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श्योनाक का विभिन्न भाषाओं मे नाम:
हिंदी : सोनापाठा
संस्कृत : टुण्टुक, श्योनाक, शुकनास
गुजराती : अरडूसो
बंगाली : सोनालू, शोणा
मराठी : टेंटू
तैलगु : पैद्दामानु
देहरादून : तारलू
पंजाबी : मुलिन
वैज्ञानिक नाम : ओरोक्सीलम इनडीकम (एल) वेन्ट
श्योनाक (सोनपाठा) अनेक रोगों की दवा जैसे:- गंठिया, बुखार, बवासीर, खांसी, श्वांस, दस्त, पाचन शक्ति, प्रसूति दुर्बलता, कर्णशूल, मुंह के छाले, उपदंश आदि बिमारियों के इलाज में श्योनाक, सोनपाठा के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
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सन्धिवात (गंठिया) में आमवात तथा वात प्रधान रोगों में श्योनाक की जड़ व सौंठ का फ़ॉन्ट बनाकर दिन में तीन बार 50 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से लाभ होता है। सोनपाठा की छाल के चूर्ण को 130 मिलीग्राम से 245 मिलीग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम-दोपहर नियमित रूप से सेवन करने से तथा इसके पत्तों को गर्म करके गांठों पर बांधने से गांठ बिखर जाती है।
मलेरिया ज्वर (बुखार) में श्योनाक की लकड़ी का छोटा सा प्याला बना लें, रात को उसी में पानी भरकर रख दें और प्रातः काल उठकर पी लें। इसके प्रयोग से बुखार नष्ट हो जाता है। श्योनाक, शुंठी, बेल के फल की गिरी, अनारदान, अतीस को समान भाग लेकर कूट कर लें। इसमें से 10.1 ग्राम औषधि, आधा किलोग्राम पानी में उबालें, 120 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर छानकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाने से सभी प्रकार के ज्वर व अतिसार नष्ट होते है।
बवासीर में श्योनाक की छाल, सैंधा नमक, इन्द्रजौ, करंज की छाल, चित्र कमूल, सौंठ इन सब औषधियों को समान भाग लेकर पीस-छान करके महीन चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को डेढ़ से तीन ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम-दोपहर मट्ठा के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
खांसी में श्योनाक की छाल के चूर्ण को एक ग्राम की मात्रा में अदरक के स्वरस व शहद के साथ चटाने से खांसी में लाभदायक होता है। सोनपाठा के गोंद के 3 ग्राम चूर्ण को थोड़ा-थोड़ा दूध के साथ खिलाने से खांसी नष्ट हो जाती है।
श्वास में श्योनाक की छाल के चूर्ण को एक ग्राम की मात्रा में अदरक के रस व मधु के साथ चटाने से श्वास में लाभ होता है। श्योनाक के गोंद के 3 ग्राम चूर्ण को दूध के साथ खिलाने से श्वांस में लाभदायक होता है।
अतिसार (दस्त) में श्योनाक की पिपड़ी और कुटज की छाल का 2 चम्मच रस पिलाने से दस्त नष्ट होता है। सोनपाठा की जड़ की छाल और इन्द्रजौ के पत्ते दोनों का स्वरस निकाल कर उसमें मोच रस निलाकर 1 चम्मच की मात्रा में चटाने से दस्त और खुनी दस्त ठीक हो जाता है। श्योनाक के गोंद के 2-4 ग्राम चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से खुनी दस्त बंद हो जाता है।
मंदाग्नि (पाचन शक्ति) में श्योनाक की 20-25 ग्राम छाल को ठन्डे या 210 मिलीलीटर गर्म पानी में चार घंटे भिगोकर रख दें, तत्पश्चात मसल छानकर पी लें, इसको सुबह-शाम सेवन करने से पाचन शक्ति ठीक रहती है।
प्रसूति दुर्बलता में प्रसव में जिन स्त्रियों को चार पांच दिन तक अधिक पीड़ा हो, श्योनाक की छाल का 500 से 600 मिलीग्राम चूर्ण इतनी ही शुंठी वहन व इतनी ही मात्रा में गुड़ लेकर तीनों को मिलाकर तीन गोलियाँ बना लें। इन गोलियों को सुबह-शाम तथा दोपहर दशमूल काढ़ा के साथ सेवन करने से हो रही अधिक पीड़ा शांत होती है। 10-20 दिन तक लगातार देते रहने से सभी प्रकार की कमजोरी दूर हो जाती है।
