भुई आंवला के फायदे, गुण, नुकसान और औषधीय गुण

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भुई आंवला की दवा:- बुखार, मधुमेह, प्रमेह, मासिक धर्म, योनि रोग, स्तन की सूजन, पीलिया, यकृत रोग, सूजन, पेट दर्द, दस्त, जलोदर, खुजली, श्वांस, घाव, मुखपाक आदि बिमारियों के इलाज में भुई आंवला के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-भुई आंवला के फायदे, नुकसान और औषधीय प्रयोग

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Table of Contents

मलेरिया बुखार में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

मलेरिया भुखार में भुई आंवला के कोमल पत्तों और काली मिर्च चौथाई भाग पीसकर उनकी जायफल के बराबर गोलियां बना कर 2-2 गोली सुबह-शाम सेवन करने मलेरिया बुखार और बार-बार आने वाला ज्वर नष्ट हो जाता हैं।

मधुमेह में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

मधुमेह में भुई आंवला के 15 ग्राम पंचाग का चूर्ण और 20 काली मिर्च का सुबह-शाम तथा दोपहर सेवन करने से जीर्ण मधुमेह नष्ट होता हैं:मधुमेह में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE

प्रमेह में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

प्रमेह में भूई आंवले का 20 ग्राम स्वरस 2 चम्मच घी के साथ मिलाकर पीले रंग के प्रमेह में सुबह-शाम देने से लाभ होता हैं।

मासिक धर्म में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

मासिक धर्म में भुई आंवला के बीजों का पांच ग्राम चूर्ण चावल के पानी के साथ दो या तीन दिन पीने से मासिक धर्म में अधिक रक्त का आना निश्चय ही बंद होता हैं। अथवा इसकी जड़ के चूर्ण को भी इसी प्रकार देने से लाभ होता है।

योनि रोग में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

योनि रोग में भुई आंवला का एक चम्मच स्वरस जीरे और खंड के साथ सेवन करने से नवीन योनि रोग में मूत्र की जलन शांत होती हैं। कामला और पित्त विकार में भी यह प्रयोग लाभदायक हैं।

स्तन की सूजन में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

स्तन की सूजन में भुई आंवला के पंचाग को पीसकर लेप करने से स्तन सूजन लाभ होता हैं।

पीलिया रोग में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

पीलिया रोग में भूधात्री की 10 ग्राम जड़ को पीसकर सुबह-शाम 250 ग्राम दूध के साथ खाली पेट सेवन करने से पीलिया रोग मिटता है।

यकृत रोग में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

यकृत रोग में छाया में सुखाया हुआ भूमि आंवला को मोटा-मोटा कूटकर एवं 10 ग्राम को मिटटी के बर्तन में 400 ग्राम पानी में पकाकर जब एक चौथाई से भी कम रह जाये तब छानकर सुबह खाली पेट रात्रि को भोजन से एक घंटा पहले सेवन करने से यकृत शोथ, पीलिया, सर्वाग शोथ, आन्त्रवण (अल्सर) आदि अनेक रोगों की के लिए गुणकारी हैं।

सूजन में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

सूजन में भुई आंवला के पंचाग की पुल्टिस चावलों के पानी के साथ बनाकर बांधने से सूजन में लाभ होता हैं।

पेट दर्द में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

पेट दर्द में भुई आंवला के 20 ग्राम पत्तों को 200 ग्राम जल में उबालकर छानकर थोड़ा-थोड़ा पानी पीने से पेट दर्द और आमातिसार में लाभ होता हैं।

दस्त में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

दस्त में भुई आंवला के 50 ग्राम पंचांग को 400 ग्राम पानी में पकाकर चतुर्थाश काढ़ा में मेथी चूर्ण 5 ग्राम मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पीने से दस्त में लाभ होता हैं:दस्त में तुलसी के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE

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जलोदर में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

जलोदर (पेट में अधिक पानी) में भुई आंवला की जड़ और पत्तों का शीत निर्यास, लगभग 10 से 20 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से पेशाब अधिक होकर अलोदार धीरे-धीरे ठीक हो जाता हैं। भुई आंवला के 100 ग्राम पत्तों को 250 ग्राम दूध के साथ मसलकर पिलाने से जलोदर और मूत्र संबंधी रोग मिटते हैं।
भुई आंवला के 50 ग्राम पंचाग को 400 ग्राम पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा को 10 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन चार बार पिलाने से जलोदर नष्ट होता हैं।

