ईसबगोल की दवा:-गंठिया, बवासीर, स्वप्नदोष, सिरदर्द, दंतपीड़ा, दमा, श्वांस, दस्त, खुनी दस्त, पेचिस, कब्ज, कर्णशूल, मूत्र रोग, कांच निगलने पर, प्रतिश्याय (जुखाम) मुखपाक, तृषा आदि बिमारियों की इलाज में ईसबगोल के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-ईसबगोल के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
Click Here
Table of Contents
गठिया के जोड़ो के दर्द में ईसबगोल की पुल्टिस बांधने से या ईसबगोल के पत्तों को गर्म-गर्म बांधने से गंठिया के खून बिखर जाते है और गंठिया के रोगी को शीघ्र लाभ होता है।
रक्तार्श (बवासीर) में ईसबगोल का शर्बत बनाकर बवासीर रोगी को पिलाने से व मस्सों पर लेप करने से बवासीर रोगी को आराम मिलता है।
स्वप्नदोष में ईसबगोल और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर एक-एक चम्मच आधा गिलास दूध के साथ रात्रि को सोने से एक घंटा पहले पेशाब करके सोने से स्वप्नदोष नहीं होता।
मस्तक पीड़ा में ईसबगोल को नीलगिरी के पत्तों के साथ पीसकर कनपटियों पर लेप करने से सिरदर्द में आराम मिलता है।
दंतपीड़ा में ईसबगोल को सिरके में भिगों कर दांतों के नीचे दबाकर रखने से दन्त पीड़ा दूर होती है।
दमा रोग में ईसबगोल के 3-5 ग्राम बीजों को गर्म जल से खाली पेट सेवन करने से श्वांस व दमे में लाभ होता हैं।
श्वांस रोग में ईसबगोल का बीज तीन-चार ग्राम की मात्रा में गर्म जल के साथ प्रातःकाल नियमित सेवन करने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।
उदर रोग (पेट दर्द) में ईसबगोल की भूसी 2 चम्मच को दही के साथ दिन में दो तीन बार सेवन सेवन करने से पेट दर्द पेट की ऐंठन में लाभ होता है। ईसबगोल के बीजों की 1 किलो पानी में उबाले जब आधा पानी शेष रह जाये तो तीन खुराक बनाकर सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से हर प्रकार के पेचिश, मरोड़, अतिसार इत्यादि में लाभ होता हैं।
दस्त में आँतों की दाह, सूजन को मिटाने के लिए, ईसबगोल के साबुत बीजों को या भुस्सी 10 ग्राम को ठन्डे जल के साथ फंकी लेने या उनको थोड़े जल में भिगोकर फूल जाने पर खा लेने से दस्त में लाभदायक होता है:दस्त में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
खुनी दस्त में ईसबगोल के बीजों को भूनकर फंकी का सेवन करने से भी अतिसार और आम अतिसार मिटता हैं। ईसबगोल के स्वच्छ बीजों को पानी में डालकर जब उनका लुआब बन जाता हैं तब इस लुआब में खंड डालकर पीने से एमबीक डिसेंट्री, जीर्ण आम अतिसार, अतिसार, पतले दस्त पेट का मरोड़ सभी प्रकार के दस्त में फायदेमंद होता हैं। बालकों के चिरकालीन अतिसार में ईसबगोल का प्रयोग बहुत लाभदायक हैं।
अमीबिक पेचिश में 100 ग्राम ईसबगोल की भूसी में 50-50 ग्राम सौंफ और मिश्री मिलाकर, 2-3 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 तीन बार सेवन करने से अमीबिक पेचिस में नष्ट हो जाती है।
कब्ज में एक से दो चम्मच की मात्रा में ईसबगोल की भूसी रात्रि में सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध के साथ सेवन करने से कब्जियत दूर होती हैं। ईसबगोल की भूसी व त्रिफला चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर लगभग 3 से 5 ग्राम तक रात्रि को गर्म जल के साथ सेवन करने से सुबह मल साफ होता है। उदरशोथ व पित्त विकारों में भी यह एक अनुभूत व निरापद प्रयोग हैं।
