अखरोट के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग

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अखरोट अनेक रोग की दवा जैसे:- मस्तिष्क दुर्बलता, हैजा, अर्दित, बवासीर, अपस्मार, नेत्ररोग, कंठमाला, दन्त, कास, स्तन, प्रमेह, वीर्य, शोथ, नासूर, नारू, वात, आंत्र कृमि, दाद आदि बिमारियों के इलाज में अखरोट के औषधीय प्रयोग निम्मलिखित प्रकार से किये जाते है:अखरोट के गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग

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अखरोट का निम्मलिखित भाषों में नाम

हिंदी नाम : अखरोट
अंग्रेजी : Walnut, Walnut tree
संस्कृत : अक्षोट, अक्षोड
गुजराती : વોલનટ, अखरोड, अखोड
मराठी : अखरोड, अक्रोड
बंगाली : আখরোট, आखरोट, आक्रोट, आकोट
तेलगु : వాల్నట్अ, क्षोलमु
उर्दू : اخروٹ
अरबी : الجوز, जौज
पंजाबी : Walnut

Table of Contents

मस्तिष्क दुबर्लता में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट की गिरी को 25 से 50 ग्राम तक की मात्रा में नित्य खाने से मस्तिष्क शीघ्र ही सबल हो जाता है।

हैजा में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

हैजे में जब शरीर में बाइटे चलने लगते हैं या सर्दी में शरीर ऐंठता हो तो अखरोट तेल की मालिश करनी चाहिये।

अर्दित में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अर्दित में अखरोट के तेल की मालिश कर वात हर औषधियों के काढ़ा से बफारा देने से लाभ होता है।

अर्श में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

1. वात जन्य अर्श में अखरोट तैल पिचू को गुदा में लगाने से सूजन कम होकर पीड़ा मिट जाती है।

2. अखरोट के छिलके की भस्म 2 से 3 ग्राम को किसी विष्टम्भी औषधि के साथ सुबह, दोपहर तथा शाम खिलाने से रक्तार्शजन्य रुधिर बंद हो जाता है।

अपस्मार में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट गिरी को निर्गुन्डी के रस में पीसकर अंजन और नस्य देने से लाभ होता है।

नेत्र ज्योति में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

दो अखरोट और तीन हरड़ की गुठली को जलाकर उनकी भस्म के साथ 4 नग काली मिर्च को पीसकर अंजन करने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

कंठमाला में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट के पत्तों का क्वाथ 40 से 60 ग्राम पीने से व उसी काढ़ा से गांठो को धोने से कंठमाला मिटती है।

दन्त प्रयोग में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट की छाल को मुंह में रखकर चबाने से दांत स्वच्छ होते हैं। अखरोट के छिलकों की भस्म से मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं।

स्तन्यजनं में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

स्तन में दूध की वृद्धि के लिये गेंहू की सूजी 1 ग्राम अखरोट के पत्ते 10 ग्राम पीसकर दोनों को मिलाकर गाय के घी में पूरी बनाकर सात दिन तक खाने से स्तन्य (स्त्री दुग्ध) की वृद्धि होती है।

कास में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट गिरी को भूनकर चबाने से लाभ होता है। छिलके सहित अखरोट की भस्म कर एक ग्राम भस्म को 5 ग्राम मधु के साथ चटाने से लाभ होता है।

विरेचन में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट के तेल को 20 से 40 ग्राम की मात्रा में 250 ग्राम दूध के साथ प्रातः काल देने से कोष्ठ मुलायम होकर साधारणतः अच्छा दस्त हो जाता है।

आंत्र कृमि में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट की छाल का क्वाथ 60 से 80 ग्राम पिलाने से आँतों के कीड़े मर जाते हैं। अखरोट के पत्तों का काढ़ा 40 से 60 ग्राम की मात्रा में पिलाने से भी आँतों के कीड़े मर जाते है।

आर्त्तव जनन में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

मासिक धर्म की रुकावट में अखरोट फल के छिलके का काढ़ा 40 से 60 ग्राम की मात्रा में लेकर 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पिलाने से लाभ होता है। अखरोट फल के 10 से 20 ग्राम छिलकों को 1 किलो पानी में पकाकर अष्टमांश शेष काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से भी दस्त साफ़ हो जाता है।

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प्रमेह में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट गिरी 50 ग्राम, और विनोले की मींगी 10 ग्राम एक साथ कूरकर थोड़े से घी में भूनकर बराबर की मिश्री मिलाकर रखें, इसमें से 25 ग्राम नित्य प्रातः सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है। इस पर दूध न पीयें।

