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अरंडी (अरंड) तेल के फायदे और नुकसान एवं औषधीय गुण

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अरंडी (अरंड) की दवा:-गंठिया, स्तन की गांठ, स्तन की वृद्धि, प्रसव पीड़ा, मासिक धर्म, अंडकोष की सूजन, लिंग दोष, चेहरे का तिल, साटिका, गुप्त रोग, बवासीर, चर्म रोग, पेट की चर्बी, गुर्दा का दर्द, नेत्र रोग, पीलिया, उदर रोग, खांसी, पेचिस, एपेंडिक्स, सूजन, पेट की कीड़े, वादी की पीड़ा, प्लीहा, नहरुबा, घाव, शय्याक्षत (फोड़े), कखरवार, दाह, पित्तगुल्म, बिच्छू विष आदि बिमारियों के इलाज में अरंडी के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-Arandi Oil Benefits And Side Effects In Hindi.अरंडी (अरंड) तेल के फायदे एवं सेवन विधि

Table of Contents

अरंडी  के पौधे में पाये जाने वाले पोषक तत्व

अरंडी में स्थिर तेलं माँसार, और सूत्रों के अतिरिक्त एमाइलेज, इन्वर्टेज तत्व पाया जाता है। अरंड के अतिरिक्त, बीजावरण पत्र तथा कांड में अवस्थित राइसिनीन नामक एक मंद विषाक्त, जल में घुलनशील द्रव्य पाया जाता है। तेल में मुख्यतः राइसिन औलिक अम्ल होता है।

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गंठिया में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

वात शूल (गंठिया) में अरंडी के बीजों को पीसकर लेप करने से छोटे फोड़े और गठिया की सूजन बिखर जाती है। गंठिया में एरंड तैल सर्वोत्तम गुणकारी है पाश्वशूल, हृदय शूल, गृध्रसी, कटिशूल, कफजशूल, आमवात और सन्धिशोधन, इन सब रोगों में एरंड की जड़ 10 ग्राम और सौंठ का चूर्ण 5 ग्राम का काढ़ा बना कर सेवन करने तथा वेदना स्थल पर एरंड तेल की मालिश करने से वातरक्त में एरंड का 10 ग्राम तेल एक गिलास दूध के साथ सेवन करने से गंठिया की पीड़ा शांत होती है।

स्तन की गांठ में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

स्तन की गांठ में जब किसी स्त्री के स्तन से दूध आना बंद हो जाता है और स्तनों में गांठे पड़ जाती है, तब एरंड के 500 ग्राम पत्तों को 20 लीटर जल में एक घंटे तक उबाले, तथा गर्म पानी की धार 15-20 मिनट स्त्री के स्तनों पर डाले या एरंड तेल की मासिल स्तनों पर करें, उबले हुये पत्तों को महीन पुल्टिस स्तनों पर बांधने से गांठे बिखर जाएंगी। और दूध का प्रवाह शीघ्र प्रारम्भ हो जायेगा।

स्तन की वृद्धि में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

स्तन वृद्धि (स्त्रियों का स्तन में वृद्धि) चुचुक के चारों और की त्वचा फट जाने पर एरंड तेल लगाने से स्तनों में शीघ्र लाभ होता है। एरंड के तीन बीजों गिरी की सिरके में पीसकर स्तन पर लेप करने से स्तन की गांठ बिखर जाती है।

प्रसव पीड़ा में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

प्रसव पीड़ा का कष्ट कम हो सके इसके लिये गर्भवती स्त्री को 5 माह बाद, एरंड तेल का 15-15 दिन के अंतर् से हल्का जुलाब देते रहें। प्रसव के समय 25 ग्राम एरंड तेल को चाय या दूध में मिलाकर पीने से प्रसव की पीड़ा शांत हो जाती है।

योनि की खुजली में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

योनि की खुजली में एरंडी तेल में रुई का फोहा भिगो कर योनि के अंदर धारण करने से या अरंडी तेल को योनि में पिचकारी देने से योनि की खुजली नष्ट हो जाती है। गर्भाशय दोष प्रायः प्रसव के पश्चात होता है। इसमें रुग्णा को बहुत तेज ज्वर होता है। इस अवस्था में एरंड के पत्तों के वस्त्रपूत स्वरस में शुद्ध रुई का फोहा भिगोकर योनि में रखने से आराम मिलता है।

