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बबूल के फायदे और नुकसान एवं औषधीय प्रयोग

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बबूल के औषधीय गुण

बबूल के फायदे और नुकसान एवं औषधीय प्रयोग

बबूल की दवा: मासिक धर्म, योनि रोग, सफ़ेद पानी, वीर्य वर्धक, सूतिका रोग, स्वप्नदोष, स्तन, संतान, पेचिस, पेट दर्द, खुनी दस्त, नेत्र रोग, अस्थिभंग, दांत पीड़ा, पीलिया, डायरिया, अरुचि, कंठरोग, कमर दर्द, दाद, मुख पाक, अधिक पसीने आना, जख्म, दर्दनाशक आदि बिमारियों के इलाज में बबूल के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:-

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Table of Contents

मासिक धर्म में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

मासिक धर्म में बबूल का भुना हुआ गोंद 4 1/2 ग्राम और गेरू 4 1/2 ग्राम, इन सबको पीसकर प्रातः काल फंकी लेने से मासिक धर्म में अधिक रक्त का बहना बंद हो जाता है। बबूल की 20 ग्राम छाल को 400 ग्राम पानी में उबालकर शेष 100 ग्राम काढ़ा दिन में तीन बार पिलाने से भी मासिक धर्म में अधिक रक्त का बहना बंद हो जाता है।

योनि रोग में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

सुजाक (योनि रोग) में बबूल की 10-20 कोपलों को एक गिलास पानी में भिगोकर आसमान के नीचे रखे और प्रातः काल उस पानी को शुभ समय पर पीने से सुजाक और पेशाब की जलन में आराम मिलता हैं।

सफ़ेद पानी में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

श्वेत प्रदर (सफ़ेद पानी) में बबूल की छाल 10 ग्राम 400 ग्राम पानी में पकाकर शेष 100 ग्राम क्वाथ में 2-2 चम्मच की मात्रा से सुबह-शाम पीने से और इस काढ़े में थोड़ी सी फिटकरी मिलाकर योनि में पिचकारी देने से योनि मार्ग स्वच्छ शुद्ध होकर निरोगी बनेगा और योनि सशक्त पेशियों वाली और तंग होगी।

वीर्य वर्धक में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

वीर्य वर्धक में बबूल की फलियों को छाया में सुखाकर पीस ले और बराबर की मात्रा में मिश्री मिला लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से जल के साथ सेवन करने से वीर्य गाढ़ा होगा और सभी प्रकार के दोष दूर हो जायेंगे। बबूल के गोंद को घी में तलकर उसका पकवान बनाकर खाने से पुरुषों का वीर्य बढ़ता है और प्रसूति काल में स्त्रियों को खिलाने से उनकी शक्ति भी बढ़ती है।

सूतिका रोग में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

सूतिका रोग में बबूल के अंदर की छाल का चूर्ण 10 ग्राम, काली मिर्च 3 नग, दोनों को पीसकर, सुबह शाम खाने से और इस समय में सिर्फ बाजरे की रोटी और गाय का दूध लेने से भंयकर सूतिका रोग से ग्रस्त स्त्रियां भी बच जाती है।

स्वप्नदोष में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

स्वप्न दोष में बबूल का पंचाग सम भाग बराबर-बराबर लेकर पीस लें और आधी मात्रा में मिश्री मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से कुछ ही समय में ही स्वप्नदोष होना बंद हो जायेगा।

स्तन में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

स्तन में बबूल की फलियों के चेंप से किसी कपड़े को तर करके, सूखा लें। इस कपड़े को स्तन पर बाँधने से ढीले स्तन कठोर हो जाते है।

सुंदर बालक कामना में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

सुंदर संतान की प्राप्ति के लिये बबूल के पत्तों का 2-4 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन सुबह खिलाने से सुंदर बालक और बालिका का जन्म होता है।

