बाकुची (बावची) के फायदे, गुण, नुकसान और औषधीय प्रयोग

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बावची (बाकुची) अनेक रोगों की दवा जैसे:- गर्भपात, खांसी, दन्त की पीड़ा, बवासीर, सफ़ेद दाग, पीलिया, पेचिस, श्वांस, गांठ आदि बिमारियों के इलाज में बाकुची के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:बाकुची (बावची) के गुण, फायदे, नुकसान और औषधीय प्रयोग

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गर्भपात में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

गर्भपात में मासिक धर्म से शुद्ध होने के पश्चात बाकुची के बीजों को तेल में पीसकर योनि में रखने से गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है।

खांसी में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

खांसी में बाकुची के एक ग्राम बीजों का चूर्ण अदरक के स्वरस के साथ सुबह-शाम-दोपहर सेवन करने से सुखी खांसी व खांसी में शीघ्र आराम मिलता है:खांसी में गाजर के फायदे एवं सेवन विधि:CLICK HERE

दांत की पीड़ा में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

दंतपीड़ा में बाकुची की जड़ को पीसकर भुनी हुई फिटकरी मिला लें। सुबह-शाम इससे मंजन करने से दांत के कीड़े नष्ट हो जाते हैं तथा दन्त की पीड़ा शीघ्र दूर हो जाती है।

बवासीर में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

अर्श (बवासीर) में 2 ग्राम हरड़, 2 ग्राम सौंठ और 1 ग्राम बाकुची के बीज पीसकर आधे चम्मच की मात्रा में गुड़ के साथ सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

सफ़ेद दाग में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

कुष्ठ रोग (सफ़ेद दाग) में बाकुची के बीज चार भाग और तबकिया हरताल एक भाग, दोनों के चूर्ण कर गोमूत्र में घोंटकर सफ़ेद दागों पर लेप करने से सफेद दाग नष्ट हो जाते है। बावची और पवाड़ समभाग लेकर सिरके में पीसकर सफेद दागों पर लगाने से दाग में लाभ होता है। बावची, गंधक व गुड़मार को बराबर की मात्रा में लेकर तीनों का चूर्ण कर लें तथा 12 ग्राम चूर्ण को रात्रि में जल में भिगो दें। प्रातः काल निथरा हुआ जल के साथ सेवन कर लें तथा नीचे के तल में जमा पदार्थ श्वेत दागों पर लगते रहने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।

पीलिया में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

पीलिया में 10 मिलीलीटर पुनर्नवा के स्वरस में आधा ग्राम पीसी हुई बावची के बीजों का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है। पीलिया में ज्यादा बावची का सेवन करने से वमन पैदा करता है।

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पेचिस में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

पेचिस में बावची के पत्तों का साग सुबह-शाम नियमित रूप से एक हफ्ते खिलाते रहने से पेचिस में लाभ होता है।

श्वांस में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

श्वांस में बाकुची के आधा ग्राम बीजों का चूर्ण अदरक के स्वरस के साथ सुबह-शाम-दोपहर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है। कफ ढीला होकर निकल जाता है।

गांठ में बाकुची के फायदे एवं सेवन विधि:

गांठ में बावची के बीजों को पीसकर गांठ पर लेप करने या बांधते रहने से गांठ बैठ जाती है।

बाकुची का परिचय

बाकुची के छोटे-छोटे पादप, वर्षा ऋतु में समस्त भारतवर्ष में अपने आप उगते हैं तथा जगह-जगह इसकी खेती भी की जाती है। साधारणतया बाकुची के पौधे एक वर्षायु होते हैं, परंतु उचित देखभाल करने से 4-5 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। औषधि कर्म में बावची के बीज और बीजों से प्राप्त तेल का व्यवहार जाता है। इस पर शीतकाल में पुष्प लगते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में पुष्प फलों में बदल जाते हैं।

बाकुची पेड़ के बाह्य-स्वरूप

बाकुची के 1-4 फुट तक ऊँचे सीधे खड़े कोमल पौधे होते हैं, परन्तु शाखाएं अपेक्षाकृत कड़ी और ग्रंथि बिंदुकित होते हैं। पत्र साधारण, सवृन्त, 1-3 इंच लम्बी गोलाकार, प्रायः चिकनी दोनों पृष्ठों पर कृष्ण बिन्दु होती है। पुष्प नीली झाई लिये, हल्के बैगनी रंग के, पत्रकों से उदभूत, मंजरियों पर 10-30 की संख्या में लगते हैं। फली छोटी-छोटी काले रंग की, लम्बी, गोल, चिकनी होती हैं तथा प्रत्येक फली में एक बीज, फली के ही आकार का कृष्ण वर्ण एवं बेल फल की भांति सुगंधित होता है।

बाकुची पौधे के रासायनिक संघटन

बाकुची के बीजों में एक उड़नशील तेल, एक रेल या रेजिन, एक स्थिर तेल तथा दो क्रिस्टलाइन सत्व सोरालेन पाये जाते हैं। फल के छिलके से सोरोलिडीन तत्व भी प्राप्त किया गया है। बाकुची के कुष्ठघ्न एवं कृमिघ्न कर्म इन्हीं दोनों तत्वों के कारण होते हैं।

बाकुची वृक्ष के औषधीय गुण-धर्म

बाकुची मधुर, कड़वी, पाक में तिक्त, कटु रसायन, बिष्टम्भनाशक, शीतल, रुचिकारी, दस्तावर, रूखी, हृदय को हितकारी और कफ, रक्तपित्त, श्वास, कोढ़, प्रमेह, ज्वर तथा कृमि को नष्ट करने वाली है। फल पित्तवर्धक, केश तथा त्वचा को हितकारी, चरपरा, कुष्ठ, कफ, वात, वमन, श्वास, खासी, शोथ, आम और पाण्डु रोग विनाशक है।

बाकुची के नुकसान

पीलिया में ज्यादा बावची का सेवन करने से वमन पैदा करता है।

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