काली मिर्च की दवा- गंठिया, शरीर की दुर्बल्यता, वीर्य पुष्टि, बुखार, तेज बुखार, बवासीर, सिरदर्द, हिचकी, अधकपारी, पागलपन, सिर की जुंएं, गंजापन, नेत्ररोग, रतौंधी, मस्तिष्क रोग, आँख की फुंसी, दंतपीड़ा, कंठ विकार, स्वरभंग, जुकाम, श्वांस, सीने का दर्द, दमा रोग, खांसी, गले की खराश, हैजा, पेचिस, दस्त, पेट के कीड़े, पेट दर्द, पेट की सूजन, पेट की वायु, पाचन शक्ति, अफरा रोग, गुदभ्रंश, पेशाब की जलन, पेशाब की रुकावट, सूजन, पुराना जुकाम, मिर्गी रोग, आमवात, अंगघात, कण्डू रोग, कमर दर्द, शीत पित्त, फोड़ा-फुंसी आदि बिमारियों के इलाज में काली मिर्च की घरेलू दवाएं एवं औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-काली मिर्च के फायदे और नुकसान एवं सेवन विधि Kali Mirch Benefits And Side Effects In Hindi.
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
Click Here
Table of Contents
काली मिर्च में मुख्य क्षाराभ पाइरिन, पाइरिडीन, पाइपरेटिन तथा चरविकिन होते हैं। इन्ही के कारण इसमें कटुता होती है। इसके अतिरिक्त उड़नशील तेल, वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज पदार्थ, कैल्शियम, लौह, फास्फोरस, थियामिन, राइबोफ्लेविन, निकोटिनिक एसिड तथा विटामिन ए पाये जाते हैं।
हिंदी – काली मिर्च
अंग्रेजी – ब्लैक पेप्पर, Black Pepper
संस्कृत – मरिच, यवनेष्टं, शिरोवृत्म, कृष्ण
गुजराती – सरी
मराठी – मिरी
बंगाली – गोलमरिच
तैलगू – मिरियालु
फ़ारसी – फिल-फिल स्याह
पंजाबी – काली मिरच
अरबी – फिल-फिल अस्वद
गठिया रोग में काली मिर्च के सिद्ध तेल सुबह-शाम तथा दोपहर मालिश करने से गंठिया रोग में बहुत लाभ होता है।
शरीर की दुर्बल्यता, आलस्य, उदासीनता को दूर करने के लिए काली मिर्च 4-5 दाने, सौंठ, दालचीनी, लौंग और इलायची थोड़ी-थोड़ी मात्रा में मिलाकर चाय की तरह गाय का दूध और चीनी मिलाकर प्रयोग करने से शरीर की दुर्बल्यता शीघ्र ही दूर हो जाता है।
वीर्य पुष्टि करने के लिए एक गिलास दूध में 8-10 काली मिर्च को डालकर अच्छी तरह उबालकर, सुबह-शाम नियमित रूप से प्रयोग कर तथा गर्मी के मौसम में प्रयोग की मात्रा कम कर देना चहिए।
ज्वर (बुखार) में काली मिर्च के 1-3 ग्राम चूर्ण में आधा लीटर पानी और 20 ग्राम मिश्री मिलाकर अष्टमांश काढ़ा सिद्ध कर सुबह-शाम तथा दोपहर पिलाने से बुखार में लाभ होता है।
तेज बुखार में काली मिर्च के 5 दाने, अजवायन 1 ग्राम और हरी गिलोय 10 ग्राम, सबको 1 पाँव पानी में पीस, छानकर पिलाने से बुखार की गति कम हो जाता है। 300 मिलीग्राम से 2 ग्राम तक काली मिर्च चूर्ण मधु के साथ दिन में 3 बार चाटने पर यह बादी बुखार को रोकता है.