मासिक धर्म में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

मासिक धर्म में एरंड के पत्तों को गर्म कर पेट पर बांधने से मासिक धर्म नियमित होने लगता है।

अंडकोष की सूजन में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

अंडकोष की सूजन में 10 ग्राम एरंड तेल को 3 ग्राम त्रिफला और 10 ग्राम गौमूत्र के साथ सुबह-शाम पीने से एवं वेदना स्थान पर एरंड पत्र गर्म कर बांधने से अंडकोष की सूजन शीघ्र बिखर जाती है।

लिंग दोष में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

लिंग दोष में अरंड के बीज और तिल का तेल दोनों को समभाग मिलाकर पकाकर नित्य लिंग पर मालिश करने से मूत्रेन्द्रिय की कमजोरी में लाभ होता है।

साटिका में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

गृध्रसी (साटिका) में एरंड के बीज की गिर 10 ग्राम, को दूध में पकाकर खीर बनाकर खिलाने से साटिका, कटिशूल आमवात में लाभ होता है एवं इससे कब्ज में भी लाभ होता है।

चेहरे का तिल में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

तिल मस्से (चेहरे का तिल) में अरंड पत्र के वृन्त पर थोड़ा चूना लगा तिल पर बार-बार रगड़ने से चेहरे के तिल निकल जाता है।

गुप्त रोग में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

गुप्त रोग में एरंड की मींगी 1 नग, दूध 125 ग्राम, जल 250 ग्राम, ओटावें दूध मात्र शेष रहने पर 10 ग्राम चीनी या मिश्री डालकर पीला दें, इस प्रकार 1 गिरी से शुरू करके, एक सप्ताह तक 1-1 गिरी बढ़ाकर घटाये। 1 गिरी पर लाने से रक्त के रोग नष्ट हो जाते हैं। यह प्रयोग गुप्त रोग के लिए अत्यंत लाभदायक है।

बवासीर में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

अर्श (बवासीर) में एरंड के पत्तों के 100 ग्राम काढ़ा में घृतकुमारी का स्वरस 50 ग्राम मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है। एरंड तेल और घृत कुमारी का स्वरस मिलाकर मस्सों पर लेप करने से बवासीर की जलन शांत हो जाती है। मस्से और गुदा की त्वचा फट जाने पर प्रतिदिन रात्रि को एरंड तेल का सेवन करने से मस्से गुदा व त्वचा में लाभ होता है।

चर्म रोग में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

चर्म रोग में अरंड की जड़ 20 ग्राम को 400 मिलीलीटर पानी का क्वाथ बनाकर 100 मिलीलीटर काढ़ा शेष रहने पर चर्म रोगी को पिलाने से चर्म रोग में लाभ होता है।

पेट की चर्बी में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

पेट की चर्बी को कम करने के लिये हरे एरंड की 20 से 50 ग्राम जड़ को धोकर कूटकर 200 ग्राम पानी में पकाकर 50 ग्राम पानी शेष रहने पर पानी को प्रतिदिन पीने से पेट की चर्बी कम हो जाती है।

गुर्दा का दर्द में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

वृक्क्शूल (गुर्दा का दर्द) में अरंड की मज्जा को पीसकर गर्म-गर्म लेप करने से गुर्दे की पीड़ा व सूजन में लाभ होता है।

नेत्र रोग में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

नेत्र रोग में अरंड तेल के अंजन से नेत्रों में जल स्त्राव होता है। इस लिये इसे नेत्र विरेचन कहते हैं। अरंड तेल 2 बून्द नेत्रों में डालने से, इनके भीतर का कचरा निकल जाता है और आँखों की किरकरी बंद हो जाती है। अरंड पत्रों की जौ के आटे के साथ पुल्टिस बनाकर आँखों पर बांधने से आँखों पर आई पित्त की सूजन बिखर जाती है।

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पीलिया में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

