पर्णबीज के फायदे, नुकसान एवं औषधीय गुण, पर्णबीज की दवा:-योनिस्राव, प्रमेह, रक्त कैंसर, पथरी, रक्तचाप, नेत्रपीड़ा, सिरदर्द, दमा रोग, पेट दर्द, पाचन शक्ति, मूत्ररोग, रक्तातिसार, रक्तस्राव, पेशाब की जलन, हैजा रोग, घाव, चोट, मोच, फोड़ा-फुंसी, सूजन, रक्तिमा, घावों के दाग, बिच्छू विष, ततैया विष, मकड़ी विष आदि बिमारियों के इलाज में पर्णबीज की घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-पर्णबीज के फायदे, नुकसान एवं सेवन विधि:
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
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Table of Contents
हिंदी – जख्मेहयात
अंग्रेजी – स्प्राउट लीफ प्लांट
संस्कृत – पर्णबीज, अस्तिभक्षका, रक्तकुसुम
बंगाली – पथरकुची
पंजाबी – जख्मेहयात
तैलगू – सीमाजमुदु
कन्नड़ – गंदुकालिंगा
पर्णबीज के औषधीय प्रयोग किये जाने वाले भाग-पर्णबीज की जड़ की छाल, पर्णबीज की पत्ती, पर्णबीज का तना, पर्णबीज का फूल, पर्णबीज के फल, पर्णबीज का तेल आदि घरेलू दवाओं में प्रयोग किये जाने वाले भाग है।
स्त्रियों की योनिस्राव में पर्णबीज के 40-60 मिलीलीटर काढ़ा दुगनी मात्रा में गाय का देशी घी मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से योनि का रक्तस्राव बंद हो जाता हैं।
प्रमेह रोग से छुटकरा पाने के लिए पर्णबीज के पत्तों का 5 मिलीलीटर रस का नियमित रूप से सुबह-शाम तथा दोपहर प्रयोग करने से प्रमेह तृषा, आध्मान उदरशूल, श्वास रोग, जीर्ण कास, अपस्मार मूत्र संस्थान अवरोध में लाभकारी है।
सूखी खांसी से परेशान मरीज को पर्णबीज के पत्तों का 5 मिलीलीटर रस का नियमित रूप से सुबह-शाम तथा दोपहर प्रयोग करने से सूखी खांसी में लाभदायक होता है।
मिर्गी रोग बहुत ही खतरनाक रोग होता है, इस रोग में पर्णबीज के पत्तों का 5 मिलीलीटर रस का नियमित रूप से सुबह-शाम सेवन करने से मिर्गी का रोग ठीक हो जाता है।
रक्त कैंसर में पर्णबीज के के हवाई अंगों का 5-10 बून्द सत रक्त कैंसर में लाभदायक होता हैं।
पथरी और मूत्राशय के रोग से छुटकारा पाने के लिए पाषाण भेद के पंचाग का 40-50 मिलीलीटर काढ़ा दिन में दो तीन बार पिलाने से या पर्णबीज के 40 मिलीलीटर काढ़ा में 500 मिलीग्राम शिलाजीत और 2 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पित्ताशय की पथरी गल कर निकल जाती है।
रक्तचाप में पर्णबीज के हवाई अंगों का 5-10 बून्द सत रक्तचाप को नियंत्रित रखता है।
नेत्रपीड़ा से परेशान व्यक्ति को पर्णबीज के पत्रों का रस आँख के चारों ओर लेप करने से सफेद भाग की पीड़ा नष्ट हो जाती है।
शिरोवेदना में पर्णबीज के पत्रों को पीसकर सिर पर लेप करने से सिरदर्द में शीघ्र लाभ होता है।
दमा रोग में पर्णबीज की पत्तियों का 50-60 मिलीलीटर काढ़ा दमा और श्वांस रोग-ग्रस्त मरीज को पिलाने से दमा रोग फौरन ठीक हो जाता है।
