मौलसिरी के औषधीय गुण
मौलसिरी के फायदे, नुकसान एवं औषधीय गुण, मौलसिरी की दवा:- दन्त की पीड़ा, दांत की मजबूती , दांत को साफ, वृद्धावस्था के दांतों, सिरदर्द, दस्त, खुनी दस्त, मूत्राशय रोग, धातु रोग, कमर दर्द, गर्भाशय की शुद्धि, सफ़ेद पानी, घाव, मुखरोग, मसूड़ों की सूजन, हृदय रोग, मस्तिष्क, खाँसी, कब्ज आदि बिमारियों के इलाज में मौलसिरी की घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-मौलसिरी के फायदे, नुकसान एवं सेवन विधि:
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Table of Contents
हिंदी – मौलसिरी
अंग्रेजी – बुलेट वुड ट्री,
संस्कृत – चिरपुष्प, मधुगंध
गुजराती – बोलसरी
मराठी – बकुल
बंगाली – बकुल, गाध्य
तैलगू – पगादमानु, पामड़ा आदि भाषाओँ में मौलसिरी को जाना जाता है।
दंतपीड़ा में मौलसिरी की 50 ग्राम छाल को 500 ग्राम पानी में उबालकर 100 ग्राम शेष क्वाथ से कुल्ला करने से दन्त की पीड़ा शांत हो जाती है। मौलसिरी की छाल के 100 ग्राम काढ़ा में 2 ग्राम पीपल, 10 ग्राम मधु और 5 ग्राम घी मिलाकर कुछ देर तक मुख में बार-बार चलाने से दांतों की पीड़ा नष्ट होती है।
दांत की मजबूती में मौलसिरी के 1-2 फलों को नियमित रूप से चबाने से भी दांत मजबूत हो जाते हैं। मौलसिरी की दातौन करने से अथवा दांतों के नीचे रख कर चबाने से हिलते हुए दन्त स्थाई व दृढ हो जाते हैं।
दांत की चमक में मौलसिरी की छाल के चूर्ण का मंजन करने से दांत वज्र की तरह चमकने लगते हैं।
वृद्धावस्था के हिलते हुए दांतों की मजबूती में मौलसिरी की शाखाओं के अग्रमि कोमल भाग का काढ़ा दूध या जल के साथ मिलाकर प्रतिदिन नियमित रूप पीने से वृद्धावस्था में भी दांत मजबूत और सुदृण रहते हैं।
सिरदर्द में मौलसिरी के सूखे फूलों का महीन चूर्ण नस्य की तरह सुंघाने से सिरदर्द में उसी समय लाभ होता है।
मुख के छाले में बकुल, आंवला और कत्था इन तीनों वृक्षों की समभाग छाल का काढ़ा से दिन में दस-बीस बार कुल्ला करने से मुँह के छाले फुट कर नष्ट हो जाते हैं।
मसूड़ों की सूजन में मौलसिरी के सूखे फूलों का महीन चूर्ण को मसूड़ों पर लेप करने से मसूड़ों की सूजन बिखरती है, और दांत बहुत मजबूत हो जाते हैं।
हृदय विकार में मौलसिरी के फूलों के अर्क के 5-10 बून्द के सेवन से दिल की धड़कन दूर होती है, मस्तिष्क को बल मिलता है।
खांसी से परेशान मरीज को मौलसिरी 20-25 ग्राम ताजा फूलों को रात भर आधा किलो पानी में भिगोकर रखे प्रातः काल 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम 6-7 दिन तक उस पानी को बच्चे को पिलाने से खासी मिट जाती है।
बच्चों का कब्ज दूर करने के लिए मौलसिरी के बीजों की मींगी की बत्ती, पुराने घी के साथ बनाकर, बत्ती को गुदा में रखने से 15 मिनट में मल की कठोर गांठे दस्त के साथ निकल जाती है।
दस्त से ग्रसित मरीज को बकुल के 8-10 बीजों को ठंडे पानी में पीसकर प्रयोग करने से दस्त ठीक हो जाता है। पुराने दस्त में मौलसिरी के पके हुए फल के गूदे को 10-20 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से दस्त आना बंद हो जाता है।
खुनी दस्त में मौलसिरी के बीजों की मींगी के तेल की 20-40 बून्द की मात्रा, 2-3 दिन तक प्रयोग करने से खुनी दस्त बंद हो जाते हैं।