कामला (पीलिया) गर्भवती स्त्री को यदि पीलिया हो जाये और प्रारम्भ अवस्था हो तो, एरंड के पत्तों का 10 ग्राम रस खाली पेट पांच दिन तक पिलाने से पीलिया नष्ट हो जाता है। सूजन भी दूर हो जाती है। एरंड पत्तों के 5 ग्राम रस में पीपल का चूर्ण मिला के नस्य देने से या अंजन करने से पीलिया रोग मिटता है। एरंड की जड़ का रस 6 ग्राम, दूध 250 ग्राम में मिलाकर पिलाने से कामला में आराम मिलता है। एरंड की जड़ के 80 मिलीलीटर काढ़ा में 2 चम्मच शहद मिलाकर चाटने से पीलिया में लाभ होता है।

खांसी में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

खांसी में एरंड पत्र का क्षार 3 ग्राम, तेल एवं गुड़, समान भाग मिलाकर चटाने से खांसी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है:खांसी में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE

उदर रोग में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

उदर रोग में एरंड के बीजों की मींगी पीसकर, गाय के चार गुना दूध के साथ पकाएं जब खोवा की तरह हो जाये तो उसमें 2 भाग चीनी मिलाकर या चीनी की चाशनी बनाकर मीठी चटनी बना लें। प्रतिदिन 15 ग्राम खिलाने से पेट की गैस दूर हो जाती है जीर्ण उदर वेदना में रोज रात्रि को सोने के समय 125 ग्राम गर्म जल में एक नींबू का रस निचोड़कर एरंड तेल में डाल कर पीने से कुछ समय मेंपुराना उदर शूल दूर हो जाता है।

पेचिस में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

प्रवाहिका (पेचिस) में आंव और रक्त गिरता हो तो आरम्भ में ही 10 ग्राम एरंड तेल देने से आम का प्रकोप कम हो जाता है, और खून का गिरना भी कम हो जाता है।

आंत की सूजन में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

एपेंडिक्स (आंत की सूजन ) में एरंड तेल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से ऑपरेशन कछ की आवश्यकता नहीं रहती है।

सूजन में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

किसी प्रकार की सूजन या आमवात इत्यादि में एरंड के पत्तों को गर्म तेल चुपड़ कर बांधने से सूजन गांठ बिखर जाती है।

पेट के कीड़े में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

उदर कृमि (पेट के कीड़े) में एरंड के पत्तों का रस नित्य 2-3. बार बच्चे के गुदा में लेप करने से बच्चों के चुन्ने मर जाते हैं।

वादी की पीड़ा में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

वादी की पीड़ा में एरंड और मेंहदी के पत्तों को पीसकर लेप करने से बादी की पीड़ा नष्ट हो जाती है।

प्लीहा रोग में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

प्लीहोदर में अरंड के पंचांग की 10 ग्राम राख को 40 ग्राम गौमूत्र में मिलाकर रोगी को पिलाने से प्लीहा रोग में आराम मिलता है।

नहरुबा में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

नहरुबा में अरंड के पत्तों को गर्म कर बांधने से नहरूबे की सूजन में शीघ्र आराम मिलता है।

घाव में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

नाड़ी व्रण (घाव) में अरंड के कोमल कोंपलों पत्रों को पीसकर घाव पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है। गहरा घाव और फोड़ो पर अरंड के पत्तों को पीसकर लेप करने से घाव जल्दी ही भर जाते हैं।

फोड़े में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

शय्याक्षत (रोगी को बहुत समय तक खाट पर लेटे रहने से होने वाले फोड़े) में एरंड तेल लगाने से फोड़े जल्दी नष्ट हो जाते हैं। बच्चों के उल्टी दस्त और बुखार में एरंड तेल बहुत लाभदायक औषधि है।

कखरवार में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

विद्रधि (कखरवार) में अरंड की जड़ को पीसकर घी या तेल में मिला कुछ गर्म कर गाढ़ा-गाढ़ा लेप करने से कखरवार नष्ट हो जाती है।

दाह में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

दाह से आने वाला बुखार में एरंड के पत्र धोकर साफ़ कर शरीर पर धारण करने से दाह नष्ट हो जाती है।

