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अशोक पेड़ के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग

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अशोक वृक्ष के दिव्य औषधीय गुण

अशोक अनेक रोगों की दवा जैसे:– मधुमेह, पथरी, बवासीर, मासिक धर्म, सफ़ेद पानी, योनि रोग, स्वप्नदोष, मुहांसे, वमन, बुद्धि वर्धक, खुनी दस्त, श्वांस, त्वचा की सुंदरता, अस्थिभंग आदि बिमारियों के इलाज में अशोक की के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है। अशोक वृक्ष के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग:-

Table of Contents

अशोक वृक्ष में पाये जाने वाले पोषक तत्व

अशोक की छाल में टैनिन्स, कैटेकोल, एसेंशियल ऑयल, हिमेटोक्सिलिन, कीटोस्टेरॉल, ग्लाइकोसाइड, सेपोनिन्स, कैल्शियम युक्त और लौह युक्त कार्बनिक यौगिक पाये जाते हैं। अशोक की छाल के कीटोस्टेरॉल में एस्ट्रोजन हारमोन जैसी क्षमता पाई जाती है। प्रजनन संस्थान पर प्रभावी होने का इसका यही मूल कारण हैं।

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मधुमेह में आम की दवाएं एवं सेवन विधि: CLICK HERE

मधुमेह में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

मधुमेह में अशोक के फूलों की बनी टॉनिक या प्रतदिन अशोक के सूखे फूलों का सेवन करने से मधुमेह रोगियों को आराम मिलता है।

पथरी में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

पथरी में अशोक के 1-2 ग्राम बीज को पानी में पीसकर नियमित रूप से दो चम्मच की मात्रा में पीने से पेशाब न आने की शिकायत और पथरी के नष्ट हो जाती है।

बवासीर में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

रक्तार्श (बवासीर) में अशोक की छाल का 40-50 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से बवासीर का रक्त शीघ्र बंद हो जाता हैं। अशोक की छाल और फूलों को बराबर मात्रा में लेकर 30 ग्राम मात्रा को रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह का भिगोया हुआ शाम को पी लें। इससे खूनी बवासीर में शीघ्र आराम मिलता हैं।

मासिक धर्म में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

मासिक धर्म में अशोक की छाल 80 ग्राम चार गुना पानी में तब तक पकायें जब तक एक चौथाई पानी शेष न रह जायें, इस काढ़ा में 80 ग्राम, दूध डालकर तब तक उबालना चाहिये जब तक सब पानी जल न जाये, उसके बाद छानकर स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से मासिक धर्म में गुणकारी होता है।

सफ़ेद पानी में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

श्वेत प्रदर (सफ़ेद पानी) में अशोक की छाल का चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में पका ले, 3 ग्राम की मात्रा गाय के दूध के साथ सुबह-शाम पिलाने से सफ़ेद पानी आना बंद हो जाता है। अशोक की छाल के 40-50 मिलीलीटर काढ़ा को दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर में लाभ होता हैं। अशोक की 3 ग्राम पिपड़ी को चावल के धोवन में पीस लें, उसके बाद छानकर इसमें 1 ग्राम रसौंत और 1 चम्मच शहद मिलाकर नियमित प्रातः-सांय सेवन करने से सभी प्रकर के सफ़ेद पानी में लाभ दायक होता है, इस प्रयोग के साथ अशोक की छाल के काढ़ा में फिटकरी मिलाकर योनि में इसकी पिचकारी देने से लाभ होता है।

योनि रोग में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

योनिशैथिल्य (योनि रोग) में अशोक की छाल, गूलर की छाल, बबूल की छाल, माजूफल और फिटकरी समान भाग में पीसकर 50 ग्राम चूर्ण को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर 100 मिलीलीटर क्वाथ के साथ छानकर रात्रि में प्रतिदिन योनि में पिचकारी के माध्यम से सेवन करने के एक घंटे के पश्चात पेशाब करना चाहिए, योनि रोग में लाभदायक होता है।

स्वप्नदोष में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

स्वप्नदोष में अशोक 20 ग्राम की छाल, यवकूट कर 250 ग्राम जल में पकावें, 30 ग्राम शेष रहने पर इसमें 6 ग्राम मधु मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

मुहांसे में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

मुहांसे में अशोक की छाल का क्वाथ उबाल लें, काढ़ा गाढ़ा होने पर इसे ठंडा करके, इसमें बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिला लें। इसे मुहांसों, फोड़ों, फुंसियों पर नियमित प्रयोग करने से मुहांसे नष्ट हो जाता है।

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वमन में अशोक वृक्ष की दवाएं एवं सेवन विधि:

वमन में अशोक के फूलों को जल के साथ पीसकर स्तनों पर लेप करने से या दूध पिलाने से स्तनपायी बालक का वमन (उल्टी) रुक जाता है।

बुद्धि वर्धक में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

बुद्धि वर्धक में अशोक की छाल, ब्राही चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम एक गिलास दूध के साथ नियमित रूप से एक सप्ताह सेवन करने से बुद्धि की गति तीव्र होती हैं।

