आंवला के फायदे और नुकसान एवं औषधीय प्रयोग: Aanvala ke labh बुखार, गठिया, मासिक धर्म, योनि रोग, बवासीर, सफ़ेद दाग, धातु रोग, दीर्घायु, दस्त, पीलिया, खुजली, सफ़ेद पानी, उल्टी, पेचिस, एलर्जी, नेत्र रोग, केशकल्प, कब्ज, मंदाग्नि, मूत्राघात, नकसीर, घाव, पित्त रोग, स्वर भेद, हिचकी, फोड़े आदि बिमारियों के इलाज में आंवला के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्मलिखित प्रकार से किये जाते है:-आंवला के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग:Aavla Benefits And Side Effects In Hindi.
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आंवले के फल में विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें नारंगी के रस से 20 गुना अधिक विटामिन ‘सी’ पाया जाता है। आंवले में गैलिक एसिड, टैनिक एसिड, निर्यास, शर्करा, अलव्युमिन, सेल्यूलोज तथा कैल्शियम पाये जाते है। फल के कल्क और स्वरस में प्रति 100 ग्राम पाये जाने वाले घटक निम्न प्रकार हैः
स्वास्थ्य वर्धक आयुर्वेदिक
औषधि Click Hereजड़ी-बूटी इलाज
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जल की मात्रा 81.2 मिलीग्राम प्रोटीन 0.5 मिलीग्राम, वसा 0.1 मिलीग्राम, फास्फोरस 0.02 मिलीग्राम, कैल्शियम 0.05 मिलीग्राम, लौह 1.2 मिलीग्राम, निकोटिनिक एसिड 0.02 मिलीग्राम मिलीग्राम। टैनिन फल में 28, शाखा त्वक में 21, तने की छाल में 8.9 तथा पत्तों में 22 प्रतिशत होता है। बीजों से भूरे पीले रंग का एक स्थिर तैल (16 प्रतिशत) निकलता है।
बुखार में आंवला, चमेली की पत्ती, नागरमोथा, ज्वासा को समान भाग में लेकर काढ़ा बनाने के बाद उसमें चार भाग गुड़ मिलाकर सेवन करने से बुखार के रोगी के शरीर से बुखार का शीघ्र पतन हो जाता है।
गंठिया रोग में 20 ग्राम सूखे आंवलों और 20 ग्राम गुड़ को आधा लीटर पानी में उबालकर 250 ग्राम पानी शेष रह जाये तो छानकर प्रात-सांय पिलाने से गठिया में लाभ होता है। रोगी कृपया ध्यान दे की नमक का सेवन न करें।
मासिक धर्म में आंवला का रस 20 ग्राम में एक ग्राम जीरा चूर्ण मिला कर दिन में दो बार सेवन करें। ताजे आंवलो के अभाव में शुष्क आंवला चूर्ण 20 ग्राम रात्रि में भिगोकर सुबह सेवन करे और प्रातः काल भिगोकर रात्रि में छानकर सेवन करे। आंवले का सेवन मासिक धर्म के समय करने से विशेष लाभ होता है।
योनि रोग में आंवले का 2-5 ग्राम चूर्ण को एक गिलास जल से मिलाकर पिलाने से और उसी जल की मूत्रेन्द्रिय में पिचकारी देने से सूजन व जलन शांत होती है और धीरे-धीरे घाव भरकर मवाद आना बंद हो जाता है। आंवलों के 20 मिलीग्राम रस में 5 ग्राम शक्कर और 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से योनि दाह में आराम होता है।
बवासीर में आंवले को भली-भांति पीसकर मिटटी के बर्तन में लेप कर देना चाहिये। फिर उस बर्तन में छाछ (मट्ठा) भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है। बवासीर के मस्सों से अधिक रक्त स्त्राव होता हो तो 3-8 ग्राम आंवला चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में दो-तीन बार सेवन करना चाहिये।
आंवला और नीम पत्र समभाग महीन चूर्ण कर रखें, 2 से 6 ग्राम तक या 10 ग्राम तक नियमित रूप से प्रातः काल शहद के साथ चाटने से भयंकर गलित कुष्ठ में भी शीघ्र लाभ होता है।
