अजमोद अनेक रोग की दवा जैसे:- गठिया, सिरदर्द, पेट दर्द, दस्त, उल्टी, बुखार, खांसी, पथरी, बवासीर, दन्त पीड़ा, गैस, स्वांस रोग, सफेद दाग आदि बीमारियों के इलाज में अजमोद के औषधीय चिकित्सा प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से किये जाते हैं:-Ajmoda Benefits And Side Effects In Hindi.
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गठिया रोग में अजमोद वायबिडंग, देवदारु, चित्रक, पिपला मूल सौंफ, पीपल, काली मिर्च 10-10 ग्राम हरड़, विधारा 100 ग्राम, शुंठी 100 ग्राम, सबको एक साथ पीसकर महीन चूर्ण बना ले। पुराना गुड़ 6 ग्राम की मात्रा में मिश्रित कर उष्ण जल के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से सूजन जोड़ों का दर्द, पीठ व जांघ का दर्द नष्ट हो जाता है।
सिरदर्द में अजमोद के गुदा को साफ करके इसका सेवन काफी की तरह सुबह-शाम निमियत प्रयोग करने से सिरदर्द में लाभदायक होता है। तथा पित्त के लिए भी लाभदायक है।
पेट दर्द में अजमोद 3 ग्राम की फंकी 1 ग्राम काले नमक के साथ देने से पेट का दर्द दूर होता है। अजमोदा तेल की 2-3 बुँदे 1 ग्राम की मात्रा में मिश्रित कर गर्म जल के साथ सेवन करने से पेट या उदर की पीड़ा मिटती है।
पतले दस्त में अजमोद, सौंठ, मोचरस एवं धय के फूल समान मात्रा में पीसकर चूर्ण बना ले, 6 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करने से पतले दस्त ठीक हो जाते है।
उल्टी में अजमोद के 2-5 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उल्टी (वमन) की आशंका दूर हो जाती है। 2-5 ग्राम अजमोद एवं 2-3 लौंग की कली को पीस कर 1 चम्मच मधु के साथ चाटने से लाभ होता है।
बुखार में अजमोद को 4 ग्राम तक नियमित प्रातः ठन्डे पानी के साथ बिना चबाये निगलने से तेज बुखार या शरीर की सर्दी आदि दूर हो जाती है।
सुखी खांसी में अजमोद को पान में रखकर चूसते रहने से सूखी खांसी में आराम मिलता है। तथा पुरानी सी पुरानी खांसी जड़ से नष्ट हो जाती है।
पथरी में अजमोद का चूर्ण दो से तीन ग्राम तथा 10 ग्राम मूली के पत्तो के रस के साथ, 500 मिलीग्राम जवाखार मिलाकर कुछ समय तक नित्य प्रातः व शाम सेवन करने से पथरी गल कर निकल जाती है।
बवासीर में अजमोद को गर्म कर कपड़े में बांधकर सेक करने से बवासीर की पीड़ा दूर होती है। तथा बाहर निकली हुई मस्य सुख जाती है।
दन्त पीड़ा में अजमोद को जलाकर दांत में लेप करने से दांतों की पीड़ा मिटती है।
गैस के प्रकोप से बचाव के लिए अजमोद व नमक को स्वच्छ वस्त्र में बांधकर नलियों पर सेक करने से गैस (वायु) नष्ट हो जाती है।
श्वांस रोग में अजमोद में स्नायु शैथिल्यकर होने के कारण श्वसनी शोथ तथा श्वास रोगों में लाभकारी है। अजमोद को 3-6 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार प्रयोग करने से श्वांस रोग में लाभकारी होता है। अजमोद उत्तेजक और बलवर्द्धक है, श्वास को मिटाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
सफेद दाग में अजमोद के 2-5 ग्राम चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर 7 दिन तक दिन में दो-तीन बार सेवन करने से सफेद दाग ठीक हो जाता है।
भोजन के उपरांत यदि हिचकियाँ आती हो तो अजमोद के 10-15 दाने मुंह में रखने से हिचकी बंद हो जाती है।
1. अजमोद विदाही है, अर्थात खाने के पश्चात छाती में जलन पैदा करता है। गर्भायत्तोजक है, इसलिए अजमोदा का सेवन गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
2 . मिर्गी (अपस्मार) के रोगी को भी अजमोदा का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि अजमोदा के सेवन से मिर्गी और अत्याधिक तेजी से शरीर में प्रभावित होती है।
अजमोद भारतवर्ष में सर्वत्र, विशेषकर बंगाल में शीत ऋतु के आरम्भ में बोई जाती है। हिमालय के उत्तरी पश्चिमी प्रदेशों में, पंजाब की पहाड़ियों पर, पश्चिमी भारतवर्ष और फारस में बहुलता से होता है। फरवरी-मार्च में पुष्प खिलते है और मार्च-अप्रैल तक पुष्प फल में परिवर्तित होने पर पौंधा समाप्त हो जाता है।
अजमोद के छोटे-छोटे क्षुप अजवायन की भाँती 1-3 फुट ऊँचे पत्ते विभक्त और किनारे कटे हुए होते हैं। पुष्प छतरीनुमा पुष्पक्रम में नन्हें-नन्हें श्वेत रंग के होते हैं जो पककर अंततः बीजों को ही अजमोद कहते हैं।
अजमोद में कपूर से मिलता- जुलता एक पदार्थ एपीओला, तैलीय तीक्ष्ण और अग्राहा होता है। इसके अतिरिक्त गंधक, उड़नशील तेल, एल्ब्युमीन, लुआब, गोद, क्षार और कुछ लवण पाये जाते हैं।
यह कफवातशामक, पित्तवर्धक, वेदनास्थापन, विदाही, दीपन, वातनुलोमन, शूलप्रशमन, कृमिघ्न, हृदयोत्तेजक, कफध्न, मूत्रप्रवर्तक, गर्भाशयोत्तेजक और वाजीकरण है। यह हिचकी, वमन, गुदाशय की पीड़ा, कुक्कुर खांसी में लाभकारी है। पाचन अंगों पर इसका क प्रभाव होने से उदर विकार-नाशक औषधियों में इसे मुख्य स्थान प्राप्त है। यकृत, प्लीहा और हृदय को यह लाभ पहुंचती है। अर्श और पथरी रोग में भी यह लाभकारी है।
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