अर्जुन (काहू) के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग

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अर्जुन व काहू की दवा: अर्जुन बुखार, गंठिया, टी.बी., प्रमेह, शुक्रप्रमेह, मासिक धर्म, घबराहट, सफ़ेद दाग, खुनी दस्त, हृदय रोग, आंत, कान की पीड़ा, मुखपाक, मूत्रघात, अस्थिभंग, सूजन, रक्तपित्त, मुंह की झाइंया आदि बिमारियों के इलाज में अर्जुन के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते है:अर्जुन (काहू) के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग

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अर्जुन में पाये जाने वाले पोषक तत्व

अर्जुन वृक्ष में कैल्शियम, कार्बोनेट लगभग 34 प्रतिशत व मैग्नीशियम व एल्युमिनियम, सोडियम प्रमुख क्षार हैं। कैल्शियम-सोडियम की प्रचुरता के कारण अर्जुन गुणकारी होता है।

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बुखार में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

ज्वर (बुखार) में अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से बुखार नष्ट होता है। तेज बुखार में अर्जुन की छाल के 1 चम्मच चूर्ण में गुड़ के साथ फंकी लेने से तेज बुखार में गुणकारी होता है।

गंठिया रोग में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

गंठिया रोग में अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल के समभाग मात्रा में चूर्ण कर 2-2 ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित प्रातःसांय फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते है।

क्षयरोग (टी.बी) में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

टी.बी.रोग में अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा पत्रों के स्वरस की सात भावना देकर 2-3 ग्राम की मात्रा मधु मिश्री या देशी गाय का घी के साथ चटाने से क्षय की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो नष्ट हो जाता है।

प्रमेह में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि :

प्रमेह (स्वप्नदोष) में अर्जुन की छाल, आमलकी छाल, नीम की छाल, हल्दी तथा नीलकमल के समभाग 20 ग्राम चूर्ण को 400 मिलीलीटर पानी में पकाकर 100 मिलीलीटर शेष बचे काढ़ा को शहद के साथ मिलाकर नियमित रूप सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हो जाते है। अर्जुन की पत्ती, जामुन की पत्ती, बेल की पत्ती, मृणाली, धाय की पत्ती, श्रीपर्णी की पत्ती, कृष्णा, मेहंदी की पत्ती इन सभी पत्तियों के स्वरस से अलग-अलग खंड यूषों का घी, अम्ल तथा लवण मिलाकर सेवन करने से स्वप्नदोष में लाभदायक होता है।

शुक्रमेह में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

शुक्रमेह (धातु गिरना) शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या सफ़ेद चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ धातु का गिरना बंद हो जाता है।

मासिक धर्म में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

रक्तप्रदर (मासिक धर्म) में अर्जुन की छाल का 1 चम्मच चूर्ण 1 कप दूध में उबालकर पकायें आधा दूध शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से मासिक धर्म नियमित रूप से होने लगता है।

घबराहट में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

घबराहट होने पर गेंहू का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भूने लें, गुलाबी हो जाने पर अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ जल 100 ग्राम डालकर पकायें, जब गाढ़ा हो जाये तब प्रातः सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन आदि बिमारियों के लिए लाभदायक होता है।

सफ़ेद दाग में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

कुष्ठ (सफ़ेद दाग) में अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण जल के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को जल में के साथ पीसकर त्वचा पर लेप करने से सफ़ेद दाग में लाभ होता है।

खुनी दस्त में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

रक्त अतिसार (खुनी दस्त) में अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम गाय के 25 ग्राम दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाँव पानी डाल कर धीमी आंच पर पकाये। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर सूख जाने पर उसमें 10 ग्राम मिश्री या चीनी नित्य प्रातःकाल पीने से हृदय संबंधी सब रोग दूर हो जाते है। अर्जुन सिद्ध दूध तेज बुखार रक्त अतिसार और रक्त पित्त में गुणकारी है।

हृदय रोग में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

हृदय रोग में हृदय की सूजन एवं उसमें उत्पन्न शोथ में इसकी छाल का चूर्ण 6 से 10 ग्राम तक गुड़ तथा दूध के साथ पकाकर पिलाने से रक्त लसीका का जल रक्त वाहिनियों में नहीं भर पाता, तथा शोथ का बढ़ना बंद हो जाता है जिससे हृदय की शिथिलता दूर हो जाती है।

आंत रोग में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

उदावर्त्त (आंत रोग) मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए आंत रोग को मिटाने के लिए अर्जुन छाल का 40 मिलीलीटर कषाय नियमित सुबह-शाम पिलाने से आंत का रोग शीघ्र ठीक होता है।

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कान के दर्द में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

कर्णशूल (कान की पीड़ा) में अर्जुन के पत्तों का स्वरस 3-4 बूँद कान में डालने से कान की पीड़ा मिटटी है।

मुँह के छाले में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

मुखपाक (मुंह के छाले) में अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुंह के छाले नष्ट हो जाते है।