खुजली में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

खुजली में भुई आंवल के पत्तों को पीसकर उसमें नमक मिलाकर लगाने से गीली खुजली में लाभ होता हैं।

श्वांस रोग में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

श्वास रोग में भुई आंवला के 50 ग्राम पंचाग को आधा किलो जल के साथ औटाकर चतुर्थाश शेष काढ़ा को एक-एक चम्मच दिन में दो बार पिलाने से श्वास में लाभकारी है। श्वास में श्वांस की जड़ 10 ग्राम की मात्रा में जल में पीसकर उसमें 1 चम्मच मिलाकर पिलाना चाहिए तथा इसका सेवन करने से श्वांस में लाभ होता है।

घाव में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

घाव में भुई आंवला का दूधिया रस घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता हैं। भुई आंवला के कोमल पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता हैं। रगड़ पर लगाने से चोट की पीड़ा शांत हो जाती है।

मुखपाक में भुई आंवला के फायदे एवं सेवन विधि:

मुखपाक में भुई आंवला के 50 ग्राम पत्तों का 200 ग्राम जल में हिम बनाकर कुल्ले करने से मुख के छाले मिटते है।

भुई आंवला का परिचय

भुई आंवला के एक वर्षायु, छोटे-छोटे क्षुप, वर्षा ऋतु में उत्पन्न होकर तथा शरद ऋतु में फूलने फलने के बाद ग्रीष्म ऋतु में सूख जाते हैं। इसके फल धात्रीफल, की भांति गोल, परन्तु आकार में छोटे होने के कारण इसको बूधात्री कहते हैं।

भुई आंवला पौधे के बाह्य-स्वरूप

एक वर्षायु कोमल काण्डीय, छोटे-छोटे पादप होते हैं, जिनके काण्ड पतले सीधे, खड़े, रक्ताभ, कुछ-कुछ फ़टे होते हैं। इसकी फैली हुई प्रणयमय शाखाएं सप्तर्क़ पर्णसदृश होती हैं, जबकि इसकी पत्तियाँ एकांतर, सघन, द्विषन्तिक, चौथाई इंच से आधा इंच तक लम्बी, लटवाकर या आयताकर अग्रगोल एवं तीक्ष्णाग्र तथा अधः स्तर पर फीके रंग की होती हैं पुष्प छोटे एल पत्रकोण से उद्भूत अवृंत या सूक्ष्म वृन्त युक्त पीताभ, फल धात्री फल सदृश गोल एवं शाखाओं के नीचे एक कतार में निकले हुए होते हैं।

भुई आंवला पेड़ के रासायनिक संघटन

भूम्यामलकी की पत्तियों में हाइपो फ़िलेंथीन तथा फ़िलेंथीन नामक तिक्त कार्यकारी तत्व पाया जाता हैं।

भुई आंवला के औषधीय गुण-धर्म

भूई आंवला हल्का रुखा, शीतल, स्वाद में चरपरा, कसैला, मधुर तथा तृषा, खांसी, पित्त, रुधिर विकार, कफ खुजली तथा क्षत -नाशक है। यह ज्वरध्न विशेषतः विषम ज्वर प्रतिबंधक हैं साथ ही यकृत के किसी भी प्रकार के जीर्ण रोग की एक दिब्य औषध हैं। इसका लेप व्रणरोपण, शोथहर तथा कुष्ठघ्न होता हैं। कैयदेवनिघन्टु के मतानुसार भुई आंवला शीतल कड़वा, कसैला, मधुर, हल्का, रुचिकारक, पाण्डु, कुष्ठ, कफ, विष, रक्तपित्त, श्वांस, तृषा, दाह, हिक्का, खांसी और क्षय का नाश करता हैं। राज निघण्टु के मत से भूम्यामलकी कसैला, खट्टा पित्त और प्रमेह को नष्ट करने वाला, मूत्रकृच्छ्र को दूर करने वाला तथा दाह को शांत करने वाला हैं।

भुई आंवला के नुकसान

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