पान के फायदे, नुकसान एवं औषधीय गुण, पान की दवा:-मस्तक पीड़ा, स्त्रियों का पागलपन, रतौंधी रोग, हृदय रोग, हृदय की दुर्बलता, स्तन की सूजन, बच्चों की सर्दी, बच्चों की घबराहट, जुकाम, मधुर आवाज, कंठ का कफ, डिप्थीरिया रोग, गले की सूजन, सुखी खांसी, पाचन शक्ति, मुख की दुर्गंध, दूषित जलवायु में पान, प्यास, कब्ज, ध्वज भंग, शरीर की निर्बलता, बुखार, गाँठ की सूजन, गांठ की पीड़ा, घाव, मुंह के छाले, किडनी, पायरिया आदि बिमारियों के इलाज में पान के घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-पान के फायदे, नुकसान एवं सेवन विधि:Paan/Leaf Benefits And Side Effects In Hindi.
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Table of Contents
हिंदी – पान, ताम्बूल
अंग्रेजी – बेटेल
संस्कृत – नागवल्लरी, नागिनी, नागवल्लिका, व्रणलता, ताम्बूल, सप्तशिरा
गुजराती – नागरबेल
मराठी – नागबेल
बंगाली – पान
तैलगू – नागबली, तामालपाकू
अरबी – तम्बोल, तम्बूल
फ़ारसी – वर्गे तम्बोल, तम्बूल पान को आदि नामों से जाना जाता है।
मस्तक पीड़ा से परेशान मरीज के कनपटिटयों पर पान बांधने या पीसकर लेप करने से मस्तक की पीड़ा शांत हो जाती है।
स्त्रियों का आवेश रोग से छुटकरा पाने के लिए पान का रस गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम तथा दोपहर नियमित रूप से पिलाने से स्त्रियों का पागलपन रोग में लाभ होता है।
रतौंधी रोग से ग्रसित मरीज को पान के पत्तों का रस निकालकर रात्रि को सोते समय 2-3 बून्द आँख में डालने से रतौंधी के रोगी को आराम मिलता है।
हृदय रोग से परेशान व्यक्ति को अवसाद की अवस्था में पान का उपयोग लाभदायक है। डिजिटेलीस के स्थान पर पान का प्रयोग करने से हृदय रोग में लाभ होता है।
हृदय की दुर्बलता को दूर करने के लिए पान का शर्बत बनाकर नियमित सुबह-शाम पिलाने से हृदय की दुर्बलता दूर हो कर हृदय को बल प्राप्त होता है।
जिन स्त्रियों का बच्चा मर गया हो या किसी कारण बस स्तनों में दूध भरकर जम गया हो या सूजन आ गई हो उन स्त्रियों को अपने स्तनों पर पान को गरम करके बांधने या पान को पीसकर हल्का गर्म करके लेप करने से सूजन कम हो जाती है। तथा स्तनों का दूध नष्ट हो जाता है।
बच्चों को सर्दी लग जाने पर पान को गरम करके, थोड़ा सा एरंड का तेल चुपड़कर छाती पर बांधने या पीसकर हल्का गर्म करके लेप करने से बच्चों की सर्दी में आराम मिलता है।
बच्चों की घबराहट कम करने के लिए पान को गरम करके, थोड़ा सा एरंड का तेल चुपड़कर छाती पर बांधने या पीसकर हल्का गर्म करके लेप करने से बच्चों की घबराहट दूर हो जाती है।
प्रतिश्याय (जुकाम) से छुटकरा पाने के लिए पान की जड़ और मुलेठी को पानी के साथ पीसकर शहद के साथ रात्रि में सोते समय चटने से जुकाम संबंधी रोग में शीघ्र लाभ होता है।
मधुर आवाज की कमना करने वालों को गवैये लोग राग साफ़ करने के लिए और अपनी आवाज को सुमधुर बनाने के लिए पान की जड़ चूसते रहने से कंठ में जमा हुआ कफ निकलकर आवज मधुर हो जाती है।
कंठ के कफ में पान की डंठल को घिसकर मधु में मिलाकर चटाने से सर्दी व कंठ के कफ में रोगी को आराम मिलता है। पान की जड़ चूसते रहने से कंठ में जमा हुआ कफ निकलकर जाता है।