अर्श (बवासीर) में काली मिर्च चूर्ण 2 ग्राम, भुना जीरा 1 ग्राम, मधु या खंड 15 ग्राम, इन सब को मिलाकर, गर्म जल से इस योग को सुबह-शाम मट्ठे के साथ या गर्म जल के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है। काली मिर्च चूर्ण 25 गर्तं एकत्र कर मिलाकर मीठी चाशनी बनाकर रख लें। इस चाशनी को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में तो तीन बार मस्सों पर लेप करने से मस्से कट कर गिर जाती है। काली मिर्च और जीरे के मिश्रण में सैंधा नमक मिला दिन में दो बार 3-4 माह सेवन करने से रोग जन्य निर्बलता से या वृद्धावस्था से हुई अर्श या गुदभ्रंश व्याधिया दूर हो जाती है।
शिरःशूल में एक काली मिर्च सुई की नोंक पर लगाकर उसे दीपक पर जला लें, और उस धुंए को नाक के रास्ते मस्तक तक चढ़ाने से हिचकी और सिर का दर्द दूर होता है।
हिचकी के अधिक आने पर काली मिर्च को सुई की नोंक पर लगाकर उसे दीपक पर जला लें, और उस धुंएँ को नाक के रास्ते से मस्तक तक चढ़ाने से हिचकी से आराम मिलता है।
अधकपारी में चूल्हे की लाल हुई मिटटी के चूर्ण तथा काली मिर्च के चूर्ण का समभाग मिलाकर नस्य लेने से भी अर्धावभेदक व अधकपारी का सिरदर्द शांत हो जाता है। भांगरे के रस अथवा चावलों के पानी के साथ काली मिर्च को पीसकर मस्तक पर लेप करने से आधाशीशी में आराम मिलता है।
हिस्टीरिया (पागलपन) में खाली पेट खट्टी दही के साथ मीठी बच 3 ग्राम और काली मिर्च का चूर्ण 1 ग्राम दिन में दो तीन बार खिलाने से हिस्टीरिया पागलपन रोग नष्ट हो जाता है।
सिर की जुएं को नष्ट करने के लिए 10-12 सीताफल के बीज और 5-6 काली मिर्चों को सरसों के तेल में मिलाकर रात्रि में सोने से पहले बालों की जड़ो में मलें, सुबह बाल धोकर साफ कर लें। जुएं नष्ट हो जाती है।
गंजापन में काली मिर्च, प्याज व नमक के साथ पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होकर नए बाल उगने लगते है।
आँख के दोष में काली मिर्च को दही के साथ पीसकर आँखों में अंजन करने से आँख के दोष शीघ्र ही मिट जाते हैं। काली मिर्च के 1/2 ग्राम चूर्ण को 1 चम्मच देशी घी में मिलाकर खिलाने से आँख के अनेक प्रकार के रोग नष्ट हो जाते है।
रतौंधी रोग में काली मिर्च को दही के साथ मिलाकर आँखों के आसपास लेप करने से रतौंधी का रोग शीघ्र ही शांत हो जाता है।
मस्तिष्क रोग में काली मिर्च का सेवन प्रातः कॉल 1/2 से 1 ग्राम तक काली मिर्च, 1 चम्मच घी, आवश्यकतानुसार मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से मस्तिष्क रोग शांत रहता हैं तथा दृष्टि बलवान होती हैं। बाद में दूध का सेवन करने से मस्तिष्क रोग में आराम मिलता है।
आँखों के पलकों की फुंसी होने पर काली मिर्च जल में घिसकर लेप करने से पलकों की फुंसी पककर फुट जाती है तथा आखों के दर्द में आराम मिलता है।
दंतपीड़ा में काली मिर्च के 1-2 ग्राम चूर्ण को 3-4 जामुन के पत्ते या अमरुद के पत्तों या पोस्तदानों के साथ पीसकर कुल्ला करने से दांतों के दर्द में लाभदायक होता है।