उदरशूल में बच्चों के पेट दर्द को मिटाने के लिये पर्णबीज के 5 मिलीलीटर पत्तों के रस में आवश्यकतानुसार खडं मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से या इसका 50 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से पेट का दर्द शांत हो जाता है। तथा पर्णबीज के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस में 1/2 से 1 ग्राम सौंठ बुरक कर पिलाने से पेट की पीड़ा शांत होती है।
मंदाग्नि (पाचन शक्ति) में पर्णबीज के पत्तों का 5-10 मिलीलीटर रस को सुबह-शाम तथा दोपहर भोजन से 1 घंटा पूर्व पिलाने से पुरानी से पुरानी पाचन शक्ति मिटती है।
मूत्र रोग में पुरुषों के मूत्रसंबन्धी रोगों में पर्णबीज के 40-60 मिलीलीटर काढ़ा में 2 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से मूत्र रोग में लाभ होता है।
मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की जलन) में पर्णबीज की मूल का 40 मिलीलीटर काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से पेशाब की जलन में लाभकारी है।
हैजा (विसूचिका) में पर्णबीज के पत्रों का 5-10 ग्राम स्वरस सुबह-शाम पिलाने से हैजा रोग में लाभ होता हैं।
चोट-मोच से परेशान व्यक्ति को पर्णबीज के पत्तों को कूटकर हल्का गर्म करके चोट-मोच के स्थान पर बाँधने या लेप करने से लाभ होता है।
घाव से पीड़ित व्यक्ति को पर्णबीज के पत्तों को कूटकर हल्का गर्म करके घाव पर बाँधने या लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।
सूजन से छुटकारा पाने के लिए पर्णबीज के पत्रों को हल्का गर्म करने कूटकर सूजे हुए स्थान पर लेप करने से सूजन बिखर जाती है।
घावों के दाग में पर्णबीज के पत्रों को थोड़ा सा गरम करके मसलकर घाव पर बांधने से घाव जल्दी भर जाते हैं तथा बाद में दाग भी नहीं पड़ते।
पर्णबीज बहुवर्षायु पौधा होता है। पर्णबीज वनस्पति भारतवर्ष के प्रायः सभी उद्यानों में लगाई जाती हैं।
पर्णबीज का कांड पोला, लाल या हरा 3-4 फुट तक ऊंचा होता है। पर्णबीज के पत्ते अन्तर, मांसल, तल प्रदेश के पत्ते साधारण और अग्र भाग के पत्ते संयुक्त जिनमें पत्रकों की संख्या 6-7 तक होती है। प्रत्येक पत्रक विपरीत क्रम में लगते हैं। पर्णबीज के पत्रों की दंतुरित गोल किनारी की खाँच से अंकुरित प्ररोह निकलते है जिससे वंशवृद्धि होती है। पर्णबीज के पुष्प बड़े नलिकाकार रक्ताभ, हरित एवं नीचे की ओर झुके हुए 2-3 इंच लम्बे होते हैं। पर्णबीज के पत्रों में बड़ी सुगंध आती हैं।
पर्णबीज में एक सुगंधित तेल होता है, जिसका प्रमुख घटक कार्वाक्रोल है।
पर्णबीज पथरी को भेदने वाला, वस्तिशोधक, भेदक तथा त्रिदोष शामक, बवासीर, गुल्म, मूत्रकृच्छ्र, व्रण रोग को नष्ट करता है। पत्र व्रणरोपक व रक्त स्तंभक होते हैं। इनका प्रयोग रक्तस्राव, चोट, अतिसार, अश्मरी तथा विसूचिका में किया जाता हैं। मूत्रकृच्छ्र और पथरी की यह एक लोकप्रिय औषधि है। पाषाण भेद, अपामार्ग, गोखरू यह सब वात विकार नाशक अश्मरी, शर्करा, मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात की पीड़ा को शांत करता हैं।
पर्णबीज के पत्तों के रस का अधिक मात्रा में सेवन करने से आप को नाश हो सकता हैं।
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