कर्णशूल (कान) में ईसबगोल के 10 ग्राम लुआब में प्याज का स्वरस 10 ग्राम मिलाकर गर्म करके सहने योग हो जाये तो कान में डालने से कान की पीड़ा मिटती हैं।
मूत्र रोग में जब मूत्र बंद हो जाये या मूत्रदाह या मूत्राशय में पीड़ा होती हो तो चार चम्मच ईसबगोल की भूसी को 1 गिलास पानी में भिगो दें और सुबह-शाम सेवन करने से पेशाब की जलन रुक रुक पेशाब का आना सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते है। शीतल मिर्च 2 ग्राम और कलमी शौर 500 मिलीग्राम के साथ ईसबगोल की फंकी मूत्रकृच्छ में बहुत लाभदायक हैं।
कांच निगलने पर ईसबगोल की भूसी दो चम्मच की मात्रा में दूध के साथ सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से कांच अपने आप निकल जाता है।
प्रतिश्याय (जुखाम) में पित्त प्रकृति के जुखाम में ईसबगोल का लुआब खा लेने से जुखाम में बहुत लाभ होता हैं। कफ और जुखाम में ईसबगोल का काढ़ा पीने से कफ निकल जाता है।
मुखपाक में ईसबगोल के लुआब से कुल्ले करने या मुख में ईसबगोल की जड़ को चबाते रहने से मुंह के छाले नष्ट हो जाते है।
तृषा में ईसबगोल के लुआब में गुड़हल का शर्बत मिलाकर पिलाने से तृषा शीघ्र नष्ट हो जाती है।
ईसबगोल का मूल उतपत्ति स्थान फारस हैं और यही से इसका हिन्दुस्तान में आयात किया जाता हैं। आजकल यहाँ पर भी इसकी खेती गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में की जाती हैं। औषद्यार्थ प्रयोग में इसके बीज और बीजों की भूसी प्रयुक्त की जाती हैं। ईसबगोल का 1-3 फुट ऊँचा पौधा, मौसमी, काण्ड रहित या झाड़ीनुमा होता हैं। पत्र 3 शिराओं से युक्त अखंड, 6-9 इंच तक लम्बे, पुष्प दंड गेहूं की बाल सदृश जिस पर छोटे-छोटे फूलों में नाव के आकार के बीज लगते हैं, जिनके ऊपर सफेद भूसी होती हैं। भूसी पानी के सम्पर्क में आते ही चिकना लुआव बना लेती हैं जों गंध रहित और स्वाधीन होती हैं।
स्नेहन एवं मादर्व कारक, अतिसार, प्रवाहिका नाशक, भूसी बल्य एवं मृदुसारक। ईसबगोल अत्यंत पुष्टिकारक, मधुर, ग्राही व शीतल हैं। चिकना, कसैला, कुछ वातकारक व पित्त तथा कफ-नाशक हैं। रक्त अतिसार व रक्त पित्त नाशक हैं।
ईसबगोल नाड़ी दौर्बल्यकारक एवं क्षुधानशक हैं। यह औषघि प्रसूता के लिए हानिकारक हैं। ईसबगोल के बीजों को पीसना नहीं चाहिए।
Subject-Eesbagol ke Fayde, Eesbagol ke Aushadhiy Gun, Eesbagol ke Aushadhiy Prayog, Eesbagol ke Gharelu Upchar, Eesbagol ke Fayde Evam Sevan Vidhi, Eesbagol ke Nuksan, Eesbagol Benefits And Side Effects In Hindi.
घरेलू दवा:- Constipation:अनियमित दिनचर्या और भाग दौड़ की जीवनशैली में कब्ज होना एक आम समस्या है। भोजन के बाद…
Fistula:लोगों को भगंदर के नाम से ही लगता है कि कोई गंभीर बीमारी है। लेकिन यह एक मामूली फोड़े से…
Back Pain-आज कल भाग दौड़ की जीवनशैली में कमर दर्द एक आम बात हो गई है। क्योंकि लोगों को खड़े…
Teeth pain- कभी-कभी दांतों की जड़ें काफी ढीली पड़ जाती है। जिसके करण लोगों को दांतों के असहनीय दर्द से…
वासा/अडूसा के औषधीय गुण VASA/Adusa वासा/अडूसा अनेक रोग की दवा: मासिक धर्म, सिरदर्द, नेत्र रोग, कैविटी, दंत पीड़ा, ज्वर, दमा, खांसी, क्षय रोग, बवासीर, मुखपाक, चेचक रोग, अपस्मार, स्वांस, फुफ्फस रोग, आध्मान, शिरो रोग, गुर्दे, अतिसार, मूत्र दोष, मूत्रदाह, शुक्रमेह, जलोदर, सूख प्रसव, प्रदर, रक्त…
अफीम के औषधीय गुण Afim/अफीम अनेक रोग की दवा: बुखार, मस्तक की पीड़ा, आँख के दर्द, नाक से खून आना, बाल की सुंदरता, दन्त की…