वीर्यस्राव में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट के फलों के छिलके की भस्म बना लें, और इसमें बराबर की मात्रा में खंड मिलाकर 10 ग्राम तक की मात्रा में जल के साथ 10 दिन प्रातः सांय तक सेवन करने से धातुस्राव या वीर्यस्राव बंद होता है।

वात रोग में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट की 10 से 20 ग्राम ताज़ी गिरी को पीसकर वेदना स्थान पर लेप करें, ईंट को गर्म कर उस पु जल छिड़क कर कपड़ा लपेट कर उस स्थान पर सेंक देने से शीघ्र पीड़ा मिट जाती है गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त शुद्धि होकर लाभ होता है।

शोथ में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट का 10 से 40 ग्राम तैल 250 ग्राम गौमूत्र में मिलाकर पिलाने से सर्वांग शोथ में लाभ होता है। वात-जन्य शोथ में इसकी 10 से 20 ग्राम अखरोट गिरी को कांजी में पीसकर लेप करने से लाभ होता है।

वृद्ध पुरुषों के बलवर्धनार्थ में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट 10 ग्राम गिरी को 10 ग्राम मुनक्का नियमित प्रातः खिलाना चाहिये।

दाद में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

प्रातः काल बिना मंजन कुल्ला किये अखरोट की 5 से 10 ग्राम गोरो को मुंह में चबाकर लेप करने से कुछ ही दिनों में दाद मिट जाती है।

नासूर में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट 10 ग्राम गिरी को महीन पीसकर मोम या मीठे तैल के साथ गलाकर लेप करें।

व्रण में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट छाल के काढ़ा से व्रणों को धोने से लाभ होता है।

नारू में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट की खल को जल के साथ महीन पीसकर आग पर गर्म कर नहरुबा की सूजन पर लेप करने से तथा उस पर पट्टी बाँध कर खूब सेंक देने से नारू 10-15 दिन में गल के बह निकलता है। अखरोट की छाल को पानी में पीसकर गर्म कर नारू के घाव पर लगावें।

अहिफेन विष में अखरोट की दवाएं एवं सेवन विधि

अखरोट की गिरी 20 से 30 ग्राम तक खाने से अफीम का विष और भिलावे के उपद्रव शांत हो जाते है।

अखरोट का परिचय

अखरोट के पतझड़ करने वाले बहुत सुंदर और सुगंधित वृक्ष होते है, इसकी दो जातियां पाई जाती है।

1. जंगली अखरोट 100 से 200 फिट तक ऊँचे, अपने आप उगने वाले तथा फल का छिलका मोटा होता है।

2. कृषिजन्य 40 से 90 फुट तक ऊँचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे कागजी अखरोट कहते हैं। इससे बंदूकों के कुंदे बनाये जाते हैं।

अखरोट के बाह्य-स्वरूप

अखरोट की नई शाखाओं का पृष्ठ मखमली, कण्डट्वक धूसर तथा उसमे अनुलम्ब दिशा में दारारें होती हैं। पत्तियां पक्षवत सघन, मूल रोमश, पत्रक संख्या में 5 से 13 तथा 3 से 8 इंच लम्बे, 2 से 4 इंच चौड़े, अंडाकार, आयताकार और सरल धार वाले पुष्प एकलिंगी हरिताभ, फल गोलाकार हरितवर्णी, दो पीले बिंदुओं से युक्त, फल त्वचा चार्मित एवं सुगंधित, गुठली 1 से डेढ़ इंच लम्बी, द्विकोष्ठीय रुपरेखा में मस्तिष्क जैसी पृष्ठ तल पर दो खण्डों में विभक्त तथा गिरी में काफी तेल पाया जाता है। बसंत में पुष्प तथा शरद ऋतु में फल आते हैं।

अखरोट के रासायनिक संघठन

अखरोट में 40 से 45 प्रतिशत तक एक स्थिर तैल पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें जुगलैडिक एसिड तथा रेजिन आदि भी पाये जाते है। इसके फलों में आक्जैलिक एसिड पाया जाता है।

अखरोट के गुण-धर्म

यह वात शामक, कफ पित्त वर्धक, मेध्य, दीपन,स्नेहन, अनुलोमन, कफ निःसारक, बल्य, वृष्य एवं बृंहण होता है। इसका लेप वर्ण्य, कुष्ठघ्न, शोथहर एवं वेदना स्थापन होता है। गिरी और इसके प्राप्त तैल को छोड़कर अखरोट के शेष सब अंग संग्राही होते हैं।

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