कर्णशूल (कान के दर्द) में श्योनाक की छाल को पानी के साथ महीन पीसकर तिल के तेल में रख लें और तेल में दुगना पानी डालकर धीमी आग पर पकायें, जब तेल शेष रह जाये तो इसको छानकर शीशी में भर लें, इस तेल की 2-4 बूँद कान में टपकाने से कान की पीड़ा मिटती है।
मुंह के छाले में श्योनाक की जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ले करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते है।
उपदंश में श्योनाक की बारीक पीसी हुई सूखी पिपड़ी के 40-45 ग्राम चूर्ण को पानी में चार घंटे तक भिगोकर रखे, उसके बाद छाल को और पीस ले तथा उसी पानी में छानकर मिश्री मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह-शाम सेवन करने से अथवा पथ्य में गेहू की रोटी, घी चीनी खायें। नीम के पत्तों के काढ़ा से स्नान करें। उपदंश में लाभदायक होता है।
श्योनाक के वृक्ष भारतवर्ष के पश्चिमी शुष्क प्रदेशों को छोड़कर प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। इसकी जड़ की छाल का प्रयोग बृहत पंचमूल में किया जाता है। अतः यह बाजार में पंसारियों के यहां बिकती है। इसके वृक्ष 15-30 फुट तक ऊँचे होते है, परन्तु यदि परिस्थितियां अनुकूल और उपयुक्त हो तो बकायन की तरह 50 फुट तक के वृक्ष भी देखे जाते है। कुछ प्रदेशों में घोडानिम्ब का प्रयोग अरलू या श्योनाक की जगह करते है, परन्तु वास्तव में घोडानिम्ब दूसरी जाति का पौधा है। यहां पर जो विवरण दिया जा रहा है वह ‘श्योनाक’ जिसे लैटिन में कहते हैं।
श्योनाक के वृक्ष पर्णपाती तथा मध्यम ऊंचाई के होते हैं। पत्तियां तीन से पांच इंच लम्बी, दो से साढ़े तीन इंच चौड़ी, लट्वाकार, लम्बाग्र और चिकनी तथा पत्रनाल और पत्रदण्ड पर दाने पड़े होते है। पत्तियां प्रायः त्रिपक्षाकार, द्विक्षाकार या एक पक्षकार होती है। पुष्प वाहक दंड बहुत लम्बा (2-3 फीट तक) पुष्प बहुत बड़े मांसल बैगनी रंग के तथा दुर्गध युक्त होते हैं। फली तलवार जैसी टेढ़ी चिकनी कठोर ढाई इंच से एक फीट लम्बी तथा दो इंच से साढ़े तीन इंच तक चौड़ी होती है। बीज चपटे और आधार के अतिरिक्त चारो ओर सफेद झिल्लीदार पंख युक्त होते हैं। बसंत में वृक्ष निष्पत्र हो जाता है। जिसमें तलवार जैसी फलियां लटकी रहती है। ग्रीष्म एवं वर्षो में फूल तथा जाड़ों में फल लगते हैं।
भूल व तने की छाल में तीन फ्रलेवोन रंजक द्रव्य ऑरोक्सीलिन ‘ए’ बैकलिन और क्राइसिन होते हैं।श्योनाक के अतिरिक्त इसमें एक क्षाराभ, टैनिक एसिड, सीटोस्टेरॉल और ग्लेक्टोज पाये जाते हैं। बीजों में 20 प्रतिशत तक पीले रंग का तेल मिलता है। औषधीय गुणयुक्त अंग, छाल, पत्ते और बीज।
सोनपाठा उष्ण होने से कफ तथा वाट शामक है। छाल को बाहर से लगाने पर शोथहर, व्रणरोपण एवं वेदनाहर है। रस में तिक्त व उष्ण होने के कारण यह दीपन, पाचन, रोचन, ग्राही तथा कृमिघ्न है। श्योनाक के अतिरिक्त शोथ को दूर करने वाला, मूत्रल, कफ को बाहर निकालने वाला, ज्वर दूर करने वाला व कटुपौष्टिक है। श्योनाक विशेषकर कफ व वात से अथवा आम से होने वाले विकारो में प्रयोग होता हैं। सामान्य कमजोरी में विशेष रूप में पेट की गड़बड़ी से होने वाली कमजोरी में इसका उपयोग बहुत लाभकारी हैं। इससे पेट ठीक होता है, अग्नि बढ़ती है, और धीरे-धीरे ताकत आने लगती है।
Subject- Shyonak ke Gun, Shyonak ke Auahadhiy Gun, Shyonak ke Gharelu Upchar, Shyonak ke Aushadhiy Prayog, Shyonk ke Fayde, Shyonak ke Labh, Sonpatha ke Gun, Shyonak ke Nuksan In Hindi.
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Sayonak ki chal kaha mila g
Hello Shivam Yadav, aap ko syonak ki chhal ke liye pansari ki dukan se samprk karna chahiye. Thanks your comments Mr Yadav