कंठ विकार व स्वरभंग में काली मिर्च को जल के साथ पीसकर उसमें हल्का शहद मिलाकर नियमित सुबह-शाम प्रयोग करने से कंठ विकार दूर हो जाता है।
प्रतिश्याय (जुकाम) में काली मिर्च के चूर्ण 2 ग्राम को गर्म दूध तथा मिश्री के साथ पी लेने अथवा काली मिर्च के 7 दाने निगलने से जुकाम में लाभ होता है। 50 ग्राम दही, 15-20 ग्राम गुड़ और एक-डेढ़ ग्राम काली मिर्च चूर्ण इन सब को मिलाकर दिन में दो चार बार सेवन करने से जुकाम नष्ट हो जाता है।
श्वास रोग में 2-3 ग्राम मिर्च को मधु और देशी घी (विषम भाग) मिलाकर सुबह-शाम चाटने से सर्दी, आमतौर से होने वाली खांसी, दमा और सीने का दर्द मिटता है तथा फेफड़ों का कफ निकल जाता है।
दमा रोग में गाय के दूध में काली मिर्च के चूर्ण को पकाकर प्रयोग करने से दमा रोग में लाभ होता है।
सीने के दर्द बार-बार होने वाला सीने के दर्द में भोजन निकलने में कष्ट हो तो दिन में दो तीन बार काली मिर्च के काढ़ा से कुल्ले करने से सीने का दर्द शांत हो जाता है।
कष्टदायक खांसी में काली मिर्च का चूर्ण 2 भाग, पीपल चूर्ण बनाकर 8 भाग गुड़ में मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर दिन में दो तीन बार उपयोग करने से खांसी में लाभ होता है।
गले की खराश में 2-3 काली मिर्च को मुख में रखकर चूसते रहने से गले की खराश में लाभ होता है।
विसूचिका (हैजा) रोग में काली मिर्च चूर्ण 1 भाग, भुनी हींग 1 भाग, अच्छी तरह खरल कर, शुद्ध देशी कपूर 2 भाग, मिलाकर 2-2 रत्ती की गोलियां बनाकर, आधा घंटे के अंतराल से 1-1 गोली का सेवन करने से हैजे की प्रथम अवस्था में लाभ होता है।
पेचिस में काली मिर्च चूर्ण 1 ग्राम भूनी हींग 1 ग्राम, अच्छी तरह से पकाकर उसमें 3 ग्राम अफीम मिलाकर मधु के साथ घोटकर 12 गोलियां बनाकर 1-1 गोली 1 घंटे के अंतराल से सेवन करें, परन्तु बहुत समय तक न दें। इस प्रयोग से पेचिस में अत्यंत लाभ होता है। परहेज इसमें अफीम की मात्रा होने से इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चहिए।
अतिसार (दस्त) में काली मिर्च चूर्ण 1/2 ग्राम, हींग 1/4 ग्राम, अफीम 100 मिलीग्राम का मिश्रण जल के साथ या मधु के साथ सुबह-सांय तथा दोपहर कराने से दस्त में लाभ होता है।
उदर कृमि (पेट के कीड़े) में एक कप मट्ठा के साथ 4-6 काली मिर्च का चूर्ण प्रातः काल खाली पेट प्रयोग करने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
उदर रोग (पेट के रोग) में 8-10 काली मिर्च और 5-7 ग्राम के लगभग शिरीष के पत्ते घोंट, छानकर मरीज को पिलाने से पेट के सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते है।
पेट की सूजन में एक कप पानी में आधा नीबू निचोड़कर, 5-6 काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर भोजनोपरांत सुबह-शाम मरीज को पिलाने से पेट की सूजन नष्ट हो जाती है।
पेट की वायु में काली मिर्च चूर्ण के साथ सौंठ, पीपल, जीरा और सैंधा नमक समभाग चूर्ण कर 1-1 ग्राम की मात्रा में भोजनोपरांत गर्म जल के साथ सेवन करने से पेट की वायु में आराम मिलता है।