पेचिस में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

प्रवाहिका (पेचिस) में बबूल की कोमल पतियों के एक चम्मच रस में थोड़ी सा हरड़ का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से या ऊपर से छाछ (मठ्ठा) पीने से 30 ग्राम बबूल की कोंपलों को रात भर एक गिलास पानी में भिगोकर सुबह मसल छानकर उसमें 20 ग्राम गर्म घी मिलाकर पिलावें, दूसरे दिन भी ऐसा ही करें, तीसरे दिन घी मिलाना छोड़ दे और 4-5 दिन खाली इसका हिम पीने से पेचिस ठीक हो जाती है।

पेट दर्द में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

उदर रोग (पेट दर्द) में बबूल के अंदर की छाल का काढ़ा बनाकर, उस काढ़ा के उबालते समय जब उसका शेष काढ़ा हो जाये तब इस काढ़ा को 1-2 ग्राम की मात्रा में मटठे के साथ पीने से और पथ्य में सिर्फ मटठे का आहार लेने से पेट दर्द नष्ट हो जाते है।

खुनी दस्त में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

रक्तातिसार (खूनी दस्त) में बबूल की हरी कोमल पतियों के एक चम्मच स्वरस में मधु मिलाकर 2-3 बार पिलाने से खूनी दस्त बंद हो जाते है। बबूल के गोंद 10 ग्राम को 50 ग्राम पानी में भिगोकर मसल छानकर पिलाने से अतिसार और रक्त अतिसार दोनों में लाभ होता है।

नेत्र रोग में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

नेत्र रोग में बबूल के नरम पत्तों को पीसकर, रस निकाल कर 1-2 बूँद आँख में टपकाने से अथवा स्त्री के दूध के साथ आँख पर लेप करने से आँख की पीड़ा और सूजन मिटती है।

अस्थिभंग में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

अस्थि भग्न में बबूल की फलियों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से टूटी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

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दंतपीड़ा में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

दन्तपीड़ा में बबूल की फली का छिलका और बादाम के छिलके की राख में नमक मिलाकर मंजन करने से दन्त पीड़ा मिटती है। बबूल की कोमल टहनियों की दातुन करने से भी दांत निरोग और मजबूत होते है। बबूल की छाल के काढ़े से कुल्ले करने से दांतों का सड़ना, दर्द हो बंद हो जाता है।

पीलिया में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

पीलिया में बबूल के पुष्पों के चूर्ण में बराबर मिश्री मिलाकर 10 ग्राम की फंकी नित्य सुबह-शाम-दोपहर देने से पीलिया नष्ट हो जाती है।

डायरिया में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

कफतिसार (डायरिया) में बबूल के पत्ते, जीरे और स्याह जीरे को समभाग लेकर पीसकर 10 ग्राम की फंकी रात्रि के समय सेवन करने से कफ अतिसार मिटता है।

अरुचि में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

अरुचि (अधिक भूख न लगना) बबूल की कोमल फलियों के अचार में सेंधा नमक मिलाकर खिलाने से भूख बढ़ती, तथा पाचन क्रिया में सुधार होती है।

कमर दर्द में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

कटिशूल (कमर दर्द) में बबूल की छाल, फली और गोंद समभाग मिलाकर पीस ले, एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से कमर दर्द में आराम मिलता है।

दाद में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

दाद में बबूल के फूलों को सिरके में पीसकर दाद पर लेप करने से दाद जड़ से नष्ट हो जाता है।

कंठ रोग में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

कंठ रोग में बबूल के पत्ते और छाल एवं बड़गद की छाल सबको समभाग मिलाकर एक गिलास पानी में भिगो दें, इस प्रकार तैयार हिम से कुल्ले करने से गले के रोग मिट जाते है।

मुखपाक में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

मुखपाक में बबूल की छाल का काढ़ा 2-3 बार गरारे करने से लाभ होता है। गोंद के टुकड़े चूसते रहने से आराम मिलता।

