Changeri Benefits And Side Effects In Hindi.
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चांगेरी में पोटेशियम और आक्जेलिक अम्ल, विटामिन सी का अच्छा स्रोत पाये जाते हैं।
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चांगेरी अनेक रोगों की दवा जैसे:- बुखार, बवासीर, मासिक धर्म, पेट दर्द, दस्त, सिरदर्द, दंतमंजन, पेचिस, मुख की दुर्गंध, मसूड़ों के रोग, पाचन शक्ति, दाह, धतूरे का विष आदि बिमारियों के इलाज में चांगेरी के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-
चौथिया ज्वर में चांगेरी के लगभग आठ हजार पत्तों को अच्छी तरह पीसकर, 16 गुने जल में उबालने पर जब यह गाढ़ा हो जाये तो इसमें इतना घी डाले कि रबड़ी जैसा हो जाये, इसका 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से बुखार तीन चार दिन में उत्तर जाता हैं।
बवासीर-अर्श में चांगेरी के पंचाग को घी में सेंक कर शाक बनाकर दही के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।
मासिक धर्म में चांगेरी के पंचाग के स्वरस की 5-10 मिलीलीटर मात्रा में दिन में दो बार प्रयोग करने से पतली धमनियों का संकोच होकर रक्तस्राव में आराम मिलता हैं।
पेट दर्द में चांगेरी के पत्तों के 40-60 ग्राम काढ़ा में भूनी हुई हींग व मुरब्बा मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पेट दर्द मिट जाता है।
दस्त में चांगेरी का 2-5 ग्राम स्वरस दिन में दो बार पिलाने से पेचिश और अतिसार में भी लाभदायक होता हैं। चांगेरी को सौंठ और इन्द्रजौ के समभाग चूर्ण को चावलों के पानी के साथ पीने, जब-चूर्ण पच जाये तो मट्ठे, चांगेरी, दाड़िम का रस डालकर पकाई गयी यवागू अतिसार में खाने को देने से पुरानी पेचिश में चांगेरी के 4-5 पत्तों को उबालकर मठठे या दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।
सिरदर्द में चांगेरी के रस में प्याज का रस समभाग मिलाकर सिर पर लेप करने से सिरदर्द में लाभ होता हैं।
दंतमंजन में चांगेरी के सूखे हुए पत्तों से दांतों का मंजन करने से दन्त दर्द तथा दन्त सफ़ेद हो जाते है।
संग्रहणी (पेचिस) में चांगेरी के पंचाग का स्वरस एवं इसमें पीपल मिलाकर तथा रस से चार भूनी दही मिलाकर घी पका लेना चाहिए, चांगेरी घी पेचिस के लिए गुणकारी हैं।
मसूड़ों के रोग में चांगेरी के पत्तों के रस से कुल्ले करने पर मसूढ़ों के दोष दूर हो जाते हैं।
मुख की दुर्गंध में चांगेरी के 2-3 पत्तों को मुँह में रख कर पान की तरह चबाने से मुँह की दुर्गंध मिट जाती हैं।
मंदाग्नि (पाचन शक्ति) में चांगेरी की बूटी के 8-10 ताजे पत्तों की काढ़ा बनाकर सेवन करने से पाचन शक्ति में सुधार होकर भूख बढ़ती हैं। चांगेरी, निशोथ, दंती, पलाश चित्रक इन सबकी ताज़ी पत्तियों को समान मात्रा में लेकर घी में भूनकर शाक को दही मिलाकर शुष्कर्ष में में खिलाने से पाचन शक्ति ठीक हो जाती है।
दाह में चांगेरी के 10-15 पत्तों को पानी के साथ पीसकर चांगेरी की पुल्टिस बनाकर सूजन पर बांधने से सूजन की दाह नष्ट हो जाती हैं। चांगेरी के पत्तों का लेप छोटे बच्चों के फोड़े-फुंसियों पर भी लाभदायक हैं।
धतूरे का नशा में चांगेरी के ताजा पत्तों का 20-40 मिलीलीटर रस पिलाने से धतूरे का नशा उतरता हैं।
चांगेरी भारतवर्ष के समस्त उष्ण प्रदेशों में तथा हिमालय में 6.000 फुट की ऊंचाई तक होता हैं इस पर पुष्प और फल वर्ष भर मिलते हैं।
चांगेरी का पौधा बहुत ही छोटा प्रसरणशील 2.5 से 10 इंच तक लम्बा, पत्र लम्बे पत्रवृन्तों पर बहुत थोड़े, त्रिपत्रकीय, अभिहृदयाकृत पुष्प अक्षीय प्रायः गुलाबी या पीतवर्ण के फल लम्बे, गोल, रोमश बीज अनेक गहरे भूरे रंग के अंडाकार अनुप्रस्थ धारियों से युक्त होते हैं।
चांगेरी अम्ल, कषाय रस, तथा उष्ण वीर्य होती हैं। चांगेरी कफवात शामक, पित्तवर्धक, शोथहर, वेदस्थापन, लेखन, मदनाशक, संज्ञा प्रबोधन, रोचन, दीपन, यकृत उत्तेजक, ग्राही, हद्द, रक्तस्तम्भन, स्पर्श में शीत, दाह प्रशमन और ज्वरध्न हैं।
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