बला (बरियार) अनेक रोग की दवा जैसे:- गंठिया, लकवा, मासिक धर्म, सफ़ेद दाग, गर्भधारण, गर्भाशय, वीर्य वर्धक, शुक्रमेह, प्रसूता शूल, दस्त, अंडकोष की सूजन, पेशाब की जलन, चर्म रोग, पागलपन, नेत्र रोग, स्वरभंग, हांथी पाँव, जख्म, बाल रोग, बदग्रंथि, पित्तज कास आदि बीमरियों के इलाज में बला के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:बला के फायदे, नुकसान और औषधीय गुण
Table of Contents
बला में और बीजों में मुख्य क्षाराभ इफेड्रिन है। इसके अतिरिक्त रिटारायड, फाइटोस्टिरॉल, म्यूसिन तथा पोटेशियम नाइट्रेट होते हैं। इसका मूल ऐस्पैरोजिन और जिलेटिन के सम्मिश्रण से बनता हैं।
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
Click Here
गठिया में बला की जड़ 5 से 10 ग्राम का काढ़ा सुबह-शाम-दोपहर पिलाने से मूत्र अधिक लगकर गठिया, वातरक्त में लाभ होता है। अंगुली के पोरों की गांठ में होने वाले महान कष्टदायक व्रण पर बला के कोमल पत्तों को पीस टिकिया बनाकर बांधे दें, ऊपर से ठंठा जल डालते रहें। इस प्रकार सुबह-शाम सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है।
अर्दित (लकवा) में बला का चूर्ण मिलाकर, पकाया हुआ दूध पिलाने से तथा बला तेल की मालिश करने से लकवा में लाभ होता है।
रक्त प्रदर (मासिक धर्म) में बला की जड़ व पत्ते को चावलों के धोवन के साथ पीस छान कर मासिक धर्म के समय सेवन करने से अनियमित मासिक धर्म में नियमिता से होने लगती है।
सफ़ेद पानी में बला के बीज चूर्ण 3 ग्राम में समभाग मिश्री या चीनी मिलाकर प्रयोग करें तथा बला मूल 5 ग्राम, काली मिर्च सात दानें दोनों को 50 ग्राम पानी में पीस कर छान कर सुबह-शाम एक सप्ताह प्रयोग करने से पूर्ण लाभ होता है। श्वेत प्रदर में बला का मूल चूर्ण 3 ग्राम, गाय के दूध के साथ, मिश्री मिला दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ होता है।
गर्भ धारणार्थ में बला की जड़ के चूर्ण के साथ कंघी का चूर्ण, मिश्री और मुलेठी चूर्ण समभाग मिलाकर, 3 से 6 ग्राम तक, मधु व घी चाटकर ऊपर से दूध पीने से गर्भधारण में आराम मिलता है।
वीर्य वर्धक में बला मूल 10 ग्राम, महुआ वृक्ष की छाल 5 ग्राम, दोनों को 250 ग्राम पानी में पीस छानकर उसमें 25 ग्राम मिश्री या खंड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने प्रमेह दूर होकर वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
शुष्क प्रमेह में बला के बीज चूर्ण 10 ग्राम में समभाग काली मिर्च चूर्ण मिलाकर 6 ग्राम तक सुबह-शाम मिश्री या खंड के साथ सेवन करें तथा ऊपर चीनी मिलाया हुआ गौदुग्ध 250 ग्राम पीयें। वीर्य गाढ़ा होकर शुक्र प्रमेह दूर हो जाता है।
प्रसूता शूल में बला के मूल के काढ़ा से सिद्ध तेल-घृत सुबह-शाम दो बार पिलाने से लाभ होता हैं।
गर्भाशय में बला मूल कल्क एवं काढ़ा से सिद्ध किए हुए घी का सेवन सुबह-शाम कराते रहने से गर्भाशय शूल की भांति तथा गर्भ एवं गर्भिणी की पुष्टि होती है।
अतिसार (दस्त) में बला के 5 ग्राम जड़ के काढ़ा में जायफल 1 ग्राम घिसकर पिलाने से दस्त में आराम मिलता हैं। किसी भी रोग से मुक्ति होने के बाद होने वाली निर्बलता पर मूल छाल के चूर्ण में समभाग मिश्री मिला 3 ग्राम से 5 ग्राम तक चूर्ण दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से दस्त ठीक हो जाता है।
अंडकोषवृद्धि में बला के 10 ग्राम काढ़ा में 10 ग्राम तक शुद्ध रेंडी तेल मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से अंडकोष की सूजन बिखर जाती है।
मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की जलन) में बला के 10 ग्राम पत्तों को काली मिर्च के साथ घोंट छानकर सुबह-शाम पिलाने से दाह और मिश्री के साथ पिलाने से मूत्र संबंधी रोग मिटते हैं।
चर्म रोग में बला के पत्तों को पीसकर, रस निचोड़कर शरीर पर मालिश करने से चर्म रोग में लाभ होता हैं।
पागलपन में श्वेत पुष्प बला की जाति के मूल का चूर्ण 10 ग्राम, अपामार्ग चूर्ण 5 ग्राम, दूध आधा किलो, जल आधा किलो, इन सबको मिलाकर उबालें। जलकर केवल दूध मात्र शेष रह जाये तब दूध को ठंडा होने पर छानकर सुबह-शाम सेवन करने से उग्र तथा घोर पागलपन में लाभ होता है।
स्वर भंग में बला के चूर्ण को मिश्री और मधु के साथ सेवन करने से स्वर भंग में लाभदायक होता है।