पाचन शक्ति में काली मिर्च, सौंठ, पीपल तथा हरड़ चूर्ण मिलाकर मधु के साथ सेवन करने से अथवा काली मिर्च का काढ़ा पिलाने से पाचन शक्ति ठीक हो जाती है।
अफरा रोग में काली मिर्च, पीपल, हरड़, सौंठ इन सब का चूर्ण बनाकर शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से अफरा रोग नष्ट हो जाता है।
गुदभ्रंश में 1 ग्राम काली मिर्च चूर्ण दिन में दो तीन बार मधु के साथ प्रयोग करने से गुदा का बाहर निकलना बंद हो जाता है।
मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की जलन) में काली मिर्च 1 ग्राम और खीरा ककड़ी के बीज 10-15 ग्राम जल के साथ पीसकर मिश्री मिला छानकर पिलाने पेशाब की जलन में आराम मिलता है। तथा इसके प्रयोग से शरीर को शीतलता व ताजगी की प्राप्ति होती है।
पेशाब की रूकावट में काली मिर्च 2 ग्राम और खीरा ककड़ी के बीज का चूर्ण 15-20 ग्राम जल के साथ पीसकर उपयोग करने से पेशाब की रूकावट में लाभ होता है।
सभी प्रकार की सूजन में काली मिर्च को पानी के साथ पीसकर उसका लेप करने से सूजन बिखर जाती है। तथा सूजन का दर्द भी शांत हो जाता है।
पीनस रोग पुराना से पुराना जुकाम में काली मिर्च 2 ग्राम को गुड़ और गाय के दही के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से प्रयोग करने से पुराना से पुराना जुकाम में शीघ्र लाभ होता है।
अर्दित रोग (मिर्गी रोग) में यदि जीभ में जकड़न हो तो काली मिर्च के चूर्ण करके जीभ पर घिसने से मिर्गी रोग लाभ होता है।
लकवा रोग में काली मिर्च चूर्ण को किसी भी वातहर तेल में मिलाकर लकवा ग्रस्त अंग पर मालिश करने से लकवा रोग में लाभ होता है।
कमर दर्द में काली मिर्च के चूर्ण को घी के साथ मिलाकर खिलाने से तथा घी में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द मिटता है।
शीत पित्त में 4-5 काली मिर्च को गाय के घी के साथ मिलाकर खिलाने से तथा घी में मिलाकर मालिश करने से शीत पित्त में शीघ्र लाभ होता है।
फोड़े-फुंसियों पर काली मिर्च को जल में पीसकर लेप करने से फोड़े-फुंसी में लाभ होता है। इसके प्रयोग से दूषित घाव शीघ्र भर जाता है।
वीर्य पुष्टि में काली मिर्च का अधिक सेवन करने से शरीर में अधिक गर्मी होने के कारण स्वप्नदोष होने का डर रहता है।
इसका अधिक सेवन करने से पेट में जलन, पेट दर्द तथा पेचिस की सम्भावन बढ़ जाती है।
काली मिर्च का अधिक प्रयोग करने से गर्भवती स्त्रियों में गर्भपात होने का डर रहता है।
स्तनपान कराने वाली स्त्रियों में काली मिर्च का प्रयोग करने से काली मिर्च का कठोर स्वाद दूध में रुकावट हो सकता है। काली मिर्च का अधिक सेवन एलर्जी भी पैदा कर सकता है।
