघने से सिर दर्द में आराम मिलता है।
नपुंसकता में इलायची के बीजों का चूर्ण, सफ़ेद मूसली और मिश्री के साथ 2-3 ग्राम की मात्रा में नियमित सुबह-शाम सेवन करने से नपुंसकता में लाभ होता है।
स्वप्नदोष में 1 ग्राम इलायची के दाने, इसबगोल और आंवले के 20 मिलीलीटर रस में बराबर-बराबर की मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह-शाम सेवन करने से स्वप्नदोष नष्ट हो जाता है। तथा पुरुष को शक्ति शाली बनता है।
रक्त चाप में हरी इलायची फेफड़ों में रक्तसंचार गति को दुरुस्त रखता है। इसके साथ ही यह अस्थमा, जुकाम, खांसी आदि समस्याओं के लिए गुणकारी है। यह बलगम और कफ को बाहर निकालकर सीने की जकड़न को कम करने में लाभदायक है।
मुहाँसे कील की समस्या में नियमित रूप से रात को इलायची का सेवन करने से या सोने से पहले गर्म पानी के साथ एक इलायची खाने से स्किन त्वचा की समस्याओं से आराम मिलता है।
पथरी में इलायची का चूर्ण खरबूजे के बीजों की दाना और मिश्री मिलाकर 2-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से गुर्दा की पथरी को इलायची नष्ट कर देती है।
कुष्ठ (सफ़ेद दाग) में बड़ी इलायची, कुंदरू, चित्रक मूल, निशोथ, अडूसा की पत्ती, मदार की पत्ती, सौंठ इन सबके चूर्ण पलाश क्षार को गौमूत्र में घोलकर लेप बन जाने पर 8 दिनों तक पलाश क्षार की भावना देने पर तथा शरीर पर लेप करके धूप में बैठे, जब तक यह सुख न जाये। इससे शीघ्र ही मंडल कुष्ठ फूट जाते है और घाव भी शीघ्र ही भर जाते हैं।
हैजा में इलायची के स्वरस 5-10 बूँद एला अर्क को वमन, विसूचिका, हैजा, अतिसार की दशा में सेवन करने से लाभ होता है।
मुखपाक में इलायची पीसकर शहद में मिलाकर मुंह के छालों पर लेप करने से मुंह के छाले फूट जाते है, तथा मुख की दुर्गंध नष्ट होती है।
दंतशूल (दंतपीड़ा) में इलायची और लौंग का तेल बराबर-बराबर मात्रा में लेकर दांतों पर मलने से या कुले करने से दंतपीड़ा शांत हो जाती है। 4-5 इलायची के फल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर शेष काढ़ा से कुल्ला करने से दन्त पीड़ा में लाभ होता है।
मुंह की लार में इलायची और सुपारी को बराबर-बराबर पीसकर, 1-2 ग्राम चूसते रहने से मुंह से अधिक थूक या लार में लाभ होता है।
दमा या सांस की बीमारी में इलायची का 10-20 बूँद तेल मिश्री में मिलाकर नियमित सुबह-शाम सेवन करने से दमा व श्वांस से परेशान मरीज को आराम मिलता है।
हिचकी में एक कप पानी में इलायची के दो दाने को पीसकर उबालें। आधा पानी शेष रह जाये तो सेवन करने से हिचकी शीघ्र नष्ट हो जाती है।
मंदाग्नि (पाचन शक्ति) में इलायची के आठ-दस बीज 2 ग्राम सौंफ के साथ सेवन करने से पाचन शक्ति की निर्बलता नष्ट हो जाती है। अधिक केले खाने पर यदि अजीर्ण हो जाये तो इलायची खाने से हाजमा ठीक हो जाता है। इलायची के बीजों का चूर्ण और शुंठी चूर्ण दोनों की एक साथ 1 चम्मच फंकी लेने से कब्ज में आराम मिलता है।
गर्भज अंत्र द्वेष में इलायची के बीजों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से गर्भवती स्त्री को भूख खुलकर लगती है।