डिप्थीरिया रोग में जब श्वासावरोध उत्पन्न होकर रोगी को बहुत कष्ट होता है तो पान के रस का सेवन करने से डिप्थीरिया रोग में लाभ होता है। तथा गले की सूजन कम हो जाती है। तथा कफ निकलने लगता है। डिप्थीरिया रोग में 2-5 पत्तो का रस हल्का गुनगुने पानी में मिलाकर कुल्ला करने से डिप्थीरिया रोग में बहुत फायदा करता है।
गले की सूजन में पान का प्रयोग करने गले की सूजन कम हो जाती है। गले की सूजन में 2-5 पत्तो का रस हल्का गर्म पानी में मिलाकर कुल्ला करने से गले की सूजन बिखर जाती है।
सूखी खांसी से परेशान मरीज को पान के रस 3-4 ग्राम को मधु के साथ मिलाकर रात्रि में सोते समय चटाने से सूखी खांसी में आराम मिलता है।
पाचन शक्ति में पान को मुँह रखकर चूसने पर लार की मात्रा अधिक निकलती है। जिससे पाचन क्रिया में मदद मिलती है। पान पेट की वादी को मिटाने वाला उत्तेजक और ग्राही औषधि है। पान से श्वास में मिठास हो जाता है। बोली शुद्ध हो जाती है।
मुख की दुर्गंध को दूर करने के लिए पान को मुँह रखकर चूसने या चबाते रहने से मुख की दुर्गंध शीघ्र ही नष्ट हो जाती है।
दूषित जलवायु से बचने के लिए आर्द्र पृध्वी और देश के दूषित जलवायु से छुटकरा पाने के लिए पान को खाने वाले व्यक्तियों को इस दूषित जलवायु से छुटकरा मिलता है।
प्यास अधिक लगने पर पान को मुँह में धारण करके चूसते रहने से प्यास कम लगती हैं।
बच्चों के कब्ज में पान के डंठल पर सरसों के तेल में चुपड़कर बच्चों की गुदा में पर रखने से बच्चों की कब्ज और वादी रोग नष्ट हो जाते हैं।
ध्वज भंग रोग (नपुंसकता) से छुटकरा पाने के लिए पान को चबाने से और लिंग पर बांधने या पान को पीसकर लेप करने से नपुंसकता में लाभ होता है।
शरीर की निर्बलता को दूर करने के लिए पान के शर्बत में चरपरी चीजें, अर्थात गर्म बेसबार मिलाकर 25-25 ग्राम दिन में दो तीन बार पिलाने से शरीर की निर्बलता दूर होती है।
ज्वर से ग्रसित मरीज को साढ़े तीन ग्राम पान के अर्क को गरम् करके दिन में दो तीन बार पिलाने से बुखार आना बंद हो जाता है।
ग्रंथि सूजन होने पर पान को गरम करके गांठों पर बांधने या पान को पीसकर लेप करने से सूजन और पीड़ा शांत होकर गांठ की सूजन बिखर जाती है।
गांठों की पीड़ा में आराम पाने के लिए पान को गर्म करके गांठों पर बाँधने से गांठ की पीड़ा शांत हो जाती है।
घावों के ऊपर पान को बांधने या पान को पानी में पीसकर लेप करने से घाव शीघ्र ही भर जाता है।
मुंह के छालों से परेशान व्यक्ति को पान बहुत फायेदेमंद होता है। मुंह में छाले पड़ने पर पान के रस को देशी गाय का घी लगाकर प्रयोग करने से मुंह के छाले में लाभ होता है।
किडनी खराब होने जाने पान का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। परहेज इसके प्रयोग के समय तेज मसाले, शराब एवं मांसाहार का प्रयोग नहीं करना चहिए।
पायरिया से छुटकरा पाने के लिए पान में दस ग्राम कपूर को मिलाकर दिन में दो तीन बार चबाने से पायरिया दूर हो जाती है। ध्यान दे की पान की पीच पेट में ही जानी चाहिए तभी इसका लाभ मिलता है।