धातु रोग में आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारू-हल्दी, देवदारु इन सबको समान मात्रा में लेकर यथाविधि उनका काढ़ा करके 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम धातु के रोगी को पिला दें। धातु रोग में लाभदायक होता हैं।
दीर्घायु में आंवला चूर्ण को रात में एमी घी या शहद अथवा पानी के साथ सेवन करने से इन्द्रियों का बल बढ़ता है, जठराग्नि में वृद्धि होती है तथा यौवन प्राप्त होता है। आंवले के चूर्ण तीन-चार ग्राम को आंवले के रस के साथ मिलाकर कर 2 चम्मच मधु और 1 चम्मच घी के साथ दिन में दो बार चाटकर चाटे और उसके बाद दूध का सेवन करें अस्सी वर्ष का बूढ़ा भी जवान की भाँती प्रसन्न होता है।
खुनी दस्त (रक्त अतिसार) में अधिक रक्तस्त्राव हो तो आंवलो के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर पिलावें और ऊपर से बकरी का दूध 100 ग्राम तक दिन में तीन बार सेवन करने से खुनी दस्त ठीक हो जाता है।
पीलिया, यकृत की दुर्बलता व पीलिया निवारण के लिये आंवले को हानि के साथ चटनी बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया का शीघ्र पतन हो जाता है।
खुजली में आंवले की गुठली को जलाकर भस्म करें और उसमें नारियल का तेल मिलाकर, गीली या सूखी किसी भी प्रकार की खुजली हो नियमित सेवन करने से खुजली में आराम मिलता है।
सफ़ेद पानी में आंवले के 20-30 ग्राम बीजों को पानी के साथ पीसकर उस पानी को छानकर, उसमें 2 चम्मच शहद और पिसी हुई मिश्री मिलाकर पिलाने से सफ़ेद पानी में लाभ होता है।
उल्टी में आंवले का 10-20 मिलीलीटर रस 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। यह दिन में दो-तीन बार दिया जा सकता है। 10-15 ग्राम चूर्ण पानी के साथ देने से उल्टी ठीक हो जाती है। आंवले के 20 ग्राम स्वरस में 1 चम्मच मधु और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन बंद होता है।
पेचिस में मेथी दाना के साथ आंवलें के पत्तों का क्वाथ बनाकर 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार पिलाने से संग्रहणी (पेचिस) में आराम मिलता है।
एलर्जी में आंवले 10-20 ग्राम रस घी मिलाकर दिन में दो-तीन बार पिलाने से एलर्जी ठीक हो जाती है।
नेत्र रोग में 20 से 50 ग्राम आँवले के फलों को कुट कर दो घंटे तक आधा किलो पानी में उबालकर उस जल को छानकर दिन में तीन बार आँखों में डालने से नेत्र रोग ठीक हो जाता है। इसके अलावा आंवले के स्वरस को आँखों में डालने अथवा सहजन के पत्तों का रस तथा सैंधा नमक 250 मिलीग्राम एक साथ मिलाकर लेप करने से आँख में लाभदायक जाताहै।
पके हुए बाल में सूखे आंवले 30 ग्राम, बहेड़ा 10 ग्राम, आम की गुठली की गिरी 50 ग्राम और लौह चूर्ण 10 ग्राम रात भर कढ़ाई में भिगो कर रखें। बालों पर इसका नित्य प्रति लेप करने से कम समय में सफेद बाल काले पड़ जाते है। आंवला, रीठा, शिकाकाई तीनों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम, घने और लम्बे होते है।
कब्ज में आंवले के फल का चूर्ण, सिर दर्द, कब्ज, बवासीर व बदहजमी रोग में त्रिफला चूर्ण के रूप में प्रयोग किया जाता है। मात्रा 3 से 6 ग्राम जल के साथ दिन में तीन बार। 3-6 ग्राम त्रिफला चूर्ण की फंकी उष्ण जल के साथ रात में सोते समय लेने से कब्ज दूर होता है।
भूख न लगने पर पकाये हुये आवलों को घियाकस कर उसमें बराबर मात्रा में काली मिर्च, सोंठ, सैंधा नमक, भूना जीरा और हींग मिलाकर, बडिया बनाकर छाया में सुखाकर सेवन करने से भूख लगने लगती है।