बहुवर्षीय, ताम्बूल सदृश, पर्णवाली, अतिप्रसरणशील,कोमल वल्लरी, ग्रंथि पर्वो से उत्पन्न तंतुओं के सहारे मार्ग में आये वृन्त का आलिंगन करती हुई, दृढ शाखाओं के माध्यम से वृद्धि को प्राप्त करती है। किंचित प्रदेशों में स्वयं उत्पन्न होती है परन्तु दक्षिणी भारत के उष्ण और आर्द्र भागों में काली मिर्च की बेले बोई जाती है। अधिकतर एक वर्ष में काली मिर्च की दो उपज प्राप्त होती है। पहली उपज अगस्त-सितंबर में और दूसरी मार्च-अप्रैल में प्राप्त होती है। बाजारों में श्वेत मिर्च और काली मिर्च के नाम से यह दो प्रकार की बिकती है। कुछ निघण्टुकार श्वेत मिर्च को काली मिर्च की एक विशेष जाति मानते हैं। कोई सहिजना के बीजों को ही श्वेत मिर्च मान लेते हैं। वस्तुतः यह दोनों में से कोई नहीं है। श्वेत मिर्च काली मिर्च का रूपांतर है। अर्धपक्व फलों की तो काली मिर्च बनती है तथा पूर्ण प्रगल्भ फलों को पानी में भिगोकर, हाथ से मसलकर ऊपर का छिलका उत्तर जाने से श्वेत मिर्च बन जाती है। छिलका हट जाने से इसका विदाही धर्म कुछ कम हो जाता है तथा गुणों में कुछ सौम्यता आ जाती है।
काली मिर्च एक झाड़ीदार, आरोहिणी या भूमि पर फैली हुई लता है। पत्र, ताम्बूल सदृश 5-6 इंच लम्बे, 2-5 इंच चौड़े, 2-3 जोड़ी दृढ शिराओं से युक्त होते हैं। पुष्प छोटे एकलिंगी, श्वेत धूसर वर्ण के। फल वर्षाकाल गोल-गोल गुच्छों में लगते हैं। अपक्व अवस्था में हरे, पकने पर लाल और सूखने पर काले पड़ जाते हैं। यह अर्धपक्व दशा में ही तोड़कर सुख लिये जाते हैं। ये ही काली मिर्च कहलाते हैं।
यह वात-शामक, कफध्न और कफ निःसारक हैं। तीक्ष्ण और उष्ण होने से लालास्रावजनक है। दीपन पाचन, यकृत उत्तेजक, वातानुलोमन, श्वास, शूलनाशक और कृमिघ्न है। यह मूत्रल है, ध्वज भंग और रजोरोध, चर्मरोग, ज्वर तथा कुष्ठ में लाभकारी है और नेत्रों के लिए विशेष हितकारी है। अल्पमात्रा यह तीक्ष्णता कारण शरीर के समस्त स्रोतों से मलों को बाहर निकाल कर स्रोतसों का शोधन करता है अतः प्रमाथी द्रव्यों में प्रधान माना गया है।
Subject- Kali Mirch ke Aushadhiy Gun, Kali Mirch ke Aushadhiy Prayog, Kali Mirch ke Ghareluu Upyog, Kali Mirch ke Labh, Kali Mirch ki Davaen, Kali Mirch ke Fayde Aur Nuksan Evam Aushadhiy Prayog-Gun, Kali Mirch ke Fayde Evam Sevan Vidhi, Kali Mirch Nuksan, Kali Mirch Benefits And Side Effects In Hindi.
घरेलू दवा:- Constipation:अनियमित दिनचर्या और भाग दौड़ की जीवनशैली में कब्ज होना एक आम समस्या है। भोजन के बाद…
Fistula:लोगों को भगंदर के नाम से ही लगता है कि कोई गंभीर बीमारी है। लेकिन यह एक मामूली फोड़े से…
Back Pain-आज कल भाग दौड़ की जीवनशैली में कमर दर्द एक आम बात हो गई है। क्योंकि लोगों को खड़े…
Teeth pain- कभी-कभी दांतों की जड़ें काफी ढीली पड़ जाती है। जिसके करण लोगों को दांतों के असहनीय दर्द से…
वासा/अडूसा के औषधीय गुण VASA/Adusa वासा/अडूसा अनेक रोग की दवा: मासिक धर्म, सिरदर्द, नेत्र रोग, कैविटी, दंत पीड़ा, ज्वर, दमा, खांसी, क्षय रोग, बवासीर, मुखपाक, चेचक रोग, अपस्मार, स्वांस, फुफ्फस रोग, आध्मान, शिरो रोग, गुर्दे, अतिसार, मूत्र दोष, मूत्रदाह, शुक्रमेह, जलोदर, सूख प्रसव, प्रदर, रक्त…
अफीम के औषधीय गुण Afim/अफीम अनेक रोग की दवा: बुखार, मस्तक की पीड़ा, आँख के दर्द, नाक से खून आना, बाल की सुंदरता, दन्त की…