अफारा में इलायची के बीजों का 1 ग्राम चूर्ण काले नमक के साथ सेवन करने से पेट दर्द और सूजन में लाभ होता है।
वमन (उल्टी) में इलायची और पुदीना बराबर-बराबर 2-3 ग्राम की मात्रा में उबालकर सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।
अतिसार (दस्त) में इलायची के 1 ग्राम बीजों का चूर्ण 10 ग्राम बेल गिरी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से दस्त में लाभ होता हैं:दस्त में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
मूत्रकृच्छ (पेशाब की जलन) में इलायची बीजों के चूर्ण में समान भाग मिश्री का बूरा मिलाकर 2-3 ग्राम की मात्रा का नियमित सुबह-शाम सेवन करने से पेशाब की जलन मिटता है। पेशाब तुरंत खुलकर होने लगता है। यही चूर्ण किसी अन्य रोग से पैदा हुई दाह में भी लाभकारी होता है। इलायची छिलकों के सहित बड़ी इलायची 10 नग लेकर कूट कर 250 ग्राम दूध और 250 ग्राम पानी के साथ पकायें, दूध मात्र शेष रहने पर छानकर मिश्री मिलाकर दिन में चार बार पिलायें। पेशाब की जलन व रुकावट दूर होती है।
यकृत रोग में इलायची का चूर्ण 2-3 ग्राम की मात्रा पीसी हुई राई के साथ में नियमित सेवन करने से यकृत के रक्त संचय आदि विकारों में लाभ होता है। इलायची का 1-2 ग्राम चूर्ण का नियमित सेवन यकृत वृद्धि में गुणकारी है।
वातवेदना में इलायची का 1-2 ग्राम चूर्ण का नियमित दिन में दो तीन बार सेवन वात रोग में गुणकारी है।
सूजन में इलायची का 2-3 ग्राम छिलका सिर दर्द, दांतों के रोग और मुख की सूजन में लाभकारी है।
इलायची के फल एवं सुगंधित कृष्ण वर्ण के बीजों से भला कौन अपरिचित हो सकता है। भारतीय पाक में यह इस तरह से रची बसी है कि इसका प्रयोग मसालों से लेकर मिष्ठानों तक में किया जाता है। इलायची की एक प्रजाति, मोरंग इलायची, भी होती है। यह पूर्वी हिमालय प्रदेश में विशेषतः नेपाल, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, आसाम आदि में पायी जाती है। छोटी इलायची का भी प्रयोग औषधियों में होता है।
इलायची का पौधा 3-4 फुट ऊँचा, पत्र 1-2 फुट लम्बे, 3-4 इंच चौंड़े, दोनों पृष्ठों पर चिकने होते हैं। पुष्प मंजरी अत्यंत सघन 2-3 इंच लम्बी, पुष्प मज्जा से संसक्त रहते हैं।
इलायची कफ वात-शामक तथा पित्तवर्धक है। इलायची रोचकं दीपन, पाचन, पित्त-सारक और अनुलोमन है। इलायची हृदय को उत्तेजना देने वाली है। इलायची दुर्गंध-नाशक, गुलमहर, वमनहर और व्रणरोपण है। इलायची कफ निःस्सारक व मूत्रल है। ज्वरध्न शीत प्रशमन तथा विषध्न है।
गर्भपात और रक्तस्राव के समय इलायची को औषधि के तौर पर इस्तेमाल करना गलत है। इलायची का प्रयोग करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। गर्भावस्था के समय इलायची का अधिक मात्रा में सेवन करने से गर्भपात होने का खतरा रहता है।
इलायची का सेवन अधिक मात्रा में करने से पथरी का दर्द और भी बढ़ जाता है। अगर आप को इलायची का सेवन करना ज़रुरी है तो एक बार अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
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