मूत्रघात में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि :

मूत्राघात (पेशाब की जलन) में अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर नियमित रूप से सेवन करने से पेशाब की जलन में लाभदायक होता है।

अस्थिभंग में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

अस्थिभंग (हड्डी का टूटना) टूटने पर प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की पपड़ी का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ दो तीन हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटे-फूटे स्थान पर भी अर्जुन की छाल को घी में पीसकर लेप करने से और पट्टी बांधकर रखने से भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।

सूजन में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

शोथ (सूजन) में अर्जुन के छाल को कूट कर चूर्ण बनाकर पानी के साथ पीसकर लेप करने से सूजन बिखर जाती है, तथा पट्टी बांधकर सेक करने से लाभ होता है।

रक्तपित्त में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

रक्तपित्त (पित्त के साथ खून आना) में अर्जुन 2 चम्मच छाल को रात भर जल में भिगोकर रखें, प्रातःकाल उसको मसल छानकर या उसको घोंटकर उसका कषाय बनाकर पीने से पित्त के साथ खून आना बंद हो जाता है।

मुंह की झाइंया में अर्जुन की दवाएं एवं सेवन विधि:

मुंह की झांइयां में अर्जुन की अंतर् पिपड़ी पीसकर मधु मिलाकर त्वचा पर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।

अर्जुन का परिचय

पहाड़ी क्ष्रेत्रों में नदी, नालों के कीनांरे 80 फुट तक ऊँचे पंक्तिबद्ध हरे पल्ल्वों के वल्कल ओढ़े अर्जुन के वृक्ष ऐसे लगते हैं, जैसे महाभारत के पार्थ की तरह अनेक महारथी अक्षय तरकशों में अगणित अस्त्र लिये, प्रस्तुत हो तथा महासमर में अनेक व्याधिरूपी शत्रुओं को नेस्तनाबूत करने को एकत्र हुए हों। अर्जुन का वृक्ष जंगलों में पाया जाता है, इस पर बैशाख-ज्येष्ठ में फूल खिलते है और जाड़े में फल आते है।

अर्जुन के बाह्य-स्वरूप

अर्जुन का कांड स्थूल, गोलाई में 10 से 20 फिट तक होता है। काण्ड त्वक ऊपर से श्वेताभ, चिकनी, 1/3 इंच तक मोटी, अंदर से रक्तवर्ण की होती है। वाहा त्वचा वर्ष में एक बार सर्प केंचुल के समान स्वंय गिर पड़ती है। अर्जुन पत्र 3 से 6 इंच तक लम्बे 1-2 इंच तक चौड़े, छोटी-छोटी शाखाओं पर खिन समवर्ती, कहीं विषमवर्ती होते है, जिनका उदरतल चिकना और पृष्ठतल शीरामय एवं रुक्ष होता है।अर्जुन पत्र के पीछे मध्य शिरा के पाशर्व में दो हरे रंग की मधुमय लसिका ग्रंथियां होती है। अर्जुन पुष्प अत्यंत सूक्ष्म हरिताभ श्वेत वर्ण के गुच्छे में लगे होते है। अर्जुन में सुगंध नहीं होती। फल लम्बे, अंडाकर, काष्ठमय, 5 उठी हुई धारियों से युक्त 1-2 इंच तक लम्बे होते हैं। अर्जुन फल के अंदर बीज नहीं होते। अर्जुन के पेड़ का गोंद निर्यास स्वच्छ, सुनहरा, भूरा और पारदर्शक होता है।

अर्जुन के औषधीय गुण-धर्म

अर्जुन शीतल, हृदय के लिए हितकारी, कसैला, क्षत, क्षय, विष, रुधिर विकार, मेद, प्रमेह, व्रण, कफ तथा पित्त को नष्ट करता है। अर्जुन से हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय का स्पंदन ठीक और सबल होता है। स्पंदन की संख्या कम हो जाती है। सूक्ष्म रक्तवाहिनियों का संकोच होता है, जिससे रक्त भार बढ़ता है। इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्त्राव भी कम होता है, जिससे यह शोथ को दूर करता है। इसके प्रयोग से रक्तवहस्रोंतों का संकोचन भली प्रकार होने से हृदय रक्त को समस्त शरीर में फेंकने तथा शरीर में फैले हुए समस्त रुधिर को हृदय के अंदर खींचने का कार्य करता है।

अर्जुन के नुकसान

अर्जुन की छाल में ऐसे तत्त्व होते हैं, जो रक्तचाप और रक्त में शक्कर की मात्रा को नियंत्रित रखते हैं, अगर आप मधुमेह या उच्च रक्तचाप के रोगी हैं। तो आपको इस बात का ध्यान रखना होगा, कि आप अर्जुन की छाल को ज़्यादा मात्रा न लें अन्यथा आपके शुगर लेवल्स अचानक नीचे आ जाएंगे। जिससे आप कोमा में भी आ सकते है।

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