मूत्राशय रोग में मौलसिरी की छाल 5 ग्राम का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम कुछ दिनों तक पीने से मूत्र में रक्त का आना बंद हो जाते हैं।
सफ़ेद पानी में मौलसिरी की छाल के चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में 1 चम्मच शहद के साथ दिन में दो तीन बार सेवन करने से योनिस्राव यानि सफ़ेद पानी नष्ट हो जाती है।
शुक्र-धातु में मौलसिरी की छाल के चूर्ण को 2-4 ग्राम की मात्रा में 2 चम्मच मधु के साथ सुबह-शाम तथा दोपहर प्रयोग करने से धातु का गिरना बंद हो जाता है।
कमर दर्द से परेशान व्यक्ति को मौलसिरी की छाल का चूर्ण 2-3 ग्राम की मात्रा में लेकर उसमें 1 चम्मच मधु मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से प्रयोग करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
गर्भाशय शुद्धि में जिन स्त्रियों के गर्भ न रहता हो उन स्त्रियों को मौलसिरी की छाल के 5-10 ग्राम चूर्ण या 10-20 ग्राम काढ़ा का सेवन कराने से कुछ ही दिनों में उनका गर्भाशय शुद्ध होकर स्त्री गर्भ धारण कर लेती है।
गर्भाशय के पानी में मौलसिरी की छाल के 5-10 ग्राम चूर्ण में समान भाग खंड में मिलाकर स्त्री को खिलाने से गर्भाशय से पानी का बहना बंद हो जाता है।
व्रण (घाव) में मौलसिरी की छाल के काढ़ा से दूषित घाव और गहरे घेवून को धोने से घाव शीघ्र भर जाता है। तथा घाव से निकलने वाले पीव बंद हो जाते हैं।
चित्त को अति आनंद देने वाले मनोरम सुगंधित पुष्पों से युक्त बकुल के सदा हरित वृक्ष, सड़कों के किनारे, गृहवाटिकाओं में यहाँ वहां सर्वत्र लगाये हुए मिलते हैं। मौलसिरी के फूल इतने सुगंधित होते हैं कि शुष्क होने पर भी उनमें सुंगध बनी रहती है।
काण्ड छोटा, सीधा, बहुशाखीय। सघन पत्र 2-4 इंच लम्बे, अगर पर सहसा नोकीले तथा वृन्त की ओर गोल व कम चौड़े जामुन सदेश होते हैं। पुष्प श्वेत वर्ण के दलचक्र में 24 पंखुड़ियां होती है, एकाकी या मंजरियों में निकलते हैं। फल एक इंच तक लम्बा अंडाकार, अपक्व अवस्था में हरा पकने पर नारंगी या पीले रंग है। प्रत्येक फल में अंडाकार, चपटा, चमकीले भूरे रंग का एक बीज होता है। ग्रीष्म से शरद ऋतु तक इसमें पुष्प लगते हैं और बाद में फल आते हैं।
मौलसिरीकी छाल में टैनिन, रंजक द्रव्य, मोमिय पदार्थ, स्टार्च एवं क्षार पाई जाती है। मौलसिरी फूलों में एक उड़नशील तेल, बीजों में एक स्थिर तेल तथा फल मज्जा में शर्करा व सैपोनिन पाया जाता है।
मौलसिरी पित्त, कफ शामक, स्तम्भक, ग्राही, कृमिघ्न, गर्भशाय की शिथिलता, शोथ एवं योनिस्राव को दूर करता है। बस्ति एवं मूत्र मार्ग के स्राव और शोथ को कम करता है। पुष्प हृदय और मेध्य तथा सौमनस्य जनन होते हैं। मौलसिरी फल तथा छाल पौष्टिक, रक्त स्तम्भक, ज्वरध्न एवं विषध्न तथा कुष्ठघ्न हैं तथा दांतों के लिए विशेष लाभकारी है।
मौलसिरी का प्रयोग उन स्त्रियों को नहीं करना चाहिए जिन्होंने ने गर्भाशय की दवा करा रही हो क्योंकि उनको यह औषधीय साईट इफेक्ट्स कर सकती है। इस औषधि का प्रयोग करने से पहले किसी वेद से जानकारी ले लेनी चहिए।
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