रक्तातिसार में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

रक्त अतिसार (खुनी दस्त) में अशोक के 3-4 ग्राम फूलों को जल के साथ पीसकर पिलाने से खुनी दस्त में लाभ होता हैं।

श्वांस में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

श्वास में अशोक के बीजों का चूर्ण 1 चावल के बराबर 6-7 बार पान के बीड़े में रखकर चबाने से श्वास में लाभ होता हैं।

त्वचा की सुंदरता में अशोक की दवाएं एवं सेवन विधि:

चेहरे की सुंदरता में अशोक की छाल के स्वरस में सरसों को पीसकर छाया में सुखा लें, तत्पश्चात सरसों को इसकी छाल के स्वरस में ही पीसकर त्वचा पर लेप करने से त्वचा पर निखार आ जाती है।

अस्थिभंग में अशोक वृक्ष की दवाएं एवं सेवन विधि:

अस्थिभंग में अशोक की पिपड़ी का चूर्ण 6 ग्राम तक दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से तथा ऊपर से लेप करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है और दर्द शांत हो जाता है।

अशोक के नुकसान

अशोक वृक्ष के औषधीय गुणों का प्रयोग हृदय रोग के मरीजों को करने से पहले किसी वैध से जानकारी अवश्य लेना चाहिए।

अशोक वृक्ष का प्रयोग अधिक मात्रा में करने से अमन ओरिया मासिक धर्म व रक्तस्राव के ना होने में और भी कष्टदायक हो सकता है

गर्भवती महिलाओं को अशोक वृक्ष का प्रयोग करने से गर्भाशय में हानि पहुंचा सकती है। इस लिए वैध से परामर्श लेना चाहिए।

अशोक वृक्ष का परिचय

अशोक के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र बाग़-बगीचों में सुंदरता के लिए लगाये जाते हैं। यह 2,000 फीट की ऊंचाई पर बहुतायत में पाया जाता हैं।

अशोक वृक्ष के बाह्य-स्वरूप

अशोक का वृक्ष 25 से 30 फुट तक ऊँचा, सदाहरित, बहुशाखी सघन व छायादार होता हैं कण्डट्वक, शुभ घूसर, खुरदरी, अंदर से रक्त वर्ण कुछ सूफदार होती हैं। पत्र 9 इंच लम्बे, गोल व नोकदार दोनों ओर 5-6 जोड़ो में लगते हैं। कोमलावस्था में ये श्वेताभ लाल वर्ण के परन्तु बाद में गहरे हरे रंग के हो जाते हैं। पत्रकों के किनारे किंचित लहरदार होते हैं। पुष्प गुच्छों में नारंगी और लाल रंग के सुगंधित अति सुंदर होते हैं। फलियां 4-10 इंच लम्बी, 1-2 इंच चौड़ी, बैशाख -जेष्ठ में लगती है। फली के अंदर 4-10 तक बीज होते हैं। कच्ची फली गहरे बैंगनी रंग की और पकने पर काले रंग की हो जाती है। बीज 1 से 1.5 इंच लम्बे, चपटे का छिलका लाल चमड़े के समान मोटा होता हैं। पेड़ में जोड़ने से श्वेत रस निकलता हैं जो शीघ्र ही वायु में सूखकर लाल हो जाता है। यही अशोक का गोंद होता हैं।

अशोक वृक्ष के औषधीय गुण-धर्म

अशोक हल्का रुखा, कषैला, चरपरा, विपाक में कटु और शीतल होता है। यह ग्राही, रक्त संग्राहक, वेदना स्थापक वर्ण को उज्ज्वल करने वाला, हड्डी जोडने वाला, अच्छी सुगंध वाला, हद्द, त्रिदोषहर, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, गुल्म, शूल, उदर रोग, आध्मान, विष, अर्श, रक्त विकार, गर्भाशय की शिथिलता, सर्व प्रकार के प्रदर, ज्वर, सन्धिवातज पीड़ा और अपचि आदि रोगों का नाशक है। यह शीतल, रुचिर, कृमिनाशक हैं। इसका प्रयोग कष्टार्तवः, रक्तपित्त, अश्मरी, मूत्रकृच्छ्र, में करते हैं। अशोक की छाल कटुतिक्त, ज्वर व तृषा नाशक, आंतरसंकोचक, अपच की बीमारी को दूर करने वाली, रक्त विकार थकावटम शूल, अर्श इत्यादि रोगों में लाभदायक हैं। इसके अतिरिक्त पेट बढ़ने की बीमारी, अत्यधिक रक्तस्राव, गर्भस्राव, से रक्त स्राव, में उपयोगी हैं। इसकी छाल का स्वरस बहुत तेज संकोचक है एवं रक्त प्रदर का नाश करती हैं।

Subject- Ashok Pead ke Gun, Ashok Vriksh ke Gun, Ashok Vriksh ke Aushadhiy Prayog, Ashok ke Ghaerelu Upchar, Ashok ke Gun, Ashok ke Aushadhiy Gun, Ashok ke Prayog, Ashok Vriksh ke Labh, Ashok Vriksh ke Fayde, Ashok Vriksh ke Nuksan In Hindi.

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