पित्तजगुलम में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

पित्तजगुलम एवं पित्त की पीड़ा में यष्टिमधु के 50 ग्राम काढ़ा में एरंड तैल 5-10 मिलीलीटर मिलाकर पिलाने से पित्त की पीड़ा में लाभ होता है।

बिच्छू विष में अरंडी के फायदे एवं सेवन विधि:

बिच्छू विष में एरंड के पत्तों का 100 ग्राम रस पीने से उल्टी होने से सांप तथा बिच्छू के विष में उत्तर जाते है। इसी प्रकार अफीम तथा दूसरी तरह के जहर में भी लाभ होता है। अरंड के 20 ग्राम फलों को पीस छान के पिलाने से अफीम का विष उतरता है।

अरंड की विशेषता:- लाल एरंड का तेल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ लेने से योनिशूल, वातरक्त, गुल्म, हृदय रोग, कटि, जीर्णज्वर, पृष्ठ और कोष्ठशुक्ल को मिटाता है। बुद्धि, आरोग्यता, कांति, स्मृति, बल और आयु को बढाता है तथा हृदय को बलवान करता है।

अरंड पौधे का परिचय

एक वर्षीय या बहुवर्षीय वृक्ष, कृषिजन्य या वंयज 600 फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। अरंड के बीजों की मींगी से जो तेल प्राप्त होता है वह एक निरापद रेचन है। कोष्ठशुद्धि के लिये यह एक परमोपयोगी औषधि है। अरंड के साथ ही यह उत्तम वात-नाशक औषधि है। वात प्रकोप से उत्पन्न कब्ज में, तथा वात व्याधियों में कम मात्रा में अरंड का उपयोग औषधि के रूप में भी कर सकते हैं। अर्श, भगंदर तथा गुदभ्रंश के रोगियों में एरंडपाक के सेवन से बिना जोर लगाये पाखाना साफ़ होता है, जिससे रोगी को उक्त व्याधियों से होने वाले दैनिक कष्ट से मुक्ति मिल जाती है। औषधि कर्म के साथ ही यह पोषण का भी कार्य करता है। एरंड रक्त और सफ़ेद पानी दो प्रकार का होता है। जिन वृक्षों के बीज छोटे होते है, इसका तेल औषधि में प्रयोग किया जाता है।

अरंड वृक्ष के बाह्य-स्वरूप

अरंड का वार्षिक पौधा 8 से 15 फुट ऊंचा, पतला, लम्बा, स्निग्ध होता है। कांड स्निग्ध, हरित सफेद शाखायें, हरापन लिये सफ़ेद रंग की माध्यम आकार की, दण्डाकृति, पत्र चौंड़े 7 से 11 फांक युक्त, पत्र दंड प्रायः एक फिट लम्बा और पोला। पुष्प एक लिंगी, लाल बैंगनी रंग के फल कंटक युक्त फलों के ऊपर हरे रंग का आवरण होता हैं। प्रत्येक फल में 3 बीज होते हैं, बीजत्वाचा कठोर, श्याम अरुणाभ अथवा श्याम सफ़ेद होते हैं। बीज मज्जा श्वेत स्निग्ध।

अरंड के औषधीय गुण-धर्म

कफवात शामक, पित्त वर्धक, शोथहर, वेदना स्थापन, अगंमर्दप्रशमन, भेदन, स्नेहन, कृमिनिःसारक, कफध्न,मूत्रविशोधन, स्तन्यजनं एवं शुक्र तथा गर्भाशय शोधन, कुष्ठघ्न, ज्वरध्न आदि। अरंड तेल में स्रोतों का शोधन करने वाला, त्वचा के लिये हितकारी, वृष्य, वयस्थापन, शुक्रशोधन, योनिशोधन, वाथर और कफहर हैं।

अरंड खाने के नुकसान

लाल एरंड के इक्कीस बीजों की गिरी नशा पैदा करती हैं और ज्यादा खाने से अधिक उल्टी होती है एवं घबराहट या मूर्छा तक भी हो सकती है। यह आमाशय के लिये अहितकर होता है।

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