अकरकरा के अलौकिक फायदे
अकरकरा अनेक रोग की दवा जैसे:- मस्तक पीड़ा, दांत, बुखार, खांसी, मासिक धर्म, मुख दुर्गन्ध, पेट दर्द, लकवा, हृदय रोग, बुद्धि विकास, हकलाना, कंठ रोग, हिचकी, श्वांस आदि बीमारियों के इलाज में अकरकरा के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते हैं, अकरकरा के औषधीय गुण, फायदे, नुकसान एवं औषधीय प्रयोग:-
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मस्तकपीडा में अकरकरा की जड़ को पीसकर ललाट पर हल्का गर्म कर लेप करने से मस्तक की पीड़ा मिटती है। अकरकरा को दांतों के बीच में रखने से मस्तक पीड़ा मिटती है। अकरकरा को चबाने से लार छूटकर दाड़ की पीड़ा मिट जाती है।
दन्त पीड़ा में अकरकरा और कपूर दोनों को बराबर लेकर पीसकर मंजन करने से सभी प्रकार की दन्त पीड़ा में लाभदायक होती है। अकरकरा जड़ के क्वाथ से दन्त पीड़ा दूर होती है और हिलते हुए दांत स्थाई हो जाते हैं।
बुखार में अकरकरा की जड़ के चूर्ण को जैतून के तैल में पकाकर शरीर पर मालिश करने से पसीना आकर ज्वर उत्तर जाता है। चिरायते के 4-6 बूंद अर्क के साथ अकरकरा 500 मिलीग्राम की फंकी देने से निरंतर रहने वाला ज्वर शीघ्र ठीक हो जाता है।
खांसी में अकरकरा का 100 मिलीग्राम काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने पुरानी खांसी मिटती हैं। अकरकरा के चूर्ण का 3-4 ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से यह बलपूर्वक दस्त के रास्ते से कफ को बाहर निकाल देता है।
मासिक धर्म में अकरकरा का 100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम नियमित सेवन करने से मासिक धर्म में लाभ पहुंचता है।
मुख दुर्गन्ध में अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रिण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूढ़ों के दर्द दूर होकर दुर्गंध मिट जाती है।
पेट के दर्द में अकरकरा की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर छोटी पिप्पली का चूर्ण सामान्य भाग में लेकर आधा चम्मच सुबह शाम भोजन के उपरांत सेवन करने से लाभ होता है।
लकवा में अकरकरा को बारीक पीसकर महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से लकवा में लाभदायक होता है। अकरकरा मूल का चूर्ण 500 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ प्रातः-सांय चाटने से लकवा में लाभ होता है।
हृदय रोग में अर्जुन की छाल और अकरकरा चूर्ण दोनों का बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी में लाभ होता है। कुलजन, सौंठ और अकरकरा की 20-25 मिलीग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर चतुर्थाश काढ़ा पिलाने से हृदय रोग मिटता है।
बुद्धि विकास में अकरकरा और ब्राही समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें, आधा चम्मच नियमित सेवन करने से बुद्धि शक्ति बढ़ जाती है।
हकलेपन में अकरकरा के मूल चूर्ण को काली मिर्च व शहद के साथ एक ग्राम की मात्रा में मिलाकर जिह्वा पर 4-6 हफ्ते मलने से जीभ का सूखापन और जलन दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है।
कंठरोग में अकरकरा चूर्ण की 250-500 मिलीग्राम मात्रा में फंकी लेने से बच्चों और गायकों का कंठस्वर सुरीला हो जाता है। कंठरोग तालू, दांत और गले के रोगों में अकरकरा को कुल्ले करने से बहुत लाभ होता है।
हिचकी आने पर एक ग्राम अकरकरा का चूर्ण शहद के साथ चटायें। हिचकी का शीघ्र ही पतन हो जाता है।
श्वांस में अकरकरा के कपड़छन चूर्ण को सूँघने से श्वांस की बीमारी दूर होती है।
साटिका रोग में अकरकरा के मूल चूर्ण को अखरोट के तैल में मिलाकर मालिश करने से साटिका रोग दूर हो जाता है।
अकरकरा को बताये हुई मात्रा से अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए। अकरकरा के साथ मुनक्का और कतीरा गोंद का प्रयोग नहीं करना चाहिए खतरनाक सावित हो सकता है।
अकरकरा मूल रूप से अरब का निवासी कहा जाता है, यह भारत के कुछ हिस्सों में उत्पन्न होता है। वर्षा ऋतु की प्रथम फुहारे पड़ते ही इसके छोटे-छोटे पौधे निकलना शुरू हो जाते हैं। अकरकरा की जड़ का स्वाद चरपरा और मुंह में चबाने से गर्मी महसूस होती है तथा जिह्वा जलने लगती है। गुण-धर्म में अरब से आयातित औषधि अधिक वीर्यवान होती है।
अकरकरा के झाड़ीदार, रोंएदार होता है। काण्ड पर ग्रंथियां होती है। काण्ड़त्वक धूसरवर्ण और तिक्त, मूल 3-4 इंच लम्बा, आधा इंच मोटा, पुष्प श्वेत बैंगनी और पीले होते हैं। अकरकरा की शाखाएं, पत्र और पुष्प सफेद बबूने के समान होते हैं, परन्तु अकरकरा की डंठल पोली होती है। महाराष्ट्र में अकरकरा की डंडी का अचार और शाक बनाकर खाया जाता है।
अकरकरा की जड़ का मुख्य सक्रिय तत्व पाइरेथीं नामक तत्व होता है जो रंगहीन क्रिस्टल के रूप में प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त अंशतः उड़नशील तेल, स्थिर तेल, 50 प्रतिशत इन्युलिन तत्व पाया जाता है।
अकरकरा के बलकारक, कटु तथा प्रतिश्याय और शोथ को नष्ट करता है। अकरकरा के लालास्रावजनक, प्रदाहकारक नाड़ी को बल देने वाला कामोद्दीपन और वेदनास्थापक है।
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