पसीने की अधिकता में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

पसीने की अधिकता में बबूल के पत्ते और बाल हरड़ को बराबर- बराबर मिलाकर महीन पीस ले, इस चूर्ण की सारे बदन पर मालिश करे और कुछ समय रुककर स्नान कर लें। नियमित रूप से यह प्रयोग कुछ दिन तक करने से अधिक पसीना आना बंद हो जाता है।

जख्म में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

जख्म में बबूल के पत्तों का लेप जख्म को वहर्ता है और गर्मी की सूजन नष्ट हो जाती है।

दर्दनाशक में बबूल के फायदे एवं सेवन विधि:

दर्दनासक में बबूल की गोंद का दर्पनाशक, बेदाना गुलाब और संदल पर लेप करने से अधिक हो रहे दर्द शीघ्र ठीक हो जाते है।

बबूल वृक्ष के नुकसान

बबूल का अधिक सेवनकरने से नुक्सान पंहुचाता है। अधिक मात्रा में इसका निर्यास गुदा को हानि पंहुचाता है।

बबूल वृक्ष का परिचय

बबूल का परिचय पुराना है, बबूल की छाल एवं गोंद प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य है। वास्तव में बबूल मरुभूमि में उत्पन्न होने वाला वृक्ष है, इसकी पत्तियां बहुत छोटी और अनुपत्र काटों में परिवर्तित हो जाते हैं। कांटेदार वृक्ष बहुत है, परन्तु बबूल में ही कुछ बात है जो इसे साहित्य में भी स्थान मिला है, जैसे बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से पाये। समस्त भारतवर्ष में बबूल के जंगली और लगायें हुये वृक्ष मिलते है। ग्रीष्म ऋतु में इस पर पीताम वर्ण में पुष्प गोलाकार गुच्छों में लगते है तथा शरद ऋतु में फलियाँ लगती है।

बबूल वृक्ष के बाह्य-स्वरूप

बबूल के वृक्ष मध्यमाकर, कांड त्वक गाढ़े भूरे रंग की लम्बाई में रूखे दरार युक्त, शाखाएं गोल, सरल, झुकी-झुकी सी नवीन शाखाये चिकनी, अनुपत्र, तीक्ष्ण नुकीले काँटों में परिवर्तित पत्र, द्विपक्षवत पत्रक बहुत छोटे 4 से 9 युग्मों में वृन्त युक्त, पुष्प, पीताभम गोलाकार गुच्छों में पत्रकोशीय मंजरी पर 4-6 पुष्प लगते है। शिम्बी 3-6 इंच लम्बी चपटी और प्रत्येक फली में 8-12 चपटे बीज होते है। बबूल के कांड से लालिमा युक्त श्वेत रंग का गोंद अपने आप निकलता है। गर्मियों में तथा नये वृक्षों से गोंद अपेक्षतया अधिक निकलता है। बबूल की लकड़ी जलाने के लिये बहुत उत्तम समझी जाती है।

बबूल वृक्ष के रासायनिक संघटन

बबूल की छाल में 6-12 प्रतिशत कषाय द्रव्य फली में 12-19 प्रतिशत टैनिन पाया जाता है। कांड से एक निर्यात मिलता है, जो बबूल गोंद के नाम से प्रसिद्ध है। असली गोंद नामक पौधे से प्राप्त होता है और अरब देशों तथा अफ्रीका से आयातित होता है। इंडियन गम गोल या अंडाकार लगभग 1/2 इंच के हल्के पीले रंग गहरे भूरे रंग के कणों के रूप में होते है। जो जल में पूर्ण रूप से विलेय है।

बबूल वृक्ष के औषधीय गुण-धर्म

बबूल कफ पित्तशामक, रक्त पित्तशामक और कफध्न है। बबूल की गोंद वातपित्तशामक, मूत्रल, वृष्य, गर्भाशय के शोथ और स्राव को दूर करता है। यह स्नेहन, ग्राही, बल्य, तथा विषध्न है। छाल और फली स्तम्भन, कृमिघ्न, कुष्ठघ्न, तथा दाह प्रशमन है।

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