नेत्राभिष्यन्द (नेत्र रोग) दुखती हुई आँखों पर बला के पत्तों के साथ बबूल के पत्तों को पीस टिकिया बनाकर रखते हैं और ऊपर से स्वच्छ वस्त्र को लपेट देने से लाभ होता है:नेत्र रोग में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE
पित्तज कास में बला, अडूसा, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, द्राक्षा एक-एक ग्राम इसके काढ़ा में शहद मिलाकर पीने से पित्तज कास नष्ट होता है।
फोड़े-फुंसी में बला की जड़ को पीसकर बांधने तथा इसके पंचांग से प्रक्षालन करके फोड़ों को पकाकर फोडने के लिए मूत्र छाल के साथ कपोत विष्टा को पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
श्लीपद (हांथी पाँव) में बला मूल के चूर्ण के साथ कंघी मूल का चूर्ण समभाग मिला, 3 ग्राम तक दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पैर की सूजन बिखर जाती है।
अंगघात में बला मूल को जल में उबालकर एक महीने तक सेवन करने से लाभ होता है। बला मूल सिद्ध तेल की मालिश लेप करनी चाहिए।
जख्म में बला की जड़ व पत्तों के रस को घाव में भर देते हैं तथा उसी रस में रुई को भिगोकर घाव के ऊपर बाँध देते हैं ऊपर से बार-बार बला मूल रस टपकाते रहने से घाव शीघ्र भर जाता है।
बाल रोगों बच्चों के सूखा रोग पर बला के पंचांग का चूर्ण 3 ग्राम का काढ़ा पिलायें तथा 50 ग्राम पंचांग को 3-4 किलो पानी में पकाकर स्नान करायें। ऐसा 5 बार करने से सूखा रोग निश्चय ही पूर्ण लाभ होता है।
बदग्रंथि बंद गांठ को फोड़ने के लिए बला के कोमल पत्तों को पीसकर पुल्टिस बना बांधते हैं तथा ऊपर से जल छिड़कते रहते हैं, गांठ शीघ्र फूट जाती हैं।
समस्त भारत के उष्ण कटिबंधीय तथा समशीतोष्ण प्रांतों में, जंगलों में तथा गावों के आसपास की परती जमीन में बला के स्वयंजात पौधे पाये जाते हैं। बला की अनेक जातियां पाई जाती है, जिनमें बला, अतिबला, महाबला ओट नागबला मुख्य हैं।
बला का क्षुप 2-5 फुट ऊँचा, मूल और कांड दृढ होता है इसलिए इसे बला नाम दिया गया हैं। पत्र एकांतर, 1-3 इंच लम्बे, 1-2 इंच चौड़े, रोमश, 7-9 पाशर्व शिराओं से युक्त, लट्वाकार या हृदयवत आयताकर, गोल-दंतुर होते हैं। पुष्प पत्रकोण से निकलते हैं। पत्रकोण पीट या श्वेत रंग के, बीज छोटे भूरे या काले दानों के रूप में होते हैं। अगस्त-सितंबर से पुष्प तथा अक्टूबर जनवरी में फल लगते हैं।
भाव प्रकाश के मत में चारों प्रकार के बला, शीतल, मधुर, बल्य तथा कान्तिकर, स्निग्ध ग्राही और वात पित्त, रक्त पित्त, रुधिर विकार और क्षयनाशक हैं। बला संग्रहिक, बल्य एवं वातशामक हैं। इसकी जड़ का चूर्ण यदि शर्करा के साथ खायें तो मूत्रातिसार दूर होता हैं। इसमें कुछ भी संदेह नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह अनुभूत योग्य है। महाबला मूत्रकृच्छ्र को नष्ट करती हैं। अतिबला वात की अनुलोमक यदि दूध मिश्रण के साथ सेवन की जाये तो प्रमेह को नष्ट कर देती हैं।
बला का अधिक सेवन करने से गर्भधारण में नुकसान दयाक होता है। इसका अधिक प्रयोग करने से वमन की संभावना रहती है।
Subject- Bala ke Gun, Bala ke Aushadhiy Gun, Bala ke Aushadhiy Prayog, Bala ke Gharelu Upchar, Bala ke Labh, Bala ki Davayen Evam Sevan Vidhi, Bala ke Fayde, Bala ke Nuksan In Hindi.
घरेलू दवा:- Constipation:अनियमित दिनचर्या और भाग दौड़ की जीवनशैली में कब्ज होना एक आम समस्या है। भोजन के बाद…
Fistula:लोगों को भगंदर के नाम से ही लगता है कि कोई गंभीर बीमारी है। लेकिन यह एक मामूली फोड़े से…
Back Pain-आज कल भाग दौड़ की जीवनशैली में कमर दर्द एक आम बात हो गई है। क्योंकि लोगों को खड़े…
Teeth pain- कभी-कभी दांतों की जड़ें काफी ढीली पड़ जाती है। जिसके करण लोगों को दांतों के असहनीय दर्द से…
वासा/अडूसा के औषधीय गुण VASA/Adusa वासा/अडूसा अनेक रोग की दवा: मासिक धर्म, सिरदर्द, नेत्र रोग, कैविटी, दंत पीड़ा, ज्वर, दमा, खांसी, क्षय रोग, बवासीर, मुखपाक, चेचक रोग, अपस्मार, स्वांस, फुफ्फस रोग, आध्मान, शिरो रोग, गुर्दे, अतिसार, मूत्र दोष, मूत्रदाह, शुक्रमेह, जलोदर, सूख प्रसव, प्रदर, रक्त…
अफीम के औषधीय गुण Afim/अफीम अनेक रोग की दवा: बुखार, मस्तक की पीड़ा, आँख के दर्द, नाक से खून आना, बाल की सुंदरता, दन्त की…