पेशाब में जलन 5-6 आंवला को पीस कर नालियों पर लेप करने से मूत्राघात पेशाब की जलन में लाभदायक होता है।
नाक से खून आने पर जामुन, आम तथा आंवले को कांजी आदि से बारीक पीसकर मस्तक पर लेप करने से नाक से खून आना बंद होता है।
पित्त रोग में आंवले का रस, रसवत मधु, गाय का घी इन सब द्रव्यों को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर की गयी रस क्रिया पित्त दोष तथा रक्तपित्त से खून निकलना बंद होता है।
स्वर भेद में आंवले, अजमोदा, हल्दी, यवक्षार, चित्रक इनको समान मात्रा में मिलाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच मधु तथा 1 चम्मच घृत के साथ चाटने से स्वर भेद दूर होता है।
हिचकी में पिप्पली, आंवला, सोंठ के 2-2 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम चीनी तथा 1 चम्मच मधु मिलाकर बार-बार प्रयोग करने से हिक्का व हिचकी तथा श्वास रोग शांत होता है।
फोड़े में आंवलें का दूध लगाने से अधिक दर्द देने वाले फोड़े नष्ट हो जाते हैं।
आँवला भारतवर्ष में उद्यानों और जंगलो में सर्वत्र पाया जाता है। यह समुद्र तल से 4,500 फुट की ऊंचाई तक भी होता है। उद्यानों में लगाए जाने वाले आंवले के फल बड़े और जंगली आंवले के फल छोटे होते है। इसके वृक्ष की पत्तियां इमली के वृक्ष जैसी होती हैं परतु इसकी पत्तियां कुछ बड़ी होती है। तथा शतपत्रा कहलाती है। आंवला रसायन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। इसके सेवन से बुढ़ापा मनुष्य पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाता है। इसीलिये आयुर्वेद में इसे अमृत फल व धात्री फल आदि कहा गया है।
आंवले का वृक्ष मध्यमाकार तथा 20-25 फुट ऊँचा होता है। इसका काण्ड टेढ़ा मेढ़ा और 5-9 फुट तक मोटा होता है। इसकी छाल हरिताभ धूसर, पतली और परत छोड़ती हुई होती है। पर्णवृन्त लम्बा, पत्र आयताकार पंखवत व्यवस्थित इमली के पत्तों की तरह होते है। पुष्प दंड लम्बा, जिसमें छोटे-छोटे पीले रंग के फूल गुच्छों में लगे होते है। फल गोलाकार आधे से एक इंच व्यास के, गूदेदार पीलापन लिये हरे और पकने पर लालवर्ण के हो जाते है। फलों पर छः रेखाये होती है। फल के भीतर षट्कोषीय बीज होता है। फरवरी -मई में इस पर फूल लगने शुरू होते हैं तथा अक्टूबर से अप्रैल तक फल मिलते हैं।
1. ग्राही, मूत्रल, रक्तशोधक और रुचिकाकार होने से आंवला अतिसार, प्रमेह, दाह, कामला, अम्लपित्त, विस्फोटक, पांडू, रक्तपित्त, वातरक्त, अर्श, बद्ध कोष्ठ, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, खांसी इत्यादि रोगों को नष्ट करता है। दृष्टि को तेज करता है। वीर्य को दृढ करता है। और आयु की वृद्धि करता है।
2. आवला त्रिदोष हर है। अम्ल से वात, मधुर शीत से पित्त तथा रुक्षकषाय होने के कारण कफ का नाश करता है।
3. आवला कुष्ठघ्न, ज्वरध्न व रसायन है।
4. आवला हृदय को बल देने वाला और शोणितस्थापन है।
5. आवला वृष्य और गर्भ स्थापन है।
6. आवला कफ पित्त-नाशक, प्रमेह कुष्ठ को नष्ट करता है। तथा आँखों के लिये हितकारी अग्निदीपक और विषम ज्वर को नष्ट करता है।
7. आँवला, हरड़, पिप्पली सब प्रकार के ज्वरों को नष्ट करता है।
8. आँवला थोड़ा मधुर, तिक्त, कषाय, कटु रस आँखों के लिये हितकारी, त्रिदोषनाशक, वृष्य, शुक्र वर्धक है।
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