पान उष्ण और आर्द्र प्रदेशों विशेषतः बिहार, बंगाल, उड़ीसा, बनारस, महोबा, साँची, लंका और मालवा के रामपुरा-मानपुरा जिले में बहुत बोया जाता है। बनारस का पान सर्वोत्तम माना जाता है।
पान की मूल रोहिणी लता अत्यंत सुंदर और कोमल होती है। काण्ड अर्द्ध काष्ठ में, मजबूत तथा गांठों पर मोटा रहता है। पान के पत्ते पीपल के पत्तों के समान बड़े चौड़े तथा हृदयाकृति शिराओं से युक्त चिकने मोटे एवं करीब 1 इंच लम्बे परं वृन्त वाले होते है। पान पुष्प-क्रम स्पाइक होता है फल 2 इंच लम्बे, मांसल, लटकते हुए व्यूहाक्ष में छोटे-छोटे बहुत फल रहते है। पान में मनोहर गंध रहती है। पान का स्वाद कुछ ऊष्ण एवं सुगंध युक्त रहता हैं।
धन्वंतरि (देव वैद्य) निघंटु ने पान पत्र के तेरह ऐसे गुणों का वर्णन किया है जो स्वर्ग में भी दुर्लभ हैं। पान, चरपरा, कटु, उष्ण, मधुर, क्षारगुण युक्त, कसैला तथा वातकृमि, कफ और दुःख को हरने वाला है। यह धारण शक्ति और काम शक्ति का वर्धन करता है। पान भाव प्रकाश के मतानुसार पान विषध्न, रुचिकारक, सुगंधित, तीक्ष्ण, मधुर, हृदय को हितकारी, जठराग्नि को दीप्त करने वाला, कामोद्दीपक, बलकारक, दस्तावत और मुख को शुद्ध करने वाला हैं। राजनिघण्टु के मतानुसार पान, चरपरा, तीक्ष्ण, कड़वा और पीनस वात कारक तथा खांसी में लाभदायक है। यह रुचिकारक, दाहजनक और अग्निदीपक है। पान पत्र तीक्ष्ण, गरम, कड़वा, पित्त को प्रकुपित करने वाला, सुगंधित, विशद, वात कफध्न, संस्रन, कड़वा, कसैला, लालस्राव, जनन, कण्डू मल और दुर्गंध का नाश करने वाला है। पान का तेल कफीय पीड़ा, गला, मुँह व श्वांस नाड़ी प्रदाह में विशेष उपकारी है। पान में सदन रोधक शक्ति है। पुराना पान अत्यंत रसभरा, रुचिकारक, सुगंधित, मधुर, तीक्ष्ण, दीपन, कामोद्दीपक, बल्य, रेचक और मुख को शुद्ध करने वाला है। नवीन पान त्रिदोषकारक, दाहजंन, अरूचिकाकर, रक्त को दूषित करने वाला, विरेचक और वमनकारक है। वहीँ पान अगर बहुत दिनों तक जल से सींचा हुआ हो तो श्रेष्ठ होता है। यह रुचिकारक वर्ण्य और त्रिदोषनाशक है।
पहली बार खाने से मस्तिष्क पर कुछ ख़ास असर मालुम पड़ता है। जैसे चक्कर आना, घबराहट, बैचैनी आदि, किन्तु पान खाने की आदत बन जाने पर ये सब शिकायतें धीरे-धीरे दूर हो जाती हैं। पान के चूसने पर लार की मात्रा अधिक निकलती है। परन्तु अधिक मात्रा में पान का सेवन नुकसान दायक होता है।
पान तीक्ष्ण, उष्ण और पित्त प्रकोपक होने के कारण यह रक्त पित्त उरःक्षत मूर्च्छा आदि पैत्तिक विकारों में यह निषिध है। पान के अधिक खाने से भूख कम लगती है। दिन-दिन आमाशय कमजोर हो जाता है। इसलिए पान को हमेशा नियमित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
पान में हेपिकसाइन नामक जहरीला पदार्थ होता है। सुपारी में आर्कीडाइन नामक विषैला पदार्थ रहता है, इसलिए सुपारी भी कम लेनी चाहिए। ज्यादा कत्थे से फेफड़े में खराबी पैदा हो जाती है। अधिक चूना दांतों को खराब कर देता है। पान के विषय में आयुर्वेद का कहना है कि तम्बाकू का सेवन नहीं करना चहिए।
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